Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance Inspirational

भावुक फिरदौस …

भावुक फिरदौस …

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अभागे, पूर्व शौहर को, अब्बू के इलाज के लिए मिली, 15 दिन की पैरोल रिहाई, फिरदौस पर उसके किये हमले के कारण उसे, गिरफ्तार किये जाने से, 4 दिन में ही स्वतः समाप्त हो गई। 

कोई अपराधी अपने हर कृत्य को, पता नहीं किस कोण से देखता है कि उसे, अपनी कोई भूल दिखती ही नहीं है। ऐसे ही किसी विचित्र कोण से, पूर्व शौहर भी अपने द्वारा किये गए, फिरदौस पर हमले को देख रहा था। 

फिरदौस पर हमले को वह, मजहब के प्रति अपना फर्ज जैसे देख रहा था। वह सोच रहा था कि अगर वह, किसी काफिर की लड़की से शादी करे तो, यह उसका हक़ है मगर फिरदौस को, किसी काफिर से शादी करने एवं उसके बच्चे की माँ होने का, अधिकार नहीं है। 

जब फिरदौस ने ऐसे दोनों ही काम किये हैं तो, उसके गर्भ के शिशु की हत्या के उद्देश्य से किया गया, उसके द्वारा हमला बिलकुल सही है। 

उसे अपने फिर गिरफ्तार हो जाने पर दो बातों से कोफ़्त हो रही थी। 

पहली कि नरगिस एन्ड पार्टी के पहुंच जाने से, उसका मंसूबा पूरा नहीं हो सका था। दूसरी बात उसकी गिरफ्तारी से, बीमार अब्बू की तीमारदारी का उसका फर्ज, अधूरा रह गया था। 

हवालात में वापस डल जाने पर, इन्हीं वजह से वह बेहद गुस्से एवं अफ़सोस में था। 

अब वह सोच रहा था कि अभी अपने (ना) पाक इरादों में वह, नाकामयाब हुआ है। अब वह इसका बदला अपनी सजा पूरी करने के बाद रिहा होकर जरूर लेगा। 

तब वह किसी काफिर लड़की से निकाह कर लेगा। वह सोचने लगा कि इसके लिए उसे, अपने को काफिर दिखाना पड़े तो वह ऐसा, अपना (छद्म) नाम योगेश रखते हए करेगा। 

कुछ दिनों बाद, फिरदौस पर हमले के अपराध में उसे पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किया गया। संयोग से उसी दिन, फिरदौस की मानसिक तथा शारीरिक स्थिति सम्हल जाने के बाद, हरिश्चंद्र जी ने छुट्टी से वापसी की थी।  

पूर्व शौहर को यह देख कर अपनी बदनसीबी पर रोना आ गया कि उसका, यह केस भी हरिश्चंद्र जी के सामने लगा था। हरिश्चंद्र जी ने ही उसके पूर्व तीन तलाक के प्रकरण पर फैसला उसके विरुद्ध दिया था। अब हरिश्चंद्र ही, फिरदौस के पति भी थे। 

पूर्व शौहर इससे मायूस हुआ कि जज अब, उसके साथ सख्ती से पेश आएगा। जज ने दाखिल आरोप पत्र सुनने के बाद, अगली दिनांक तीन सप्ताह बाद की दे दी थी। 

कोर्ट से लौटने के बाद हरिश्चंद्र जी उस रात, और दिनों से तथा अपने स्वभाव विपरीत अपने में खोये हुए गुमसुम थे। 

फिरदौस ने इसका कारण पहचान लिया था। सुबह ही फिरदौस ने, पोर्टल पर ऑनलाइन होकर यह देख लिया था कि हरिश्चंद्र जी के सामने, पूर्व शौहर के, उस पर हमले का केस लगा है। 

फिरदौस ने सोचा कि हो न हो, हरिश्चंद्र जी को पूर्व शौहर को फिर, सामने देखना पसंद नहीं आया हो। 

तब फिरदौस ने, पति की मन: स्थिति ठीक करने का उपाय, मन ही मन तय किया। फिरदौस, हरिश्चंद्र जी के सामने जाकर खड़ी हुई। फिरदौस ने, उनका हाथ लेकर, अपने पेट पर रखा और कहा - 

जी, देखिए आपका यह शिशु, आपसे कितना ज्यादा तेज हो गया है। गर्भ में ही कितनी धमाचौकड़ी मचाये रखी है, इसने! 

हरिश्चंद्र जी ने तब हँसते हुए कहा - यह तो आप पर जा रहा है, फिरदौस। 

फिरदौस, हरिश्चंद्र जी की यह हँसी ही तो देखना चाहती थी। अब वह विषय पर आई उसने पूछा - 

आज आप, कुछ परेशान से दिख रहे हैं। क्या, कोर्ट में कोई विशेष बात हुई है?

हरिश्चंद्र ने उत्तर दिया - हुई तो है, मगर मैं, आप से नहीं कहना चाहता। 

फिरदौस ने रुआँसी हुई दिखाते हुए कहा - नहीं, आप बताओ, मुझे जाननी है। 

तब हरिश्चंद्र ने बताया - 

आप पर हमले के प्रकरण की सुनवाई, मेरे सामने ही लगी है। मैं, सोच रहा हूँ कि इसे, अपनी अनिच्छा बता कर, अन्य न्यायाधीश के कोर्ट में, स्थानांतरित करवा दूँ। 

फ़िरदौस ने पूछा - आप, ऐसा क्यों चाहते हैं? 

हरिश्चंद्र ने कहा - 

यह प्रकरण, सीधे मुझसे संबंधित तो है ही, साथ ही आपके पूर्व शौहर के द्वारा, मुझे काफिर कहे जाने से यह, “एक कौम वर्सेस अन्य कौम” हो गया है। 

फिरदौस ने कहा - 

हाँ, बात तो आप सही कह रहे हो। पूर्व शौहर जैसे ये लोग, खुद तो किसी भी संप्रदाय की लड़की से शादी कर लेते हैं मगर अपनी परित्यक्ता तक का, अन्य संप्रदाय में शादी कर लेना बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।

 ये खून खराबा करने लगते हैं। प्रकरण ऐसा होने से यह “पुरुष वर्सेस नारी” भी हो गया है। 

हरिश्चंद्र ने कहा - इसे मैं, एक और दृष्टिकोण से भी देख रहा हूँ। 

फिरदौस ने पूछा - वह, क्या है?

 हरिश्चंद्र ने उत्तर दिया - उस पर अभी हैवानियत सवार है। उसने, एक ऐसे मासूम भ्रूण की हत्या करने का प्रयास किया है, जिसने (गर्भस्थ शिशु ने) उसका कुछ नहीं बिगाड़ा है। जो पूर्णतया निर्दोष है। 

ऐसे यह प्रकरण “मानवता वर्सेस हैवानियत” हो गया है। 

इस प्रकरण के फैसले पर दो कौम की उत्सुकता जग गई है। इन समस्त बातों के होने के कारण मैं, मेट्रोपोलिटन सेशन जज के रूप में, अपने आप को इस पर फैसला करने के योग्य नहीं मानता हूँ इसलिए इस की सुनवाई से बचना चाहता हूँ। 

फिरदौस ने कहा - 

आपकी वरीयता चाहे जो भी हो मगर आपको लेकर, अपने अनुभव से मैं, कह सकती हूँ कि इस पर जो न्याय आप करेंगे, वह न्याय तुला पर सब से उत्तम सिद्ध होगा। 

हरिश्चंद्र जी ने पूछा - मुझ पर ऐसा विश्वास क्यों है, भला?

फिरदौस ने कहा - उस दिन मैं, गुस्से में उसे (पूर्व शौहर को), आदमी, बताया जाना, आदमी का, अपमान कह रही थी। इसके विपरीत मैंने, आपको ऐसे गुस्से में कभी नहीं देखा है। 

आप में एक श्रेष्ठ न्यायाधीश अपेक्षित दृष्टि है। आप आदमी एवं बुराई को, दो अलग बात देख लेते हैं। ऐसा होने से किसी भी मसले पर आपका किया गया न्याय, परिपूर्ण (परफेक्ट) होता है। 

हरिश्चंद्र जी ने आश्चर्य मिश्रित प्रशंसात्मक दृष्टि से फिरदौस को देखा फिर कहा - 

कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि स्वयं के बारे में जो मुझे नहीं पता है, वह आपको पता होता है। 

इस प्रशंसा पर फिरदौस शरमाई थी। उसने अपनी पलकें झुका ली थी। हरिश्चंद्र तब न्यायाधीश से पति बन गए थे। उन्होंने फिरदौस की झुकी पलकों पर बारी बारी चुंबन ले लिए थे। तब, अपने बढ़े हुए पेट को बचाते हुए, फिरदौस ने, पति के गिर्द अपनी गलबहियां डाल दी थी। 

कुछ मिनटों का आलिंगन सुख दोनों ने लिया था। तब हरिश्चंद्र ने बात आगे बढ़ाई, कहा - 

फिरदौस, यह देश हमारा अपना है। ऐसे में इसके नागरिक होने पर हम, अपनी तुनकमिज़ाजी से समाज समस्या और जटिल कर दें, यह अच्छी बात नहीं है। 

मैं, मात्र एक नागरिक ही नहीं बल्कि दायित्व पद पर, विराजित व्यक्ति हूँ। मुझे, सर्व पक्ष एवं परिस्थिति पर विचार करते हुए, एक्ट करना होता है। सच्चे न्याय का लक्ष्य, सजा देना ही नहीं होता है अपितु इसमें, दंडित करने का प्रयोजन यह होता है कि अपराधी की, अपराध प्रवृत्ति बदल जाए।

फिरदौस मंत्रमुग्ध होकर पति की बात सुन रही थी। यह देखकर, हरिश्चंद्र ने हौसला लेकर अपनी बात आगे कही - 

आपने देखा है, आपके पूर्व शौहर की आँखों में कट्टरपंथी (विचार) की इतनी मोटी पट्टी बंधी हुई है कि उसे, समाज हित तो दूर की बात, अपने परिवार हित के लिए, कैसे आचरण एवं कर्म रखने चाहिए, वही दिखाई नहीं देता है।

उसने आप जैसी सेंसिबल, अधिवक्ता पत्नी को पहले तलाक देकर बड़ी भूल कर ली। फिर दूसरी बड़ी भूल कारावास के एकांत में, जीवन को समझने की कोई कोशिश नहीं करके की है। 

अपने रोगी पिता की देखभाल के लिए मिले, उसे पैरोल को उसने, हमारे इस मासूम शिशु से, नफरत की घृणित सोच में बर्बाद कर दिया। अपराधी को दंडित करने की संवैधानिक भावना, उस की प्रवृत्ति में परिवर्तन नहीं होने से अपूर्ण रह गई है। 

उसकी परित्यक्ता आप, मेरी वैसी प्रेरणा बन गई हैं, जिस से ही यह कहा जाता है कि -

 “एक सफल पुरुष के पीछे निश्चित ही एक नारी होती है”। 

पति द्वारा मुक्तकंठ की गई, अपनी प्रशंसा सुनकर फिरदौस भावुक हो गई। कुछ स्मरण करते हुए उसके नयन नम हो गए। फिर उसने स्वयं को संयत किया और कहा - 

मानव परिचय लिए एक प्रौढ़ व्यक्ति, उस दिन उस समय मुझे मिले थे, जिस समय मुझे यह लग रहा था कि आज मैं, बेमौत मारी जाने वाली हूँ। उन्होंने, मुझे भयावह वीराने से, सुरक्षित मेरे अब्बा के घर तक पहुंचाया था। फिर ऐसे ही सच्चे मानव परिचय के साथ, एक दिन आप मेरे जीवन में आये। 

इससे मुझे लगता है कि मैं एक वही नारी हूँ, मेरा जीवन सार्थक, आप जैसे सच्चे मानव के साथ से हो रहा है। 

आप देखिये, अगर मैं अपने पूर्व शौहर के साथ ही रही आती तो यही फिरदौस अपना जीवन निरर्थक कर रही होती। तब मैं, यह भी जान नहीं पाती कि मेरा जीवन व्यर्थ जा रहा है। 

मेरे पीछे अब, वह आप (पुरुष) हैं, जिनके होने से मेरा (नारी) जीवन सार्थक हो रहा है …

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