अक्षिता अग्रवाल

Drama Romance

4.3  

अक्षिता अग्रवाल

Drama Romance

मेरे बचपन का प्यार (भाग 6)

मेरे बचपन का प्यार (भाग 6)

5 mins
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प्रतीक परिधि से कुछ पूछ ही रहा होता है कि, उन दोनों के मम्मी-पापा आ जाते हैं और कहते हैं, ‘बाकी की बातें बाद में करना बेटा। अभी यह तुम दोनों की सगाई के लिए शुभ मुहूर्त है तो, पहले सगाई कर लो। पंडित जी भी आ गए हैं।’ प्रतीक की मम्मी के ऐसा कहते ही प्रतीक और परिधि दोनों बहुत खुश हो जाते हैं। तभी अचानक प्रतीक बोलता है, “एक मिनट मम्मी, मैं अंकल-आंटी से यह पूछना चाहता हूँ कि, उन्हें इस रिश्ते से कोई प्रॉब्लम तो नहीं है।” प्रतीक के ऐसा पूछते ही परिधि गुस्से में कहती है, “क्या प्रतीक तुम भी.... अच्छा है ना.... अगर किसी को इस रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं है तो। तुम क्या हमारी लव-स्टोरी में टीवी सीरियल्स टाइप्स कोई ड्रामा चाहते थे?”

प्रतीक: नहीं मैं.... वो.... मैं तो बस.....।

परिधि: श्श्श्श..... चुप रहो तुम।

परिधि की डाँट पड़ते ही प्रतीक बिल्कुल चुप होकर खड़ा हो जाता है। तो प्रतीक के पापा हँसते हुए कहते हैं कि, “बेटा अब तुम्हारी शादी होने वाली है। अब तो बीवी की बात मानने की आदत डाल लो। सुखी रहोगे जीवन में।” प्रतीक के पापा के ऐसा कहते ही, सभी लोग जोर से हंँसने लगते हैं और प्रतीक की मम्मी प्रतीक के पापा को घूर कर देखती हैं।

प्रतीक के पापा के ऐसा कहते ही, परिधि प्रतीक के कानों में कहती है, “सुनी ना तुमने, अपने पापा की बात ध्यान से। हमारी शादी हो जाने के बाद घर की बॉस मैं ही होऊँगी। अपने ऑफिस में तुम भले ही बॉस रहो। घर पर कोई बाॅसगिरी दिखाने की जरूरत नहीं है। घर पर आकर तुम्हें मेरी सारी बातें माननी ही होंगी। समझ गए ना।”

प्रतीक: हाँ, हाँ,  समझ गया मेरी बंदरिया। तुम्हारा हर हुकुम सर आँखों पर होगा। डोंट वरी मेरी जान।

परिधि के पापा: अरे! भई, हमें भला इस रिश्ते से क्या प्रॉब्लम हो सकती थी। हम तो प्रतीक को उसके बचपन से जानते हैं कि, वह बहुत अच्छा लड़का है। और वैसे भी हमेशा लड़की के माँ-बाप लड़की के दूर जाने से डरते हैं। हमें किस बात का गम है। हमारी बेटी तो शादी करके भी हमारे सामने वाले घर में ही रहेगी। तो, हमें तो भई इस रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं है। शादी के बाद भी हमारी बेटी पराई नहीं होगी। क्यों भाई साहब?

प्रतीक के पापा: जी बिल्कुल।

प्रतीक की मम्मी: चलो, चलो। अब तुम दोनों कुर्सी पर बैठ जाओ और एक-दूसरे को अंगूठी पहना दो। चल प्रतीक, जल्दी से अपनी लाई हुई अंगूठी पहना दे परिधि को।

प्रतीक: मम्मी आपको कैसे पता कि, मैंने अंगूठी खरीदी है परिधि के लिए?

प्रतीक की मम्मी: मैं माँ हूँ तेरी। मुझे सब पता है, समझा। जब तू छोटा था और मैं तुझे परिधि से राखी बँधवाने के लिए कहा करती थी और तू अचानक से बीमार हो जाता था। फिर जब तू हर रक्षाबंधन पर यहाँ से भागने के लिए, मामा के घर जाने की ज़िद किया करता था। तभी से मैं सब कुछ समझती थी बेटा। चल, अब जल्दी से परिधि को अंगूठी पहना दे।

प्रतीक परिधि को अंगूठी पहनाता है। वहीं दूसरी तरफ़, परिधि की मम्मी भी परिधि की लाई हुई अंगूठी परिधि को देती हैं और वह प्रतीक को पहना देती है। सगाई होते ही सभी लोग तालियाँ बजाने लगते हैं। और प्रतीक परिधि से पूछता है, “परिधि हमारे दोस्त क्यों नहीं आए वैसे?”

परिधि: हमारे दोस्त इसलिए नहीं आए क्योंकि, मुझे उन गधों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। अगर वह सब मेरे प्लान पर पानी फेर देते तो। इसीलिए, मैंने किसी को बुलाया ही नहीं। सब लोग आएंगे पर, हमारी शादी में।

प्रतीक परिधि की बात सुनकर हँस पड़ता है और कहता है, “वैसे पता है, तुमने बहुत अच्छा गिटार बजाया।”

परिधि: हाँ, पता है। आखिर इतनी मेहनत करके गिटार बजाना सीखा जो मैंने तुम्हारे लिए तो, अच्छा तो लगेगा ही ना। अच्छा वैसे अब शादी से पहले तुम भी मेरे लिए कुछ सीख लो।

प्रतीक: हाँ बताओ, क्या सीखना है मुझे तुम्हारे लिए? तुम्हारे लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ।

परिधि: तारीफ़ करना। समझ गए?

परिधि के ऐसा कहते ही प्रतीक हँस पड़ता है और परिधि वहाँ से भागकर अपनी मम्मी के पास चली जाती है। प्रतीक भी आकर वहीं सबके साथ खड़ा हो जाता है। तभी परिधि की मम्मी परिधि से पूछती हैं कि, “अब तुम कैसी हो परिधि? अब तुम्हें खाँसी तो नहीं हो रही है ना बेटा?” प्रतीक उनके ऐसा पूछते ही परिधि के कुछ बोलने से पहले ही उससे पूछता है, “तुम्हें खाँसी है परिधि? तुमने तो मुझे बताया भी नहीं।”

परिधि की मम्मी: तुम चिंता मत करो बेटा। इसने दवाई खा ली है।

प्रतीक: आंटी मैं कह रहा था कि, आप इसको काढ़ा बना कर दे देतीं ना। आप के हाथों का काढ़ा पीने से, इसकी खाँसी जल्दी ठीक हो जाती।

परिधि की मम्मी: क्या फायदा काढ़ा बनाने का? मैं काढ़ा बनाती ज़रूर इसके लिए पर, पीना तो बाद में तुम्हें ही पड़ता। है, ना....?

परिधि की मम्मी के ऐसा कहते ही प्रतीक हैरान रह जाता है। तो, परिधि की मम्मी कहती हैं कि, तुम लोगों के बचपन में, जब भी मैं परिधि के लिए काढ़ा बनाती थी। तो, वह कड़वा काढ़ा हमेशा तुम ही पिया करते थे ना। सही कह रही हूँ ना मैं? प्रतीक कुछ बोलता उससे पहले ही उसकी मम्मी बोलती हैं, “हाँ और जब प्रतीक बीमार होता था। और मैं उसके लिए दलिया बनाया करती थी तो, वह परिधि खा लिया करती थी। और इसे चटपटा खाना खिला जाया करती थी। ऐसा बोलकर वह दोनों हँसने लगती हैं। प्रतीक और परिधि एक-दूसरे की तरफ़ ऐसे देख रहे होते हैं मानो, एक-दूसरे से कह रहे हों कि, “माँ से कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता।” प्रतीक वहाँ से बच निकलने के लिए परिधि के मम्मी-पापा से पूछता है कि, “अंकल-आंटी क्या मैं परिधि को कुछ देर के लिए अपने साथ ले जा सकता हूँ? प्लीज़।”

परिधि के पापा: ले जा तो सकते हो। पर, एक शर्त पर।

प्रतीक: जी, कैसी शर्त?

परिधि के पापा: यही कि, आज से तुम हमें अंकल-आंटी नहीं बल्कि मम्मी-पापा कहकर बुलाओगे।

प्रतीक के मम्मी-पापा: हाँ, बेटा परिधि तुम भी अब से हमें मम्मी-पापा कहकर ही बुलाओगी।

प्रतीक और परिधि: (साथ में) ज़रूर.... मम्मी-पापा।

प्रतीक और परिधि के मुंह से साथ में मम्मी-पापा सुनकर सभी खुश हो जाते हैं और प्रतीक परिधि को लेकर छत पर चला जाता है।

जारी!!!!


दोस्तों, कैसा लगा आप लोगों को प्रतीक और परिधि की इस प्यारी-सी कहानी का यह वाला भाग? मुझे अपना जवाब अपनी समीक्षाओं में ज़रूर बताइएगा। प्रतीक और परिधि की यह कहानी अब बस थोड़ी-सी ही बाकी है। आप लोग इंतज़ार करिए कहानी के अगले यानी कि सातवें भाग का। मैं जल्दी ही वापस आऊँगी कहानी के अगले यानी की आखिरी भाग के साथ।



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