Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Mukta Sahay

Abstract

4.0  

Mukta Sahay

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बंधन अनूठी दोस्ती के

बंधन अनूठी दोस्ती के

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95


पिया, पारुल, महक, सुमन और गीत पाँच बहुत ही अच्छी सहेलियाँ थी। बचपन की इस दोस्ती को कितने ही तूफ़ान और आँधियाँ हिला नही पाईं थी। यूँ तो कहते हैं की लड़कियाँ अच्छी दोस्त नही होती हैं। जब तक साथ रहती हैं, निभाती हैं, अपने-अपने घरों के संस्कार के दायरे में रह कर और जब समय के साथ अलग हो जाती हैं तो उनकी दोस्ती कहीं लुप्त सी हो जाती है। लेकिन इन पाँच लड़कियों की दोस्ती में कुछ ख़ास था। 

इन पाँचों के परिवार एक दूसरे के परिचित थे और मुहल्ले में आस-पास ही रहते थे। हम उम्र होने के कारण इनमें दोस्ती हो गई। शायद एक आधा साल का अंतर होगा इन सब के उम्र में, कोई पाँच की थी तो कोई साढ़े पाँच या छः की जब इनकी दोस्ती हुई थी। एक ही स्कूल में जाना, स्कूल के लिए घर से साथ ही निकलना, साथ ही स्कूल से घर आना, शाम में साथ ही खेलना, इन पाँच की अपनी ही दूनिया थी। घर वाले भी इनके साथ को अच्छा समझते थे।

स्कूल फिर कालेज में भी इन पाँचों का साथ। अब इन पाँचो के अलग-अलग व्यक्तित्व नज़र आने लगे थे। पिया, महक और सुमन अपनी संस्कृति, सभ्यता और संस्कार को निभाने वाली आत्मसम्मान से पूर्ण युवतियाँ थी तो पारुल और गीत खुले हाथों से आधुनिकता को अपनाती, जीवन को अपने हिसाब से देखने वाली युवतियाँ थी जो समाज के सामने निडरता से अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने की हिम्मत रखती थीं। कहते हैं ना जीवन में अच्छे -बुरे, खट्टे-मीठे, तीखे-सादे का मिश्रण ज़रूरी है तभी जीने का मज़ा मिलता है वैसे ही या लड़कियाँ थी कोई तीखी तो कोई मीठी, कोई तेज तो कोई शांत। कालेज में सभी जानते थे की कोई ऐसी समस्या नही जिसका हाल इन दोस्तों के पास नही। जहां सौम्यता की ज़रूरत होती तो पिया थी, शालीनता के पुट चाहिये तो सुमन और शांत विचारों का समागम तो महक। वहीं किसी को अपने अधिकार की लड़ाई के लिए पारुल और ग़लत के विरूद्ध  आवज की ज़ोर चाहिए तो गीत। सभी एक दूसरे की पूरक थीं। 

एक समय ऐसा भी आया की एक एक करके सभी का विवाह होता गया और अलग-अलग शहरों में ये अपने गृहस्थी में फँसती गई। अब चिट्ठी, ई-मेल, फ़ोन ही इन्हें बांधते थे। नई जिम्मेदारियाँ, जगह की दूरी, समय का आभाव इन सभी के बावजूद अपने जन्मदिन पर पाँचों दोस्त साथ में बातें करते थे, दुःख-सुख साझा करते थे। समय बिताता जा रहा था। अब ये सभी अपने चालीस सावन के उतराव चढ़ाव देख कर, परिपक्व महिलायें बन गई थी जिनके पास जीवन के हर चुनौतियों का सामना करने के उपाय थे।

एक दिन अचानक पारुल ने महक, पिया और सुमन को फ़ोन किया, गीत नही थी उस कॉल में। पारुल ने बताया कि गीत की ज़िंदगी में अभी कुछ ग़लत हो रहा हैं और हम सहेलियों को मिल कर उसके लिए कुछ करना होगा। गीत जो हर ग़लत को होने से रोकने का दम रखती थी उसके साथ कुछ ग़लत। सभी थोडा चौंक सी गईं। पारुल ने बताया इस समय जा गीत का बेटा दसवी का परीक्षा देने वाला है उसका पति अपने ओफिस की एक महिला के साथ रहना चाहता है। चाहता क्या रहता है। चलो मान लेते हैं कहीं गीत और उसके पति के बीच कुछ भिन्नता,कुछ असमानता हो गई होगी जिसे बात कर के हाल किया जा सकता हो या फिर हो सकता है, सबकुछ हल होने की सीमा से बाहर ही हो गया होगा। ये भी हो सकता है, उस महिला का आकर्षण ही ऐसा हो की गीत का पति उसमें समाता चला गया हो। कुछ  भी हो लेकिन आज वह गीत के साथ नही रहता। मुझे इसपर कोई आपत्ति नही है दो परिपक्व व्यक्ति हैं और अपने जीने के ढंग का फ़ैसला ले सकते हैं। मेरी बात जब गीत से हुई तो मैंने उसे कहा की वह अपने पति से अलग हो जा। इस तरीक़े से रिश्ता ढोने की क्या ज़रूरत है। इस पर गीत ने जो जवाब दिया उसने मुझे व्यथित कर दिया और मैंने तुम सब से बात करना उचित समझा। सभी ने पूछा की गीत ने क्या कहा, पारुल ने बताया गीत ने कहा बेटा बड़ा हो गया है वह क्या सोचेगा अपने पिता के बारे में और फिर ये समाज क्या कहेगा मुझे, मेरे बेटे को। मैं वह सब कुछ नही बर्दाश्त कर पाऊँगी। जब तक निभता है निभाऊँगी। पारुल आगे कहती है गीत जैसी लड़की कैसे अपने लिए कोई कदम कैसे नही उठाना चाहती है, क़्यों वह कोई निर्णय नही लेना चाहती है, उसकी ऐसी बात ने मुझे अन्दर तक झकझोर कर रख दिया। 

आज तक हमने मिल कर कितनों की कितनी ही समस्यों का समाधान किया है, कितनी ही चुनौतियों को धूल चटाया है तो फिर हम सभी अपनी इस सहेली को कैसे ऐसे छोड़ दें। चारों ने निर्णय लिया की सभी तय तारीख़ को गीत के घर मिलेंगी, उसे बिना बताए। सभी तय तारीख़ को जमा हुई और अपने-अपने व्यक्तित्व के ख़ासियत के साथ गीत को अपने लिए सही निर्णय लेने के लिए राज़ी किया।

सहेलियों से मिली सलाह के अनुसार गीत ने अपने पति से आगे की ज़िंदगी के बारे में बात करी कि साथ रहना है या अलग रहने की चाह है उसकी। गीत ने पति को ये भी बताया की क़ानूनी रूप से अलग हुए बिना किसी और के साथ में रहना उसे किसी मुसीबत में भी डाल सकता है क्योंकि तब मैं तुम्हारी पत्नी हूँ। इस बात की आँच नौकरी पर भी आ सकती है। गीत ने इस बात का भी उल्लेख किया कि सही तरीक़े से अलग होने पर बेटे के सामने भी उसके पति को शर्मिंदा नही होना पड़ेगा। साथ ही वह यह भी पता कर लें की वह जिस महिला के साथ रहते है वह कितने दिन साथ रहेगी ताकि कोई भी फ़ैसला लेना आसान हो जाए। ये तो हुई गीत का सौम्यता, शालीनता और शांति के साथ अपने पति को समझना, अपना अधिकार बताना और अपने संस्कृति के अनुसार बांधे गए रिश्ते को बचाने की आख़री कोशिश करना। 

अब वह उस महिला से भी मिलती है उसे भी ये बताती है की अगर वह उसके पति के साथ किसी लम्बे रिश्ते की चाहत रखती है तो वह गीत के उसके पति से अलग हुए बिना सम्भव नही है अतः वह इस बात के लिए उसे राज़ी करवाए। यदि यह रिश्ता बस क्षणिक है तो वह यह बात उसे बता दे अन्यथा वह एक बसे बसाए घर को बर्बाद कर देगी। ये था गीत का ग़लत को ग़लत कहने का अपना तरीक़ा।

गीत आज खुश थी की उसके पति का चाहे जो भी निर्णय हो लेकिन उसने एक सही कदम उठाया अपने लिए। वह सोच रही थी की जैसे सारे रंगों का सही तालमेल ही किसी चित्र को सुंदर बनाते हैं, जैसे मसालों का सही मिश्रण ही व्यंजन को स्वादिष्ट बनता है वैसे ही जीवन में व्याप्त सारे भाव ही उसे सम्पूर्ण बनाते हैं और इन पाँच सहेलियों की ख़ास विशिष्टता ही इन्हें ख़ूबसूरत बनाती है।     


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