Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Mukta Sahay

Abstract

4.5  

Mukta Sahay

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बेटी की ख़ुशी या झूठा मान ?

बेटी की ख़ुशी या झूठा मान ?

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मुस्कान जिसकी मुस्कान के लिए सारा घर अपनी जान न्योछावर करता था आज उस मुस्कान की मुस्कान के नृशंस शत्रु बने है सभी। फिर वह पिता हो या भाई या फिर माँ ही क्यों ना हो । दोष क्या है ? बस इतना की वह जिससे ब्याह करना चाहती है वह समजाति नहीं है। मुस्कान का परिवार बड़ा ही रसूखदार अमीर परिवार और कहाँ प्रभात का सामान्य सा नौकरी पेशा माध्यम वर्गीय परिवार।

मैंने कई बार भाभी , मुस्कान की माँ , से कहा कि जो आप लोगों ने मेरे साथ किया अब वही मुस्कान के साथ ना करो। मेरी हालत तो देख ही रहे हो आपलोग। इस पर भाभी ने कहा हेमा लल्ली क्या बात करती हो। कुछ कमी है तुम्हें , इतने अच्छे जमाई बाबू मिले हैं तुम्हें और इतना ऊँचा परिवार दिलवाया है , क्या कमी है। इस पर मैंने कहा हाँ बस मैं आपके प्यारे जमाई का इंतज़ार हर रात तीन बजे तक करती हूँ और फिर इनाम स्वरूप मिलती है लात , घूँसे , डंडे की बरसात क्योंकि आपका जमाई शराब के नशे में अपने आपे में नहीं रहता है। अपनी सारी ज़रूरतें वह बाज़ार से पूरी करके आते हैं इसलिए तो आजतक बेऔलाद हूँ ।भाभी मैं तो बोझ थी आप पर, लेकिन मुस्कान तो आपकी अपनी बेटी है। उसे तो उसका मनचाहा जीवनसाथी चुनने दो।भैया को समझाओ ना। प्रभात अच्छा कमाता है, समझदार और सुसंस्कृत है, फिर मुस्कान को कितना प्यार भी करता है, बड़े नाज़ से रखेगा उसे।

किंतु भाभी एक ही रट लगाई थी कि मुस्कान की शादी वहीं होगी जहाँ हम चाहते है। उस जात के बाहर के लड़के से तो कभी नहीं। ना रुतबे में हमसे मुक़ाबले में है ना ही जात - कुल का । अभी रो रही है मुस्कान , पर देखना बाद में ख़ुश रहेगी और ज़िंदगी में रम जाएगी। इस पर मैंने कहा भी, हाँ मेरी तरह घुट घुट कर जिएगी लेकिन कोई टस से मस ना हुआ। भाभी का कहना था कि मुस्कान चाहे तो मर जाए पर यहाँ उसकी नहीं मानी जाएगी।

अब मुस्कान को घर के कमरे में बंद कर दिया गया था क्योंकि वह आज रात भागने की कोशिश करी थी। उसे चौराहे वाली मंदिर के पास से पकड़ कर लाए थे भैया और उनके बेटे। दो घंटे ढूँढने के बाद मिली थी मुस्कान। बात तो यहाँ तक करी जा रही थी कि उस लड़के को उठा लाओ तो फिर उसे बचाने तो मुस्कान ज़रूर दौड़ी ही आएगी।

कमरे में बंद मुस्कान बस प्रभात-प्रभात की रट लगाए थी और ये लोग अपनी ज़िद पर थे। मुझे भी मुस्कान से मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। मैं चाह कर भी उसकी मदद नहीं कर पा रही थी।कमरे में बंद मुस्कान को दो दिन हो गए थे।भैया-भाभी उससे प्रभात को भूलने के लिए तरह तरह के सौदे कर रहे थे और यह उसे बार बार भड़का रहा था। इधर सुनने में आ रहा था की प्रभात भी भैया भाभी से बात करने के लिए प्रयास कर रहा था। घर में कोई भी प्रभात की से बात ही नहीं करना चाह रहा था।

अब मुस्कान का खाना-पानी बंद करके उसे तोड़ने की कोशिश की जा रही थी। मुस्कान भी ठहरी भैया की बेटी , बिल्कुल हठी। जैसे जैसे भैया की प्रताड़ना बढ़ती जा रही थी वैसे वैसे मुस्कान भी दृढ़ होती जा रही थी।परिस्थिति यहाँ इतनी बिगड़ गई कि मुस्कान ने आत्महत्या तक करने की कोशिश कर ली। मैं इतनी बेबस थी कि प्रार्थना के सिवा कुछ नहीं कर सकती थी। चौबीसों घंटे भगवान से प्रार्थना कर रही थी की भैया-भाभी, मुस्कान की बात मान जाए।

सुबह मुन्ना बाबू दौड़ता हुआ बैठक में दाख़िल हुआ और बताया, प्रभात अपने पिता और पुलिस के साथ आए हैं। जब तक ये सब अंदर आ गए थे। प्रभात के पिता वक़ील थे और उनके साथ थे माथुर साहब , यहाँ के जाने माने वरिष्ठ वक़ील।प्रभात के तरफ़ से दाँव खेलने की बारी अब शुरू हो गई थी। बहुत सारी धाराओं की बातें होने लगी और घर के छान-बिन की तरफ़ भी इशारा किया गया माथुर साहब और पुलिस की तरफ़ से।मुस्कान को भी बुलाने की बात करी गई ,बयान के लिए। काफ़ी ना नूकूर के बाद मुस्कान को वहाँ लाया गया। प्रभात ने जब मुस्कान को देखा तो उसके चेहरे पर गहरी पीड़ा साफ़ झलक गई थी, मुस्कान के हालत को देख कर। जब भाभी मुस्कान को नीचे ला रही थी तो कड़ी हिदायते दें रही थीं कि मुँह ना खोलने की।मुस्कान कहाँ मानने वाली थी। अपने ऊपर किए गए सारी प्रताड़ना को उजागर कर दिया उसने और शुरू हो गया मुस्कान की आज़ादी का आग़ाज़।काग़ज़ी करवाई जल्दी पूरी करवाई गई और मुस्कान को अपने घर की क़ैद से छुटकारा दिलाया गया साथ ही कोर्ट में मुस्कान -प्रभात के शादी की अर्ज़ी लगवाई गई।

प्रभात के पिता की वजह से सप्ताह भर में ही मुस्कान और प्रभात की शादी कोर्ट में हो गई। प्रभात की माँ ने बड़े ही धूम धाम से अपनी बहु का गृह प्रवेश कराया। मुस्कान अपने सास ससुर और पति प्रभात के साथ ख़ुशहाली से रहने लगी पर उसके पास मायके के नाम पर बस उसकी बुआ , यानी मैं थी ,बाक़ी के सारे रिश्ते उससे दूर हो गए थे , एक ख़ालीपन दे कर।

समाज धीरे-धीरे बदल रहा है किंतु अब भी बहुधा मान, मर्यादा, सम्मान के नाम पर बेटियों की ही क़ुर्बानी दी जाती है। उसके हालात बिगाड़ दिए जाते है और ज़िंदगी भर का दर्द - घुटन दे दिया जाता है। माता-पिता और घर के बड़ों के पसंद की शादी के नाम पर मेरे जैसी शादी कर दी जाती है जहाँ जीवनसाथी कभी भी साथी नही बनता है।कब बेटियों को अपनी इच्छा से जीवन जीने की छूट मिलेगी, कब बेटियों को भी अपने पसंद से जीवनसाथी चुनने का हक़ दिया जाएगा।


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