नई सोच
नई सोच
आज सुबह से ही रमेश जी के घर में काफी चहल-पहल थी। सभी लोग तैयारियों में व्यस्त थे। रमेश जी की पत्नी रोशनी जी भी बहुत खुशी से शगुन का थाल सजा रही थीं। तभी उनकी बेटी रजनी पीछे से आकर उनसे लिपट जाती है। और कहती है, “क्या बात है मांँ? आज तो आप बहुत खुश लग रही हैं।" “हांँ,बिल्कुल। आज मैं अपनी होने वाली बहू को देखने जो जा रही हूंँ, बल्कि मैंने तो शगुन की भी सारी तैयारियांँ कर ली हैं। अगर तेरे भाई ने ‘हांँ’ कहा तो आज ही लड़की को शगुन देकर रिश्ता पक्का कर देंगे।" रोशनी जी ने खुश होते हुए कहा।
मांँ की बात सुनकर रजनी थोड़ी उदास हो गई। क्योंकि वह अच्छे से जानती थी कि, उसका भाई रजत अपनी कॉलेज की दोस्त पूर्वी से बहुत प्यार करता है। हालांकि यह बात घर में भी सभी लोग जानते हैं परंतु रमेश जी प्रेम-विवाह के सख्त खिलाफ हैं। बस इसी कारण वह अपनी पसंद की लड़की आंँचल (जो उनके बचपन के दोस्त रूपनारायण जी की बेटी है) से अपने बेटे रजत की शादी जल्द से जल्द करा देना चाहते हैं।
रोशनी जी रजनी को सोच में डूबा हुआ देख पूछती हैं, “क्या हुआ बेटा? कहांँ खो गई”?
“नहीं मांँ,कहीं भी तो नहीं।" रजनी ने जवाब दिया।
रोशनी जी ने रजनी के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “मैं जानती हूंँ। शायद, तू भी वही सोच रही है, जो मैं सोच रही हूंँ कि, रजत रिश्ते के लिए मना ना कर दे।
रजनी: हांँ, हम दोनों सही ही तो सोच रहे हैं न मांँ। आखिर भाई तो पूर्वी से प्यार करते हैं ना तो फिर किसी और से शादी करने के लिए हांँ कैसे कर सकते हैं?
रोशनी जी: मैं जानती हूँ बेटा कि, रजत किसी और से शादी करने के लिए कभी भी तैयार नहीं होगा पर तेरे पापा के फैसले के आगे ही तो हम सभी को झुकना पड़ रहा है।उसे भी उनकी बात माननी ही होगी। मुझे डर है कि अगर रजत ने रिश्ते के लिए ना कर दी तो तेरे पापा के गुस्से से मैं भी इस बार उसे बचा नहीं पाऊंँगी। खैर, छोड़ यह सब। इससे पहले कि तेरे पापा तैयार होकर आ जाएँ और गुस्सा करें, जा देख कर आ कि रजत तैयार हुआ या नहीं?
“जी मांँ, मैं अभी देख कर आती हूंँ।" ऐसा कहकर रजनी अपने भाई रजत के कमरे में जाती है। वहांँ जाकर देखती है कि, रजत अपने हाथों में मोबाइल लेकर बैठा है। जिसमें वह लगातार पूर्वी की तस्वीर को देखे जा रहा है और उसकी आंँखों में से आंँसू बह रहे हैं। यह देखकर रजनी की भी आंँखें भर आती हैं और वह अपने भाई के पास जाकर उससे कहती है कि, “भैया, आप ऐसे रोइए मत प्लीज़। आपको पता है ना कि मम्मी आपको ऐसे नहीं देख सकती। उन्हें पता चलेगा कि आप रो रहे हैं तो उन्हें, कितना बुरा लगेगा। और आप, आप अभी तक तैयार क्यों नहीं हुए भैया? आपको तो पता है ना कि पापा को कहीं भी देरी से पहुंँचना पसंद नहीं। जाने का वक्त हो गया है भाई, आप जल्दी से तैयार हो जाइए। अगर पापा को पता चला कि आप अभी तक तैयार नहीं हुए हैं तो वह नाराज़ हो जाएंँगे। चलिए तैयार हो जाइए जल्दी से। ऐसा कहकर रजनी अपने भाई के आंँसू पोंछ देती है।
“मैं तैयार नहीं होना चाहता रजनी, तू जानती है ना कि मैं पूर्वी को पसंद करता हूंँ। बहुत प्यार करता हूंँ मैं उससे। फिर भी पापा रूपनारायण अंकल की बेटी आंँचल से मेरी शादी क्यों कराना चाहते हैं”? ऐसा कहते-कहते रजत फिर से रो पड़ा।
तभी अचानक रमेश जी आंँखों में गुस्सा लिए रजत के कमरे में दाखिल होते हुए कहते हैं, “इन सब के बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं रजत। मैं अपने उसूलों पर ही जीता आया हूंँ और मैं प्रेम-विवाह के सख्त खिलाफ हूंँ।हमारे खानदान में आज तक किसी ने प्रेम-विवाह नहीं किया है। सभी के परिवार में बच्चों के रिश्ते उनके माता-पिता ही तय करते हैं। जब सभी को पता चलेगा कि, मेरे बेटे ने प्रेम-विवाह किया है तो मेरी हमारे परिवार में, समाज में क्या इज्जत रह जाएगी? मैं किसी को मुंँह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंँगा। रूपनारायण मेरे बचपन का दोस्त है और तू भी तो बचपन से ही आंँचल को जानता है ना। क्या कमी है उसमें”?
“नहीं पापा, कोई कमी नहीं है आंँचल में। बस मैं उससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि मैं उससे प्यार नहीं करता और ना ही कभी कर पाऊंँगा शायद। मैं किसी लड़की के साथ नाइंसाफी नहीं करना चाहता पापा, प्लीज़ मुझे समझने की कोशिश कीजिए।" रजत ने अपने पिता से विनती करते हुए कहा।
रमेश जी पर रजत की बातों का कोई असर नहीं हुआ। और वह रजत को जल्दी से तैयार होकर नीचे कार के पास आ जाने का फरमान सुनाकर कमरे से बाहर निकल गए। उनके पीछे-पीछे रजनी भी उदास मन से नीचे आ गई। कुछ देर बाद ही रजत तैयार होकर नीचे आ गया। फिर रमेश जी अपने पूरे परिवार के साथ कार में बैठकर अपने दोस्त के घर जाने के लिए रवाना हो गए।
लगभग आधे घंटे बाद सभी लोग रूपनारायण जी के घर पहुंँच गए। वहांँ पहुंँचकर दोनों परिवार एक-दूसरे के परिवार से मिलकर काफी खुश हुए। कुछ समय तक बातें करने के बाद आंँचल की मांँ रुपाली जी ने कहा कि, “बच्चों को कुछ देर अकेले में भी बातें कर लेनी चाहिए। ताकि वह दोनों एक-दूसरे को समझ सकें और फैसला ले सकें कि वह दोनों एक-दूसरे के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहते भी हैं या नहीं”? तभी रमेश जी बोले, “अरे! बहन जी, इन सबकी क्या जरूरत है? हम लोग आपके परिवार को और आंँचल को सालों से जानते हैं। हमें आंँचल बहुत पसंद है। हम तो यहांँ रिश्ता पक्का कर शगुन देने के इरादे से ही आए हैं।" यह सुनकर रुपाली जी हैरान रह जाती हैं।
दरअसल रूपनारायण जी का परिवार काफी खुले विचारों का था। वहीं दूसरी तरफ रमेश जी की पुरानी सोच के अनुसार बच्चों को शादी से जुड़े फैसले लेने का कोई हक नहीं होना चाहिए। यह माता-पिता की ही जिम्मेदारी है और उनका अधिकार भी। अपनी ऐसी सोच के कारण ही वे नहीं चाहते थे कि, रजत और आंँचल अकेले में कोई भी बात करें। कहीं ना कहीं उन्हें यह डर भी था कि रजत आंँचल को सब कुछ सच बता कर इस रिश्ते के लिए मना ना कर दे।
“देखिए भाई साहब, मैं मानती हूंँ कि रजत और आंँचल एक-दूसरे को बचपन से जानते हैं। पर अब बात नए रिश्ते में बंधने की हो रही है, तो दोनों को अकेले में बात कर ही लेनी चाहिए। आखिरकार दोनों बच्चों का फैसला ही तो आखिरी फैसला होगा न।"रुपाली जी ने फिर से कहा तो रमेश जी को मानना ही पड़ा और आंँचल और रजत अकेले में बातें करने के लिए चले गए।
आंँचल और रजत कुछ ही देर बाद छत पर थे। आंँचल बार-बार रजत से बात करने की कोशिश कर रही थी। बार-बार कुछ पूछ रही थी परंतु रजत चुपचाप खड़ा था।आंँचल ने उसे ऐसे देख उसके हाथ पर हाथ रखकर पूछा, “क्या हुआ रजत, सब ठीक तो है ना”? रजत का कोई जवाब ना पाकर आंँचल ने फिर से कहा, “देखो रजत, हम बचपन से दोस्त हैं। अब हमारे परिवार वाले हमें नए रिश्ते में बांधना चाहते हैं। अगर तुम ऐसा नहीं चाहते हो या तुम्हें कोई भी परेशानी हो तो तुम मुझे बता सकते हो।"
आंँचल की बात सुन रजत ने सोचा, “अगर अभी भी वह कुछ नहीं बोला, तो अपने साथ-साथ अपनी बचपन की दोस्त की भी जिंदगी बर्बाद कर देगा और ऐसा करने का उसे कोई हक नहीं है।" फिर रजत ने आंँचल को धीरे-धीरे सब बताना शुरू किया और बोला, “आंँचल, मैं यह शादी नहीं करना चाहता। मैं अपनी कॉलेज टाइम की एक क्लासमेट पूर्वी से बहुत प्यार करता हूंँ। मैं उससे तीन सालों से प्यार करता हूंँ और उसे भूल पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं। मेरे घर में सब यह बात जानते हैं। पर मेरे पापा प्रेम-विवाह के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं। इसलिए वह चाहते हैं कि, मैं तुमसे शादी कर लूंँ। मैं ऐसा नहीं कर सकता आंँचल, मुझे माफ कर दो।" सब जानकर आंँचल ने कहा, “तुम्हें माफी मांँगने की कोई जरूरत नहीं है रजत।बल्कि थैंक्यू जो तुमने सच बता दिया और मेरी जिंदगी बर्बाद नहीं होने दी।" ऐसा कहकर आंँचल उठ खड़ी हुई और रजत का हाथ पकड़ कर उसे नीचे ले आई।
रजत और आंँचल जैसे ही नीचे पहुंँचे, सब उन्हें ही देखने लगे। सभी लोग दोनों का फैसला जानना चाहते थे। तभी आंँचल रमेश जी के सामने जाकर खड़ी हो गई और बोली, “अंकल जी, मैं आपकी बेटी समान हूंँ ना। क्या इसी नाते मैं आपसे कुछ कह सकती हूंँ”? “हांँ बेटा, बिल्कुल। बोलो, क्या बात है”? रमेश जी ने कहा।
आंँचल: अंकल जी, आप जानते हैं ना कि, रजत किसी और से प्यार करता है। फिर भी आप मेरी और उसकी शादी कराना चाहते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि, आपके परिवार में आज तक किसी ने प्रेम-विवाह नहीं किया है। अंकल जी, मैं मानती हूंँ। पहले यह सब नहीं होता था पर, अब तो समय बदल गया है। अब बहुत से लोग प्रेम-विवाह करते हैं और खुश भी रहते हैं। अगर आज आप जबरदस्ती हमारी शादी करा भी देते हैं तो भी, क्या हम कभी खुश रह पाएंँगे? शायद, कभी नहीं। क्योंकि, रजत कभी मुझसे प्यार नहीं कर पाएगा और उसके साथ-साथ मेरी और पूर्वी की जिंदगी भी बर्बाद हो जाएगी। अंकल जी, मैं जानती हूंँ कि, यह प्रेम- विवाह कराना आपके उसूलों के खिलाफ है परंतु, परिवर्तन संसार का नियम है। अब जरूरत जबरदस्ती की नहीं, सोच बदलने की है। नई सोच अपनाने की है। अंकल जी, आप खुद बताइए जो आप करने जा रहे थे, क्या वह सही था?
रमेश जी: बेटी, मैं मानता हूंँ कि, मैं शायद तुम्हारे साथ गलत करने जा रहा था पर मुझे लगा कि रजत को शादी के बाद तुमसे प्यार हो ही जाएगा। तब वह पूर्वी को भूल जाएगा।
आंँचल: नहीं,अंकल जी। पहला प्यार अगर सच्चा हो तो भूल पाना आसान नहीं होता और रजत भी पूर्वी को कभी नहीं भूल पाएगा। और शादी के बाद प्यार हो ही जाएगा की सोच पर आज आप तीन जिंदगियांँ बर्बाद करने जा रहे थे। अंकल जी, अगर मेरी जगह रजनी होती और आपको पता होता कि जिससे आप उसकी शादी कराने जा रहे हैं, वह लड़का किसी और से प्यार करता है, क्या तब भी आप उसकी शादी उस लड़के से करा देते?
रमेश जी: नहीं बेटी, मुझे माफ कर दो। मैं अपनी बेटी रजनी से बहुत प्यार करता हूंँ। उसकी आंँखों में एक आंँसू भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। फिर भी मैं और किसी की बेटी की जिंदगी बर्बाद करने जा रहा था। माफ कर दो मुझे। बेटी हमारे जमाने में प्रेम-विवाह नहीं होते थे। हमारे माता-पिता ही रिश्ता तय करते थे और हम बच्चे चुपचाप उनकी बात मान कर शादी कर लिया करते थे। मुझे लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि रजत बाद में खुश भी ना रह पाए और समाज में हमारी नाक भी कट जाए। अगर ऐसा हुआ तो हमारे लिए रजनी की शादी कराना भी मुश्किल हो जाएगा।
आंँचल: नहीं,अंकल जी। ऐसा कुछ नहीं है कि, रजत और पूर्वी खुश नहीं रह पाएंँगे। वह दोनों तो एक-दूसरे को पहले से जानते हैं, एक-दूसरे को समझते हैं, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद जानते हैं और सबसे बड़ी बात एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। अंकल जी, अगर रजत चाहता तो वह आपके खिलाफ जाकर भी पूर्वी से शादी कर सकता था। पर वह आपके आशीर्वाद के साथ ही पूर्वी से शादी करना चाहता है। अगर आप रजत को खुश देखना चाहते हैं तो, बस आप रजत की शादी मुझसे नहीं बल्कि पूर्वी से करवा दीजिए। आप बचपन में भी तो उसकी ज़िद पूरी करते होंगे ना, तो आज अगर वह किसी बात की ज़िद कर रहा है तो आपने क्यों इसे अपने मान-सम्मान का प्रश्न बना लिया है? अंकल जी, आपने वह कहावत सुनी है ना ‘सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग’ बस अब आप अपनी सोच को थोड़ा सा बदलिए और लोगों की बातों की परवाह किए बिना खुशी-खुशी इस प्रेम-विवाह के लिए मान जाइए।
रमेश जी: तुम सही कहती हो आंँचल बेटा, मैं ही शायद अपने मान-सम्मान, दुनिया की बातें और समाज को अपने बेटे की खुशियों से भी ज्यादा तवज्जो दे रहा था। तुमने मुझे सोचने पर भी और सोच बदलने पर भी मजबूर कर दिया बेटा। अब मैं बस अपने बेटे की खुशियों के बारे में ही सोचूँगा और उसकी शादी पूर्वी से ही करवाऊँगा। मैं जानता था कि, मेरा बेटा पूर्वी से कितना प्यार करता है। पर फिर भी मैं उसकी खुशियों को छिनने जा रहा था। थैंक यू बेटा,थैंक यू सो मच।
रमेश जी ने ऐसा कहकर आंँचल के सिर पर हाथ फिराया और अपने बेटे को गले से लगा कर उससे माफी मांँग ली। उसके बाद उन्होंने कहा, “हम कल ही पूर्वी के घर जाएंँगे बेटा, मैं खुद पूर्वी के माता-पिता से पूर्वी का हाथ तुम्हारे लिए मांँग लूंँगा। मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हूंँ।" यह बात सुनकर रजत बहुत खुश हुआ और उसने आंँचल को धन्यवाद कहा। रजत को इतने दिनों बाद खुश देख कर रोशनी जी और रजनी भी बहुत खुश हुईं। दूसरी तरफ रूपनारायण जी और रुपाली जी भी अपनी बेटी आंँचल को गर्व भरी नजरों से देख रहे थे।
कुछ ही दिनों बाद रजत और पूर्वी की शादी माता और पिता दोनों के ही आशीर्वाद के साथ बहुत ही धूमधाम से संपन्न हुई। रमेश जी ने नई सोच को अपनाकर अपने बेटे का प्रेम-विवाह करवाया और लोगों की बातों से ज्यादा अपने बेटे की खुशियों को महत्व दिया।

