मधुर स्मृति

मधुर स्मृति

1 min
470


वैसे तो सालों हो गये स्कूल-काॅलेज छोड़े हुए। फिर भी उन दिनों की स्मृतियाँ आज भी चेहरे पर मुस्कान ले आती है।


मुझे याद है मेरा टेस्ट लेने के बाद अध्यापिका के कहने मेरा दाखिला उम्र बढ़ाकर दूसरी कक्षा में करवाया था। उन दिनों जन्म प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती थी।


हमारी कक्षा बाग में लगती थी।लखनऊ में ज़नाना पार्क के नाम से मशहूर था वह बाग। यह अपने जमाने का दुनिया का इकलौता पार्क था जो सिर्फ महिलाओं के लिए बनाया गया था। सुबह कक्षाएँ लगती थी और उसके बाद बस महिलाओं के लिये ही पार्क खुलता था।


पेड़ों के नीचे टाटपट्टी बिछाकर हमारी कक्षाएं लगती थी।

स्लेट पर खड़िया से लिखते थे हम या नीली टिक्की से स्याही बनाकर सेंठे की कलम से लिखते थे।


पहले दिन से ही स्कूल के प्रति मैं बहुत उत्साहित थी। इंटरवल में झूले को धक्का देते समय झूला आकर सीधे मेरे आँख के पास आकर लगा और लहूलुहान होकर मैं वहीं दहाड़ें मारकर रोने लगी! तुरन्त द्विवेदी दीदी (अध्यापिका) मुझे डाक्टर के पास लेकर गयी और टाँके लगवाये।


आज भी वो घाव मेरी आँख के पास है और स्कूल और उन अध्यापिका जिन्हें हम द्विवेदी दीदी कहते थे की याद दिला जाता है।


Rate this content
Log in