भाग 7 टैरोट कार्ड
भाग 7 टैरोट कार्ड
निशा ने जाने की तैयारी की ।उसने अपना बैग पैक किया। अपना पासपोर्ट ,₹100000 रोख, कुछ कपड़े बैग में भरने के बाद उसके पापा और वेदिका उसे एयरपोर्ट छोड़ने आए। उसने अपने सोशल मीडिया पर भी स्टोरी डाल रखती कि वह न्यूयॉर्क जा रही है ।किसी के लिए भी निशा का इस तरह से अचानक न्यूयॉर्क चले जाना और वह भी रातो रात ,यकीन कर पाना मुश्किल था ।सुहाना तो निशा से मिलने के लिए उसके घर पहुंच गई थी भी , लेकिन निशा तब तक जा चुकी थी।
कूछ ही घंटो का सफर करने के बाद निशा न्यूयॉर्क पहुंच गई। एयरपोर्ट की ही डॉक्टर अंजलि उसका स्वागत करने पहुंची। डॉ अंजलि ने निशा को देखते ही पहचान लिया था, क्योंकि वेदिका ने निशा की तस्वीर ऑनलाइन भेजी थी।
डॉ अंजलि:"कैसी हो निशा? सफर अच्छा रहा?"
निशा:" जी मैं ठीक हूं। वेदिका ने आपके बारे में मुझे बताया था।"
डॉ अंजलि :"तुम मुझे मासी कहोगी तो मुझे अच्छा लगेगा।"
डॉक्टर अंजलि में मुस्कुराकर निशा से बैग लेते हुए कहा। दोनों बातें करते हुए टैक्सी में बैठे। डॉ अंजलि अपने उन दिनों के बारे में बात कर रही थी, जब वह न्यूयॉर्क में पहली बार आई थी। टैक्सी डॉ अंजलि की घर के सामने रुकी। दोनों टैक्सी से नीचे उतरे और घर की तरफ बढ़ी।
डॉ अंजलि :"यह मेरा अपार्टमेंट है। यहां घर खरीदने बहुत मुश्किल होते है। मैं यहां अपने दोस्त के बेटे के साथ रहती हूं। मेरी दोस्त का देहांत तब हुआ था जब उसका बेटा रोनित पांच साल का था। तब से मैं रोनित को अकेले संभाल रही हूं। तुम बहुत अच्छे दिन पर आई हो। आज रोनित का इक्किस वा जन्मदिन है।"
दोनों घर के अंदर आए। डॉ अंजलि निशा को ऊपर के तरफ कमरा दिखाकर कहा।
डॉ अंजलि :"तुम यहां रह सकती हो ,मैंने यह कमरा आज ही तुम्हारे लिए साफ करवाया है। तुम फ्रेश हो जाओ, अगर तुम्हें किसी चीज की जरुरत हो तो मुझे बता देना।"
निशाने थैंक्स कहा और वह ऊपर कमरे में चली गई।
सीढ़ियां चढ़ते ही निशा ने देखा कि सामने वाला कमरा खुला है ।निशा को लगा यही उसका कमरा है । वह बहुत थकी हुई थी, इसलिए तेजी से वह कमरे में गई। उसके अंदर घुसते ही उसने अपने दायें तरफ देखा। वहां रोनित शर्ट बदल रहा था। दोनों एक दूसरे को देख कर चौंक गए।
निशा:"सोरी, मुझे लगा कि यह मेरा कमरा है।"
रोनित :"नहीं तुम्हारा कमरा बगल वाला है।"
निशा को बहुत शर्मनाक महसूस हुआ ।शर्मिंदा होकर वहां से चली गई।
निशाने अपनी मां को फोन लगाया।
निशा :"मॉम, मैं अभी न्यूयॉर्क में हूं। उस टैरो कार्ड वाली का एड्रेस भेज दीजिए।"
डॉ विद्या:" निशा तुम सच में न्यूयॉर्क में हो ? तुम्हें इतनी जल्दी फ्लाइट की टिकट और वीजा कैसे मिल गया।"
निशा :"मॉम मुझे ट्रीटमेंट वीजा मिला और वेदिका की बड़ी बहन की वजह से यह सब पॉसिबल को सका। वह भी साइकेट्रिस्ट है ना।"
डॉक्टर विद्या को थोड़ा बुरा लगा ।उन्होंने बेरुखी भरी आवाज में कहा।
डॉ विद्या:"अच्छा मतलब तुम्हें मेरे ट्रीटमेंट पर भी भरोसा नहीं रहा।"
निशा:" नहीं माॅम, ऐसी बात नहीं है। मैं तो यहां आना भी नहीं चाहती थी। पर मुझे आपकी आंटी से मिलना था और पता नहीं क्यों डॉक्टर अंजलि में वेदिका से मेरे ट्रीटमेंट की बात की।"
डॉ विद्या :" नहीं नहीं, तुमने सही किया, चलो अच्छा है तुमने अपने पापा को यह सब बताया और मुझे जानकर खुशी हुई कि वेदिका ने तुम्हारे लिए कुछ किया। मैं तुम्हें उनका एड्रेस भेजती हूं।"
डॉ विद्या ने फोन रखा। निशा का ध्यान फोन पर था कि उसकी मॉम ने उसे एड्रेस भेजा या नहीं कि तभी शालू अचानक से उसके सामने आ गई । निशा उसे देख जोर से हड़बड़ा कर चीख पड़ी।
निशा:"तुम अचानक इतने लंबे वक्त के लिए कहां गायब हो जाती हो?"
शालू कुछ बोलती तभी रोनित उसके कमरे में दरवाजे के पास आ गया।
रोनित:"क्या हुआ? तुम चीखीं क्यों? सब ठीक तो है ना?"
निशा :"हां सब ठीक है। दरअसल मेरा पैर फिसलने वाला था ।...इसलिए डर के मारे मुंह से चीख निकल गई । सॉरी ,तुम्हें परेशान किया।"
रोनित :"नहीं वह, मुझे तुम्हारी चिंता हुई इसलिए मैं यहां आया ।कुछ जरुरत हो तो जरूर कहना।"
रोनित वहां से जाने ही वाला था कि उसी वक्त निशा के फोन पर डॉक्टर विद्या ने एड्रेस भेज दिया था ।निशा ने रोनित को रोक कर कहा।
निशा:" रोनित रुको , सॉरी में तुम्हें परेशान कर रही हूं तो।... क्या तुम मेरी इस पते पर पहुंचने में मदद करोगे ? बहुत जरुरी है मेरा इनसे मिलना।"
रोनित :"हां जरुर ।..जरा दिखाओ।"
रोनित ने वह फोन लिया। उसने अपना नंबर निशा के फोन पर सेव करते हुए यह कहा।
रोनित:" सॉरी मैं नंबर एक्सचेंज कर रहा हूं ।दरअसल यह एड्रेस मेरे फोन पर भी होना जरूरी है ।आज शाम को मैं फ़्री हूं ,तुम्हें यहां ले जाऊंगा जरूर।"
रोनित ने फोन लौटाया और वहां से चला गया। शालू एक टक रोनित की तरह देखती रह गई।
शालू :"कितना चालाक लड़का है यह।.. तुम्हारा नंबर भी ले लिया और तुम्हें शाम को भी कहीं ले जा रहा है ।...कौन है यह ?तुम्हारा कजिन?"
निशा:"अंजलि मासी के दोस्त का बेटा है। उनके गुजरने के बाद अंजलि मासी संभाल रही है अपने बेटे की तरह। तुम क्यों पूछ रही हो?"
निशा बेड पर लेट गई। शालू भी उसके बगल मे बेेड पर लेट गई। दोनों छत की तरफ नजरें कीए हुई थी।
शालू :"तुम अब तक नहीं समझी? तुमने देखा नहीं रोनित को? वह तुममें इंटरेस्टेड है। मैंने देखा है उसकी नजरों में तुम्हारे लिए प्यार ...और मैं समझ गई मुझे अपनी अगली रात किसके साथ बितानी है।"
निशा ने घबराकर अपनी नजरें बड़ी कर ली। उसने शालू की तरफ देखा।
निशा:" पागल हो गई हो तुम ?वह अंजलि मासी के लिए बेटे से भी बढ़कर है और मैं उसके साथ कुछ करूंगी ?अंजलि मासी को पता चल गया तो मेरा इलाज और मुफ्त में रहना भी गया।"
शालू ने समझाते हुए कहा।
शालू:"अरे यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि तुम चाह रही हो। तुम जो भी सोच रही हो वह सब तो हो रहा है ना। यह भी हो जाएगा ।तुम्हारा इलाज भी हो जाएगा और कोई तुम्हें घर से बाहर भी नहीं निकालेगा । मुझे रोनित चाहिए ,उसमें तुम्हें कुछ करने के लिए थोड़ी कह रही हूं ।...करूंगी तो मैं ही।...उस तक पहुंचने का रास्ता तुम्हें ही निकालना पड़ेगा। अब अपनी अगली विश बताओ।.. रोनित पहले से तुम्हारे लिए पागल है ।उसे पटाना ज़रा भी मुश्किल नहीं होगा।"
निशा यह सोचने लग गई कि उसे अब क्या मांगना चाहिए। उसने थोड़ा सोच विचार किया।
निशा:" मुझे यहां किसी फ़िल्म में काम दिला दो।"
शालू ने उछल कर कहा :"बस इतनी सी बात? ठीक है,हो जाएगा।"
शाम का वक्त था। रोनित निशा को लेकर उस पते पर आया ।वह कोई पुरानी सी बिल्डिंग थी। रोनित और निशा दोनों कार से उतरे। उन दोनों के साथ शालू भी थी । तीनों को ही यहां आकर बहुत अजीब लग रहा था।
रोनित :"यहां तुम्हें किस से मिलना है ?तुम कहीं गलत पते पर तो नहीं आ गई?"
निशा भी पूरी तरह से सहमत नहीं थी ।उसन यहां वहां देखकर कहा "नहीं, मॉम ने तो यही एड्रेस भेजा था।"
तभी सामने से बूढ़ी औरत आगे आई। उसने निशा और रोनित की तरफ देखा। उसने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और पूरा गला टैटू से भरा हुआ था। नाक पर बहुत बड़ी बाली पहनीं हुई थी। सफेद बाल और गले में अजीब सी मालाएं पहने हुई थी ।लेकिन उसमें से एक माला बिल्कुल हुबहूं वैसी ही मोतियों की थी जो इस वक्त निशा ने अपने कलाई पर बांधी थी।
उस औरत नीशा के कलाई पर नजर घुमाकर मुस्कुराते हुए निशा से कहा"तुम विद्या और विशंभर की बेटी हो ना? मेरा नाम गोहरा है। विद्या ने बताया था मुझे ।.. तुम मुझे मिलने आ रही हो ।अब अंदर चलो।"
रोनित में निशा से विदा लिया ।यह कहकर कि जब उसका काम पूरा हो जाए तब वह रोनित को फोन कर ले। निशाने मना किया यह कहकर कि वह टैक्सी कर लेगी ,लेकिन रोनित तब तक जा चुका था।
गोहरा दुकान की तरफ बढ़ी ।लेकिन उस वक्त उसने शालू को देखा । शालू यह देख कर चौक गई कि निशा के अलावा कोई उसे देख भी सकता है।

