मेरे बचपन का प्यार (भाग 2)
मेरे बचपन का प्यार (भाग 2)
प्रतीक और परिधि बचपन से साथ थे। दोनों पड़ोसी थे। दोनों एक-दूसरे के घर के आमने-सामने ही रहते थे। दोनों की दोस्ती बहुत गहरी थी। प्रतीक को तो ना जाने कब से परिधि से प्यार था। उसे यकीन था कि, परिधि भी उससे प्यार करती है। परिधि ने आज तक ऐसा कुछ कहा तो नहीं था। परंतु, जिस तरह परिधि उसकी चिंता करती थी। कभी बीमार पड़ने पर उसकी देखभाल करती थी। उन सब से उसे यकीन था कि, वह भी उससे प्यार करती है।
जब प्रतीक और परिधि छोटे थे तब, वह दोनों एक ही स्कूल में जाया करते थे। एक ही क्लास में पढ़ते थे। यहांँ तक कि, वह क्लासरूम में भी एक ही बेंच पर साथ-साथ बैठते थे और लंच भी साथ ही करते थे। जब कभी परिधि टिफिन में लौकी की सब्जी लाती थी तो, वह अपना खाना नहीं खाती थी क्योंकि, उसे लौकी खाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। प्रतीक जानता था कि, अगर परिधि टिफिन में खाना बचा कर घर वापस लेकर गई तो, उसे अपनी मम्मी से घर में बहुत डांँट पड़ेगी। इसीलिए, वह लौकी नापसंद होते हुए भी उसके टिफिन का खाना खा लेता था। और अपना टिफिन परिधि को दे देता था। परिधि के साथ खाना खाते-खाते प्रतीक अपने भविष्य के सपने भी देखा करता था। प्रतीक उसके लिए हमेशा अपनी पॉकेटमनी में से पैसे बचाकर चॉकलेट लाया करता था। परिधि को चॉकलेट्स बहुत पसंद थीं। वह दीवानी थी चॉकलेट्स की। यहांँ तक की प्रतीक को तो लगता था कि, चॉकलेट ही परिधि का पहला प्यार है। परिधि तो दूध भी चॉकलेट पाउडर के बिना नहीं पी सकती थी। अगर कभी परिधि स्कूल में मुंँह लटकाकर आती थी। तो प्रतीक समझ जाता था कि, उसे आज दूध में खूब सारा चॉकलेट पाउडर नहीं मिला है। तब वह परिधि का मूड दो मिनट में ही यह कहकर ठीक कर देता था कि, “कोई बात नहीं परिधि। हम दोनों जब बड़े हो जाएंँगे ना तब हम साथ में चॉकलेट वाला दूध पिया करेंगे। मैं तुमसे वादा करता हूंँ कि, जब तुम जितना चाहो उतना चॉकलेट पाउडर अपने दूध में मिलाकर पी सकती हो। और मैं तुम्हें बिल्कुल भी नहीं डाटूँगा। प्रॉमिस।” यह सुनकर परिधि खुश हो जाती थी और उसे खुश देखकर प्रतीक।
प्रतीक या परिधि में से जब भी कोई बीमार पड़ जाता था। तब दोनों एक-दूसरे की देखभाल करते थे। प्रतीक को बीमारी में दलिया खाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसीलिए परिधि उसे दलिया खाने से बचाने के लिए अपने बैग में छुपा कर उसके लिए चटपटा खाना लाया करती थी। वह प्रतीक के साथ पढ़ने के बहाने से अपने घर से निकलती थी। यहांँ तक कि, प्रतीक को चटपटा खाना खिलाने के बाद उसे डांँट खाने से बचाने के लिए पसंद ना होने के बावजूद भी उसके हिस्से का दलिया परिधि खुद खा लेती थी। वहीं दूसरी तरफ कभी परिधि को खांँसी या जुकाम हो जाता तो प्रतीक उसे उसकी मम्मी की डांँट से बचाने के लिए कड़वा काढ़ा तक पी लेता था। जब परिधि को कड़वा काढ़ा नहीं पीना पड़ता था तब वो बहुत खुश हो जाया करती थी। और अगर वह खुश तो प्रतीक उसे देखकर और भी ज्यादा खुश हो जाता था। क्योंकि, प्रतीक की दुनिया, उसकी खुशियांँ परिधि के खुश होने से ही तो जुड़ी थीं।
ऐसे ही हंँसते-खेलते प्रतीक और परिधि बड़े होने लगे थे। जब प्रतीक बड़ा हुआ तो, क्लास के बाकी लड़के उसे चिढ़ाने लगे थे। क्योंकि, वह हमेशा एक लड़की के साथ ही घूमता था। लेकिन प्रतीक को किसी की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। प्रतीक तो स्कूल से घर जाकर भी परिधि के साथ ही पढ़ाई करता था। उसे परिधि के साथ वक्त बिताना बहुत अच्छा लगता था।
प्रतीक और परिधि दोनों ही, स्कूल में हमेशा साथ-साथ रहे। स्कूल की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद, जब कॉलेज जाने का वक्त आया तो दोनों को अलग होना पड़ा। क्योंकि, दोनों के सपने अलग-अलग थे। प्रतीक एक बिजनेसमैन बनना चाहता था। वहीं दूसरी तरफ, परिधि एक फैशन डिजाइनर बनकर अपना एक बुटीक खोलना चाहती थी। जब अलग-अलग कॉलेज जाने का वक्त आया तब प्रतीक बहुत उदास हो गया था। पर वह खुश भी था कि, वह दोनों अब भी पड़ोसी ही हैं। कॉलेज में नहीं तो क्या, घर पर तो दोनों मिल ही सकते हैं। पर कॉलेज में प्रतीक का मन नहीं लगता था। वह तो हर वक्त परिधि के ख्यालों में ही जीता था। उसका दिल हर पल परिधि के लिए ही धड़कता था। वह क्लास में भी हर वक्त खोया-खोया सा रहता था। इसीलिए कभी-कभी उसे अपने प्रोफेसर से डांँट भी खानी पड़ती थी। जिससे प्रतीक का मूड बहुत खराब हो जाता था और वह मायूस रहने लगा था। दूसरी तरफ परिधि अपने सपने के लिए बहुत ज्यादा गंभीर थी। उसे हर हाल में फैशन डिज़ाइनर बनना था। अपना बुटीक खोलना था पर परिधि ने धीरे-धीरे महसूस किया कि, प्रतीक पढ़ाई छोड़ कर कहीं और ही खोया-सा रहता है। तब उसने प्रतीक को भविष्य में कुछ करने के लिए, ठीक से पढ़ने के लिए प्रेरित किया। परिधि की बातों का प्रतीक पर इस कदर असर हुआ कि, वह खूब मन लगाकर पढ़ाई करने लगा और उसने कॉलेज में टॉप किया। इसके परिणामस्वरूप प्रतीक अपना बिजनेस अच्छे से स्टार्ट करने में सफल हो पाया और वह आज एक बहुत अच्छा बिजनेस मैन है। प्रतीक अपनी इस कामयाबी का पूरा श्रेय मन-ही-मन परिधि को ही देता है। वहीं परिधि भी अपना फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा कर चुकी है। और आज वह अपना बुटीक खोलने जा रही है। प्रतीक ने भी हर कदम पर परिधि का साथ दिया है।
जारी!!!!
दोस्तों, कहानी के इस भाग में आपने पढ़ा, प्रतीक और परिधि के बचपन से लेकर उनके बड़े होने तक का सफर। प्रतीक और परिधि की यह प्यारी-सी कहानी अभी थोड़ी और बाकी है। आगे की कहानी पढ़ने के लिए इंतजार करिए कहानी के अगले भाग का। जब तक आप कहानी का यह दूसरा भाग पढ़िए और अपनी प्यारी-प्यारी समीक्षाएंँ दीजिए। मैं जल्दी ही वापस आऊंँगी कहानी के तीसरे भाग के साथ।