बेरोजगारी
बेरोजगारी
इंटरव्यू
भाई जरा जल्दी चलो ....
बहुत देर हो रही है ..इंटरव्यू के लिए ..
ऑटो में बैठते ही मैंने ड्राइवर से कहा..
कहाँ जाना है साहब आपको इंटरव्यू देने ? यह तो आपने बताया ही नहीं ..ऑटो ड्राइवर ने हँसते हुए कहा..
अरे यार सप्रू मार्ग ..वित्त एवं लेखा विभाग में ....
उत्तर देने के साथ ही मैंने एक नज़र ऑटो ड्राइवर पर डाली ..
एकदम से चौक उठा मैं ..अरे निखिल सर आप ?
आश्चर्य से भर उठा मैं ..निखिल सर मेरे काॅलेज के टाॅपर तो नहीं थे पर एक अच्छे विद्यार्थी थे..
उन्हें इस तरह ऑटो चलाते देख कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई .. वो मुझे पेशोपेश में पड़ा देख मुस्कुराए..और बोले कैसे हो मनोहर तुम ?
मैं ठीक हूँ सर ..आ.. आ आप यहाँ .. कैसे सर ? और यह ऑटो ? मैंने अटक अटक कर पूछा ..कुछ समझ नहीं पा रहा था मैं ..
हाँ मैं यहाँ ..मनोहर। .
आरक्षण की देन है ये...काॅलेज से एम0 बी0ए0 की डिग्री लेकर निकलने साथ ही जोश के साथ ख़्वाब भी ऊँचे थे..
लगता था एक अच्छी नौकरी मेरी राह देख रही है ..
प
र रोज ऑफिसों के चक्कर काटने और पचासों इंटरव्यू देने के बाद जाना की हम अनारक्षित लोगों के लिए नौकरी बनी ही नहीं है ..
तो घर छोड़ कर इस शहर में चला आया और ऑटो किराये पर लेकर यह काम करना शुरू कर दिया ..
कभी-कभार कोई इंटरव्यू भी दे देता हूँ, पर नौकरी मेरे हिस्से नहीं आती ....
रोज हँसते मुस्कुराहते युवाओं को ऑफिसों के अन्दर इंटरव्यू के लिए जाते ..और मुँह लटका कर बाहर आते हुए देखता हूँ ....
वो सामने पार्क में पड़े हुए टिन शेड को देख रहे हो न. ..शाम को मैं और मेरे जैसे कुछ और युवा झुग्गी- झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाते हैं.. कुछ धनिक वर्ग के बच्चों को ट्यूशन भी देता हूँ ..और अपना खर्च चलाता हूँ ।
घर में सब समझते हैं अच्छी नौकरी कर रहा हूँ ..पर उन्हें क्या मालूम कि आरक्षण का अजगर हमें किस तरह निगल रहा है ..
मैं सोचने लगा ..भाई कह तो सही रहा है..
अब तक मेरा ऑफ़िस भी आ गया ..मैंने ऑटो का किराया चुकाया ..और निखिल सर की शुभकामनाएं लेकर..
बढ़ गया मैं ऑफ़िस की ओर ..एक और बार रिजेक्ट होने के लिए।