भगवंती
भगवंती


भगवंती सबसे छोटी। उस से बड़ा पदम दबे रंग का, नाटा युवक। सबसे बड़ा गोपाल गेन्हुए रंग, दरम्याने क़द का।भगवंती की माँ सांवले रंग की नाटे क़द की, झगड़ालू औरत। पापा वीर सिंह गोरे, परंतु नैन नक़्श औसत।भगवंती मानो किसी और दुनिया से आयी थी। रंग रूप, व्यवहार, परिवार के बाक़ी सदस्यों से एकदम अलग़।
छोटी भगवंती पागल सी लड़की लगती, स्कूल जाने से चिड़ थी, उसको। भागा दौड़ी के ख़ेल उसको सख़्त नापसंद। नाक बहती रहती, कभी एक चोटी, पर ज़्यादातर दो चोटियाँ कर, ढेर सारा तेल चुपड़ कर, झल्ली नम्बर वन बनी रहती।
भागो तू एक बात समझ ले, भगवंती की माँ शिवकली बोली "यह जो बाप है न तेरा, इसने ज़िंदगी भर काम किया पर पैसा इसके पास बिल्कुल नही है" नाकारा है। तेरी शादी का ख़र्चा या तो तेरे यह भाई करेंगे, या ख़ेत बेचने पड़ेंगे। पर अम्मा अभी तो मैं बहुत छोटी हूँ। और पहले गोपू भैया की शादी होगी। कह तो तू ठीक रही है, कुछ सोचते हुए शिवकली बोली। अगर उसकी बीवी सही नहीं आयी तो ? वैसे गोपू तुमसे पाँच साल ही तो बड़ा है। नहीं, उसकी शादी तेरे बाद ही होगी।
क्या उल्टा सीधा समझा रही हो ! छोटी सी बच्ची को। वीर सिंह बोला। उसको समझाना, मेरा फ़रज़ है, नही तो तुम्हारे जैसा बुद्दू न गले पड़ जाए। भाई ने जायदाद सारी ख़ुद हड़प ली, यह भोले भण्डारी आठ बीघा ख़ेत लेक़र ख़ुश। जेठ, अठाइस बीघे के मालिक?यह कौन सा हिसाब हुआ ? तुम्हें कितनी बार बता चुका, चौबीस बीघे भैया ने अपनी मेहनत से बनाई है। कौन सी मेहनत तुम्हारे पप्पा को बेवक़ूफ़ बनाने की मेहनत। बुड्डे की चमचागिरी कर सारा बैंक का पैसा, अपने नाम करा लिया। यही मेहनत। शिवकली हाथ नचाकर बोली। मेरा दिमाग़ न ख़राब करो, जब तू ब्याह कर आयी , तब बापू ज़िंदा था क्या ?" तुम्हे कैसे पता उनके खाते में पैसा था भी या नहीं? अगर था, तो सब भैया को मिल गया, कैसे पता? तब तुम अपने मायके में थी।"तुम्हारी तरह, अंधी /बहरी नहीं हूं, सुनाई पड़ता है साफ साफ़, बताने वाले सब बताते हैं, बस तुम्हे न दिखाई दिया /न कभी दिखाई देगा"शिवकली चूल्हे में लकड़ी डालती हुये बोली। धुआं/लकड़ी सब मेरे लिए, लोगों का गैस का चूल्हा /स्टोव सब है। एक स्टोव तक तो लाया नहीं गया तुमसे। "नहीं लाया, इसलिए नहीं लाया मिट्टी का तेल डाल जल मरोगी किसी दिन गुस्से में" वीरसिंह बोला। हां, तुम तो चाहते ही हो, मर जाऊं मैं, शिवकली रोने लगी।"कैसी औरत हो ? मखौल कर रहा हूं"। "मज़ाक तो मेरे मां/बाप ने उसी दिन कर दिया था, जिस दिन तुमसे शादी तय की" रोते रोते शिवकली बोली। मुझे माफ़ करो, कह वीर सिंह घर से निकल गया। शिवकली रोते रोते, देर तक बड़बड़ाती रही।
गोपाल पढ़ने में ठीक था। शिवकली की बात, एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देता। जितना भी हो सकता, घर के काम में हाथ बंटाता। बाकी समय पढ़ाई करता रहता। भैया, एक बात बताओ? भागो ने गोपू से पूछा। पूछो? " सही में ! सोहनू ताऊ ने हम लोगों का हिस्सा मार लिया? " अरे नहीं! ऐसा कुछ नहीं है, और तू अम्मा की बातें दिमाग़ में मत ले जाया कर। इधर से सुन, उधर से बाहर। ठीक भैया, भागो मुस्कुराती हुई बोली।
जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखती भगवंती का रूप /रंग निखरने लगा था। खूबसूरत नैन नक़्श, गुलाबी गोरा रंग, राजकुमारियों को मात करती सुंदरता थी भागो की।सुन बहू, लड़की जवान हो गयी है, एक दिन किंकरी, शिवकली से बोली। लड़का ढूँढना शुरू कर दे। अरे अभी इसके दो बड़े भाई कुँवारे है। सुन शिवकली, ध्यान से, एक तो रूप ऐसा पाया, ऊपर से ज़माना देख रही हो? याद है शनाड़ी की देवेंदर की लड़की भागी थी ना। "भागो अभी सोलह साल की ही तो हुई है।" शिवकली मानो ख़ुद को दिलासा दे रही थी। देख लो, जैसी मर्ज़ी तुम्हारी।कहकर किंकरी चली गयी।पर पीछे छोड़ गयी, भागो के लिए बंदिशो का पिटारा।
उछल उछल कर क्यों चलती हो? पाउडर क्यों लगाया ? शिवकली हर समय भागो पर नज़र रखने लगी। सुनो! एक बात, वीरसिंह से शिव कली बोली, भागो के लिये लड़का ढूंढना शुरू कर दो। अरे छोटी है अभी। छोटी नहीं, जवान हो रही है, और लड़का ढूंढने में टाइम लगता है। ठीक है, वीर सिंह बोला।
भगवंती को समझ नहीं आ रहा था, मां इतना क्यों टोकने लगी है। वह अपने मन की बात काली से करने चली जाती। तुम बताओ काली, क्या मैं उछल उछल कर चलती हूं?, पाउडर, लिपस्टिक लगा कर घूमती हूं? बताओ काली। काली उसको देखती रहती, मानो कह रही हो, इतनी सुन्दर हो, तुम्हे श्रृंगार की क्या ज़रूरत। तुम भी मां की तरफ़ हो, काली को घास खिलाते हुए भागो बोली। अब देखो काली !मां मेरी शादी कराना चाहती है? क्या यह ग़लत नहीं है? देखो मैं चली जाऊंगी ना, तब देखना कोई बात नहीं करेगा तुमसे।" अभी बोल दिया करो। " काली की गर्दन सहलाते बोली भागो।
सुनो ! सतना गांव के प्रीतम का लड़का अभी पढ रहा है, मैंने बात चलाई है। सीधा साधा परिवार है। वीर सिंह बोला। और ज़मीन कितनी है? शिव कली ने पूछा, होगी गुजारे भर की। देखो तुम आदमी को देखो, लड़का अच्छा है। सरल लोग है। भागो खुश रहेगी। बाकी जो उसके भाग्य में होगा।
दो/तीन दौर की बात के बाद शादी पक्की हो गई। बैशाख की दसवीं तिथि को शुभ मुहूर्त है, पंडित जी ने कहा। ठीक है पंडितजी। प्रीतम और वीर सिंह एक साथ बोल पड़े।
राजन की लंबाई अच्छी थी, शर्मीला सा। पढ़ने में होशियार था। भागो और राजन की जोड़ी जमती थी। विदाई के बाद भागो ने ससुराल में वही सब पाया। लकड़ी का चूल्हा, छोटा सा साफ सुथरा घर। दो बैल, तीन गाएं दो भैंस। कुछ नहीं बदला, बस राजन का साथ मिल गया और बड़बड़ करने वाली मां की जगह प्यार करने वाली सास।
सुन ! भागो तू खुश तो है? हां मां। खुश हूं। गैस चूल्हा तो होगा ही ? नहीं है मां, पर लकड़ी वाला चूल्हा अच्छा लगता है। मेरी बेटी की किस्मत भी मेरे जैसी ही है। मां में खुश हूं। बहुत खुश। राजन बहुत अच्छे हैं। ख़ुश रहो बेटा। शिव कली पता नहीं क्या सोच रही थी।
राजन मन लगा कर पढ़ाई करता रहा, भागो ने घर को बहुत अच्छे से संभाल लिया था। राजन एक बात बोलूं? बोलो भागो, क्या हुआ? अरे हुआ कुछ नहीं, क्या हम लोग गैस चूल्हा ले सकते हैं? अरे पगली तुम्हे मै सारे सुख दूंगा, बस रिज़ल्ट आने दे, इस बार यू पी एस सी का पेपर बढ़िया हुआ है, उसके बाद इंटरव्यू और फिर मैं, मेरी रानी, अम्मा/पिताजी के साथ। राजन का सिलेक्शन हो गया। पहली पोस्टिंग के एक साल बाद, भागो और राजन जब गाड़ी से उतरे, तो शिवकली रो रही थी, मेरी भागो, भगवंती नाम बिल्कुल तेरे लिए ही है, बेटा। खुशी के आंसू टप टप गिर रहे थे। मां गैस का चूल्हा भी है, भगवंती शिवकली के कान में धीरे से बोली। पागल ही है तू अभी भी, शिवकली ने उसे दुलारा।