अक्षिता अग्रवाल

Comedy Romance

4.7  

अक्षिता अग्रवाल

Comedy Romance

उफ्फ़! ये मासूमियत

उफ्फ़! ये मासूमियत

9 mins
377


प्रशांत ने जैसे ही ऑफिस का काम खत्म करने के बाद बड़बड़ाते हुए अपना लैपटॉप सामने टेबल पर रखा। उसे सामने से आरती आती हुई दिखाई दी। आते ही आरती ने सोफे पर बैठते हुए प्रशांत से पूछा, “क्या बात है जनाब? किस पर इतना बड़बड़ा कर अपना गुस्सा निकाला जा रहा है?” “कुछ नहीं यार, उस हिटलर के अलावा और कौन है, मेरी जिंदगी में, जो मुझे इतना गुस्सा दिला सकता है?” प्रशांत ने गुस्सा होते हुए कहा। आरती को हंँसी आ गई। उसने प्रशांत से पूछा, “अरे! अब क्या किया तुम्हारे बॉस ने?” “क्या किया? अरे! यह पूछो क्या नहीं किया? जब देखो बस काम, काम, काम। संडे को भी चैन से नहीं जीने देता। सुबह-सुबह ही कॉल करके एक प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए बोल दिया। हद होती है,यार। अब जाकर काम खत्म हुआ है, सुबह से। पूरा संडे खराब कर दिया मेरा।” प्रशांत ने गुस्से में बताया।

प्रशांत की बात सुनकर आरती ज़ोर से हंँसने लगी तो प्रशांत ने उसे घूर कर देखा। प्रशांत को ऐसे गुस्से में देख आरती सोफे पर अच्छे बच्चों की तरह सीधे होकर बैठ गई। आरती को मासूम-सी बच्ची की तरह बैठा देख प्रशांत का सारा गुस्सा छूमंतर हो गया। और वह आरती के पास आकर बैठ गया। वह कुछ बोलने ही वाला था कि, आरती ने अपना मुंँह फेर लिया और बोली, “वो तो तुम गुस्से में बहुत क्यूट लग रहे थे। इसलिए मुझे थोड़ी-सी हंँसी आ गई थी। इसमें इतना गुस्से में घूर कर देखने की क्या जरूरत थी? जाओ यहांँ से, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।” “अरे! सॉरी यार, माफ़ कर दो। गलती हो गई। वो गुस्सा तो मुझे बॉस पर आ रहा था। आज के बाद कभी घूर कर नहीं देखूंँगा। वादा। बस, अभी तो माफ़ कर दो प्लीज़।” प्रशांत ने कान पकड़ कर कहा। आरती ने प्रशांत की तरफ मुंँह घुमाया और कहा, “अच्छा, ठीक है। मैं समझ सकती हूंँ कि, तुम टेंशन में थे। जाओ, माफ़ किया। खुश रहो। वैसे भी काम खत्म हो गया है ना, तो अब क्यों इतनी टेंशन लेना। लेकिन... खबरदार, जो आज के बाद मुझे कभी ऐसे घूरा तो। समझे?” “हम्म... सही बात है। वैसे भी, मैं तो भूल ही गया था कि, ऐसे घूर कर देखने का और गुस्सा होने का हक तो सिर्फ, तुम बीवियों के पास ही होता है। है, न? वैसे भी मेरी इतनी हिम्मत कि, अपने ऑफिस के बॉस का गुस्सा मैं अपने घर की बॉस पर उतारूँ। क्यों मेरी होम मिनिस्टर जी?” प्रशांत ने कहा तो दोनों खिलखिला कर हंँस पड़े।

थोड़ी देर तक ऐसे ही बैठकर बातें करने के बाद प्रशांत को भूख लग गई। उसने आरती से कहा कि, “आरती, मुझे तो बहुत भूख लग गई है।” “हांँ, तो जाओ। जल्दी से हाथ धो कर आओ और बैठ जाओ डाइनिंग टेबल पर। खाना तैयार है।” आरती ने कहा। प्रशांत हाथ धो कर वापस आया तो उसने आरती से पूछा कि, “वैसे क्या बना है आज खाने में?” आरती ने जवाब दिया, पालक-पनीर। आरती ने जैसे ही, पालक-पनीर का नाम लिया। प्रशांत ने बुरा-सा मुंँह बनाया और पूछा, “आरती, तुम्हें पता है ना कि, मुझे यह सब घास-फूस बिल्कुल पसंद नहीं?” “ओ हैलो, यह सब घास-फूस नहीं होता। समझे, ना? बहुत हेल्दी होता है। और-तो-और पालक-पनीर तो हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी बहुत होता है।” आरती ने जवाब दिया।

आरती को हल्के गुस्से में देख, प्रशांत समझ गया कि, अगर उसने गुस्सा किया तो पक्का उसे यही खाना पड़ेगा। लेकिन, अगर आरती से प्यार से बात की जाए, तो शायद पालक-पनीर से छुटकारा मिल जाए। मन-ही-मन ऐसा सोचकर प्रशांत ने प्यार से कहा, “आरती, आज तो संडे है न। आधा संडे तो वैसे भी, उस हिटलर ने खराब कर दिया मेरा। बाकी का बचा तुम तो मत खराब करो न। प्लीज़, आज कुछ अच्छा खिला दो। आरती प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़।” “प्रशांत तुम तो जानते हो ना कि, मुझे खाना बनाना नहीं आता है। रमा दीदी (कुक) भी सारा खाना तैयार करके चली गईं हैं। अब तो तुम्हें यही खाना पड़ेगा। तो, चुपचाप खा लो। रात को कुछ अच्छा बनवा दूंँगी। पक्का।” आरती ने कहा। प्रशांत कुछ सोचने लगा और थोड़ी देर बाद लगभग विनती करते हुए, आरती से बोला, “आरती, तुम्हें मैगी बनानी तो आती ही है न। अभी के लिए वही बनाकर खिला दो, प्लीज़।” आरती प्रशांत को घूरती है और कहती है, “एक शर्त पर अभी मैगी बनाकर खिला सकती हूंँ कि, शाम को पालक-पनीर ही खाना पड़ेगा। अगर मंजूर है तो बोलो, वरना.....।” “मंजूर है, मंजूर है।” आरती को बीच में ही टोकते हुए प्रशांत बोला।

प्रशांत के शर्त मान लेने के बाद, आरती मेैगी बनाने के लिए किचन की तरफ चली गई। आरती के जाने के बाद प्रशांत फिर से धीरे-धीरे बड़बड़ाने लगा, “पति जरा-सा घूर कर देख ले, तो इतनी नाराज़गी। अगर पत्नी सारा दिन घूरे, तो भी कुछ नहीं। हद है....।” “कुछ कहा क्या तुमने?” पीछे खड़ी आरती ने पूछा। आरती को अचानक से अपने पीछे खड़ा देखकर प्रशांत घबरा गया। उसने घबराते हुए कहा, “नहीं, नहीं तो, मैंने तो कुछ नहीं कहा।”

आरती:  मुझे क्यों ऐसा लगा कि, तुम अकेले में बड़बड़ा रहे थे। अक्सर तुम ऐसे तभी बड़बड़ाते हो, जब तुम्हें किसी पर गुस्सा आ रहा होता है और तुम अपना गुस्सा उस पर निकाल भी नहीं पाते।

प्रशांत:  नहीं, नहीं तो। मुझे तो किसी पर भी गुस्सा नहीं आ रहा है। तुम, तुम बताओ, तुम यहांँ क्या कर रही हो? तुम तो मेैगी बनाने के लिए किचन में गई थी, न। तो यहांँ कब आई, क्यों आई?

आरती: वो, वो, मैं यहांँ क्यों आई। भूल गई, तुम्हारी बड़बड़ की वजह से। मैं...मैं...हांँ, याद आया। वो, मैं यहांँ ये पूछने आई थी कि, मैगी कहांँ रखी है? मुझे कहीं नहीं मिली किचन में।

प्रशांत: मेैगी वहीं रखी है, सबसे ऊपर वाली अलमारी में। जाओ, देखो जाकर, मिल जाएगी।

आरती अभी भी प्रशांत को ही देखे जा रही थी। तभी प्रशांत का फोन रिंग हुआ और स्क्रीन पर ‘सागर’ का नाम फ्लैश होने लगा। सागर प्रशांत का बहुत अच्छा दोस्त था। प्रशांत ने मन-ही-मन भगवान जी को, आरती की घूरती नजरों से बचाने के लिए, ‘थैंक्यू’ कहा और धीरे-से बोला कि, “पहली बार इस गधे का फोन सही टाइम पर आया है।” “आरती, मेैं सागर से बात करके आता हूंँ। तुम इतने मैगी बना दो, प्लीज़।” प्रशांत ने आरती से कहा तो आरती ने ‘हांँ’ में गर्दन हिला दी। आरती किचन में चली गई और प्रशांत बालकनी में जाकर सागर से फोन पर बात करने लगा।

सागर से बातें करते-करते प्रशांत को समय का ध्यान ही नहीं रहा था। जब उसने फोन रखा तो देखा कि, उसने आज 50 मिनट सागर से बात कर ली है। फिर उसे ध्यान आया कि, 50 मिनट हो गए और आरती अभी तक मेैगी खाने के लिए उसे बुलाने नहीं आई। वह तुरंत किचन में पहुंँच गया।

किचन में जाकर प्रशांत ने देखा कि, आरती हाथों में फोन पकड़े, उसमें कोई वीडियो बड़े ध्यान से देख रही है और मैगी का पैकेट सामने ऐसे ही रखा है। आरती को ऐसे देख प्रशांत ने हैरानी से पूछा, “आरती, तुम क्या देख रही हो, इतने ध्यान से फोन में? मेैगी क्यों नहीं बनाई अब तक?” “वो... वो... प्रशांत, तुम्हें तो पता है ना कि, मम्मी के घर में तो मैंने कभी काम ही नहीं किया। खासकर, खाना तो कभी बनाया ही नहीं। मैंने तो आज तक मैगी के अलावा कुछ बनाना नहीं सीखा। हॉस्टल में मैगी बनाई, तो वो भी इंडक्शन स्टोव पर। सिलेंडर वाली गैस पर कभी कुछ किया ही नहीं तो, मुझसे तो गैस ही नहीं जली। मैंने सोचा, यू-ट्यूब की हेल्प ले लेती हूंँ। मैं यू-ट्यूब पर यही देख रही थी कि, गैस कैसे जलाते हैं?” आरती ने मासूम-सी शक्ल बनाते हुए, प्रशांत को जब यह सब बताया तो प्रशांत को उसकी मासूमियत पर हंँसी आ गई। उसने आरती से पूछा, “आरती, अगर गैस नहीं जल रही थी तो, तुम मुझे भी तो बुला सकती थी न? तुमने मुझे क्यों नहीं बुलाया?” “वह तुम अपने दोस्त से बात कर रहे थे न, तो मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी। वैसे भी, मैंने रमा दीदी से सीख ही लिया था कि, लाइटर कैसे यूज करते हैं। पर फिर भी, यह गैस तो जली ही नहीं।” आरती ने मासूमियत से जवाब दिया। “आरती, तुम बहुत मासूम हो। यार! यू आर सो क्यूट।” प्रशांत ने ऐसा कहते हुए आरती को गले लगा लिया।

प्रशांत ने आरती के हाथों से उसका फोन लिया और लॉक करके साइड में रख दिया। उसने आरती को बड़े ही प्यार से थोड़ा-सा पानी पिलाया। आरती को अब भी थोड़ा परेशान देख, प्रशांत ने आरती को समझाते हुए कहा कि, “आरती, मैंने ही रमा दीदी को कह रखा है कि, सारा काम खत्म करने के बाद सिलेंडर का रेगुलेटर बंद कर जाया करें। ताकि गैस लीक होने का कोई खतरा ना रहे। जब रेगुलेटर ऑफ होता है तो, हम गैस नहीं जला सकते हैं। अगर गैस जलानी है तो, पहले रेगुलेटर तो ऑन करना पड़ेगा न।” “अच्छा... तो इसलिए, मुझसे गैस नहीं जली थी क्योंकि, रेगुलेटर ऑफ था।” कहते हुए आरती ने अपना सिर पीट लिया। फिर दोनों साथ में हंँस पड़े।

प्रशांत ने रेगुलेटर ऑन कर दिया और आरती ने गैस जलाकर, मेैगी बनाने के लिए उस पर एक पैन में पानी उबलने के लिए रख दिया। फिर आरती ने जल्दी से मैगी बनाकर प्रशांत को दे दी और कहा, “लो, जल्दी से मैगी खा लो। एक तो मेरी वजह से पहले ही बहुत लेट हो गया।” “बहुत नहीं मैडम, बहुत ज्यादा। टीवी वाले लोग दिखाते हैं कि, मैगी 2 मिनट में बनकर तैयार हो जाती है। हालांकि, मुझसे भी कभी 2 मिनट में मैगी बनकर तैयार नहीं हुई। हांँ पर 5 मिनट में जरूर बन जाया करती थी। पर तुमने तो आज नया रिकॉर्ड बना दिया। 50 मिनट में भी तुमने मुझे मैगी बनाकर नहीं दी।” प्रशांत ने हंँसते हुए कहा। आरती ने उसे घूर कर देखा और बोली, “वह तो गैस नहीं जली थी न इसलिए। वरना मेैगी बनाने में भी किसी को 50 मिनट लगते हैं, क्या?” आरती को ऐसे देख प्रशांत ने हंँसते हुए कहा कि, “हम्म... यही है मेरी वाली आरती। जो मुझे घूर कर देखती है। चलो, फाइनली नॉर्मल हो गई। थैंक गॉड।”

प्रशांत के ऐसा कहते ही आरती उसे मारने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगी। प्रशांत मैगी का बाउल हाथ में लिए हुए किचन से बाहर आ गया। आरती भी उसके पीछे-पीछे आ गई। फिर दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। जैसे-ही प्रशांत ने मैगी खाई, तुरंत ही उसके मुंँह से वाह! निकल गया और आरती से बोला, “चलो, भले तुमने मेैगी खिलाने के लिए इतना इंतजार करवाया पर, मैगी तुमने बहुत कमाल की बनाई है। मजा आ गया।” अपनी तारीफ सुनकर आरती मुस्कुरा दी। तभी प्रशांत ने उसे भी अपने हाथों से मैगी खिला दी। दोनों ने बातें करते-करते सारी मैगी खा ली। मेैगी खत्म होते-होते आरती और प्रशांत दोनों की ही सारी टेंशन दूर हो गई थी।

आरती को गैस जलाना आ गया था। दूसरी तरफ, प्रशांत को पालक-पनीर से छुटकारा मिल गया था। पर शाम को प्रशांत को पालक-पनीर से छुटकारा मिलेगा या नहीं,यह तो उसकी मासूम-सी पत्नी के मूड पर ही डिपेंड करेगा। फिलहाल के लिए तो, प्रशांत के ऑफिस के बॉस की वजह से बिगड़ा हुआ उसका संडे, उसके घर की बॉस की वजह से सुधरा ही नहीं बल्कि यादगार बन गया।



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