STORYMIRROR

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

4  

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Classics

बुलावा

बुलावा

6 mins
218

रमन श्रीवास्तव जब से बिहार राज्य विद्युत बोर्ड से सुपरटेंडिंग इंजीनियर के पद से रिटायर हुए हैं अपने होम टाउन आरा में सेटल्ड हो गए हैं। कल तक अधीनस्थ कर्मचारी और ठीकेदार आगे पीछे जी हजूरी करते थे। सबको यह इंतजार रहता कि साहब कब हमको भी सेवा का मौका देंगे।

अब वह रुतबा अतीत के पन्नों में समा गया। वह रोज की भाँती शाम को टहलकर आकर पार्क में ज्येष्ठ नागरिकों के लिए बने बेंच पर पैठे थे तभी सामने से एक आदमी मुस्कुराता हुआ उनकी तरफ बढ़ा चला आ रहा है। रमन जी की दूर की नजर वैसे भी कमजोर हो गयी थी लेकिन इतनी भी नहीं कि अपने कॉलेज के जमाने के करीबी दोस्त को नहीं पहचान पाए।नजदीक आते ही विमल कुमार ने कहा " क्या बे रमनु क्या हाल है ?"

 "रमनु" सुनते ही रमन जी की दुविधा दूर हो गयी। उनका वही पुराना दोस्त विमल है जिसने साथ में मिलकर बहुत मस्तिखोरी की है। लगभग तीन दशक बाद दोनो की फेस टू फेस मुलाकात हो रही थी। दोनो दोस्तों ने मिलकर अपने अतीत के पन्ने पलटने लगे। बीच में कभी कभी वर्तमान का भी कोई पन्ना उघर जाता। विमल PWD से चीफ इंजीनियर के पोस्ट से रिटायर हुआ है। वह यहाँ अपने बेटी से मिलने आया है। उसका दमाद ही आजकल आरा का SDM है और बेटी वकील है। 

विमल ने पूछा तुम भी तो रिटायर हो गए हो ना!! किस पोस्ट से रिटायर हुए तुम , मैं तो रिजर्वेशन के बदौलत चीफ इंजीनियर की कुर्सी तक पहुँच गया। क्या कहूँ यार मैं तो बड़ी मुश्किल से सुपरटेंडिंग के पोस्ट तक पहुँच पाया , आखिर फारवर्ड कास्ट का जो ठहरा।

फिर विमल ने अपनी कोट की जेब से सिगरेट का डिब्बा निकाला और बोला ले फिर साथ में कश लगाते हैं - अपना वाला विल्स नेवी कट।

रमन ने साफ मना कर दिया और बोला मुझे सिगरेट छोड़े लगभग पंद्रह साल से ऊपर हो गया।

अब चौंकने की बारी विमल की थी। उसने आश्चर्य से पूछा तुमने सिगरेट पीना छोड़ दिया ? असम्भव, यह चमत्कार कैसे हो गया ? मुझे भी सिगरेट पीना तो तुमने ही सिखाया था। बहुत खास वजह रही होगी तुम्हारे सिगरेट छोड़ने का, मुझे बतावो वो क्या है जिसने तुमसे सिगरेट छोडवा दिया ?

रमन ने गहरी साँस लेते हुए कहना प्रारम्भ किया। यह उस समय की बात है जब मैं विक्रमगंज में सहायक इंजीनियर के रूप में पोस्टेड था। वहाँ पर मेरी मुलाकात हकीम नूरहसन से हुई। वो बहुत ही काबिल हकीम थे। वो खाली पेट किसी भी मरीज को देखते थे। हाथ में नब्ज पकड़ते ही आपके पुरे शरीर का डायग्नोसिस कर देते थे। तुम तो जानते हो स्टूडेंट लाइफ से ही मुझे कब्ज की शिकायत थी। मेरे एक ठीकेदार ने उनसे मिलने का सलाह दिया लेकिन साथ में यह हिदायत दिया कि पहली बार उनके पास आप खाली पेट जाना। उनके यहाँ जाते समय मैंने विजय स्वीट्स में दो जलेबी और मलाई खा लिया। यह सोचकर की उनको क्या पता चलेगा। लेकिन उन्होंने नब्ज पकड़ते ही कहा कि आप अगले हप्ते आना क्योंकि आप खाकर आए हो। मैंने बहाना किया कि मैंने कुछ भी नहीं खाया है। इसपर नाराज होते हुए उन्होंने कहा मेरे अनुभव को आप चैलेंज मत करो। आपने थोड़ी देर पहले जलेबी खाया है। मैं उनके सामने नतमस्तक हो गया और स्वीकार किया कि यह सोचकर खा लिया था कि दो पीस जलेबी खाने से आपको क्या पता चलेगा। 

अगले हप्ते नियत समय पर खाली पेट मैं गया उसके बाद उन्होंने जो हकीमी दावा मुझे दिया मेरा कायाकल्प हो गया। मैं उनका भक्त हो गया।वो बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति और नेक नियत के इंसान थे। वक्त के साथ हमलोगों में आत्मीयता काफी बढ़ गयी।

वो हर बात में कहते अजमेर वाले बाबा की मर्जी। वो जब भी फुरसत में होते अजमेरशरीफ के दरगाह और बाबा के चमत्कार की कहानियां सुनाते। उनकी बातों से प्रभावित होकर मेरी भी इच्छा हुई कि मैं भी अजमेर शरीफ में अपनी हाजरी लगाऊँ। मैं उनसे बार-बार कहता चलिए अजमेर से हो आते हैं। लेकिन उनका एक ही जबाब होता जब बुलावा आएगा तो जरूर चलेंगे। 

अब मैं उनसे सिर्फ यही पूछता बुलावा आया क्या ? और वो इनकार में सिर हिलाकर माना कर देते।

एक रोज मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था कि हकीम साहब मेरे घर आ गए। मेरे से कहा रमन जी चलो बुलावा आया गया है। मैंने पूछा कब चलना है? हकीम जी ने कहा बस अभी चलो साढ़े दस बजे की ट्रेन है। मुझे उनपर इतना भरोसा था कि मैंने आगे कुछ नही पूछा और चपरासी के हाथों लीव एप्लीकेशन भेजकर हकीम साहब के साथ चल दिया।

टिकट भी मिल गया और सीट भी मिल गया।रास्ते में मैंने पूछा हकीम जी बुलावा कैसे आया आपको ?

उन्होंने हँसते हुए कहा देखो , एक सज्जन के पास मेरा इलाज का पैसा बाकी था। मैं भूल चुका था। क्योंकि बीच में उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। कुछ महीने पहले उनका इंतकाल हो गया। उनके बच्चे अब अच्छा कमाते हैं और दूसरे शहर में रहते हैं। उनका बड़ा बेटा जब उनका समान सहेज रहा था तो उसमे एक डायरी मिली जिसमे लिखा था कि उनको मुझे तीन हजार देना बाकी है। उनका बेटा कल वो पैसा लाकर मुझे दे गया। मैं नहीं ले रहा था तो उसने कहा कि यदि आप नहीं लेंगे तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। मज़बूरन मैंने पैसा ले लिया और रात को सोते समय मैंने अजमेर वाले बाबा से कहा कि आप ही बतावो इस पैसे का क्या करूँ।उन्होंने मुझे सपने में कहा की मेरे से मिलने आ जावो। बस मैं जा रहा हूँ। 

हमलोगों ने वहाँ पहुँचकर सजदा किया। दरगाह से बाहर निकलते ही मुझे सिगरेट की तलब हुई। लेकिन उसके आजूबाजू में मुझे सिगरेट का कोई दुकान नहीं दिख रहा था। पैदल चलते हुए हकिम जी थोड़ा आगे निकल गए और मेरी आँखें सिगरेट तलाश रहीं थी। तभी एक आदमी मेरे पास आकर बोला सिगरेट लेंगे क्या ?

मैंने हाँ में सिर हिलाया और उस आदमी ने मेरी पसंद वाली ब्रांड विल्स मेरी तरफ बढ़ाया और लाइटर से जला भी दिया। अब मैं कश लेते आगे बढ़ने लगा। इतने में हकीम साहब ने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे हाथ मे सुलगता सिगरेट देखकर उनको बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा आपको इस एरिया में सिगरेट कहाँ से मिला। मैंने सारी बात उनको बता दिया - एक अनजान आदमी ने रास्ते में दिया। हकीम साहब ने कहा आपने माँगा भी तो सिगरेट माँगा। आज आप जो माँगते आपको मिल जाता। अपने बहुत बड़ा मौका खो दिया। आप उनके बुलावा से आए थे वो आपकी हर चाहत को पूरा करते लेकिन आपने केवल सिगरेट की चाह रखी।

उस दिन से मैंने सिगरेट को हाथ नहीं लगाया।पता नहीं कब बुलावा आए और मैं सिगरेट में ही उलझा रह जाऊँ।

अब तो हकीम साहब भी खुदा को प्यारे हो गए लेकिन उनका बनवाया हुआ नूरानी मस्जिद उनकी शख्सियत को बयां करती है।

ऐसी रूहानी एहसास नसीब वालों को भी नसीब से नसीब होता है। जब हैसियत से ज्यादा मिले तो नसीब, जब आपकी जरूरत भर मिले तो खुशनसीब और जिसकी जरूरत कभी पूरी नहीं हो वह बदनसीब।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics