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Savita Negi

Romance

4  

Savita Negi

Romance

बरसात

बरसात

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उफ्फ! कितनी तेज बारिश थी। लगता था मानों बादल ही फट गया हो। ऊपर से तेज हवा बारिश की मोटी-मोटी बूंदों को लहराती हुई इधर से उधर पहाड़ी के इस पार तो कभी उस पार पटक रही थी। ऊँचे-ऊँचे चीड़ के वृक्ष लय बद्ध होकर ऐसे झूम रहे थे, मानो प्रकृति के संगीत में नृत्य कर रहे हो । पहाड़ी के कोने-कोने से छोटे छोटे झरने अपना रास्ता बनाकर यूँ बहने लगे जैसे मुहँ चिड़ा रहे हों कि 'आज हम सभी बंधनो से मुक्त हैं।'

इतनी तेज बारिश में नैना दौड़ लगाते हुए उस छोटे से बस स्टॉप तक पहुँचने की भरसक प्रयत्न कर रही थी जो थोड़ी सी चढ़ाई के बाद पहाड़ी से सट कर बना था। घने वृक्षों के बीच बसा छोटा सा खूबसूरत पहाड़ी शहर, देखने में वैसे तो बहुत खूबसूरत लगता है परंतु प्रकृति का कठोर रूप यहाँ डरावना भी लगता है। भागते-भागते नैना की चप्पल टूट गयी। साड़ी बदन से जा चिपकी , फ़िर भी जैसे तैसे बस स्टॉप तक पहुँच ही गई । सड़कें सुनसान थी। ठंड से कांपती हुई, चेहरे पर आए हुए बालों को समेटते हुए वहीं सिमट कर बैठ गयी।

 ये बरसात जैसे तपती हुई धरती पर गिरते ही उसकी गर्मी को कुरेद जाती है, वैसे ही हमारे दिलों में बसी कुछ विशेष यादों को कुरेद कर जगा भी देती है। 

ऐसे ही एक बरसात की शाम को निखिल ने नैना को बाहों में भरते हुए अपने अधरों को उसके भीगे ललाट पर स्पर्श कराते हुए उसे प्रेम का अनमोल तोहफा दिया था। संकुचाई सी नैना भी निखिल की गर्म सासों को महसूस करती हुई खुद को उसे सौंपते हुए उसके स्पर्श में खो सी गयी थी। 

दोनों एक ही स्कूल में पढ़ाते थे। निखिल पहले से स्कूल में शिक्षक था, जबकि नैना बीएड कर रही थी । बीएड में प्रैक्टिकल देने के लिए निखिल के स्कूल में जाना होता था। तभी से दोनों में दोस्ती हुई थी। बीएड के बाद निखिल ने ही उसको अपने स्कूल में नौकरी दिलवाई थी। हालांकि दोनों की नौकरी पक्की नहीं थी। दोस्ती धीरे-धीरे प्रेम में बदल गयी। नैना हमेशा दो टिफ़िन बनाकर लाती, एक अपने लिए दूसरा निखिल के लिए। अक्सर दोनों स्कूल के बाद 'लवर्स पॉइंट' में जाते थे कुछ हसीं लम्हा, तन्हा में बिताने के लिए। ऐसी जगह जो ऊँची चोटी पर बनी थी। 

 'देखो निखिल डूबते हुए सूरज को, ये रोज हमें देखता है हमारे प्रेम का गवाह है।" नैना के ऐसा कहते ही निखिल उसे अपने आगोश में खींच लेता और नैना भी उसकी बलिष्ठ भुजाओं में सिमटती चली जाती।

एक दिन स्कूल के स्टाफ में बड़ी हलचल थी। एक नई शिक्षिका के स्वागत में, तनुजा । तनुजा के पिता बहुत बड़े वकील थे। पूरा शहर उनको जानता था। वही रुतबा तनुजा के व्यक्तिव में झलक रहा था। बोलचाल से ही चटक भटक लग रही थी। आंखों को मटकाकर बात करना, एक अदा थी उसके अंदर। सुनहरे बाल, सुर्ख लाल गाल, गुलाबी होंठ, सभी को उसकी तरफ आकर्षित कर रहे थे। खासतौर से सभी पुरुष स्टाफ़ को। जो उस वक़्त उसको घेर कर खड़े थे। तनुजा ने निखिल की तरफ हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया तो निखिल घबराया सा हैलो कहता हुआ पीछे हट गया।

 तनुजा ने निखिल के बराबर वाली कुर्सी को ही अपना बना लिया । ये कहते हुए की 'दोनों का विषय एक ही है तो कुछ पूछने के लिए ठीक रहेगा।'

निखिल गरीब घर से था, बहुत महत्वाकांक्षी भी। अपने पैर जमाने की कोशिश में लगा रहता था। परंतु हर बार असफल हो जाता था। धीरे-धीरे तनुजा और निखिल में ज्यादा बात चीत होने लगी। अक्सर तनुजा अपने पिता के ऊँचे लोंगों से अच्छे संबंध गिनाती रहती थी और निखिल को भरोसा दिलाती थी कि उसके पिता उसकी चुटकी में कहीं भी अच्छी जॉब लगा देंगे। अब जब भी निखिल और नैना साथ में होते तो निखिल तनुजा की तारीफ़ कर ही देता था। परंतु नैना को तो अपने प्यार में पूरा भरोसा था। तनुजा अक्सर निखिल के सामने ही नैना के पहनावे की भी मज़ाक उड़ा देती। उस वक़्त निखिल की खामोशी देख नैना को बहुत दुख होता था। 

"अरे निखिल आज तुमने टिफ़िन नहीं खाया ?"

"हाँ वो, आज तनुजा टिफ़िन लाई थी तो उसके साथ ही खा लिया।"

उसके लिए भले ही छोटी सी बात हो परंतु नैना को अंदर तक चुभ गयी थी ये बात। उसकी बेरुखी बढ़ती जा रही थी। उसे अपना सब कुछ सौंप चुकी थी, बुरा कैसे नहीं लगता ?

 नैना ने भी तनुजा की तरह खुद को संवारना शुरू किया। परन्तु निखिल पहले की तरह ध्यान नहीं देता था। शिकायत करने पर हमेशा येही बोलता "नहीं यार ऐसा कुछ नहीं है।"

एक दिन नैना की तबियत खराब हो गयी। हाफ़ डे लेकर डॉ के पास गयी। डॉ ने जो बताया उसे सुनकर नैना के पैरों तले जमीन खिसक गई। "आप प्रग्नेंट हो।" 

नैना ने जल्दी से निखिल को फोन करके बुलाया, उसे सारी बात बताई। 

"जितनी जल्दी हो सके एबॉर्शन करा लो। मैं अभी खुद सेटल नहीं हूँ, तुम दोनों की जिम्मेदारी नहीं ले सकता। मुझे बहुत कुछ करना है लाइफ में।"

"शादी कर लेते हैं।"

"पागल हो क्या ? मैं माँ और दो बहनों का बोझ नहीं उठा पा रहा हूँ तो तुम दोनों ? ?" निखिल के झल्लाने से नैना डर गई। कुछ दिनों तक निखिल से मनुहार करती रही कि इस स्थिति के लिए वो भी बराबर जिम्मेदार हैं, उसे अकेला न छोड़े। अकेले कहाँ अस्पताल के चक्कर काटेगी। लोंगो को पता चल गया तो ? ? परंतु निखिल का दवाब बढ़ने से एक दिन नैना मुहँ छिपाते हुए अस्पताल गयी। इस प्रेम भरी पाप की निशानी को खत्म करने। बहुत डरी हुई कि नर्स और डॉ को क्या बोलेगी ? निखिल अंदर नहीं आया। बाहर ही नजऱ गड़ाकर खड़ा था। थोड़ी देर बाद नैना घर लौट आई । 

निखिल आश्वस्त था कि नैना ने वैसा ही किया जैसा वो चाहता था । निखिल के व्यवहार से नैना टूटती चली गयी। एक दिन पता चला कि निखिल की एक बड़े शहर में बहुत अच्छी नौकरी लग गयी। नैना से जल्द मिलने का वादा कर निखिल चला गया। कुछ दिन बाद तनुजा भी स्कूल छोड़कर चली गयी। स्टाफ़ में दबे मुहँ बातें तो होती थीं कि शायद निखिल और तनुजा ने शादी कर ली। परंतु नैना का मन नहीं मानता था।

निखिल फिर लौटकर नहीं आया। पीछे छूट गयी नैना और उसके दिल में बसी पहले प्यार की कड़वी यादें। उस शहर में रहकर निखिल के प्यार और धोखे को भुला पाना मुश्किल था । वो स्कूल का स्टाफरूम , पहाड़ी नदी का किनारा या फ़िर प्रेमी युगल के लिए बनाये गए लवर्स पॉइंट, 

एक एक जगह उसकी अधूरी कहानी का एहसास दिलाते थे। नैना भी उस जगह को छोड़कर दूसरे शहर चली गई और वहीं पढ़ाने लगी। 

 बारिश की झड़ी थम चुकी थी और बस स्टॉप में बैठी नैना की आंखों में आसुंओ की झड़ी चालू थी। पंद्रह साल बीत गए, आज भी जब-जब बरसात होती है निखिल का धोखा, एक प्रेम भरी गलती के रूप में आँसू बनकर टपकने लगता है। पल्लू से चेहरे को साफ कर, टूटी चप्पल को थामे जैसे ही चलने लगी एक बड़ी सी गाड़ी उसके सामने रुक गयी।

 कुछ जाना पहचाना सा चेहरा उसमें से उतर कर उसकी ओर आने लगा ।  

"बहुत दिनों से तुम्हें खोज रहा था, आज जाकर मिली हो। कैसी हो नैना ?" 

निखिल को इतने सालों बाद अचानक सामने देखकर नैना के चेहरे मे क्रोध, घृणा और आश्चर्य के मिश्रीत भाव उभरने लगे। उस पल नैना अपने अंदर उमड़ते भावों को शब्दों का रूप न दे सकी ।

"मै तुम्हारा दोषी हूँ। बहुत बार तुम्हें सच्चाई बताने की सोची लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया । तनुजा के पिता ने मेरी बहुत अच्छी नौकरी लगवाई थी लेकिन शर्त ये थी कि तनुजा से शादी करनी होगी। ऊंचा औहदा पाने के लालच में सब कुछ भूल गया और स्वार्थी बन गया। 

 शादी के पंद्रह साल बाद भी बेऔलाद हूँ। तनुजा कभी माँ नहीं बन सकती थी ये बात मुझसे छुपाई गई थी। शायद ईश्वर ने मेरे पाप का फल मुझे दिया है । उस वक़्त तुम कितनी पीड़ा से गुजरी होगी उसका एहसास मुझे  दिन रात कटोचता रहता है।

 बहुत हिम्मत करके तुमसे माफी मांगने के लिए आया हूँ, मेरा गुनाह माफ़ी योग्य तो नहीं है फ़िर भी हो सके तो मुझे माफ़ कर देंना। 

वो.... वो.....मुझे ये भी पता चला कि तुमने शादी क्यों नहीं की, क्या मैं उसे एक बार........निखिल अपनी बात पूरी करता ....... कि तभी दूसरी तरफ से एक पंद्रह साल का लड़का हाथ में शाल लिए दौड़ता हुआ नैना की तरफ आया "माँ... माँ.... मुझे पता था यहीं मिलोगी, भीग गयी न, ये लो शाल , जल्दी ओढो वरना ठंड लग जाएगी.. अब चलो घर।"

 नैना मुस्कराते हुए अपनी चुनी हुई मंजिल के साथ हाथ पकड़ कर खुशी-खुशी चल दी। उसने एक बार भी पिछे मुड़कर नहीं देखा। मन में ईश्वर का धन्यवाद करते हुए कि अगर उस दिन अस्पताल में उसको हिम्मत न दी हुई होती तो आज उसका बेटा प्रेम उसके साथ नहीं होता।

निखिल आश्चर्य और भावुक होकर सजल नेत्रों से अपने अंश को जाते हुए देख रहा था। उसे एहसास हो रहा था कि वो कितना तुच्छ निकला । आज उस मंजिल का हमराही वो भी हो सकता था परंतु अपने स्वार्थ के चलते उसने ये सुख हमेशा के लिए खो दिया।


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