भारत का पहला मार्शल आर्ट
भारत का पहला मार्शल आर्ट


पुराणों के अनुसार, महर्षि अगस्त्य और भगवान परशुराम ने धरती को सबसे पहले मार्शल आर्ट प्रदान किया। महर्षि अगस्त्य ने दक्षिणी कलारिप्पयतु (बिना शस्त्र के लड़ना) और परशुराम ने शस्त्र युक्त कलारिप्पयतु का विकास किया था। भगवान श्रीकृष्ण दोनों ही तरह के विद्या में पारंगत थे। उन्होंने इस विद्या को और अच्छे से विकसित किया और इसको एक नया आयाम दिया। इसे कलारिप्पयतु, कलारीपयट्टू या कालारिपयट्टू कहा जाता है।
श्रीकृष्ण ने इस विद्या के माध्यम से ही उन्होंने चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया था तब उनकी उम्र 16 वर्ष की थी। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास उसी का एक नृत्य रूप है। कालारिपयट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है। हालांकि इसके बाद इस विद्या को अगस्त्य मुनि ने प्रचारित किया था।
इस विद्या के कारण ही 'नारायणी सेना' भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी। श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू की नींव रखी, जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई। बोधिधर्मन के कारण ही यह विद्या चीन, जापान आदि बौद्ध राष्ट्रों में खूब फली-फूली। आज भी यह विद्या केरल और कर्नाटक में प्रचलित है।
श्रीकृष्ण ने इस विद्या को अपनी 'नारायणी सेना' को सिखा रखा था। डांडिया रास इसी का एक रूप है। मार्शल आर्ट के कारण उस काल में 'नारायणी सेना' को भारत की सबसे भयंकर प्रहारक माना जाता था।