अक्षिता अग्रवाल

Tragedy Inspirational Children

4.5  

अक्षिता अग्रवाल

Tragedy Inspirational Children

भूत-प्रेत का साया

भूत-प्रेत का साया

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आज सुबह से ही मीरा बहुत खुश थी। तेज़ गति से दौड़ती ट्रेन की रफ़्तार भी मीरा को धीमी प्रतीत हो रही थी। अगर पाँच मिनट के लिए भी ट्रेन किसी स्टेशन पर रूकती तो मीरा को पल-पल भारी लगने लगता।

उसकी बेसब्री देखकर राघव मुस्कुराया और उसे छेड़ते हुए बोला ,“क्या बात है मैडम, इतनी बेसब्री तो कभी मुझसे यानी अपने होने वाले पति से मिलने के लिए भी नहीं हुई होगी आपको शायद आज तक”? मीरा हंँसी और शरारती लहजे में बोली, “हाँ, तो क्यों होगी? मैं तुमसे ज्यादा प्यार अपने भाई से जो करती हूँ। आज मैं उससे इतने सालों बाद मिलूँगी और अब मैं अपने भाई को हमेशा अपने साथ रखूँगी। बुआ जी और फूफा जी से भी मिलूँगी। बस इसीलिए राघव आज मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूँ। ऐसा कहते–कहते मीरा अचानक थोड़ी–सी मायूस हो गई।

मीरा को ऐसे देखकर राघव ने पूछा, “क्या हुआ? तुम अचानक ऐसे उदास क्यों हो गई ?मीरा ने राघव के कंधे पर सिर टिकाया और कहने लगी, “वह मैं सोच रही थी राघव, मम्मी–पापा के जाने के बाद मेरे शहर में रहने का खर्चा, पढ़ाई का खर्चा सब बुआ जी और फूफा जी ने ही मिलकर उठाया। यहाँ तक कि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ, इसीलिए पूरब को भी अपने साथ गांँव में रखा और उसकी परवरिश की। उन्होंने तो मेरी शादी भी करानी चाही पर मैंने ही उनसे कहा था कि, पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद और मेरी नौकरी लग जाने के बाद ही मैं शादी करूँगी। ताकि मेरी शादी के खर्चे का भार उन पर ना पड़े और मैं अपनी शादी का खर्चा और अपने छोटे भाई पूरब की परवरिश का खर्चा खुद उठा सकूँ। मैंने बुआ जी और फूफा जी से वादा किया था की, नौकरी लग जाने के बाद वह जिसे भी मेरा जीवनसाथी चुनेंगे, मैं उससे शादी कर लूंगी। अब जब मैं तुमसे प्यार करती हूँ तो मैं किसी और से शादी नहीं कर पाऊँगी। अगर बुआ जी और फूफा जी ने तुम्हें पसंद नहीं किया तो.....बस यही सोचकर थोड़ी–सी उदास हो गई थी । राघव ने मीरा का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, “मुझ पर विश्वास रखो मीरा, सब अच्छा होगा।"

बातें करते–करते मीरा और राघव कब गाँव पहुँच गए। उन्हें पता भी नहीं चला। स्टेशन से थोड़ी दूर ही मीरा की बुआ जी का घर होने के कारण और उन दोनों के पास ज्यादा सामान ना होने के कारण दोनों ने बुआ जी के घर तक पैदल ही जाने का निर्णय लिया। लगभग दस मिनट तक कच्चे रास्ते पर चलने के बाद मीरा और राघव बुआ जी के घर पहुँच गए।

घर पहुँचते ही मीरा और राघव ने बुआ जी और फूफा जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। मीरा ने अपने भाई पूरब को गले लगा लिया। पूरब भी अपनी दीदी को आया देख बहुत खुश हुआ क्योंकि, उसे पता था कि अब वह हमेशा अपनी दीदी के साथ शहर में रहेगा और पढ़ाई भी कर सकेगा क्योंकि, गांव में स्कूल ना होने के कारण पूरब पढ़–लिख नहीं पाता था।

सभी बैठकर एक–दूसरे का हालचाल पूछने लगे। तभी मीरा ने बुआ जी और फूफा जी को राघव के बारे में बताया। बुआ जी और फूफा जी राघव से मिलकर बहुत खुश हुए। राघव के विनम्र स्वभाव ने उनका दिल जीत लिया था और उससे ज्यादा वह दोनों इस बात से खुश थे कि, राघव पूरब को भी अपनाने को तैयार है।

मीरा:: बुआ जी, फूफा जी आप दोनों ने इतने सालों तक पूरब का ध्यान रखा है। आप दोनों का एहसान तो मैं कभी नहीं चुका पाऊँगी पर अब मेरी नौकरी लग गई है। अब मैं पूरब की जिम्मेदारी उठाने के लायक हूँ तो, मैं पूरब को अपने साथ ले जाने आई हूँ। अगर आप दोनों की आज्ञा हो तो.... मीरा के ऐसे पूछने पर बुआ जी ने कहा, “बेटा, वह तुम्हारा भाई है। उस पर पहला हक तुम्हारा है। उसे ले जाने के लिए तुम्हें आज्ञा की कोई ज़रूरत नहीं है और रही बात एहसान की, तो हमने अपना फर्ज़ पूरा किया है। बस अब तुम और राघव शादी कर लो और सब साथ में खुशी–खुशी रहो मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम लोगों के साथ है।"

बुआ जी से शादी की आज्ञा पाते ही राघव ने खुशी-खुशी बताया, “बुआ जी और फूफा जी हम दोनों सिर्फ पूरब को ही नहीं बल्कि आप दोनों को भी हमारे साथ ले जाने आएँ हैं। आखिरकार मीरा का कन्यादान तो आप दोनों ही करेंगे ना। यह बात सुनकर बुआ जी और फूफा जी बहुत खुश हुए और कल सुबह ही शहर वापस जाने का निर्णय लिया गया।

फूफा जी तो खुशी-खुशी शहर जाने की तैयारी करने लगे। तभी वहाँ बैठे राघव की नज़र पूरब पर पड़ी। जो उसे अपनी दीदी के पीछे से छुप-छुप कर देख रहा था। राघव ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने सामने लाते हुए बैठा दिया तो पूरब थोड़ा–सा डर गया। उसकी मासूमियत देखकर राघव ने हँसकर कहा, “अरे! साले साहब, आप को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। आखिर हम आपके होने वाले जीजाजी हैं। अब से हम सब साथ में ही रहेंगे तो क्या आप हमसे दोस्ती करेंगे? राघव ने अपना दाँया हाथ आगे बढ़ा दिया और पूरब अपना बाँया हाथ राघव से मिलाने ही वाला था कि, बुआ जी ने पूरब का हाथ रोक लिया और बोलीं, “यह लोग थक गए हैं बेटा, इन्हें आराम करने दे।" बुआ जी पूरब को खींचकर अंदर ले गईं। उनका पूरब को इस तरह से खींचकर ले जाना राघव को कुछ अजीब लगा। पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कुछ समय बाद सभी ने खाना खाया और सोने चले गए।

अगले दिन दोपहर को ही सभी लोग शहर के लिए रवाना हो गए। राघव ने ट्रेन में भी पूरब के साथ खेलने की कोशिश की पर बुआ जी ने पूरब को अपने पास ही बिठाए रखा। राघव को बुआ जी का व्यवहार थोड़ा–सा अजीब लग रहा था ।उसने बुआ जी से पूछ ही लिया,“क्या हुआ बुआ जी, कोई समस्या है क्या”? यह सवाल सुनते ही बुआ जी इधर-उधर देखने लगीं। फिर उन्होंने धीरे से कहा,“ देखो राघव बेटा, तुम पूरब से ज्यादा घुलने–मिलने की कोशिश मत करना। और तो और उसे अपने ज्यादा करीब भी ना आने देना। पूरब पर किसी भूत–प्रेत का साया है। हमने बहुत इलाज़ करवाया, तांत्रिक को दिखाया, ताबीज़ बाँधे, झाड़े भी लगवाए पर पूरब ठीक नहीं हुआ। मीरा यह सब सहन नहीं कर पाती इसीलिए उसे नहीं बताया।"

राघव एक पढ़ा-लिखा लड़का था। उसे भूत-प्रेतों जैसी बातों पर विश्वास नहीं था। पर एक बार को वह सोच में पड़ गया। अगले ही पल उसने मासूम से पूरब को देखा और बुआ जी की बात को भूल जाने का निर्णय लिया। कहीं ना कहीं उसके मन में शक जरूर बैठ गया था। पर पूरब की मासूम शरारतों को देखकर उसे वह बिल्कुल सामान्य लग रहा था। राघव यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर बुआ जी ने ऐसा क्यों कहा?

ट्रेन अपनी रफ़्तार से चलती रही और वह सभी लोग रात तक शहर पहुँच गए। शहर पहुँचने के अगले दिन मीरा की बुआ जी और फूफा जी, राघव के परिवार से मिले और उन्हें वह लोग बहुत अच्छे लगे। राघव का परिवार मीरा के साथ–साथ पूरब को भी खुशी-खुशी अपना रहा था। बुआ जी और फूफा जी को इसी बात का सबसे ज्यादा संतोष था। एक हफ्ते के अंदर ही मीरा और राघव की शादी हो गई क्योंकि, राघव के पिताजी को काम से कहीं बाहर जाना था। शादी के बाद बुआ जी और फूफा जी जाने की तैयारियाँ करने लगे। तभी राघव की माँ ने मीरा की बुआ जी को कुछ दिन और रुकने का आग्रह किया। उनकी बात का मान रख बुआ जी ने कुछ दिन और रुकने का निर्णय लिया पर फूफा जी वापस गाँव लौट गए।

अब घर में पाँच ही लोग रह गए। देखते ही देखते वक्त बीतने लगा। मीरा की सास और मीरा की बुआ जी के बीच अच्छी दोस्ती हो गई। वहीं दूसरी तरफ राघव और पूरब भी अच्छे दोस्त बन गए। सभी लोग साथ में बहुत खुश थे। पंद्रह दिन कैसे बीते किसी को पता ही ना चला और बुआ जी के वापस गाँव लौटने का वक़्त करीब आ गया। मीरा ने बुआ जी को एक साड़ी दिलाने के लिए अपनी सास के साथ बाज़ार जाने का प्लान बनाया।

अगले रविवार की सुबह मीरा अपनी सास और अपनी बुआ जी के साथ बाजार जाने के लिए निकल गई। पीछे राघव और पूरब घर में अकेले रह गए तो पूरब को बार-बार बुआ जी की कही बातें याद आने लगीं। परंतु पिछले इतने दिनों से पूरब को बिल्कुल सामान्य देख और उसे आराम से टीवी देखता देख राघव ने अपने विचारों को झटक दिया और अपने ऑफिस का काम करने लगा। कुछ देर बाद अचानक से पूरब का शरीर अकड़ने लगा, वह बेहोश होने लगा और उसके मुंह से अजीब–अजीब आवाजें आने लगीं। राघव घबराया और एक ही पल में बुआ जी की बातों का मतलब समझ गया। वह डरा नहीं। उसने पूरब को कार में बैठाया और डॉक्टर के पास ले गया। राघव ने मीरा को भी फोन पर सब बताया और सब को हॉस्पिटल बुला लिया।

कुछ ही समय बाद मीरा अपनी सास और अपनी बुआ जी के साथ हॉस्पिटल पहुँच गई। उसकी आँखों में से आँसू बह रहे थे। तभी उसे राघव डॉक्टर के केबिन में से बाहर निकलता हुआ नज़र आया और वह दौड़कर राघव के पास गई। मीरा ने पूरब के बारे में पूछा तो राघव ने बताया कि, अब वह ठीक है और आराम कर रहा है। राघव बेटा डॉक्टर ने क्या बताया? बुआ जी ने घबराते हुए पूछा, राघव बुआ जी के पास आया और बोला, “बुआ जी पूरब को मिर्गी की बीमारी है। इसका इलाज भी संभव है। इलाज थोड़ा लंबा होगा। दवाइयाँ लंबे समय तक खानी होंगी पर पूरब बिल्कुल ठीक हो जाएगा। उस पर कोई भूत–प्रेत का साया नहीं है।" यह बात सुन मीरा चौंककर राघव को देखने लगी तो राघव ने मीरा को सब बताया कि बुआ जी ने ट्रेन में क्या कहा था। साथ ही बोला कि, “मुझे तो पहले से ही भूत–प्रेत का साया जैसी बात पर कोई विश्वास नहीं था इसीलिए, तुम्हें भी नहीं बताया। लेकिन अभी जो घर पर हुआ, वह देखकर मैं समझ गया कि यह मिर्गी के लक्षण हैं। यानी पूरब को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। इसीलिए मैं तुरंत पूरब को लेकर डॉक्टर के पास आ गया।" मीरा ने राघव को धन्यवाद देते हुए कहा, “थैंक्यू राघव, जो तुम पूरब को टाइम पर डॉक्टर के पास ले आए। वरना ना जाने क्या होता।" राघव ने मीरा के आँसू पोंछे।तभी बुआ जी बोली, “मुझे माफ कर दे मीरा, अगर मैंने तुझे पूरब के बारे में पहले ही बता दिया होता तो शायद, आज तक वो ठीक भी हो चुका होता।"

मीरा:: बुआ जी इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। आज भी कई गांँव में शिक्षा और सही इलाज के अभाव के कारण लोग मिर्गी जैसी बीमारियों को भूत–प्रेत का साया समझ लेते हैं। बाबाओं और तांत्रिकों पर विश्वास कर झाड़-फूंक करवाते रहते हैं। किसी पर भी विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं। आज हर बीमारी का इलाज संभव है। अगर सही समय पर सही इलाज मिल जाए तो मिर्गी जैसी बीमारी भी ठीक हो सकती है। कई लोग इस बीमारी का सही समय पर इलाज नहीं करवा पाते और उनकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। पर मैं अपने भाई का पूरा और सही इलाज करवाऊँगी और मुझे पूरा विश्वास है कि, वह एक दिन बिल्कुल ठीक हो जाएगा। मैं अपने भाई की पढ़ाई भी पूरी करवाऊँगी ताकि वह जीवन में किसी से पीछे ना रहे।

यह बात सुनकर बुआ जी ने कहा, “मैं तुमसे वादा करती हूँ मीरा, आज के बाद किसी तांत्रिक की बातों पर विश्वास नहीं करूँगी। और तो और गाँव जाकर सबको इस बीमारी और इसके इलाज के बारे में बताऊँगी ताकि किसी का भी जीवन बर्बाद ना हो। तभी राघव आया और बोला, “अरे! बातें ही करते रहोगे क्या? चलो पूरब को घर ले जाने का समय हो गया है।" यह बात सुन मीरा खुश हो गई और सभी लोग पूरब को साथ लेकर घर वापस आ गए।

अगले दिन सुबह बुआ जी वापस गांँव लौट गईं। मीरा ने पूरब का इलाज करवाया और उसका स्कूल में दाखिला भी करवा दिया। कुछ सालों बाद पूरब बिल्कुल सामान्य हो गया और उसे दौरे पड़ने बंद हो गए। राघव ने और उसके परिवार ने भी मीरा और पूरब का पूरा साथ दिया। सभी लोगों ने मिलकर पूरब की जिंदगी ही बदल दी थी।



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