Reena Srivastava

Abstract

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Reena Srivastava

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"बेगम समरू की प्रेम कथा "

"बेगम समरू की प्रेम कथा "

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 बेगम समरू की कहानी जो कि वास्तविक रूप से सच्च है । लेकिन मैं उसे काल्पनिक रूप देकर लिख रही हूं, जिससे किसी भी जाति या समुदाय  को में री लेखनी से ठेस ना पहुंचे ।


इस कहानी को लिखने का में रा मकसद जो इतिहास के पन्नों में कैद है, उसे सबके सामने लाने की छोटी कोशिश है । 


मुझे उम्मीद है कि मैं जो लिखने जा रही हूं, आपलोग उसे पसंद करेंगे, और उस औरत को जानेंगे जो एक दिलेर महिला थी।  


जो तवायफ से प्रेमिका बनी, पत्नी बनी और फिर विधवा हुई तो एक सल्तनत की जागीरदार बन गई।


  यहां तक कि अपनी जीवन के अंतिम दिनों में अपना मजहब बदलकर ईसाई भी बन गई। यही नहीं, उनकी बहादुरी के किस्से आज भी दोहराए जाते हैं। 48 साल कि उम्र में सल्तनत पर अपनी हुकूमत चलाने वाली बेगम समरु की दिलचस्प कहानी थी ।


  बेगम समरू की जिंदगी कई पड़ाव और कई पहलुओं से गुजरी।   

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   "ये कहानी शुरू होती है दिल्ली के चावड़ी बाजार से।    जो सोलह-सत्रह के दशक में तवायफों का मोहल्ला हुआ करता था। 1767 में किराए के सैनिक अक्सर मनोरंजन के लिए उस बाजार में जाया करते थे।"


  " वो बाजार नचौनियो का बाजार था, जिसे आज कोठा के रूप में जाना जाता है, उस समय कोठे को नचौनिया बाजार कहां जाता था "।


  " दिल्ली के चावड़ी बाजार जो कि रेड लाइट एरिया में थी, वहां हर नाचने गाने वाली का अपना एक कोठा हुआ करता था....जहॉ लोग मनोरंजन के लिए जाया करते थे, चाहे वो आम इंसान हो या किराए पर आने वाले सैनिक.... हर कोई उस बाजार में अपना मन बहलाने के लिए जाया करता था।" 


 "और उसी एक कोठे की शान थी, बेगम समरू, जिसका नाम फरजाना था, महज 14 साल के उम्र में ही फरजाना की खुबसूरती लोगो को उसके कोठे पर आने के लिए मजबूर करती थी।" 


"बेगम समरू की कहानी जानने से पहले हमें सोम्ब्रे की कहानी को जानना होगा"। 


 "वॉल्टर रेनहार्ड सौम्ब्रे को बुचर ऑफ़ पटना यानी पटना का कसाई कहा जाता था। अंग्रेज़ों का कसाईयों की तरह कत्ल करने के लिए ये मशहूर था और यही वजह थी कि वो एक जंग लड़के के बाद दूसरी जगह चला जाता था क्योंकि खौफ खाए दुश्मनों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी इसलिए वो पटना छोड़कर दिल्ली चला गया, वहॉ के मुगल शासक साह आलम ने उसकी बहादुरी के किस्से सुन रखे थे....इसलिए  दिल्ली जाते ही साह आलम ने उसे अपने सैनिक में रख लिया, क्योकि उस समय मुगल शासक सैनिक बहुत कमजोर थी, और वो अच्छी तरह से जानता था कि सोम्ब्रे के रहने से, उसकी ताकत बढ़ जाएंगी....और ऐसा ही हुआ "।


जब से मुगल साह आलम के लिए वो लड़ने लगा, तो वो हर युद्ध जीत कर ही वो आता था।"


इसी दौरान लड़ाई के बाद दिल्ली में रुका हुआ था उसने अपने साथी सैनिको से सुन रखा था कि उस चावड़ी बाजार के एक कोठे में निहायत एक खूबसूरत बला है, जो सबके दिलो में राज करती है, सोम्ब्रे के साथी सैनिक उसे उस कोठे में जाने के लिए बोलते लेकिन वो हमें शा मना कर देता था।"


  " लेकिन एक दिन जो मुगल के तरफ से दुश्मनों के साथ लड़ाई में उसे जीत हासिल होती है, और इसी खुशी में मुगल शासक साह आलम द्वितीय ने वॉल्टर सोम्ब्रे को यूपी का जागीरदार बना दिया और तोहफे में दिल्ली में भी एक महल बनवाकर दिया था।  "। 


  "इस बात से खुश होकर उसने हमें शा हिन्दुस्तान में ही रहने का फैसला कर लिया, ,(क्युकि वो फ्रांस से आया था और उसके पास सैनिक की एक छोटी टुकड़ी थी जिसे लेकर वो हर राजा महाराजा के लिए अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध लड़ा करता थी )  इस खुशी में वो अपने साथियों के साथ रेड लाइट के उस कोठे में पहुंचता है, जहॉ फरजाना नाच -गाना करती थी।"


 " फिर कोठे में महफिल जमना शुरू हुआ.... एक साथ कई लड़कियॉ तबले की थाप पर थिरकना शुरू करती है, तभी उसकी नजर उस नाजुक सी कली पर पड़ती है, जो निहायत खूबसूरत थी, उसे देखकर सोम्ब्रे अपने साथियों से पूछता है, क्या ये वही कली है, जिसे लोग देखने के लिए इस कोठे पर"।


उनके साथी बोले, जी हुजूर इसी खूबसूरत कली को देखने आते है....महफ़िल खत्म होने के बाद भी सोम्ब्रे वही बैठा रहता है, ये देखकर उस कोठे को चलाने वाली खानम जान उसके पास आती है, और कहती है, क्या हुआ हुजूर जाने का मन नहीं हो रहा है क्या.... तो वो बोला....,, 


  "खानम जान कल से ये कोठा सिर्फ में रे लिए सजेगा, कोई दूसरा यहाँ आने ना पाए....तो वो बोली, लेकिन हुजूर हमारा दाना पानी कैसे चलेगा, अगर लोग नही आएंगे तो हम अपना पेट कैसे पालेंगे"।


  "तुम्हारे कोठे में एक दिन के अंदर कितना पैसा कमा लेती हो, मैं उतना देने के लिए तैयार हूं, और मुझे सिर्फ उस लड़की का नाच देखना है, जिसे लोग देखने इस कोठे में आते है।"


 "कल से वो सिर्फ में रे लिए नाचेगी....बोलकर ढेर सारा पैसा रखकर वो कोठे से चला जाता है।"


" सोम्ब्रे वॉल्टर बोलकर तो चला जाता है कि...., इस कोठे में महफिल सजेगी तो सिर्फ में रे लिए और किसी के लिए नही....ये बात खानम जान को पसंद नहीं आती है....लेकिन वो कुछ कर भी नहीं सकती थी....


   "जब खानम जान ने उसका नाम सुना तो, उसके नाम से वो डर गई...., उसने भी सोम्ब्रे वॉल्टर के बारे में सुन रखा था कि....वो बहुत बड़ा खूंखार जालिम है....किसी को ऊपर तलवार चलाने से पहले वो ये नहीं सोचता है की सामने गला किसका है....वो सीधे कसाई की तरह काट डालता है।" 


   इसलिए खानम जान उससे उस समय कुछ नहीं कहती है....उसे परेशान देखकर फरजाना पूछती है की क्या हुआ आपा .... आप इतनी परेशान क्यू लग रही है....तो वो बोली, परेशान होने वाली बात ही तो है ना, आज तक इस कोठे में आने वाले पैसे लुटा कर जाया करते थे, लेकिन कल से ये सब बंद।"


  " वो बोली बंद, लेकिन क्यू आपा, क्युकि आज एक ऐसा इन्सान, यहाँ आया था जो तुम्हारा कायल हो गया है, और कहकर गया है कि तू सिर्फ उसके लिए नाच गाना करेगी, और किसी के लिए नहीं....अब तू ही बता कैसे चलेगा हमारा।" 


   " फिर वो सोचने लगी....खानम जान उसे देखकर पूछी कि क्या सोच रही हो फरजाना....तो वो बोली....उसने मुझ में ऐसा क्या देखा जो इसतरह का फरमान सुनाकर चला गया, ...., आखिर ये इन्सान है कौन, क्या नाम है उनका।"


  "खानम जान बोली ...., हे कोई विदेशी सिपाही जो अपनी छोटी से टुकड़े लेकर कभी यहाँ तो कभी वहां शासक के लिए युद्ध लड़ता रहता है....सुना है बहुत खूंखार है, उसे लोग कसाई भी कहते है, इसी डर से मैंने उससे कुछ नही कहा वो जो बोल गया बस चुपचाप सुनती रही।"


  

    " शबनम जो की इस कोठे में रहने के साथ-साथ.... फरजाना की खास सहेली भी रहती है....वो कहती है....लगता है आपा फरजाना पर उसका दिल आ गया है....इसलिए वो नहीं चाहता है की उसकी महबूबा को कोई ओर देखे।"


   " फरजाना बोली मैं तो यहाँ आने वाले हर इंसान की महबूबा हूं....तो क्या सबको मैं अलग से नाच गाना करती रहूंगी....तभी खानम जान बोली....वो किसी ओर को कोठे में आने देगा तभी तो तुम किसी ओर के लिए नाच गाना करूंगी,"।


   "वो बोली, आपा....आप बेफिक्र रहे, और उस सिपाही से आपको डरने की जरूरत नहीं....जैसे लोग आते है, उन्हे आने दिया जाऐ....जब वो आएंगे तो मैं उन्हे देख लूंगी।"


  " तभी खानम जान बोली, लेकिन वो सिपाही बड़ी सख्ती से बोलकर गया है, ....,, की मैं इस कोठे में किसी ओर को ना आने दू वो बोली, आपा, आपने जो गुंडे पाल रखे है, आखिर वो किस दिन काम आएंगे....यहॉ आकर उसने कोई तमाशा किया तो आप उसके पीछे अपने आदमीयों को लगा देना।"


  " खानम जान बोली वो सब तो ठीक है लेकिन क्या? में रे आदमी उस सिपाही के सामने टीक पाएंगे,  फरजाना कहती है, ,आपा आप इतनी डर क्यू रही है, मैं हूं ना सब संभाल  लूंगी....बोलते हुए शबनम और फरजाना हंसने लगती है, उन्हे हंसते देख खानम जान बोली, तुम लोगों को हंसने के अलावा किसी ओर चीज की चिन्ता है....हर चीज मुझी को ही देखना होता है....हाय अल्ला अब मैं क्या करूँ तू ही कुछ रास्ता दिखा बोलते हुए महफ़िल खाना से अन्दर कमरे की ओर चली जाती" 


  "उनके जाने के बाद शबनम फरजाना से कहती है, अच्छा एक बात बता, अगर वो तुझे उठाकर ले गया तो, क्या तू उसके साथ जाएगी....फिर वो बोली, किसी की इतनी हिम्मत नहीं की फरजाना को कोई उठाकर ले जाए.... मैं उम्र से अभी 14साल की हूं, लेकिन बल की कमी नहीं है, कोई मुझसे मुकाबला करके तो देखे, जीत ना पाएगा....फिर, किसी की क्या मजाल की कोई मुझे उठाकर ले जाएगा, .... 


  " फिर शबनम बोली, चल ठीक है मैं मान लेती हूं....की तुझे कोई उठाकर नही ले जा सकता, अगर उसे तुझसे मोहब्बत हो गई तो....तो वो बोली, तो भी उसे इम्तिहान देना होगा....अगर उसने पास हुआ तब जाकर मैं कुछ सोचूंगा....लेकिन फिर भी मैं किसी के झांसे में नहीं आने वाली....शबनम बोली वो तो समय ही बताएगा।"


 फिर दोनों इसी मुद्दे पर घंटों बाते करती रहती है, .... 


    "उधर खानम जान इनदोनो को बाते करते सुन लेती है, और उसे इस बात का डर होने लगता है की, अगर सच्च में फरजाना इस कोठे से चली जाऐगी तो में रे कोठे का क्या होगा....ये दिन आऐ, इसके पहले ही मुझे कुछ करना होगा।"


  "फिर उसके मन में एक आदमी का ख्याल आता है, और उसे बुलाने के लिए अपने आदमियों को उसके पास भेजती है।"


   "फिर थोड़ी देर बाद जिसे वो बुलाने भेजती है, वो खानम जान से मिलने आता है, उसे देखकर कोठे के सारे लोग डर जाते है, और सब आपस में एक दूसरे से बात करने लगते है कि, अब इस कोठे में किसकी सामत आयी है, जो इसे यहॉ बूलाया गया है....सारे कोठे के लोग इस बात को सोच -सोचकर परेशान हो रहे थे ।     


   " फिर वो आदमी सीधे खानम जान के कमरे में जाता है....और, शबनम की नजर पड़ती है, और भागते हुए वो फरजाना के पास जाती है....और कहती है, फरजाना वो आपा ने, उसे बुलाया है, फिर फरजाना बोली, किसे बुलाया है, और तु इतना डर क्यू रही है....शबनम बोली....वो, वो, आपा से मिलने आदम खान आया है, ....,, 


  "आदम खान का नाम सुनते ही फरजाना उठकर खड़ी हो जाती है....और आदम खान....वो यहाँ क्यू आया है 


 तभी शबनम कहती है, फरजाना आपा ने आदम खान को क्यु बुलाया है....तो फरजाना कहती है, यही तो बात समझ में नही आ रही है....वो जब भी कोठे में आता है, तो कुछ ना कुछ बुरा ही होता है....फिर शबनम बोली लेकिन कोठे में तो कोई नई लड़की आयी नही है, तो फिर क्या बात हो सकती है।" 


   "फरजाना बोली अब तो आपा ही बता सकती है कि उसने आदम खान को क्यू बुलाया है, जबतक आदम खान चावड़ी बाजार में था तबतक चावड़ी बाजार में शांती बनी हुई थी, .... 


  " उधर आदम खान....खानम जान से पूछता है, आपा आपने बुलाने का कष्ट क्यू किया....कोई दिक्कत आन पड़ी क्या...., तो वो बोली....हाँ आदम दिक्कत ही आ पड़ी है, तभी तो तुझे बुलाया है, ...., तो वो बोला बात क्या है, .... 


  फिर वो बोली....आज हमारे कोठे में एक सिपाही आया था....और वो बोल गया है की कल से ये कोठा सिर्फ उसके लिए सजेगा....और इस कोठे में उसके अलावा कोई ओर नहीं आएगा, .... 


 " इस बात पर आदम खान गुस्सा होकर कहता है, तो क्या आप उसकी बात मान गई, ....,, हे कौन वो जो वो कुछ भी बोलकर गया और आप चुप रह गई...., 


  "वो बोली तो क्या करती, तुम जानते नहीं हो उसके बारे में ....बड़ा खूंखार सिपाही है....अपनी खुद की सेना बना रखी है....और अपनी सेना लेकर सारे शासकों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई करता है....और जीत कर आता है....और अभी वो हमारे सल्तनत साह आलम के लिए युद्ध करता है।" 


  " इसपर वो कहता है, .... तो क्या हुआ आप उससे डर गई आपको मुझ पे भरोसा नहीं है....वो बोली ऐसी बात नहीं....तुमपे भरोसा है....तभी तो बुलाया है....वो बोला तो करना क्या है....वो बोली....अभी कुछ नहीं करना है....बस उस पर नजर रखनी है, ...., 


   "मुझे आज की डर नहीं है....कही कल वो हमारे लिए मुसीबत ना बन जाए....,, कही में रे कोठे की शान को भगाकर ना ले जाए........ जब वो ऐसी हिमाकत करने की सोचे, तब तुम्हारे आदमी उसे रोक पाए....इसलिए मुझे तुम्हारी यहाँ जरूरत है, ...., 


  "वो बोला ठीक है आपा कल से में रे लोग यहाँ मौजूद रहेंगे....और मैं भी आता रहूंगा, ....अभी चलता हूं....कल आकर मिलता हूं उस सिपाही से....सलाम....कहकर चला जाता है।"


   "उसके जाने के बाद शबनम फरजाना से कहती है। फरजाना, आपा ने उस सिपाही की निगरानी करने के लिए आदम खान को बुलाया है, ....,, वो बोली निगरानी करने पर क्यू , आपा को इस बात का डर है की कहीं उनकी कोठे की शान उस सिपाही के साथ भाग ना जाए"।


 "आपा ऐसा क्यु सोच रही है, शबनम बोली, ये तो वही जाने....हमें क्या मालुम।"

लेकिन एक बात बोलु, आपा का इशारा तेरे तरफ ही था....इस बात पर फरजाना बोली....सबसे पहली बात की आज तक किसी ने भी इस कोठे से भागने की कोशिश नही की, तो मैं कैसे कर सकती हूं....जबकि बचपन से ही इसी कोठे में पली बढ़ी हूं....इस कोठे से बाहर की दुनिया कैसी होती है, मैं जानती तक नहीं,  


   " शबनम बोली तूने सही कहाँ, हमें तो पता ही नही की यहॉ से बाहर की दुनिया कैसी होती है, में रा जन्म तो इसी कोठे में हुआ, में री अम्मी कौन थी मैं जानती तक नही हूं, लेकिन कम से कम तुझे तो पता है ना की तेरी अम्मी ....अब्बा कौन थे....और कहॉ से आयी थी।" 


  " हॉ मैं उस दिन को कैसे भुल सकती हूं, .... जब में री अम्मी किस  हालत से मजबूर होकर मुझे लेकर इस कोठे में आयी थी।"


   "उस समय हमारी उम्र 6 साल की थी....जब हमारे अब्बा जान का इन्तकाल हो गया था....हमारी अम्मी के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया था....इसलिए वो मुझे लेकर कुटाना से दिल्ली चली आयी....पर उसे ये नही मालूम था कि दिल्ली आने के बाद, पेट पालने के लिए उसे इस बाजार में आना पड़ेगा....हालात ने उन्हे इस कोठे में लाकर खड़ा कर दिया....और इस कोठे की तवायफ बन गई....,, और बचपन से ही मुझे भी नाच, गाना सिखाया जाने लगा....ताकि बड़ी होकर मैं भी तवायफ बनूँ, जबकि में री अम्मी नहीं चाहती थी कि मैं एक तवायफ बनूँ ।"


   "लेकिन शायद हालात को यही मंजूर था, अगर में री अम्मी आल्हा मिया को प्यारी नहीं होती तो शायद मुझे इस कोठे में बैठने नही देती....लेकिन वो मुझे आपा के हाथ सौंपकर खुद अल्ला मिया को प्यारी हो गई........ अब तो इस कोठे को में री आदत हो गई है....बोलते हुए फरजाना के आँखों से आंसू झलक जाते है फिर दोनों सहेलियाँ  गले लग कर आंसू बाहते रहती है"।


   "कोई बात नहीं अल्लाह मिया चाहेंगे तो सब ठीक ही होगा....तेरे साथ कभी कुछ गलत नहीं होगा, मैं अल्लाह मिया से रोज दुआ करूंगी कि तुम्हारी जो भी मुरादे हो वो पूरी हो"।


   " वो बोली इनसा अललाह जरूर होगी....तुम जैसी सहेली जिसके पास होगी उसकी मुरादे क्यू नही पूरी होगी।"


इसी बात पर फिर दोनों हंसने लगती है, ...., 


  "दूसरे दिन खासकर सौम्ब्रे के लिए महफिल सजाई जा रही थी....खानम जान के कहने पर महफिल को आज सिर्फ फरजाना के नाच गाना से सजने वाली थी, ........ 


   " जिसके लिए महफिल सजाई जा रही थी, फरजाना उसे देखने के लिए उतावली हो रही थी, क्यों कि उसने कल उसे अच्छे से नही देखा था....वो जानना चाह रही थी....की ओ कौन शख्स है, जो उसके लिए वो नाच गाना करेंगी....जैसे-जैसे उसके आने का समय हो रहा था....उसकी दिल की धड़कने तेज होती जा रही थी 


   " आखिर में वो समय आ ही गया....जब सोम्ब्रे का कोठे में आगमन होता है....फिर खानम जान उसका स्वागत फूलो से करती है....फिर उसे बैठने को कहती है....फिर सोम्ब्रे खानम जान से कहता है....कहॉ है इस कोठे की शान....उसे पेश कीजिए,, वो बोली जी हुजूर अभी पेश करती हूं।" 


   " बोलकर, खानम जान ताली बजाती है....फिर शबनम, फरजाना को लेकर महफिल में आती है, जैसे -जैसे फरजाना सोम्ब्रे के करीब आ रही थी, वैसे -वैसे, फरजाना की ऑखे उसे देखने के लिए बेताब हो रही थी 

और उधर सोम्ब्रे की आँखें फरजाना के ऊपर से हट ही नहीं रही थी, उसे एकटक देखे ही जा रहा था।"


   " फिर फरजाना उसके करीब आकर अपने नजर उठाकर कहती है, आदाब हुजूर कहकर फिर कहती है हुजूर की खिदमत में क्या पेश कंरू....तो वो बोला....मुझे तुम्हारा मुजरा भी सुनना है, ढोल की आवाज पर थिरकते हुए देखना भी चाहता हूं।" 


   " फिर वो बोली....जैसी हुजूर की इच्छा....बोलते हुए वो फिर नाच - गाना शुरू करती है, ...., 


  "पेश है हुजूर की खिदमत में ये छोटी सी गजल --------


   " आए है हुजूर हमारे कोठे पर ।

    आज की शाम बड़ा सुहाना है ।।

     

    मिलते ही नजर झुक जा रही है ।

    शर्म की हया आज नजर आयी है••••••••••••••••••••


    

 " गजल खत्म होते ही सौम्ब्रे वॉल्टर कहता है, .... आपा आज जिसने महफिल को रोशन किया है....उसका नाम जान सकता हूं...., वो बोली जी हुजूर इस खादीम का नाम फरजाना है....वो बोला फरजाना....वाह क्या नाम है, , 

क्या मै फरजाना से कुछ अकेले में बाते कर सकता हूं, ...., 


  " वो बोली हॉ हुजूर क्यु नही....फिर वो ताली बजाकर सबको जाने के लिए कहती है....फिर सभी के जाने के बाद....सौम्ब्रे वॉल्टर, फरजाना के करीब जाकर कहता है....क्या मैं इस हुस्न की मल्लिका से कुछ देर बात कर सकता हूं, ...., 


  "इसपर फरजाना कहती है, ....क्या आपने आज की महफिल के लिए मुझसे बात करनी जरूरी समझी, तो बाते करने के लिए मुझसे इज्जात क्यु मॉग रहे है,  आपको जो बाते करनी है....आप कर सकते है....वैसे भी हम तवायफो की अपनी कोई मर्जी होती नही है....हमें शा दूसरों की ही मर्जी हम तवायफो पर चलती ह"।


  "इसपर सौम्ब्रे वॉल्टर कहता है, ...., मोर्हतमा, जब से में ने आपको देखा है....तभी से आपको अपना बना चुका हूं....और मैं नही चाहता हूं की आप किसी ओर के लिए मुजरा करे।"   


   "फिर वो कहता है....सिर्फ आज ही नही, बल्कि आने वाले हर शाम की महफिल सिर्फ में रे लिए ही होगी....कहने का मतलब ये है की....आप सिर्फ में रे लिए नाच गाना करेगी, ....,, किसी ओर के लिए नही,


   "वो बोली, .... हुजूर मैं एक तवायफ हूं....और तवायफ किसी एक के लिए महफिल नही सजाया करती है....जबतक उसकी महफिल में चार लोग नही आते है....तो वो महफिल सुना लगता है....इसलिए सिर्फ आज के लिए ये महफिल आपके लिए सजी है....कल से में रे चाहने वाले हर कदरदान इस महफिल में आएंगे


  "फरजाना की इस बात पर वो कहता है....लगता है आपको में रा यहाँ आना....अच्छा नही लगा....इसपर वो बोली....आपमें ऐसी बात क्या है....जो मैं सिर्फ आपके लिए ही नाच गाना करूँ....और में रे उन चाहने वाले का क्या होगा जो मुझे देखने के लिए रोज इस कोठे में आते है.... 


  " फिर सोम्ब्रे गुस्सा करके कहता है, इसका मतलब क्या तुम मुझे पसंद नहीं करती हो।"


  " इसपर वो जोर-जोर से हंसती है....और कहती है,  पसंद....ये पसंद क्या होता है, जनाब....हम तवायफों की पसंद ना पसंद कुछ नही होती है, लोग आते है हमारा नाच, गाना सुनते है और चले जाते है, मैं किसी एक की पसंद नहीं हूं....में रे चाहने वाले हजारों लोग है, जो इस कोठे मैं सिर्फ मुझे देखने आते है....उन सब का क्या ?   


 ठीक है तुम्हें हर दिन सबके के लिए नाच गाना करना है करो, लेकिन जिस दिन मैं आऊंगा, उस दिन तुम सिर्फ में रे लिए ही महफिल मैं बैठोगी, उस दिन मुझे इस कोठे में कोई नजर नहीं आना चाहिए, बोलकर सोम्ब्रे उस कोठे से चला जाता है, .... 


   

   " उधर खानम जान फरजाना की बाते सुनकर कहती है....में री बच्ची तुने अच्छा किया, तुम्हारी बात सुनकर में री चिन्ता कम हो गई, वर्ना मुझे लग रहा था की जब मुगल  दरबार के सैनिक लोग आएंगे तो क्या करेगे, लेकिन तुने तो सब ठीक कर दिया।"


 " खानम जान की चिन्ता तो कम हो जाती है, लेकिन फरजाना के मन में सोम्ब्रे का रूप-रंग सुडोल बदन, उसकी बात करने का ढंग, ,उसका हर चीज उसे सोम्ब्रे की तरफ खींच रहा था, जबकि फरजाना की उम्र 14 साल और सोम्ब्रे वॉल्टर की उम्र 40 साल की थी फिर भी फरजाना उसके तरफ आकर्षित हो रही थी।"


" उसके बाद से सोम्ब्रे वॉल्टर महिने में या कोई हफ्ते में , एकाद बार ही कोठे में जा पता था, क्योकि हमें शा मुगल शासक के तरफ से युद्ध लड़ने के लिए जाना पड़ता था । इसलिए वो महिने में एक,,दो,, बार ही कोठे में जा पता था।"


 " लेकिन जब भी वो जाता तो वो कोठा उसके लिए ही सजाया जाता । इसतरह धीरे-धीरे फरजाना भी सोम्ब्रे के करीब होते जा रही थी।"


  " जब वो कोठे में नही आता तो फरजाना की नजरे उसी की तलाश करती....लेकिन जब वो आता तो उसके सामने फरजाना....ऐसा दिखाती जैसा की उसे, उससे कोई मतलब ही ना हो, ....,, 


   " फिर एक दिन जब सोम्ब्रे कोठे में आया तो वो उससे बोली कि, हुजूर सुना है, आपकी तलवार बाजी बहुत अच्छी है तभी तो दुशमनो के पसीने छुड़ा देते है तो क्या इस कनीज को तलवार चलाना सिखाएंगे"।


    "बस इतनी सी बात तो कहिए कब से शुरू करना है"।


"वैसे एक बात बताऊं, बचपन से ही तलवार चलाने का शौक रहा है लेकिन किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजुर थी जो मुझे इस कोठे तक पहुंचा दी, उसके बाद मुझे यहॉ नाच गाना में लगा दिया गया, और में री अम्मी भी मुझे छोड़कर चली गई तभी से ये कोठा ही में रे लिए सबकुछ है।"


" सोम्ब्रे कहता है, मुझे किसी के लिए जल्द दर्द महसूस नही होता है लेकिन जब से तुमसे मिला हूं, तभी से तुम्हारे लिए एक अजीब सा दर्द महसूस करता हूं।"


  " उम्र में तो आप मुझसे बहुत छोटी हो बेगम फरजाना लेकिन मैं अपनी दिल की मल्लिका बनाकर रखना चाहता हूं, में रे तरफ से कोई जबरदस्ती नही है बस एक आवाज दे देना यहॉ से उठकर ले जाऊंगा।"


   " हुजूर जब ओ दिन आएगा तब देखा जाएगा, फिलहाल आप में री इस इच्छा को पुरी कीजिए, वही में रे लिए काफी है, ....,, 


   " आपने पहली बार मुझसे कुछ माँगा है, और मैं उसे पूरा ना करूं अभी मैं एक हफ्ते के लिए हूं । आप कल से ही सिखाने आ जाएं मोहतरमा, वो बोली जी हुजूर बेशक"।

 

    " उसके दूसरे दिन से ही, सोम्ब्रे वॉल्टर फरजाना को अपने खेमें में लेजाकर तलवार बाजी सिखाने लगा, जब वो खेमें में जाती तो,  वहॉ पे रह रहे सभी सीपिहियो की निगाहे फरजाना पर ही टीकी रहती।"


कई दिनो तक तलवार बाजी सिखने के बाद फरजाना, तलवार चलाने में इतनी माहिर हो गई कि, सोम्ब्रे को भी वो तलवार चलाने में हरा दिया करती थी।"


  " ये देखकर सोम्ब्रे कहता कि वाह बेगम जान, तुमने तो मुझे भी पछाड़कर आगे निकल गई....,अब मुझे तुमसे पूरा यकीन है की, तुम अच्छे से अच्छा युद्ध जीत सकती हो"।


  " फिर एक दिन सोम्ब्रे वॉल्टर फरजाना से कहता है अब तुम में रे साथ युद्ध में चलोगी।"


 उसके बाद से फरजाना वॉल्टर के साथ हर युद्ध में जंग लड़ने के लिए जाने लगी, वॉल्टर ने उसे तवायफ़ से एक सिपाही बना दिया और उस युद्ध के बाद वो जितने भी जंग लड़ने जाता फरज़ाना उसके साथ आदमियों के कपड़े पहनकर जंग लड़ती। फरज़ाना जंग लड़ते लड़ते इतनी निपुण हो चुकी थी कि वॉल्टर की अपभ्रंश कहलाने लगी।  


      "सौम्ब्रे के साथ अब फरज़ाना को लोग समरु के नाम से जानने लगे और क्योंकि बेगम उनके नाम के साथ पहले से ही था तो लोग अब उन्हें बेगम समरु कहने लगे। वॉल्टर सिपाहियों के समूह को लीड करता था। ये लोग कमीशन के हिसाब से दूसरों के लिए भी लड़ते थे। उस समय के मुग़ल राजा शाह आलम ने वॉल्टर को उत्तर प्रदेश के सरधना का जागीरदार बना दिया।"


  " इस खुशी में उसने फरजाना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, लेकिन फरजाना इस प्रस्ताव को लेकर सोच में पड़ गई....,, की वो क्या करे, ....,, क्योकि तवायफ़ों को शादी करने की आज़ादी नहीं होती ऐसे में वो वॉल्टर से कैसे शादी करती उसने शादी के प्रस्ताव को टालने की कोशिश की....लेकिन सोम्ब्रे जिद्द में आड़ा रहा की वो फरजाना से शादी करके ही रहेगा, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी क्यू ना करना पड़े।"


   "फरजाना के निकाह  को लेकर पूरे कोठे में हलचल मची हुई है, उधर खानम जान का डर अलग बैठा हुआ है कि कहीं फरजाना कोठे से भाग ना जाए और उधर फरजाना सोम्ब्रे को लेकर अलग उलझन में पड़ी है।"


   " उसे समझ में नही आ रहा था की वो सोम्ब्रे के सवाल का क्या जवाब दे, उसे ऐसा लग रहा था कि वो ऐसे चक्रव्यूह में फंसी है जहॉ से निकलना बहुत मुश्किल है।"


   "एक तरफ सोम्ब्रे है जो उसे अपनी पत्नि बनाकर दुनिया जहॉ की खुशी देना चाह रहा है और दुसरी तरफ वो कोठा जहॉ उसे आश्रय मिला, ना वो कोठा को छोड़कर जाना चाह रही थी, और ना सोम्ब्रे को ठुकराना चाह रही थी।"


   " कसमाकस में फंसी फरजाना को कुछ समझ में नही आ रहा था की वो क्या करे, फिर शबनम उसे समझाती है कि मैं मानती हूं की तू आपा से गद्दारी नही करना चाहती है, लेकिन तू ये क्यू नही सोच रही, की तुझे जिने के लिए एक नई जिन्दगी मिल रही है, जिसकी कल्पना हम सभी तवायफ़ करते तो है लेकिन हमें ऐसी जिन्दगी नही मिलती है, तू तो बहुत खुशनसीब है की तुझे कोई चाहने वाला तो मिला । चाहने के साथ-साथ तुझे इस समाज में शान से जिने का हक भी दे रहा है।"


   " कोई मूर्ख ही होगी जो ऐसे जिन्दगी को ठुकराएगी में री मान तू चली जा सोम्ब्रे के साथ, जा इस कोठे को छोड़कर चली जा, और जी ले अपनी जिन्दगी।"


  " फरजाना के दिमाग में शबनम की बात घूमने लगी 

फिर वो कहती है लेकिन शबनम अगर मैं इस कोठे से चली गई तो तुमसब पर आफत आ जाऐगी, में री सजा तुम सबको मिलेगी, मैं तुमलोग को मुसीबत में डालकर कैसे जा सकती हूं।"


" फिर कोठे में रहने वाली सभी लड़कियां फरजाना के पास आकर कहती है,  हम सब भी यही चाहते है की तू इस कोठे से भाग जा....और जाकर अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत कर, कम से कम हमें ये तो लगेगा की हम कोठे वालो के नसीब में किसी की मोहब्बत लिखी हुई है 

 " कोठे में रहने वाली सभी लड़कियां फरजाना के पास आकर कहती है,  हम सब भी यही चाहते है की तू इस कोठे से भाग जा....और जाकर अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत कर, कम से कम हमें ये तो लगेगा की हम कोठे वालो के नसीब में किसी की मोहब्बत लिखी हुई है अगर तेरी निकल हो गई तो हमें इस बात से बहुत खुशी होगी की कोठे को लडकियो की भी जीवन में मोहब्बत .... निकाह लिखा है....अगर तुने निकाह कर लिया तो तू कोठे वालियो के लिए मिसाल बन जाएगी, सबकी बात सुनकर फरजाना कहती है....मैं मिसाल तब बनूंगी जब मैं तुम सब के लिए कुछ कर पांऊ, मैं ये चाहूँगी कि तुम सब भी में रे साथ-साथ अपनी-अपनी जिन्दगी को अपने तरीके से जियो, तभी मुझे खुशी मिलेगी।"


 सभी एक साथ कहना शुरू करती है, हमारे बारे में सोचना बंद कर और अपने बारे में सोच,क्योकि यहॉ से बाहर कोई हमारा हाथ पकड़ने के लिए नही है, लेकिन तेरा हाथ पकड़कर चलने वाला यहॉ से बाहर तेरा इन्तज़ार कर रहा है, तु यहॉ से भाग जा और जाकर उसका हाथ थाम ले, और अपनी जिनदगी जी ले।"


 "फिर दुसरे दिन कोठे में खबर आती है की आज सोम्ब्रे फरजाना से मिलने आ रहा है, ये बात सुनकर फरजाना खुश हो जाती है, लेकिन खनम जान का डर बैठ जाता है, उसे चिन्ता होने लगती है कि, कहीं फरजाना उस सिपाही के साथ चली ना जाए फिर इस कोठे क्या होगा ?सोच-सोचकर खानम जान का दिमाग खराब हो रहा था"

 " शाम होते ही वॉल्टर कोठे में पहुंचता है और पहुंचकर फरजाना से मिलने जाता है और पूछता है तो बेगम आप ने क्या फैसला लिया क्या आप हमारे साथ निकाह करेंगी"।


 " इस बात से खुश होकर फरजाना कहती है, हुजूर हम आपके साथ यहॉ से जाना चाहते है, और आपसे निकाह कर एक नई जिन्दगी की शुरुआत करना चाहते है, हमें ले चलीऐ यहॉ से, .... 


  " फिर वो फरजाना को लेकर कोठे से जाने लगा । लेकिन कोठे से फरजाना को लेकर निकलना इतना आसान नही था, सोम्ब्रे के रास्ते में आदम खान अपने आदिमीयो के साथ आकर खड़ा हो गया, ....  


 " फिर क्या था, दोनों के बीच तलवार बाजी शुरू हो गई सोम्ब्रे आदम खान को संभाल रहा था....और फरजाना उसके आदिमीयो को एक-एक करके मार गिरा रही थी , फरजाना को इस तरह लड़ते देख खानम जान डर जाती है, और फरजाना के रास्ते से हट जाती है।"


  "उधर सोम्ब्रे वॉल्टर भी आदम खान को परास्त कर देता है, और फरजाना को लेकर, वहॉ से निकल जाता है।"


 "उधर सोम्ब्रे वॉल्टर जो की ईसाई धर्म का था, चर्च जाकर फरजाना के साथ शादी कर लेता है शादी के बाद फरजाना का नाम " बेगम समरू" रखा गया, उसके बाद वो फरजाना को लेकर सरधना चल गया।"


  "फरजाना को अब बेगम समरू के नाम से बुलया जाने लगा, वहॉ के आसपास के सभीलोग उसे बेगम समरू कहकर ही बुलाया करते थे"।


 फिर बेगम समरू उस दिन के बाद से हर जंग में वो सोम्ब्रे के साथ जाती थी धीरे-धीरे बेगम की वीरता के बारे मैं पुरे राज्य में हल्ला होने लगे, फिर हर लोग सोम्ब्रे के नाम की तरह बेगम के नाम से भी डरने लगे"।


 " फिर आचानक से एक दिन सोम्ब्रे की तबियत बिगड़ने लगी, और वो बीमार रहने लगा तभी शाह आलम का दूत आकर कहता है की सोम्ब्रे को शहंशाह ने याद फरमाया है, उन्हे खबर मिली है कि, दिल्ली में कोई चढ़ाई करने वाला है । बेगम उससे कहती है, आप जाकर शहंशाह से कह दे कि अभी हुजूर की हालत जंग लड़ने की नही है।"


 दिल्ली की गद्दी में खतरा मंडरा रही थी, और उधर सोम्ब्रे की हालत बिगड़ती जा रही थी, सोम्ब्रे की हालत बिगड़ने की वजह से सब परेशान थे। किसी को भी समझ में नही आ रहा था की अब दिल्ली को कैसे बचाया जाए 


  "तब सोम्ब्रे बेगम समरू से कहता है । बेगम अब आप ही दिल्ली को बचा सकती है, आप में री हालत तो देख ही रही है मैं अब जंग लड़ने के हालत में नही हूं, इसलिए आप जाकर शाह आलम की मदद कीजिए, इसपर बेगम कहती है, लेकिन हुजूर मैं आपको अकेले छोड़कर कैसे जा सकती हूं नही.... नही मैं आपको छोड़कर कही नही जाऊंगी।"


 सोम्ब्रे उसे समझाने की कोशिश करता है और कहता है । बेगम आज आपको मौका मिला है अपने दम पर काबिलियत दिखाने का आज दिल्ली में फतेह हासिल करके ये साबित कर दीजिए कि आप किसी से कम नहीं है और मुझे यकीन है कि आप ये जंग जरूर जीतेंगी।"


  "फिर भी बेगम समरू सोम्ब्रे को छोड़कर नहीं जाना चाह रही थी,  लेकिन सोम्ब्रे उसे जंग लड़ने के लिए विवश कर देता है।"


  "तभी आचानक से खबर आती है कि दिल्ली के ऊपर हमला हो चुका है, बेगम अपनी दल लेकर जंग लड़ने के तैयार रहती है, जंग लड़ने से पहले वो सोम्ब्रे से कहती है हुजूर मैं जाकर आती हूं, आप में रा इन्तजार करना मैं जल्द वापस आऊंगी।"


 " फिर वो अपने दल को लेकर दिल्ली के तख्त को बचाने के लिए निकल पड़ती है।"


  " वहॉ पहुंचकर वो डटकर दुश्मनों का मुकाबला करती है, फिर एक हफ्ते तक लड़ाई चलती रही लेकिन उसे सोम्ब्रे की भी चिन्ता खाई जा रही थी कि पता नही वो कैसे होगे, एक तरफ दुश्मनो के साथ जंग लड़ रही थी तो दूसरी तरफ सोम्ब्रे की चिन्ता लगी हुई थी।"


  "आखिरकार एक हफ्ते के बाद, बेगम समरू की ही जीत होती है और शाह आलम को उनका तख्त देकर वापस सरधना लौटती है, लेकिन  काफी देर हो चुकी हुई होती है, उसके आते-आते सोम्ब्रे की प्राण जा चुकी होती है।"


 " सोम्ब्रे के मौत से बेगम समरू को बहुत बडा सदमा लगता है । " मौत अचानक हुई थी" इसलिए सब सदमें में थे क्योंकि मुग़ल राजा शाह आलम की ताकत वॉल्टर के बिना कुछ भी नहीं थी।"


 " कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा फिर एक दिन 

सोम्ब्रे के सिपाही सारे अफसर बेगम समरू से मिलने आते है, और उससे कहते है की वो उनकी लीडर बन जाऐ, वो सबसे कहती है की क्या इस बात के लिए मुगल शासक शाह आलम इस बात के लिए तैयार होगे।"


 " क्यू नही तैयार होगे आखिर आज आपके बदौलत वो फिर से दिल्ली का तख्ता मिला है, फिर सबके कहने पर बेगम समरू लीड करने के लिए तैयार हो जाती है उसके बार सोम्ब्रे के सारे सिपाही एक कागज पर 82 यूरोपियन अफसरों और 4000 सैनिकों ने साइन किया था। वो चाहते थे बेगम समरू उनको लीड करें। इस तरह से बेगम चार हज़ार से ज्यादा लड़ाकों को लीड करती हुई सरधना की जागीरदार बन गई।"


बेगम समरु सिर्फ नाम की बेगम थी असल में दुश्मन इन्हें डायन कहकर पुकारते थे। हर लोग सोम्ब्रे की तरह बेगम से भी डरने लगे थे....बेगम का भय सबके मन में हमें शा बना रहता था।"


 बेगम धिरे-धिरे सोम्ब्रे की जगह पूरी तरह से ले ली थी, उसने पति की मौत के तीन साल बाद फरजाना ने ईसाई धर्म कुबूल कर लिया और जोहाना नोबिलिस सोम्ब्रे बन गईं। 1822 में बेगम समरु ने अपने फ़्रांसीसी पति की याद में सरधना में विशाल कैथोलिक गिरिजाघर का निर्माण कराया"।


  " औरतो को तलवार बाजी सिखाने लगी इस बात को लेकर भी उसे बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी वो अपना इरादा नही छोड़ी, वो अपने साथ सभी औरतो को भी जंग के लिए लेकर जाती थी।"


 " फिर एक दिन बेगम की जिन्दगी का रूख बदला, जब उसे दोबारा प्यार हुआ।"


  "वॉल्टर की मौत के बाद बेगम को एक फ्रेंच आदमी से प्यार हुआ जिसका नाम ले वैसो था, धीरे -धीरे दोनों एक दूसरे को चाहने लगे "लेकिन बेगम को इस बात का डर भी था की अगर लोगों को पता चलेगा तो वो हमें जीने नहीं देंगे।"


बेगम समरू जिन यूरोपीय सैनिकों को लीड करती थी, वो नहीं चाहते थे की बेगम उन्हें छोड़कर जाए लेकिन कहा जाता है ना की प्यार तो आधा होता है, कब तक वो वैसो के प्यार से दूर भागती, फिर एक दिन उसने सबकुछ छोड़कर भागने का फैसला किया।"


     "बेगम ने उसके चक्कर में अपना राज काज सब छोड़ दिया। 1793 में उससे शादी कर ली। उसके साथ भाग निकली। उनका पीछा हुआ। दोनों ने वादा किया एक मरा तो दूसरा भी मर जाएगा। दोनों अपने-अपने घोड़े पर भागे। वैसो को पीछे से चीखने चिल्लाने की आवाज़ आई तो उसने मुड़ कर देखा तो बेगम ने खुद को छुरा भोंक लिया था। ये देख कर उसने भी अपने माथे पर तमंचा रखा और गोली चला दी"।


    "इस हादसे में वैसो तो मर गया लेकिन बेगम को छुरी लगने की वजह से वो बच  गई थी, बेगम के घायल होने की खबर जब यूरोपी सिपाही को मिली तो उन्होंने उसकी जान बचायी ।

 जब बेगम वापस सरधना लौटी तो उसने कसम खाई कि वो अब किसी से प्यार नहीं करेगी । अब अपनी सारी जिन्दगी सरधना के लिए अर्पित कर देगी।"


     "बेगम की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। बेगम जब लौटी तब कर अंग्रेज़ों ने अपनी हुकूमत कायम कर ली थी ऐसे में बेगम ने अंग्रेज़ों के साथ समझौता किया....अपने पैसों और सेना का इस्तेमाल अपनी जागीर सरधना का ख्याल रखने में किया।"


     "जब भरतपुर के राजा के साथ अंग्रेजों का सामना हुआ, तो वो लोग अपने साथ किसी देसी लीडर को लेकर नहीं जाना चाहते थे , बेगम नाराज़ होकर बोली, ‘अगर मैं आज लड़ाई में नहीं गई तो सब कहेंगे बुढ़ापे में आकर डर गई हूँ मैं.’ बेगम अंग्रेजों के साथ लड़ी उस समय उसकी उम्र 73 साल थी.... सरधना का ख्याल रखने में बेगम काफी अलर्ट रहती थी। जो भी मिलने आता था उसे कोई न कोई गिफ्ट देकर वापस भेजती थी। बेगम ने सरधना में एक बहुत बड़ा चर्च बनवाया, उस चर्च का नाम सरधना चर्च है- बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ ग्रेसेज। आज भी है।"


     " बेगम का मानना था की, “राजा या रानी की असली महिमा उसके प्रभुत्व की भौतिक सीमा से नहीं, बल्कि नैतिक प्रगति से निर्धारित होती है । बेगम ने काश्तकारों की मदद करने के लिए, ऐसे साधनों को पेश करने की कोशिश की, जिससे भूमि की उपज बढ़ सके।"


   "उनकी जागीरों में किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए, पुलों और सड़कों का निर्माण किया गया । जरूरतमंद किसानों को तरक्की ऋण वितरित किया गया । इसके साथ ही आपदा की स्थिति में राजस्व की छूट भी दी गई थी।"

   "हालांकि इसके बावजूद उन्होंने मुगल पोशाक और शिष्टाचार बनाए रखा, शिवाय इसके की, कभी-कभी वह पर्दा नहीं करती थी, और अपने यूरोपीय अधिकारियों के साथ भोजन करती थी। उन्होंने में रठ में एक बड़ा और आलीशान घर बनाया गया था....,, यह में रठ कॉलेज के दक्षिण में स्थित है"।


    "बेगम समरू एक उदार शासक थीं। जहां तक ​​सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति, पदोन्नति का संबंध था, उनके लिए हिंदू, मुस्लिम या ईसाई के बीच कोई अंतर नहीं था........ सेना को छोड़कर, जागीर की प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह से हिंदूओं और मुसलमानों के हाथों में थी। उसके शासनकाल में संगीत को सक्रिय रूप से संरक्षण दिया गया था ।और वह खुद नृत्य की बहुत बड़ी शौकीन थी, वह विशेष रूप से में रठ में अपनी कोठी में मुशायरा आयोजित करती थी"।


     "जनवरी 1836 में बेगम समरू की मृत्यु हो गई। और उन्हें सरधना में ही बेसिलिका के नीचे दफना दिया गया"।


  " इस तरह से हमारे इतिहास में बेगम समरू का नाम दर्ज हो गया, वो तवायफो के लिए मिसाल बन गई, उसने साबित कर दिया कि, एक तवायफ अगर महफिल सजा सकती है तो, अपना शासन भी चला सकती है।"


 " हमारे इतिहास में बेगम समरू एक दिलेर महिला थी और ऐसी महिला को हम शत शत नमन करते हैं।"



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