वो बूढ़ा

वो बूढ़ा

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आज वो बूढ़ा मर गया। वो बूढ़ा... जो अक्सर दिखता था उस बड़ी सी हवेलीनुमा मकान के सामने बोरा बिछाकर तन पर चिथड़े लपेटे, सिर झुकाये... मननशील मुद्रा में बैठे हुए।


सर्दी, गर्मी, बरसात वो वहाँ से हिलता नहीं था। ज्यादा बारिश होने पर हवेली के छज्जे के नीचे खड़ा हो जाता और फिर वहीं आकर डेरा डाल देता। हवेली का नौकर कितनी बार उसको वहाँ से दुत्कार कर भगाता। आखिर हवेली की सुन्दरता उसकी वजह से फीकी पड़ रही थी। पर उस पर कोई असर नहीं पड़ता। किसी ने कुछ दे दिया तो खा लेता नहीं तो चुपचाप पड़ा रहता। अक्सर एक कुत्ता उसके पास बैठा दिखता था।  


कल रात बहुत अधिक ठंड थी... उस हाड़ कंपाती ठंड में कब वो बूढ़ा परलोक सिधार गया, कोई न जान पाया। सुबह कुत्ते को उसे चाट कर जगाते देख स्कूल जाते बच्चे जब उसके नजदीक गये तो उसे मरा पाया। फिर धीरे- धीरे पूरे मोहल्ले में ख़बर फैल गयी।


जो लोग उसे दुत्कारते रहते थे वो अफसोस जताने लगे। कुछ अति उत्साही नवयुवक आनन-फानन में चंदा जमा कर उसके अंतिम संस्कार की तैयारियां में जुट गये। उसे नहला-धुलाकर अर्थी पर सफ़ेद कपड़ा ओढ़ाकर फूल-मालाओं से सुसज्जित कर राम-नाम सत्य है के नारों के साथ शमशान घाट की और ले चले... पीछे-पीछे उसके सुख-दुख का साथी वो कुत्ता भी जा रहा था।


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