अक्षिता अग्रवाल

Drama Romance

4.3  

अक्षिता अग्रवाल

Drama Romance

मेरे बचपन का प्यार (भाग 3)

मेरे बचपन का प्यार (भाग 3)

6 mins
519


आज प्रतीक, परिधि के बुटीक की ओपनिंग में जा रहा है। बुटीक की ओपनिंग के बाद ही, आज शाम को प्रतीक परिधि से अपने प्यार का इज़हार भी करने वाला है। प्रतीक को लग रहा था कि, आज उसका इंतज़ार खत्म हो जाएगा। क्योंकि, अब वह दोनों ही अपनी ज़िंदगी में एक मुकाम हासिल कर चुके हैं। परिधि भी अपना सपना पूरा कर चुकी है तो, अब उसे शादी करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। प्रतीक यह सब सोचते-सोचते ही अपने माता-पिता के साथ परिधि के घर पहुँच जाता है। प्रतीक और परिधि के परिवार वाले साथ में ही बुटीक तक जाने वाले हैं। जो उनके घर से बस थोड़ी-सी ही दूरी पर है।

प्रतीक जैसे ही परिधि के घर के अंदर पहुँचता है। सामने खड़ी परिधि को देख, उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। वह देखकर हैरान रह जाता है कि, परिधि बिल्कुल वैसी लग रही थी, जैसी उसे उसके कमरे में तैयार होते समय आईने में नज़र आई थी। आँखों में काजल, होंठों पर हल्के-से रंग की लिपस्टिक, चेहरे पर थोड़ा-सा मेकअप, थोड़े घुँघराले खुले बाल, कानों में लंबे-लंबे ईयररिंग और एक प्यारा-सा गाउन पहने परिधि बिल्कुल ऐसी लग रही थी जैसे, अभी-अभी आसमान में से कोई परी उतर कर धरती पर आ गई हो। प्रतीक यह सब सोच ही रहा था। तभी अचानक परिधि उसके सामने चुटकी बजाती है और पूछती है कि, “ओ बंदर, कहाँ खोए हो?” प्रतीक थोड़ा सहज होकर कहता है, “मैं तो कहीं नहीं खोया बंदरिया। मैं तो बस सोच रहा था कि, तुम आज इतनी सुंदर कैसे लग रही हो?” परिधि उसकी बात सुनकर पहले थोड़ा-सा शर्मा जाती है। फिर एकदम से गुस्सा होते हुए कहती है कि, “तुम्हें तो ठीक से तारीफ़ करना भी नहीं आता। बंदर कहीं के। अगर तुमने तारीफ़ करना नहीं सीखा ना.. तो, कोई भी लड़की तुमसे शादी नहीं करेगी। समझ गए। लड़कियों को तारीफ़ बहुत पसंद होती है और... और तुमसे वो भी ठीक से नहीं होती। खैर! छोड़ो यह सब। मुझे तुमसे एक बहुत ज़रूरी बात करनी है। तुम चलो मेरे साथ।”

परिधि ऐसा कहकर प्रतीक को अपने घर के बगीचे में ले जाती है। प्रतीक को वह थोड़ी परेशान सी लग रही थी। उसे परेशान देख, प्रतीक पूछता है कि, “क्या हुआ परी? बताओ, क्यों लायी हो मुझे यहाँ? क्या बात करनी है तुम्हें मुझसे?”

परिधि: वो..... वो.... प्रतीक, तुम्हें तो पता है ना कि, हम बचपन से ही दोस्त हैं। तुम तो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। इसीलिए, मैं तुम्हारे साथ सभी बातें शेयर करती हूँ। अपने मन की हर बात सबसे पहले तुम्हें ही बताती हूँ। तो मुझे तुम्हें यह बताना था कि..... कि..... मुझे किसी से प्यार हो गया है और मैं आज उसे प्रपोज करना चाहती हूँ। मुझे बस तुम्हारी एक मदद चाहिए।

आखिरी दो लाइनें परिधि जल्दी-जल्दी बोल कर एक लंबी सी साँस लेती है। परिधि तो लंबी सी साँस ले लेती है। पर, प्रतीक की साँसें तो मानो अटक सी जाती हैं। उसे समझ ही नहीं आता कि, वह क्या बोले। फिर भी प्रतीक बहुत हिम्मत जुटाकर परिधि से पूछता है, “किस से प्यार हो गया है परी तुम्हें?”

परिधि: (थोड़ा शर्माते हुए) है एक लड़का प्रतीक। वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है। मनीष नाम है उसका। उसने मेरी बहुत मदद की है मेरा सपना पूरा करने में। मुझे तो बहुत पहले ही एहसास हो गया था कि, मैं उसे चाहने लगी हूँ। मैंने सोच लिया था कि, मैं अपना सपना पूरा होते ही, अपना बुटीक खोलते ही उसे बता दूंगी कि, मैं उसे कितना प्यार करती हूँ। जब तुम उसे मेरे साथ खड़ा देखोगे ना, तब तुम भी यही कहोगे कि, हम दोनों की जोड़ी से अच्छी जोड़ी और किसी की हो ही नहीं सकती।

परिधि तो अपनी ही दुनिया में खोई बोलती ही जा रही थी। पर, प्रतीक की दुनिया तो मानो पल भर में ही उजड़ सी गई थी। वह जी भर के रोना चाहता था। बहुत मुश्किल से वह अपने आँसुओं को दबाए खड़ा था। वह मन-ही-मन बहुत पछता रहा था कि, क्यों उसने पहले ही परिधि को सब कुछ नहीं बता दिया था? क्यों उसने पहले ही परिधि से अपने प्यार का इज़हार नहीं कर दिया था? प्रतीक टूटता-सा जा रहा था। अचानक से परिधि ने प्रतीक को हिलाया और पूछा, “प्रतीक कहाँ खोए हुए हो? मैंने तुमसे कुछ पूछा है।”

परिधि के हिला देने से प्रतीक मानो होश में आया और बोला, “हाँ, बोलो परी। क्या.... क्या पूछा तुमने मुझसे? बताओ ना फिर से प्लीज़।”

परिधि अपने माथे पर हल्के से मारती है और कहती है, “तुम भी ना प्रतीक। मैंने तुमसे पूछा था कि, मुझे तुम्हारी एक मदद चाहिए। तो, क्या तुम करोगे मेरी मदद? बताओ।”

प्रतीक: हाँ.... हाँ परी ज़रूर। मैं भला कभी तुम्हारी मदद करने से मना कर सकता हूँ। बताओ, क्या मदद कर सकता हूँ मैं तुम्हारी?

परिधि: प्रतीक वो मनीष को म्यूजिक बहुत ज्यादा पसंद है। इसीलिए मैं उसके लिए एक गाना गाना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि, मैं उसे गाना गाकर प्रपोज करूँ। तो मुझे तुम्हारा गिटार चाहिए। तो क्या तुम मुझे अपना गिटार दोगे? प्लीज़।

प्रतीक अपने आँसुओं को छुपाने की कोशिश करते हुए कहता है, “हाँ.... हाँ परिधि जरूर। मैं अपना गिटार तो दे दूंगा पर.... पर तुम्हें तो गिटार बजाना आता ही नहीं है ना तो तुम कैसे.....?

परिधि: आता नहीं है, नहीं। यह बोलो कि, नहीं आता था। अब मुझे गिटार बजाना आता है। वह भी बहुत अच्छे से। मैंने बहुत मेहनत से गिटार बजाना सीखा है। अपने प्यार के लिए। आज मैं उसका फेवरेट सॉन्ग गाने वाली हूँ। जाओ तुम अब जल्दी से गिटार ले आओ। फिर हम दोनों साथ में ही बुटीक चलेंगे।

बेचारा प्रतीक चाहकर भी परिधि के सामने अपना दुख नहीं दिखा सकता था। प्रतीक का खुद का दिल तो टूट गया था। पर, वह परिधि के लिए बहुत खुश था। वह समझ रहा था कि, इस वक्त परिधि कितनी खुशी महसूस कर रही होगी। क्योंकि, प्रतीक तो ना जाने कितने सालों से यह खुशी महसूस कर रहा था और खासकर आज सुबह से तो वह अपने प्यार का इज़हार करने के लिए ना जाने कितने सपने देख चुका था। पर, अब एक ही पल में सब कुछ बदल चुका था। वह जिससे अपने प्यार का इज़हार करना चाहता था। उसे तो किसी और से ही प्यार हो गया था। फिर भी प्रतीक परिधि के सामने ‘हाँ’ में अपनी गर्दन हिला देता है और गिटार लेने के लिए अपने घर की तरफ़ चल पड़ता है।

जारी!!!!


दोस्तों, हो सकता है कि, कहानी के इस भाग को पढ़कर आप लोगों को प्रतीक के लिए थोड़ा-सा बुरा लगा हो। मुझे भी लग रहा है। पर, यह सिर्फ एक कहानी है और यह कहानी अभी बाकी है। मैं जल्दी ही वापस आऊँगी। कहानी के अगले यानी चौथे भाग के साथ। तब तक आप लोग कहानी के इस तीसरे भाग के लिए मुझे अपनी प्यारी-प्यारी सी समीक्षाएँ देना मत भूलिएगा। और इंतज़ार करिएगा कहानी के अगले भाग का।



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