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Dr. Akshita Aggarwal

Romance

4  

Dr. Akshita Aggarwal

Romance

मेरे बचपन का प्यार (भाग 4)

मेरे बचपन का प्यार (भाग 4)

8 mins
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प्रतीक जैसे ही अपने घर पहुंँच कर अपने कमरे में दाखिल होता है। उसे सामने ही दीवार पर अपना गिटार टंगा हुआ नज़र आता है। वह गिटार उतार कर जैसे ही अपने हाथों में लेता है। उसकी आंँखों में इतनी देर से रुका हुआ आंँसुओं का सैलाब आंँखों का बांँध तोड़ आंँखों से बह जाता है। प्रतीक फूट-फूट कर रोने लगता है। प्रतीक सोचने लगता है कि, कितनी बार उसने परिधि को गिटार बजाना सिखाने की कोशिश की। पर, कभी भी परिधि ने गिटार बजाना सीखना ही नहीं चाहा। और आज उसे किसी से इतना प्यार हो गया है कि, उसके लिए उसने गिटार तक बजाना सीख लिया। प्रतीक रोते-रोते अपनी जेब में से अपना फोन निकालता है और उसमें परिधि को देखते हुए कहता है, “परिधि तुम्हारा सपना पूरा करने में तुम्हारे दोस्त मनीष ने तुम्हारी कितनी मदद की तुम्हें सिर्फ यह नज़र आया। और मैं.... मैंने तुम्हारे लिए आज तक जो भी किया। क्या वो तुम्हें कभी नज़र नहीं आया? मेरी आंँखों में जो तुम्हारे लिए इतना प्यार है। क्या वो तुम्हें कभी नज़र नहीं आया परिधि? क्यों परिधि क्यों?”

प्रतीक यह सब सोचते-सोचते अचानक से उठता है। अपने आंँसू पोंछता है और खुद से ही कहता है कि, “नहीं प्रतीक, यह सब तू क्या सोच रहा है? ज़रूरी तो नहीं कि, जिससे हमें प्यार हो उसे भी हमसे ही प्यार हो। क्या हुआ अगर परिधि को किसी और से प्यार है तो? मैंने तो बस हमेशा परिधि को खुश ही देखना चाहा है। तुम्हारी खुशी, तुम्हारा प्यार कोई और है तो कोई बात नहीं परिधि। मैं खुशी-खुशी तुम्हारी ज़िंदगी से दूर चला जाऊंँगा। वैसे भी परिधि, प्यार में दो लोगों का साथ होना ज़रूरी नहीं होता बल्कि प्यार का होना ज़रूरी होता है। मैंने फ़ैसला कर लिया है परिधि, आज तुम्हारी खुशियों में शामिल होने के बाद मैं हमेशा के लिए तुमसे दूर चला जाऊंँगा।

प्रतीक यह सब सोचने के बाद, अपना फोन वापस अपनी जेब में रखता है। अपने आंँसू पोंछता है। अपना चेहरा ठीक करता है। उसके बाद कांँपते हाथों से गिटार उठाकर अपने कमरे से निकल जाता है। वह परिधि के घर पर वापस पहुंँचने से पहले अपनी उदासी को छुपाने के लिए अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान ओढ़ लेता है और परिधि के घर पहुंँच जाता है।

प्रतीक जैसे ही परिधि के घर के बाहर पहुंँचता है। देखता है कि, परिधि घर के बाहर खड़े होकर उसका ही इंतज़ार कर रही है। प्रतीक के वहांँ पहुंचते ही, परिधि उसे बताती है कि, “हम दोनों के मम्मी-पापा बुटीक जाने के लिए निकल चुके हैं। बस, हम दोनों ही बाकी हैं। तो, चलो प्रतीक हम दोनों भी चलते हैं।” कोई और दिन होता तो एक ही कार में परिधि के साथ कहीं जाने की बात सुनकर प्रतीक बहुत खुश हो जाता। पर, आज प्रतीक परिधि के साथ जाने की बात सुनकर भी ज़्यादा खुश नहीं हुआ। पर बेचारा प्रतीक करता भी क्या। आज तक परिधि की किसी भी बात को उसने टाला ही नहीं था तो, आज कैसे टाल देता। उसके लिए तो परिधि की खुशियों से बढ़कर जैसे कुछ था ही नहीं दुनिया में। इसीलिए बेचारा प्रतीक अपने गम को अपने मन में ही छुपा कर, परिधि की खुशियों के लिए, अपने मन में ’जग सूना-सूना लागे’ वाली फीलिंग लिए आखिरकार परिधि के साथ बुटीक तक जाने के लिए गाड़ी में बैठ ही जाता है और गिटार पीछे वाली सीट पर रख देता है। परिधि भी उसके बगल में ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ जाती है। परिधि को ड्राइव करते समय म्यूजिक सुनने का बहुत ज़्यादा शौक था इसीलिए वह गाड़ी में बैठते ही म्यूजिक ऑन कर देती है और गाड़ी में एक रोमांटिक सा सैड सॉन्ग बजने लगता है।


तुम मेरे हो इस पल मेरे हो

कल शायद ये आलम ना रहे

कुछ ऐसा हो तुम तुम ना रहो

कुछ ऐसा हो हम हम ना रहें

ये रास्ते अलग हो जाएँ

चलते-चलते हम खो जाएँ....

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा....

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा....

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा....

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा....

इस चाहत में मर जाऊँगा

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा

मेरी जान मैं हर ख़ामोशी में

तेरे प्यार के नगमे गाऊंँगा

हम्म…

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा

इस चाहत में मर जाऊँगा

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा

ऐसे ज़रूरी हो मुझको तुम

जैसे हवाएंँ साँसों को

ऐसे तलाशूँ मैं तुमको

जैसे की पैर ज़मीनों को

हंँसना या रोना हो मुझे

पागल सा ढूँढू मैं तुम्हें

कल मुझसे मोहब्बत हो ना हो

कल मुझको इजाज़त हो ना हो

टूटे दिल के टुकड़े लेकर

तेरे दर पे ही रह जाऊँगा

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा

इस चाहत में मर जाऊँगा

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा।


प्रतीक को यह गाना सुनते-सुनते ऐसा महसूस होने लगता है। जैसे कि खुद अरिजीत सिंह ने उसके दिल का हाल हूबहू बयां कर दिया हो और वह गाना बदल देता है। फिर गाड़ी में दूसरा गाना बजने लगता है और संयोगवश वह भी अरिजीत सिंह की आवाज में ही होता है।


होना था जो हुआ 

ऐ दिल जाने भी दे

शिक़वा किस बात का

ऐ दिल जाने भी दे

यादों के चार लम्हें हैं तो सही

रह जाये जो अधूरा है इश्क़ वही

सोच लिया तू ख्वाब था मेरा

टूट गया जो आया सवेरा

सोच लिया है बिन तेरे जीना

सोच लिया जो सोचा कभी ना

सोच लिया तू ख्वाब था मेरा

टूट गया जो आया सवेरा

सोच लिया है बिन तेरे जीना

सोच लिया तो सोच लिया

ओ ओ ओ ओ

ओ ओ ओ ओ

ओ ओ ओ ओ

ओ ओ ओ ओ

अब इस दिल में मेरे

होगी धड़क थोड़ी कम

आँखों में आज से

होगी चमक थोड़ी कम

तेरे बिना जो साँस लूंँ

वो सांँस होगी सितम

फ़िर भी तुझको आवाज़ दूंँगा

मैं ना कभी

सोच लिया तू ख्वाब था मेरा

टूट गया जो आया सवेरा

सोच लिया है बिन तेरे जीना

सोच लिया जो सोचा कभी ना

सोच लिया तू ख्वाब था मेरा

टूट गया जो आया सवेरा

सोच लिया है बिन तेरे जीना

सोच लिया तो सोच लिया

मुझे खींचती जाए तेरी यादों की ये डोर

मगर मुड़ के देखूंँगा ना कभी मैं तेरी ओर

तो क्या बेतहाशा दिल पुकारे नाम तेरा

सुनना ही नहीं है धड़कनों का मुझको ये शोर

सोच लिया तू ख्वाब था मेरा

टूट गया जो आया सवेरा

सोच लिया है बिन तेरे जीना

सोच लिया तो सोच लिया।


प्रतीक गाना खत्म होते ही म्यूजिक प्लेयर ऑफ कर देता है। तो, परिधि पूछती है, “क्या हुआ? तुमने गाने बंद क्यों कर दिए? तुम्हें पता है ना मुझे ड्राइविंग करते वक्त गाने सुनना कितना पसंद है।”

प्रतीक:  "क्या परिधि तुम भी यह कैसे सैड सोंग्स भर रखे हैं तुमने अपनी प्लेलिस्ट में और कोई गाना नहीं है क्या?"

प्रतीक के ऐसा पूछने पर परिधि थोड़ा सा हंँसते हुए कहती है, “नहीं। नहीं है, कोई और गाने। मेरी प्लेलिस्ट में सिर्फ अरिजीत सिंह के ही सोंग्स हैं क्योंकि, वह मेरा फेवरेट सिंगर है। तुम्हें तो पता ही है। और तुम्हें भी तो उसके गाने पसंद है ना तो, आज तुम्हें क्या हुआ?”

प्रतीक: "नहीं.... कुछ नहीं। थोड़ी देर म्यूजिक ऑफ ही रहने दो परी, प्लीज़। मेरे सर में थोड़ा दर्द हो रहा है।"

परिधि: "ओके! जैसी तुम्हारी मर्जी। नो प्राॅब्लम।"

प्रतीक: (म्यूजिक ऑफ करने के बाद मन-ही-मन में सोचते हुए) "हांँ परी, सही कहा तुमने। कल तक मुझे भी अरिजीत सिंह के गाने तुम्हारे साथ सुनना बहुत पसंद था पर, आज तक उसके गानों का मतलब समझ ही नहीं आया। आज पहली बार उसके गाने सीधा दिल पर लग रहे हैं। आज समझ आ रहा है कि, क्यों कहते हैं लोग कि, अरिजीत सिंह के गाने सुनते रहने से कोई भी दिल टूटने के बाद आसानी से मूव ऑन नहीं कर सकता। पहले मैं ही सोचता था कि, क्यों सैड सोंग्स सुनते हैं लोग? पार्टी सोंग्स सुनो और अपनी ज़िंदगी में मस्त रहो। अब समझ आ रहा है कि, क्यों दुनिया में सैड सोंग्स बनते हैं। मुझे तो ऐसा लग रहा था परी जैसे कि तुम्हारा यह फेवरेट सिंगर मेरे जख्मों पर नमक छिड़क रहा हो।"

प्रतीक यह सब सोच ही रहा होता है। तभी अचानक से परिधि कहती है, “चलो, अब कोई ज़रूरत ही नहीं है म्यूजिक की। हम बुटीक पहुंँच गए हैं।”

बुटीक पहुंँचकर, वह दोनों कार को पार्किंग में लगाकर जैसे ही आगे बढ़ते हैं। परिधि को याद आता है कि, गाड़ी में से गिटार तो लिया ही नहीं। परिधि गाड़ी में से गिटार निकालने के लिए, जैसे ही वापस जाने के लिए मूड़ती है उसका गाउन उसकी लंबी हील्स के नीचे आ जाता है और वह गिरने ही वाली होती है कि, अचानक प्रतीक आकर उसे अपनी बाहों में संभाल लेता है और परिधि की आंँखों में खो जाता है। कुछ पल बाद ही प्रतीक को याद आता है कि, कुछ ही देर बाद परिधि किसी और को प्रपोज़ करने वाली है। वह किसी और का प्यार है। यह बात याद आते ही प्रतीक परिधि को सीधा खड़ा कर देता है और अपनी आंँखों में आ चुके आंँसुओं को छुपाने की कोशिश करता है। पर, परिधि उसकी आंँखों में हल्की-सी नमी देख लेती है। वह प्रतीक से पूछती है, “क्या हुआ प्रतीक? तुम ठीक तो हो?”

प्रतीक: "परी वो मैंने तुम्हें कार में बताया था ना कि, मेरे सर में बहुत दर्द हो रहा है। बस इसीलिए थोड़ा....।"

परिधि:  "कोई बात नहीं प्रतीक, तुम परेशान मत होओ। मैं अभी गाड़ी में से गिटार लेकर आती हूंँ। फिर मम्मी से पूछती हूंँ, उनके पास कोई पेन किलर ज़रूर होगी। तुम वो खा लेना। फिर तुम्हें बैटर फील होगा। ओके!"

प्रतीक परिधि को ‘ओके’ कहता है और मन-ही-मन में सोचता है, “जो दर्द इस वक्त मैं महसूस कर रहा हूंँ परी, उसके लिए किसी के भी पास कोई पेन किलर नहीं हो सकता। प्रतीक यह सब सोच ही रहा होता है कि, इतने में परिधि गिटार लेकर आ जाती है और प्रतीक को अपने साथ ले जाती है।

कुछ समय बाद, परिधि के बुटीक की ओपनिंग बहुत अच्छे से हो जाती है। परिधि बहुत ज्यादा खुश होती है। वह सबको अपना बुटीक दिखाने में व्यस्त हो जाती है। और प्रतीक अकेला ही घूम कर परिधि का बुटीक देख रहा होता है। वह परिधि का सपना पूरा हो जाने से और परिधि को खुश देख कर उसके लिए बहुत खुश भी होता है। बुटीक में बहुत सारे लोगों की भीड़ के बीच भी वह खुद को अकेला महसूस कर रहा होता है। तभी प्रतीक सोचता है कि, कुछ समय बाद ही मनीष भी यहांँ आ जाएगा और परिधि उससे अपने प्यार का इज़हार करेगी और वह अपनी आंँखों से यह सब देख नहीं पायेगा। इसीलिए वह चुपचाप घर वापस जाने का फैसला कर लेता है। प्रतीक जैसे ही घर वापस जाने के लिए मुड़ता है। अचानक से सारी लाइटें बंद हो जाती हैं और चारों ओर घना अंधेरा छा जाता है।

जारी!!!!



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