अक्षिता अग्रवाल

Drama Romance

4.7  

अक्षिता अग्रवाल

Drama Romance

मेरे बचपन का प्यार (भाग 1)

मेरे बचपन का प्यार (भाग 1)

4 mins
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प्रतीक अपनी अलमारी में से अपने कपड़े निकाल कर बार-बार आईने के सामने खड़े होकर खुद पर लगाकर देख रहा था कि, वह लग कैसा रहा है। आज प्रतीक बहुत अच्छा दिखना चाहता था। आज वह परिधि के बुटीक की ओपनिंग में जो जा रहा था। परिधि उसके बचपन की दोस्त या यूंँ कहो कि, उसके बचपन का प्यार। प्रतीक उसे बचपन से ही बहुत चाहता था। उसके साथ घर बसाना चाहता था। परंतु परिधि एक फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी। परिधि ने एक बार प्रतीक को बताया था कि, वह पहले अपना बुटीक खोलेगी, उसके बाद ही शादी के बारे में सोचेगी। आज परिधि खुद एक फैशन डिजाइनर बन चुकी है बल्कि आज वह अपना बुटीक खोलने जा रही है। इन सब चीजों से प्रतीक बहुत खुश है। और उसने फैसला किया है कि, वह आज बुटीक की ओपनिंग के बाद ही, शाम को परिधि को प्रपोज़ भी कर देगा। परिधि के फैशन डिजाइनर बनने से लेकर बुटीक खोलने तक के सफ़र में प्रतीक ने उसका बहुत साथ दिया। अब प्रतीक उसका और इंतजार नहीं कर सकता है।

प्रतीक को कुछ समय बाद अलमारी में काले रंग का एक ब्लेज़र नजर आता है। प्रतीक उसे देखते ही मुस्कुरा पड़ता है। वह ब्लेज़र प्रतीक के लिए बहुत खास था क्योंकि, वह उसके पिछले जन्मदिन पर परिधि ने खुद डिजाइन कर उसे तोहफे में जो दिया था। प्रतीक वही ब्लेज़र पहनने का निर्णय लेकर तैयार होने चला जाता है।

प्रतीक तैयार होने के बाद खुद को आईने में देखता है। तभी अचानक उसे आईने में परिधि नज़र आती है। आंँखों में काजल, होठों पर हल्के-से रंग की लिपस्टिक, चेहरे पर थोड़ा-सा मेकअप, थोड़े घुंँघराले खुले बाल, कानों में लंबे-लंबे ईयररिंग और एक प्यारा-सा गाउन पहने परिधि बिल्कुल ऐसी लग रही थी जैसे, अभी-अभी आसमान में से कोई परी उतर कर धरती पर आ गई हो। प्रतीक एकटक उसे देख ही रहा होता है कि, परिधि कहती है, “बहुत अच्छे लग रहे हो मेरे बंदर। इतना कंफ्यूज़ होने की कोई ज़रूरत नहीं थी। तुम तो कुछ भी पहनो, अच्छे ही लगते हो।” परिधि के ऐसा कहते ही प्रतीक शर्मा कर अपनी गर्दन झुका लेता है। फिर वह परिधि से मिलने के लिए जैसे ही पीछे मुड़ता है तो देखता है कि, वहांँ तो कोई है ही नहीं। प्रतीक आसपास परिधि को ढूंँढता है। जब वह नहीं मिलती तो वह समझ जाता है कि, वह खुली आंँखों से ही परिधि का सपना देख रहा था। इस बात का एहसास होते ही वह अपने सर पर हल्के से मारता है और खुद पर ही हंँसने लगता है।

प्रतीक तैयार होकर कमरे से बाहर जाने के लिए निकलने ही वाला होता है। तभी अचानक उसे याद आता है कि, उसने परिधि को प्रपोज़ करने के लिए जो अंगूठी खरीदी थी, वह तो उसने अपने साथ ली ही नहीं। वह अलमारी खोलकर अंगूठी का छोटा सा बॉक्स निकालता है और उसे अपने ब्लेज़र की जेब में रख लेता है। तभी उसकी नजर अलमारी में रखे एक गुलाबी रुमाल पर पड़ती है। रुमाल देखते ही वह मुस्कुरा पड़ता है। यह गुलाबी रुमाल प्रतीक के लिए बहुत खास था। आखिर वह रुमाल परिधि का जो था।

प्रतीक को आज भी याद है वह दिन, जब स्कूल में एक बार गिर जाने की वजह से उसके हाथ में चोट लग गई थी परिधि भागकर उसके पास आई थी। उसने अपना रुमाल प्रतीक के हाथ में बांध दिया था और भागकर वह अपनी टीचर को बुला लाई थी। फिर उनकी क्लास टीचर ने फर्स्ट एड बॉक्स लाकर प्रतीक के हाथ पर पट्टी बांध दी थी। जब पट्टी बांधने के लिए, प्रतीक की क्लास टीचर ने रुमाल उसके हाथ से निकाल दिया था। तब उसने वह रुमाल परिधि को लौटाने के बजाय चुपचाप अपनी यूनिफॉर्म की जेब में रख लिया था। प्रतीक को तो यह भी याद है कि, जिस लड़के की वजह से उसको धक्का लगा था और वह गिर गया था। परिधि कैसे उस लड़के पर राशन-पानी लेकर चढ़ गई थी और उस पर मुक्के बरसाने लगी थी। वो तो उसने ही परिधि को रोक लिया था वरना उससे पहले फर्स्ट एड की ज़रूरत उस लड़के को पड़ती।

यह सब बातें याद करते-करते प्रतीक खुद ही जोर से हंँसने लगता है। और वह गुलाबी रुमाल वह अपनी जेब में रखकर अलमारी बंद कर देता है। वह मन ही मन सोचने लगता है कि, “तुम तो इतनी छोटी सी थी, जब से ही मुझे बहुत प्यारी हो मेरी बंदरिया। आज मैं तुम्हें बता ही दूंँगा कि, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूंँ, परिधि, बहुत।” ऐसा सोचकर प्रतीक कमरे से बाहर निकल जाता है।

ऐसी तो ना जाने कितने बचपन के किस्से थे जो, आज तक प्रतीक को उसकी जि़दगी की सबसे खूबसूरत यादों के तौर पर याद थे। उसकी हर याद में, हर धड़कन में बचपन से ही बस परिधि ही समाई थी।

जारी!!!!

दोस्तों, प्रतीक और परिधि की यह प्यारी-सी कहानी अभी बाकी है। आगे की कहानी पढ़ने के लिए इंतजार करिए कहानी के अगले भाग का। जब तक कहानी का यह पहला भाग पढ़िए और अपनी प्यारी-प्यारी सी समीक्षाएंँ दीजिए। मैं जल्दी ही वापस आऊंँगी कहानी के दूसरे भाग के साथ।


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