Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational Others

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Sudhirkumarpannalal Pratibha

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भारत मां के चार सिपाही

भारत मां के चार सिपाही

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राघव ने ज्योंही अपना दरवाजा खोला बाहर न्यूज पेपर मिला, राघव ने आंख मलते हुए पेपर उठाया, और मुख्य पृष्ठ पर अपनी नजरें टिकायी। स्पष्ट मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, “पुनः साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश ........” राघव का चेहरा हेडिंग पढ़कर ही उदास हो गया। ..... आखिर क्यों ? क्यों होता है ? क्यों एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, इंसान अपने आप को क्यों बाँट लेता है ? हर इंसान तो एक ही तरह के हाड-मांस के पुतले का बना होता है, सबके शरीर में एक ही रंग के खून दौड़ते हैं, फिर ये आपस में बटवारा क्यों ?

  राघव पेपर रखकर मुंह-हाथ धोने लगा, अपने नित्य क्रिया को पूरा कर वो अपने दफ्तर चला गया। ...... दफ्तर में ताला लटका हुआ था। राघव को समझते देर नहीं लगी, कि वही असामाजिक तत्व के डर से दफ्तर बन्द है, पूरा शहर ऐसा लग रहा था, जैसे अभी सोया ही है, सारी दुकानें बन्द थी। सड़क पर रिक्शा भी नजर नहीं आ रहा था, .... जो सड़क पौ फटने से पहले ही व्यस्त हो जाती है, वो सड़क आज ठहर सी गई है। सड़क पर लावारिस कुत्ते ही नजर आ रहे हैं। ..... राघव लुकते-छिपते अपने घर आया। पास-पड़ोस के सारे दरवाजे बन्द थे। राघव भी अपने घर में घुसकर मजबूती से अपनी कुण्डी लगा दी और पलंग पर लेट गया। ..... राघव आज पहली बार अपने आप को खाली महसूस कर रहा था। नहीं तो सुबह होने से ले के देर रात तक वो व्यस्त ही रहता, इसी व्यस्तता की वजह से वो पेपर की हेडलाइन ही पढ़ पाता।

  राघव का यूँ खाली बैठे-बैठे मन नहीं लग रहा था, वो पेपर उठा कर पुनः पढ़ने लगा। वो पहली बार विस्तृत समाचार पढ़ रहा था। ..... राघव की तंद्रा भंग हुई। कोई उसका दरवाजा तेजी से खटखटा रहा था। ..... राघव का दिल तेजी से धड़कने लगा ..... उसे समझते देर नहीं लगी ..... ये वही लोग हैं, जो धर्म के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हुए हैं। अब करे तो क्या करे ? उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। ..... उसके दिल में विचार आया कि क्यों न जाकर कुण्डी खोल दे। वो दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा। दरवाजा तेजी से पिटा जा रहा था। लेकिन पहले की अपेक्षा, और जोरदार बल लगाकर पिटा जाने लगा। ..... पुनः राघव के दिमाग में आया क्यों न कही जाकर छुप जाए। इन सबका कोई उसूल नहीं होता है। ये सिर्फ मारना जानते हैं। दया, इनलोगों के अन्दर नहीं होती। पत्थर दिल होते हैं। राघव ठिठक गया वो लौटकर घर में आया और पलंग के नीचे छुप गया।  

  दरवाजा तोड़कर 20-25 की संख्या में अन्दर घुस गए। चारों तरफ राघव को ढूंढने लगे। राघव चुप-चाप सांस रोके दुबका हुआ था। कुछ देर बाद बंदूक धारी चले गए। राघव बाहर निकला, उसके घर का सारा समान अस्त-व्यस्त कर दिया था। टूटने वाला समान तोड़ दिया था। ... पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था। सरकार की तरफ से बाहर देखते ही किसी को गोली मारने का आदेश जारी हो गया था। ..... राघव के घर में शाम को खाना बनाने के लिए कुछ भी नहीं था। ..... कर्फ्यू में थोड़ी सी ढील नहीं दी गयी। उस रात राघव भूखा ही सो गया।  

 

ट्री .... ट्रींग .... ट्रींग फोन घरघरा रहा था, राघव ने कांपते हाथों से उठाया, “हैलो .... कौन ? “मै जावेद बोल रहा हूँ। ” “क .... क ... कौन जावेद ? कांपते हुए राघव पूछा “अरे! यार तुम मुझे भूल गए तुम्हारे कॉलेज का दोस्त “ओ, हां बोलो क्या हाल है ?” ठीक है। मैं तुम्हारे यहाँ आ रहा हूँ ..... तुम्हारे घर से कुछ ही दूरी पर दफ्तर के काम से आया हूँ, तो सोचा कि तुमसे मिल लूँ। मैं तुमको बहुत मिस करता हूँ। अगर ट्रेन राइट टाइम रही तो मैं पाँच-छह घंटे में आ जाऊंगा। जावेद अपनी बात एक सांस में कहकर फोन रख दिया।

  राघव कुछ भी बोल नहीं सका। ..... राघव अपने कॉलेज लाइफ में चला गया। वो जब बी.एस.सी कर रहा था, तो साथ में जावेद और जार्ज भी उसी के साथ प्रेसिडेंसी कॉलेज में बी.एस.सी कर रहे थे। कॉलेज में इन तीनो की इतनी मित्रता हो गई कि सबलोग तीनों को त्रिमूर्ति कहकर बुलाते थे। कॉलेज में तो साथ-साथ रहते ही क्लास रुम में भी एक ही बेंच पर बैठते। एक बार किसी कारणवश जावेद कॉलेज में लेट आया और उसके जगह पर कोई और लड़का बैठ गया था। जब जावेद आया तो लड़के को हटाने के लिए बोला, वो लड़का जिद पर आ गया। हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। ..... जावेद रोने लगा। उसके आँखों में आंसू बहने लगे। ..... जावेद पीछे जाकर बैठ गया, और जबतक छुट्टी नहीं हुई, तब तक वो रोता रहा। इसके बाद जावेद कभी लेट नहीं आया। कॉलेज के दिन के अनेको प्रसंग जब याद आने लगे। उसके आंसू बहने लगे। राघव अपने आपको भाग्यशाली समझता था, उसे इतने अच्छे दोस्त मिले।  

  वो अपने दोस्त की खातिरदारी करना चाहता था, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी थी कि वो बाजार जा ही नहीं सकता, ..... राघव को चिंता होने लगी, जावेद घर आएगा कैसे ? ..... फोन पर राघव बता ही नहीं सका कि यहाँ की स्थिति ठीक नहीं है। ..... राघव की चिंता दूनी हो गई। उसने अपनी नजर घड़ी पर टिकायी। जावेद का फोन आए हुए पुरे तीन घन्टे हो गए थे। ..... उसे आने में दो घंटे शेष थे। राघव अपनी जान पर खेलकर अपने घर से बाहर निकला, .... चारों तरफ पुलिस ही पुलिस नजर आ रही थी। पुलिस की नजरों से बढ़ते हुए राघव आंगे बढ़ रहा था। ..... तभी पीछे से राघव को किसी ने जोरदार थप्पड़ मारा, अचकचाते हुए राघव पीछे मुड़कर देखा, लम्बी-लम्बी मूंछ वाला मोटा, तोंद निकला एअक काला, कलूटा सिपाही खडा था। राघव डर गया, डर के मारे घिग्घी बन्ध गयी। उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। पैर हाथ और दिल बुरी तरह काँप रहे थे, .... राघव हिम्मत करके बोला “सर घर पर मेरी माँ बीमार है, हालत काफी सीरियस है, मुझसे माँ की हालत देखि नहीं गई, सो मै डॉक्टर के घर जा रहा हूँ। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए। ”

  वो काला सिपाही बाहर से भले ही काला था लेकिन भीतर से रहम दिल इंसान था, वो राघव का हाथ छोड़ते हुए बोला “बेटा मै मजबूर हूँ, नौकरी में हूँ, और मेरा बड़ा फर्ज है अपनी ड्यूटी निभाना, सो तुम्हें जाने नहीं दे सकता .... हां इतना कर सकता हूँ कि तुम्हें छोड़ सकता हूँ अपने घर जाने के लिए” राघव बोला “ठीक है अंकल” कोई पुलिस वाला तुम्हें देखने न पाए वो सिपाही राघव को समझाते हुए बोला। राघव जल्दी-जल्दी अपने घर की तरफ पैर बढाने लगा। वो घर के पास ज्योही आया ..... उसे फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी, वो दौड़ते हुए घर में प्रवेश किया और रिसीवर उठाया, “हैलो, मैं जावेद बोल रहा हूँ, कब से रिंग कर रहा हूँ, तुम उठा नहीं रहे हो, आखिर क्यों ? कहाँ गए थे ? राघव बोला “तुम यार इतने प्रश्न पूछ लिए, एक ही सांस में। मैं सिर्फ एक का उत्तर दूंगा और ..... एक प्रश्न पूछूँगा।

  “हां, हां पूछ लेकिन मेरा एक उत्तर तो दे। ” जावेद बोला था। राघव बोला “मैं घर में नहीं था, इसलिए फोन नहीं उठा पा रहा था ..... अब ये बताओ तुम हो कहाँ ?”

  “मैं तुम्हारे शहर से एक स्टेशन पहले हूँ, गाड़ी काफी देर से कड़ी है, ..... सोचा फोन कर लूँ, प्लेटफोर्म पर से ही फोन कर रहा हूँ। पता नहीं गाड़ी क्यों खड़ी है, वो भी लूप लाइन में। जावेद बोला। राघव को समझते देर नहीं लगी थी की आगे कर्फ्यू है इस वजह से गाड़ी आगे नहीं आ रही है या फिर असामाजिक तत्व पटरियां भी उखाड़ने से गुरेज नहीं करते ...... पटरियां उखड़ जाने की वजह से भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती। राघव जावेद से बोला, “इस शहर की स्थिति ठीक नहीं है, यहाँ कर्फ्यू लगा है, हो सकता है शाम को बाजार करने के लिए थोड़ी ढील दी जाए, ...... तुम ऐसा करो अगर गाड़ी खुले भी तो यहाँ आ जाने के बाद स्टेशन पर ही रहना, और यथा स्थिति के बारे में पता कर के ही आना।

  जावेद बोला, “ठीक है, मैं फोन रखता हूँ। “हां बिल ज्यादा आ जाएगा, फोन रखो” राघव बोला। जावेद ने फोन रख दिया। अब राघव को काफी सुकून मिला वो एक गिलास पानी पीकर पलंग पर लेट गया। और राहत की सांस लेने लगा।

 

  शाम हो गयी थी, सूर्य अपनी किरण समेत रहा था। राघव ने बगल के पड़ोसी से यथा स्थिति के बारे में जानने के लिए दरवाजा खोला, बाहर लोग आ जा रहे थे उसे समझते देर नहीं लगी कि कर्फ्यू में कुछ देर के लिए ढील दी गई है। वो बिना पड़ोसी से पूछे जल्दी से झोला लेकर सब्जी और घरेलू समान को खरीदने के लिए बाहर निकल गया। सामान की खरीददारी करके राघव जब घर लौट रहा था तो रास्ते में ही जावेद मिल गया। राघव ने दौड़कर जावेद को गले लगा लिया, उसके आँखों से ख़ुशी के आंसू छलछला आये। दोनों एक बार फिर लिपट गए।

  राघव बोला, “दोस्त! पुरे पांच वर्ष बाद मिले हो, तुम्हें देखने के लिए मै इतना उतावला हो गया था, कि कर्फ्यू में ही निकल पड़ा” वो तो मैं भाग्यशाली था जान बच गयी नहीं तो पता नहीं क्या होता ?” जावेद बोला, “जान है तो जहां है। ...... तुम्हें ऐसा रिस्क उठाने की क्या जरूरत थी। मज़बूरी थी, मैंने तुम्हें यहाँ के स्थिति के बारे में बताया नहीं था। चिंता हो रही थी की तुम्हें पुलिस पकड़ न ले, इसलिए निकलना पड़ा। ....... राघव की आवाज भरभराई हुई थी। गला रुंधा हुआ था।

जावेद बोला, “ चलो हम दोनों भाग्यशाली थे। हम दोनों की दोस्ती सच्ची थी, इसलिए हम दोनों सही सलामत हैं। ” वो दोनों एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर घर की तरफ बढ़ने लगे।

 

“यार तुमने अब तक शादी नहीं की ? राघव ने सब्जी काटते हुए जावेद से पूछा “ जावेद तपाक से बोला, “अगर शादी करता तो तुम्हें खबर नहीं करता” राघव बोला, “पता नहीं, ये तो तुम जानो, मुझे भूलने की खबर करते” ये नहीं हो सकता नामुमकिन है। ... मैं जीवन में कभी भी तुम्हें नहीं भूल सकता अल्लाह कसम ....। ” जावेद अपने सर पर हाथ रखते हुए बोला।  

  राघव बोला, “शादी जीवन में एक अहम् जरूरत के समान है। इसके बिना आदमी अधुरा रहता है। ... 

  राघव की बात को बीच में से काटकर बोला, “राघव! अब तक तुम क्यों कुंआरे हो, ... शादी कर लेनी चाहिए, सब्जी तुम्हें खुद काटनी पड़ रही है। ” राघव, “समय के साथ सब हो जाएगा। जावेद ने बात को बदलते हुए कहा, कालेज के जमाने में हम तीनो त्रिमूर्ति कहलाते थे क्या तुम्हें पता है, जार्ज कहां है।  

  कहां है! आश्चर्य से राघव ने पूछा, जावेद बोला, “अब जार्ज का क्या पूछना है उसे सरकारी उंचा ओहदा मिल गया। गजिटेड ऑफिसर हो गया है। लाल बत्ती गाड़ी पर चल रहा है। आई० ए० एस० कम्प्लीट किया है। मैं उसके साथ हमेशा कान्टेक्ट में रहता हूँ। आजकल वह मेरठ में एस०डी०एम० है। .. तुम्हें उसका फोन नंबर पता है ?     राघव आश्चर्य करते हुआ पूछा, “तुम्हे उसका नम्बर पता है मुझे तो पता नहीं। ” जावेद बोला, मुझे भी कोई कान्टेक्ट नहीं हो रहा था, एक दिन मैं उसके घर चला गया, घर से ही उसका पता पूछा और उसके पास चला गया, आलिशान बिल्डिंग एयर कंडीशन रम, नौकर- गाड़ी सब सुविधा सर्कार की तरफ से मिली है। ... तुम्हारे बारे में भी पूछ रहा था। राघव बोला, तुम्हारे पास अभी कोई कान्टेक्ट नम्बर है, क्या ? उससे बात करने की इच्छा हो रही है। जावेद ने अपने पाकेट में हाथ डाला और अपनी डायरी निकाली, जार्ज का मोबाइल नंबर राघव को दिया। राघव ने मोबाइल से जार्ज को कान्टेक्ट किया। जार्ज ने फोन उठाया, राघव की आवाज सुनते ही राघव को पहचान गया।  

  तुम कहां हो .... हमारे साथ जावेद भी है। राघव बोला, उधर से से जार्ज बोला मैं कानपुर में हूँ, यहाँ कर्फ्यू लगा है। यही हमें ड्यूटी मिली है।  

  क्या तुम कानपुर में हो ? हम भी कानपुर में ही है। तुम आ जाओ मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। या कहो तो मैं आ जाऊं ... अपना पता बताओ मैं ही आ जाऊंगा।  

  तुम आ जाओगे! .... इतने बड़े आदमी हो एक गरीब के घर पर आने पर तुम्हारी इज्जत पर बट्टा नहीं लगेगा। राघव ने चुटकी ली। व्यंग मत बोलो, पता बताओ, ... आऊंगा तो तुम्हारे व्यंग का जवाब देता हूँ। जार्ज ने भी पलटवार किया।  

  राघव ने जार्ज को पता लिखवाया, फिर राघव बोला कितने बजे तक आ जाओगे, हम इन्तजार करेंगे.... और हां समय बताना तो उस समय पर आ जाना ... ये तो जानते हो इन्तजार की घडी काफी कठिन होती है। जार्ज ने कल सुबह आठ बजे राघव के घर आने के लिए बोला, मोबाइल ऑफ कर राघव और जावेद ने खाना खाया और सो गए।

 

आ रही अम्बेस्डर कार में काला शीशा लगा हुआ था। चमचमाती कार के ऊपर लाल बत्ती लगी हुई थी, सायरन की आवाज आ रही थी। राघव और जावेद सुबह छत पर टहल रहे थे। ..... तभी अम्बेस्डर पर राघव की नजर पड़ी। राघव बोला यार जावेद जीवन किसी का कितना रंगीन हो जाता है उस अम्बेस्डर कार में बैठे हुए शख्स को अपने आप पर कितना गर्व हो रहा होगा। कितना खुशनसीब होगा वो। मेरा मानना है कि मेहनत के साथ-साथ भाग्य का साथ होना भी जरूरी है, तभी सफलता मिलती है। जावेद ने भी राघव की बात से सहमत होकर सर हिलाया तभी अम्बेस्डर आकर राघव के द्वार पर रुकी। राघव को समझते देर नहीं लगी। जार्ज बोला था, इसी समय आने के लिए बोला था उसने, वो और जावेद जल्दी-जल्दी नीचे उतरे और दरवाजा खोला, दरवाजा खोलते ही जार्ज निकला उसके साथ एक छोटा बच्चा और एक औरत बाहर निकली। जार्ज राघव को पहचान गया, जार्ज ने दौड़कर राघव को गले लगाया। जावेद बोला, जार्ज! राघव के मिलने के बाद मुझे भूल गए।  

  जार्ज बोला, अरे जावेद! ऐसे क्यों बोल रहे हो ? क्यों न बोलूं, मेरी ओर मुखातिब भी नहीं हुए हो मेरे सब्र का बाँध टूटता जा रहा है। जावेद बनावटी गुस्से में बोला।  

  जार्ज ने जावेद को गले लगा लिया, बोला “ये संभव ही नहीं है, मैं तुम दोनों को भूल जाऊं जब तक कंठ में प्राण है। मैं तुम्हें या राघव को कभी भी नहीं भूल सकता। रियली” 

  राघव जार्ज से कुछ पूछता, उसके पहले ही जार्ज बोला, इनसे मिलो ये मेरी पत्नी हैं मोना कौर।  

  राघव ने आश्चर्य से पूछा, जार्ज शादी कर ली, और हम दोनों को खबर तक नहीं की .... तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले। जार्ज बोला यार शादी कहाँ की ? शादी करता तो मैं तुम्हें जरुर बुलाता लेकिन शादी नही समझौता किया है हम दोनों ने। मैं कुछ समझा नहीं! राघव ने आश्चर्य से पूछा। जार्ज राघव को समझाते हुए बोला, “दरअसल बात यह है कि मैं जब पहली बार कलेक्टर बनकर कानपुर आया तो, वाही पर ये एस०पी० के पद पर पोस्टेड थी। हम दोनों पहले मिले .... फिर विचार मिला .... व्यवहार मिला। आत्मा मिली फिर दिल मिल गए। और हम दोनों ने एक साथ रहने का फैसला कर लिया। ये सिख धर्म को मानती हैं मैं ईसाई धर्म को मानता हूँ। पहले गुरुद्वारे में जाकर आशीर्वाद लिया फिर चर्च में जाकर एक दूसरे के हो गए।

  जावेद बोला ये बच्चा भी आपका है ? हां मेरा बच्चा है, .... इसका नाम जेम्स सिंह है। जार्ज बच्चे को सामने लाते हुए बोला। राघव अचंभित होकर सबको देख रहा था। क्या सोच रहे हो राघव ? जार्ज बोला, मै सोच रहा हूँ, यह अनेकता में एकता के बीच सिर्फ प्रेम ही प्रेम है। .... ऐसा मैंने कही भी नहीं देखा। राघव बोला। जार्ज बोला यूँ ही बाहर खड़े रखोगे या मुझे अपनी भाभी और भतीजे को अपने घर भी ले चलोगे ? अ .... हां ..... क्यों नहीं, राघव अपनी गलती पर अफ़सोस जताते हुए बोला। जार्ज सपरिवार, जावेद और राघव के घर में आए। जार्ज घर को चारों तरफ देख रहा था, राघव को देखकर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।  

  राघव बोला दोस्त सिंगल हूँ, ..... अभी तक ..... मुझे समय नहीं मिल पाता है, सारा सामान अस्त-व्यस्त इसी वजह से पड़ा है। जार्ज बोला कोई बात नहीं तुम्हारी भाभी इंटीरियर डेकोरेटर हैं। इंटीरियर डेकोरेटर के तहत ये तुम्हारे घर को सजा देगी। ..... देखते रह जाओगे।

  जावेद ने चुटकी ली, राघव का बिखरा सामान बहुत भाग्यशाली है, जो भाभी जी के कोमल हाथ उनपर पड़ेंगे। ..... काश इन बिखरे सामानों में मैं भी एक होता। राघव बोला, जार्ज भाभी से इतनी मेहनत कराने की जरूरत नहीं है। हम एक दिन छुट्टी लेकर सब ठीक कर देंगे। अभी तो कर्फ्यू है। समय ही समय है। मैं खुद सारा समान कल सहेज दूंगा।

  जार्ज बोला तुम मुझे अपना नहीं मानते हो अगर अपना मानते तो फिर काम कराने में गुरेज क्यों करते ? राघव सफाई देते हुए बोला, “नहीं जार्ज तुम मेरी बातो का गलत अर्थ लगा रहे हो। ..... भाभी मेरी मेहमान है, .... पहली बार आयी है। ..... तुम मेरे मेहमान हो, .... क्या ये अच्छा है, कि तुम काम करो, भाभी जी से काम कराऊं। जहां अपनत्व होता है, वहां सबकुछ अच्छा लगता है। जार्ज ने अपना तर्क दिया। जार्ज के तर्क को खंडन करते हुए राघव बोला, “अपनत्व की उत्पत्ति का ढंग ये नहीं है। मुझे तुम से अपनत्व है, न कि भाभी से। जार्ज का चेहरा मायूस हो गया था।

  राघव के चेहरे को भांपते हुए बोला, तुम्हें जैसी ख़ुशी मिले करो और भाभी जी से भी कराओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बातचीत का सिलसिला काफी देर तक चला। .... रात हो गयी राघव ने सोने का इन्तजाम सबके लिए कर दिया था।

 

सुबह राघव की आंख खुली, ..... उसके घर की सारी व्यवस्थाएं चेंज हो गयी थी। सारे अस्त व्यस्त सामान सही जगह पर सिस्टमेटिक ढंग से रखे गए थे। राघव आश्चर्य से देख रहा था, .... आदमी के जीवन में शादी का बहुत ही महत्व होता है। .... सब कुछ होते हुए भी घर बेसुरा लग रहा था। भाभी के घर आ जाने से कितना अच्छा लग रहा था। ये तो राघव आज महसूस कर रहा था। शादी के बाद जीवन में बहुत बदलाव आ जाते हैं। ..... राघव को आज पता चला कि शादी जीवन की सबसे बड़ी जरुरत है। जार्ज और जावेद राघव के पास आ गए, .... जार्ज बोला राघव क्या देख रहे हो ? राघव बोला भाभी की कला को निहार रहा हूँ। सचमुच भाभी सर्वगुण संपन्न हैं। साक्षात लक्ष्मी है। एक बात बताऊँ, भाभी ने मुझे बता दिया कि शादी जीवन की मुख्य जरूरतों में एक है।

  अच्छा हुआ तुम खुद-ब-खुद जान गए अब जल्द अपने सपनों की रानी को हकीकत में रानी बनाओ, शुभ काम में देर नहीं करनी चाहिए। लेकिन मुझे और जावेद को भूलना मत। जार्ज चुटकी लेते हुए बोला। राघव भी अपने चेहरे पर हलकी मुस्कान लिए हुए बोला, मैं सिर्फ भाभी को बुलाऊंगा। तब तक जार्ज की पत्नी भी आ गई आंख मलते हुए। राघव भाभी से बोला, “भाभी देखिये न आप नहीं थी तो ये दोनों मिलकर हमें बोर कर रहे थे। आप हमारी तरफ से इन दोनों को कुछ बोलिए न” भाभी बोली क्यों तुम दोनों राघव को परेशान कर रहे हो ? जार्ज बोला परेशान कहाँ कर रहा हूँ। जो बात है वो कह रहा हूँ। तुम सब बक-झक ही करते रहोगे या अपना नित्य क्रिया भी करोगे। ..... भाभी बोली, सब के सब नित्य क्रिया में जुट गए।

   

सुबह खाना एक साथ बैठकर तीनों खा रहे थे। भाभी सबको खिला रही थी। .... राघव खाने की तारीफ़ करते हुए बोला, भाभी के हाथों में खासियत है इतना लजीज भोजन पहली बार खा रहा हूँ। जावेद बोला भाभी जी को नींद भी आ रही होगी। देर रात तक जागकर घर के अस्त-व्यस्त सामानों को सजाया है।

  भाभी बोली ऐसी कोई बात नहीं है, मैं बचपन से देर रात तक जागकर पढ़ती रही हूँ। आज इसी का नतीजा है कि मैं एसीपी हूँ। और कलेक्टर साहब की बीवी हूँ। खाते समय कम बोला जाता है, पहले तुम सब खा लो इसके बाद ढेर सारी बातें करेंगे। जार्ज बोला तुम सब मिलकर बातें करना मैं तो ड्यूटी पे चला जाऊंगा। बस नौ बजने की देर है। राघव ने आश्चर्य से पूछा, भाभी आप ड्यूटी में नहीं हैं क्या ? नहीं जेम्स जब होने को था, तभी से लम्बी छुट्टी ली हुई है। अभी एक महीना छुट्टी का बचा है। भाभी राघव के प्रश्नों का जवाब देते हुए बोली।

  राघव ने घबराते हुए कहा, मैं बात-बात में इतना मशगुल हो गया की जेम्स के लिए दूध लाना ही भूल गया। नहीं जेम्स बाहरी दूध नहीं पीता डिब्बे का दूध आल रेडी मेरे पास है। उसी से काम चल जाता है। बाहर के दूध पर विश्वास नहीं होता है। जार्ज ने खाना खाकर हाथ-मुंह धो लिया था, वो जल्दी-जल्दी तैयार हो रहा था।

  .... तभी बाहर बहुत तेज आवाज सुनाई देने लगी। मारो .... काटो ..... छोड़ना मत ...। राघव डर गया। दौड़कर उसने अपना दरवाजा बन्द किया और खिड़की से बाहर झाँकने लगा। .... कुछ लोग हाथों में तलवार लिए दौड़ रहे थे, .... कुछ अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे। ..... राघव के पास जार्ज भी पहुँच गया था। बाहर की स्थिति देख जार्ज पूरी तरह घबरा गया। उस दृश्य को देख जार्ज विचलित हो गया। जार्ज बिना कुछ सोचे-समझे दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया। .... राघव जब तक देखता, जार्ज बाहर जा चूका था। राघव ने खिड़की से बाहर जार्ज को देखा तो वो घबरा कर बाहर निकला, और दौड़ कर जार्ज के पास गया। जार्ज का हाथ खींचते हुए वो घर ले आया लेकिन जार्ज हाथ छुड़ा कर भागने लगा और बोला “ड्यूटी इज ड्यूटी” मै यहाँ लोगों को शांत करने के लिए भेजा गया हूँ। ..... मैं चुपचाप घर में नहीं बैठ सकता। तुम अपना और अपनी भाभी और मेरे बच्चे और जावेद का ख्याल रखना तुम्हें मेरी सच्ची दोस्ती की कशम।

  राघव ठिठक गया। उसने अपनी सच्ची दोस्ती की कसम की लाज रखने के लिए घर में आकर दरवाजा बन्द कर दिया। अनेकों प्रश्न उसके जेहन में आ जा रहे थे वो भाभी के सामने कौन सा मुंह लेकर जाएगा। राघव अपना सा मुंह लेकर भाभी के पास गया और सारी बात बता दी। मोना कौर भी एस०पी० थी दिल की मजबूत, वो भावुक होने के बजाय उल्टे राघव को ही समझाने लगी। राघव तुम बहुत ही कमजोर दिल के हो, मर्द बनो। तुम्हारे कहने का मतलब है कि डर कर अपनी ड्यूटी भूल जायें, तो ये हमसे और हमारे पति से बिल्कुल नहीं होगा। हम दोनों का उसूल है। जान से भी प्यारी ड्यूटी है। जरा सोचो अगर ड्यूटी से भागने की मानसिकता अगर सब अफसरों को हो जाय तो क्या इस देश में अमन आएगा, शान्ति आएगी। हम दोनों की ऐसी फितरत नहीं है। ...... और मैं गैर जिम्मेदार अफसर से नफरत ही नहीं करती बल्कि देखना भी पसंद नहीं करती। राघव को अपनी भाभी पर गर्व हो रहा था। वो अपने आप पर काफी शर्मिन्दा हो रहा था, लानत है, मुझ जैसे जवान आदमी पर, .... अपनी मर्दानगी पर। ..... भाभी अपनी बात कहकर बाथरूम में घुस गयी थी। राघव को अब भी डर लग रहा था। उसे अनजाना डर सताने लगा। कहीं कुछ हो न जाए, जार्ज को कुछ हो गया तो, राघव ने जावेद से अपनी व्यथा बताई। जावेद ने राघव को समझाया और बोला, घबराने से कुछ नहीं होगा हमें ही कुछ करना होगा, तुम बस हमारा साथ देना। जावेद की बात सुन राघव पूछा “आखिर तुम करोगे क्या ?”

  जावेद बोला कुछ नहीं घबराओ मत, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा जिससे कुछ अनहोनी हो ..... तुम घबराओ मत बिल्कुल बेफिक्र रहो। राघव की घबराहट कम नहीं हो रही थी, वो मन ही मन ईश्वर को याद करने लगा। कही जार्ज के साथ ..... जावेद गमले में लगे गुलाब के फुलों को तोड़ लाया दो फुल राघव को दिए और दो फुल अपने पास रख लिए। राघव ने पूछा ये क्या कर रहे हो ? मुझे समझ में नहीं आ रहा है। कुछ देर इन्तजार करो सब समझ में आ जाएगा। यह कहते हुए जावेद ने राघव के सर पर गेरुए रंग का पगड़ी बांधी और बोला। तुम अपने आपको ऐसे ढालो जिससे तुम हिन्दू लगो। ..... तुम्हारी वेश-भूषा देखकर सहज ही अनुमान लगा ले कि तुम हिन्दू धर्म के अनुयायी हो, सनातनी हो। पंडित की तरह माथे पर टीका भी लगा लो। .... और मैं माथे पर आधी टोपी लगा लूँगा। ताकि देखते ही लोग मुझे समझ जाएं कि मैं मुसलमान हूँ। ..... फिर हम दोनों, दोनों हाथ में गुलाब लेकर बाहर निकलेंगे और एक दुसरे के गले मिलेंगे। भाई-भाई की तरह .....

  साम्प्रदायिक होने का सबसे अच्छा तरीका अहिंसा और नरमपंथ है न कि मार-काट, खून-खराबा, यह सब कमजोर मानसिकता वाले लोग करते हैं, बाद में परिपक्व और बुद्धिजीवी लोग शामिल हो जाते है। साम्प्रदायिक दंगे से शिवाय हानि के कुछ भी नहीं मिला है। इतिहास गवाह है।

  राघव को ये बात अच्छी लगी। वो बोला जावेद इस विचार को अगर सफलता मिल जाए, तो तुम सबसे महान हो जाओगे, अपनी नजर में, ..... समाज की नजर में, और देश की नजर में। जावेद बोला तो फिर देर किस बात की, ..... अपना काम चालू करें। राघव ने फुल लेकर टेबल पर रखा और योजना के मुताबिक़ कपडे पहनने लगा, टीका माथे पर लगाने लगा। जब दोनों तैयार हो गए तो एक साथ अपने दोनों हाथों में गुलाब लेकर बाहर निकले। .... और भाभी की सुरक्षा के लिए बाहर से दरवाजा बन्द कर दिया।  

 

कुछ दूर दोनों चले ही थे की तभी एक सनसनाती हुई गोली आयी और राघव के सीने में लग गई। .... जावेद घबरा गया। अब क्या करे। जावेद ने हिम्मत करके अपने कंधे पर राघव को लादा और चल पड़ा। राघव का खून तेजी से बह रहा था। अस्पताल पहुँचने में भी काफी परेशानी हो रही थी। जगह-जगह पुलिस पहरा दे रही थी। फिर भी स्थिति काबू में नहीं थी। .... सरकार ने दूसरे क्षेत्रों से सेना की टुकड़ियां मंगाई थी। ..... लेकिन उस समय की स्थिति को देखकर तो लग रहा था कि स्थिति में कोई सुधार नहीं है। भीड़ एक दूसरे को मारने के लिए बेकाबू थी। छुपते-छुपाते जावेद अंततः अस्पताल पहुँच ही गया। अस्पताल में ताला लटका हुआ था। जावेद का जी सन्न से हो गया। उसने अपनी निगाह राघव पर टिकायी, राघव बेहोश था। रक्त अब भी रिस रहा था। राघव को लेकर जावेद डाक्टर के आवास की ओर बढ़ा डाक्टर का आवास अस्पताल से सटा हुआ था। जावेद ने आवास के पास राघव को लिटाकर चारों तरफ से निरक्षण किया दरवाजा, खिड़कियाँ सब बन्द थे। जावेद को आनन-फानन में कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ? जावेद डॉक्टर के दरवाजे को जोर-जोर से पीटने लगा। काफी देर बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो जावेद का गुस्सा सातवें आसमान पर हो गया, उसने जोर से दरवाजे को जोर से धक्का दिया, दरवाजा खुल गया। .... जावेद ने राघव को उठाया और घर में घुस गया। डॉक्टर के पास जावेद ने राघव को रख दिया। राघव की हालत देखकर डॉक्टर बोला, “मै ड्यूटी में नहीं हूँ”। ..... वैसे इस पेशेन्ट को बचाना मुश्किल है, मैं हाथ नहीं लगा सकता।

  जावेद डॉक्टर की बातें सुनकर पूरी तरह आवेश में आ गया। जावेद ने आव देखा न ताव उसने तुरंत डॉक्टर का गिरेबान पकड़ लिया। और बोला डॉक्टर का धर्म ड्यूटी में बंधे रहना नहीं होता बल्कि पेशेंट को देखते ही उसका इलाज शुरू कर देना होता है। लंका से जब हनुमान सुशैन वैद्य को लाये तो लक्ष्मण का इलाज करने के लिए तो सुशैन ने ये नहीं कहा की यह लंका राज्य का दुश्मन है, मैं इसका इलाज नहीं करूंगा। बल्कि उन्होंने लक्ष्मण को देखते ही तुरंत हनुमान से जड़ी बूटी मंगाकर इलाज शुरू कर दिया। यही डॉक्टर धर्म है। यह धर्म सबसे उंचा है। डॉक्टर जात-पात भेद-भाव नहीं देखता वो सिर्फ पेशेंट को देखता है।

  डॉक्टर ने जावेद की आँखों में झांका और बोला “तुम अपना गुस्सा शांत करो मै राघव का इलाज शुरू करता हूँ”। डॉक्टर ने पूरी तन्मयता से राघव का इलाज शुरू किया। राघव को खून की जरूरत थी। जावेद ने खून देना शुरू किया। द्दोक्टोर बोला अब तुम खून नहीं दे सकते।  

  जावेद बोला नहीं मै अभी भी खून दूंगा जीतनी राघव की जरूरत है उतना। डॉक्टर बोला “मेरा भी धर्म है एक पेशेंट को बचाने के लिए दूसरे की जान को खतरे में नहीं डाल सकता। डॉक्टर बोल ही रहा था कि तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आई डॉक्टर डरते हुए पूछा कौन ? मैं आलोक ranjan बिहार राज्य के कैमूर जिले के रामगढ़ गाँव का निवासी हूँ। मेरे पिता का नाम श्री पन्ना लाल है, और माँ प्रभा देवी जी, जो की मध्य विद्यालय में शिक्षिका हैं। जावेद बोला डॉक्टर साहब दरवाजा खोल दीजिये, ये राघव का दोस्त है। दरवाजा खुला, आलोक आकर बोला राघव कहाँ है ? आलोक राघव को देख रोने लगा। जावेद बोला, यह रोने का समय नहीं है। खून की जरूरत है, आलोक बिना सोचे-समझे अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। डॉक्टर कुछ देर खून लेने के बाद आलोक का खून देने से मना कर दिया। संयोग और भाग्य राघव के साथ था। जार्ज अपनी पत्नी के साथ आ पहुंचा, और बोला “मै घर गया तो तुम्हारी भाभी ने बताया कि तुम दोनों बाहर निकले हो, ढूंढते -ढूंढते यहाँ आया हूँ।" जावेद ने सारी व्यथा बताई। जार्ज और उसकी पत्नी ने राघव को खून दिया। डॉक्टर बोला अब खून नहीं चाहिए। राघव भाग्यशाली था। उसके खून का ग्रुप ओ था। राघव बच गया। गोली निकल गई थी।

 

  अगले दिन पेपर में निकला था मोटे-मोटे हेडिंग में। राघव के शरीर में सारे धर्म के खून फिर राघव किस धर्म का! राघव को देखने के लिए भीड़ लगने लगी। जो भी आया हाथों में गुलदस्ता लेकर आया। जावेद और जार्ज की आँखें ख़ुशी से आंसू बहा रही थी। जावेद भीड़ में भाषण देने लगा। और अंत में बोला भारत माँ के चार सिपाही हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई। इतना सुनते ही सारी भीड़ एक दूसरे से गले मिलने लगी। धर्म से ऊपर उठकर।


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