भाभी! मेरा कोई मायका ही नहीं!!
भाभी! मेरा कोई मायका ही नहीं!!
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
मानव व रिचा मुंबई शहर में एक ही ऑफिस में काम करते थे। कुछ ही दिनों में दोनों की दोस्ती हुई, दोस्ती गहराती गई और कब प्यार के खूबसूरत अहसास में बदल गई पता ही नहीं चला। दोनों बेकरारी मे जल्द एक दूसरे से शादी करना चाहते थे।
रिचा का कोई भी नहीं था क्योंकि वह अनाथ थी।
मानव के घर में मानव का एक बड़ा भाई सोहम उसकी भाभी आरती और एक बहन राखी थी। राखी शादीशुदा थी व अपने पिया के घर की हो चुकी थी। मानव के मां बाप का कई साल पहले देहांत हो गया था।
मानव के भैया भाभी ही शादी के सारे काम की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए, मानव रिचा की शादी बहुत ही धूमधाम से करते हैं। रिचा शादी होकर रंग बिरंगे सपने संजोये अपने इस नए घर में आ गई।
दोनों भाइयों और देवरानी जिठानी की खूब अच्छे से निभ रही थी। रिचा ने सभी का मन मोह लिया था। उनके परिवार में बहुत ही एका व सामंजस्य था। वैसे तो मानव बहुत ही समझदार था, पर यदि मानव कभी कुछ बचकानी बातें कर भी दे, जिससे सोहम को ठेस पहुंचे तो रिचा उसकी गलती को संभाल ले। उसकी समझदारी से घर में सभी के बीच प्यार की मोहक मिठास बनी हुई थी। सोहम बड़ा भाई होकर मानव को नादान समझकर उसकी गलतियों को अनदेखा कर देता था।
रिचा की शादी के कुछ महीनों बाद ही आरती गर्भवती हो गई। रिचा उसको समय पर खाना, फल, जूस इत्यादि इन सब चीजों का बहुत ध्यान रखती थी। घर के कामों के साथ-साथ वह आरती का एक छोटी बहन बन कर पूरा ध्यान देती थी। उसे काम भी नहीं करने देती थी। तय समय पर आरती ने एक सुंदर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया। सब लोग बहुत खुश थे। बच्चे का नाम आदि रखा गया।
आरती की मां बच्चे के लिए अपने हाथ से बनी हुई बिछाने, कपड़े, चादर तथा खिलौने, फल, मिठाई, शगुन का सब सामान व आरती के लिए भी गोंद के लड्डू, ड्राई फ्रूट्स और भी जो- जो चीजें एक नई मां के लिए जरूरी होती हैं वो सारे सामान बड़े शौक से लेकर आई थीं। जिससे आरती जल्दी स्वस्थ हो जाए। क्योंकि बच्चे को जन्म देने पर मां का शरीर बिल्कुल टूट जाता है। डिलीवरी के बाद जच्चा का विशेष ध्यान व पोषण का भी ध्यान रखने की जरूरत होती है। आरती की सास नहीं थी तो मां ही सारा सामान लायी और आरती का ध्यान रखा।
रिचा ने भी टाइम- टाइम से पौष्टिक खाना खिलाकर अपनी जिठानी आरती को 15-20 दिन में ही बिल्कुल स्वस्थ कर दिया। अब आरती पहले जैसी ह्रष्टपुष्ट हो गई।
रिचा, दिनभर मासूम आदि को लिए- लिए घूमे। उसको खिलाए ,नहलाये, रोये तो उसको चुप कराए उसका पूरा ख्याल रखती थी। समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला। आदि 1 साल का हो गया। रिचा से वह बहुत घुल मिल गया था।
1 दिन पता चला कि रिचा के भी पैर भारी हैं। वह मां बनने वाली है। घर में तो सब की खुशी का ठिकाना नहीं था। मानव तो बहुत ही खुश था। आरती बच्चे के कामों की वजह से रिचा का ज्यादा ध्यान नहीं रख पाती थी। रिचा अपना ध्यान खुद रखती व मानव भी उसका ध्यान रखता था।
धीरे-धीरे रिचा की डिलीवरी का समय करीब आता जा रहा था। आरती का बच्चा छोटा होने से ननद राखी डिलीवरी के 1 हफ्ते पहले रिचा की देखभाल करने के इरादे से आ गई। रिचा की डिलीवरी नॉर्मल हुई। फूल सी बेटी को जन्म दिया था रिचा ने। सब घर में बहुत हर्षित थे। अब सास तो थी नहीं रिचा की। रिचा मन मे सोच रही थी कि मेरा तो मायका ही नहीं है, बेटी तथा मेरे लिए बड़े शौक से कौन वो सारे उपहार लाएगा। यही बात सोच कर थोड़ा उदास थी। तभी आरती ने नजर रिचा पर पडी उसको देखकर आरती ने पूछा, "क्या हुआ तुम बेटी होने से दुखी हो क्या ?"
"अरे ,नहीं दीदी ऐसी बात नहीं। मुझे तो बेटी की ही चाह थी। एक बेटा है तो आदि" कहकर रिचा मुस्कुरा दी।
"तो फिर"
रिचा भारी मन से बोली "आरती भाभी आज इस खुशी के मौके पर भी एक बात खल रही है कि मेरा कोई मायका ही नहीं है।"
"यह तुमने कैसे कह दिया"
रिचा व आरती को यह आवाज घर के दरवाजे की तरफ से आती है। दोनो कौतूहल से उस तरफ देखती हैं व आरती की मम्मी को ढेर सारे उसी तरह के सामानों के साथ प्रवेश करते पाती हैं जैसा कि वह आरती के डिलीवरी के समय लेकर आई थी। वो उतना ही सब रिचा और बच्चे के लिए लेकर आई हैं। दोनो का ह्रदय आश्चर्य मिश्रित खुशी से झूम उठा।
रिचा तो यह सब देखकर अपने आंखों से छलकते आँसुओ को ना रोक पाई। "अरे,मम्मी आप"
" हां ....तो तू मुझे बस यूं ही मम्मी बोलती है।"
"नहीं... नहीं मम्मी "
"अरे, बेटा .......मेरे लिए जैसे आरती वैसे ही तुम" कहकर रिचा को अपने गले से लगा लिया और प्यार से झिडकते हुए बोला "खबरदार अब कहा कि मेरा मायका नहीं है। आरती के साथ साथ मेरा घर सदा के लिये तेरा भी मायका है व रहेगा।" आरती वहीं खड़े-खड़े अपनी मां और व अपनी 'बहन' समान रिचा के स्नेह को देख कर भीगी आँखों से मुस्कुरा रही थी।