Reena Srivastava

Tragedy Thriller

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Reena Srivastava

Tragedy Thriller

वीर योद्धा द्वारा स्वतंत्रता

वीर योद्धा द्वारा स्वतंत्रता

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"ये कहानी है उस नौजवान की, जिसकी बॉड़र में लड़ते-लड़ते जान चली जाती है, और अपने पीछे छोड़ जाता है, अपनी यादें ....???


और अपने परिवार में वो एक याद बनकर रह जाता है, खासकर अपनी पत्नी के लिए, जिसकी शादी हुए एक महीना भी नहीं हुआ था....???


     " ये कहानी है "ठाकुर राणा प्रताप" की जो राजस्थान उदयपुर का रहने वाला था , और उसके पिताजी बलवंत ठाकुर वहां के जमींदार थे .....


जमींदारी होने के बावजूद भी उसे देश के लिए कुछ करने का जज्बा उसमें हमेशा रहता , और बचपन से ही अपने बाबा से कहते रहता की, बाबा मुझे धरती माँ के लिए कुछ करना है.....


मगर उसके बाबा कहते, बेटा यहाँ अपनी जमींदारी भी तो है, इसकी देखरेख कौन करेगा , तो वो कहता, बाबा जमींदारी का क्या है, वो तो कोई भी देख लेगा, फिर कहता है, बाबा-सा अगर हमारी धरती -माँ ही हमारे पास नहीं रहेगी तो, हम जमींदारी कैसे करेगे ,,,, राणा की बात सुनकर उसके बाबा हंस कर टाल देते, लेकिन वो अपने मन में धरती -माँ को बैठाऐ रहता....???


     "दरअसल बात ये है कि, बचपन से ही वो देशभक्ति की कहानी सुनते आ रहा था, उसके दादा,-परदादा सभी आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी, और उनकी कहानी अपने बाबा से सुनते-सुनते बड़ा हुआ था, इसलिए उसके मन में भी, हमेशा देश के लिए कुछ करने की इच्छा होती रहती....


   "इसी इच्छा को पाले वो बड़ा हो रहा था, 18 साल की आयु में वो अपने बाबा से कहता है , बाबा मुझे आर्मी में भर्ती होना हैं..


  "इस बात को सुनकर उसके बाबा कहते है, बेटा मैं तो आजतक तुम्हारी बातों को मजाक समझता रहा, लेकिन तुम तो इसी को अपना साथी बना लिए हो क्या....


 "तो वो कहता है, बाबा लेकिन मैंने तो कभी आपसे मजाक नहीं किया, मैं तो हमेशा से इसके लिए गंभीर था....???


    " उसके बाद उसके बाबा उसे बहुत समझाने की कोशिश करते है, मगर वो समझने को तैयार ही नहीं होता है, फिर उसके बाबा अपनी पत्नी से पूछते है कि ऐसा क्या  करूँ की ये लड़का आर्मी में जाने की जिद छोड़ दे...


  " तो उनकी पत्नी कहती हैं, मेरी बात मानो तो इसकी पेर में बेड़ियां बॉध दो , तो ये कही नहीं जाएगा, उसके बाबा कहते है, अब जवान बेटे को बेड़ियां बाँध कर घर पे रखूँ ...


 " इस बात पर उनकी पत्नी हंसने लगती है , ओर कहती है, नहीं समझे ,,,, मतलब इसकी शादी करा दो , फिर इसका जो भूत है , आर्मी में जाने का वो अपने-आप उतर जाएगा....


  " बलवंत ठाकुर को अपनी पत्नी की बात सही लगती है, फिर वो मुनिम जी से कहते है, मुनिम जी सब जगह बात फैला दीजिए की मैं अपने बेटे की शादी करना चाहता हूं...


  " तो मुनिम जी कहते है, अगर आप छोटे ठाकुर-साहब की शादी करना चाह रहे तो, मेरी नजर में एक लड़की है, बोलो तो बात चलाऊं ,,, 


  " बलवंत ठाकुर कहते है, हाँ...हाँ... क्यू नहीं बात चलाव, जितनी जल्दी हो सके हम अपने बेटे की शादी कर देना चाहते है ...


 " इधर बलवंत ठाकुर अपने बेटे को बीना बताए शादी के लिए लड़की देख रहे थे, और उधर राणा अपने मॉ-बाबा को बताए बिना आर्मी में भर्ती के लिए फार्म भर चुका था 

और उसमें वो निकल भी गया, और 10 दिन के अंदर ट्रेनिंग के लिए निकलना था , अब वो सोच रहा था कि ,,,ट्रेनिंग की बात बाबा को कैसे बताऊं, अगर वो सुनेंगे तो मुझे जाने नहीं देंगे...


   "फिर एक दिन बिना सोचे-समझे, एक खत लिख कर कमरे में छोड़ देता है, और ट्रेनिंग के लिए निकल जाता है, जब वो खत उसके बाबा के हाथ लगता है तो उसमें वो लिखता है, कि ,, बाबा मुझे माफ कर दीजिएगा मैं बिना बताए आपको, आर्मी की ट्रेनिंग के लिए जा रहा हूं, ट्रेनिंग खत्म होते ही आपसे आकर मिलूंगा, और कान पकड़कर आपसे माफी मांग लूंगा , और, आप मुझे जरूर माफ कर देंगे....


" खत पढ़कर बलवंत ठाकुर परेशान हो जाते है, और, अपनी पत्नी से कहते है, आखिर हमारी बात नहीं सुना और अपने मन का करने चला गया...


  "इस पर उसकी पत्नी कहती है, चिन्ता क्यू करते है आप, अभी वो ट्रेनिंग के लिए गया है, ट्रेनिंग खत्म होते ही जब वो यहाँ आएगा तो हम उसकी शादी करा देंगे , फिर वो अपना मन बदल लेगा, तबतक आप उसके के लिए लड़की देखकर रखिए ...

  

   " इधर बलवंत ठाकुर, मुनिम जी के बताऐ हुए लड़की को देख कर रख चुके थे, और उस लड़की के बाप को शादी की तैयारी करने के लिए बोल चुके थे....


  " और उधर राणा ट्रेनिंग में पास होकर निकल जाऐ इसके लिए मेहनत किये जा रहा था....


   आखिर राणा की मेहनत रंग लाती है, और वो ट्रेनिंग में पास हो जाता है, और आर्मी की ज्वाइनिंग लेटर उसे मिल जाता है....


   "ज्वाइनिंग लेटर मिलने से राणा बहुत खुश होता है, फिर खुशी-खुशी वो अपने घर आता है, वहां जब आता है तो देखता है कि पुरी हवेली सजी हुई है....


  " हवेली की सजावट देखकर राणा अपने बाबा से पूछता है, बाबा आज कुछ है क्या ? हवेली इतनी सजी हुई क्यू है , तो उसके बाबा कहते है, पहले तैयार हो जाव , और तुम्हारे रूम में कपड़े रखे है, उसी को पहन लेना, राणा को बाबा की बात समझ में नहीं आ रही थी, फिर वो अपनी माँ से पूछता है, माँ आज क्या है, और मुझे तैयार होने के लिए क्यू बोल रहे हो....•


  "तो उसकी माँ कहती है, जैसा तेरे बाबा कह रहे है, वैसा कर , बोलकर उसकी माँ भी चली जाती है ,,,,,, 


    "राणा के मन में ये चलते रहता है कि, आखिर आज हवेली में हो क्या रहा है , सोचते-सोचते वो नहा-धोकर तैयार होकर नीचे आता है....


  "राणा को देखकर उसके मॉ-बाप खुशी से फुले नहीं समाते है ,,, राणा फिर उनसे पूछता है ,कि आज क्या है ,,,,,??


  " फिर कुछ देर के बाद राणा देखता है कि, एक लड़की अपने चेहरे में घुघट डाले, उसे कुछ औरतें पकड़कर ला रही है....और लाकर उसे राणा के बगल में बैठाती है, ये देखकर राणा को कुछ समझ में नहीं आता है, और, वहां से उठकर जाने लगता है....


  "तभी उसके बाबा कहते है, कहॉ जा रहे हो, जहॉ बैठे थे वही बैठ जाव , तुम पूछ रहे थे ना आज क्या है ,? तो, इस लड़की से मिलो, इसका नाम रूपकंवर है, और आज रूपकंवर के साथ तुम्हारी सगाई है....


 "सगाई होने के बाद तुमदोनो एक-दुसरे से जो बात करनी है, कर लेना , फिर बलवंत ठाकुर सगाई की रश्में शुरू करने को कहते है....


  " उधर राणा इस बात को सुनते ही उसे धक्का लगता है, वो अपने मन में सोचता है कि आज मै कितना खुश था, सोचा था कि घर जाकर अपनी खुशी बाटुगा बांटूगा मगर यहाँ तो कुछ और ही चल रहा है, अब कैसे इस मुसीबत से बाहर निकलू....


  " फिर सगाई की रश्में शुरू होती है, ना चाहते हुए राणा को ये सगाई करनी पड़ती है ,,,,,,सगाई के बाद बलवंत ठाकुर ये ऐलान करते है की आज से पॉच दिन के बाद शादी की तारीख रखी गई है, इस बात को सुनकर सभीलोग बहुत खुश होते है, शिवाय राणा के....


    "उस हवेली के बगल में ही लड़की वालो को ठहराया गाया था, सगाई तो हो गई थी लेकिन राणा अभीतक रूपकंवर को नहीं देखा था "....


  " उसके मन में बस यही चल रहा था कि कैसे इस शादी के झंझट से बाहर निकलू , यही सोचकर वो सगाई के दूसरे दिन रूपकंवर को मिलने के लिए  बुलाता है, फिर रूपकंवर राणा से मिलने आती है, अभी भी उसका चेहरा ढाका रहता है, इसलिए राणा उसे देख नहीं पाता है....

   " राणा, रूपकंवर से कहता है, देखिए मै आपसे जो कुछ भी कहूंगा शायद आपको अच्छी ना लगे, लेकिन मै नहीं चाहता हूं कि आपकी जिन्दगी मेरी वजह से बर्बाद हो, इसलिए मैं जो कहना चाह रहा हूं, आप उसे गलत मत समझना....


  जैसे ही वो कुछ कहने ही जा रहा था कि, रूपकंवर कहती है, मै जानती हूं ठाकुर साहब की आपको ये शादी नहीं करनी है, आप अपने बाबा-सा के खतीर ये शादी कर रहे है, मै ये भी जानती हूं, कि आपने पहले ही किसी को मन में बसा रखा है, फिर वहां मेरी जगह कैसे हो सकती है....


  " राणा को रूपकंवर की बात समझ में नहीं आती है, फिर वो कहता है, आप क्या कहना चाह रही है, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है....


 " वो कहती है, मेरी बातो को इतना हैरान से ना लीजिए, मैं तो ये कह रही थी ,, कि जिसके दिल में धरती माँ का प्यार बसा हो, उसके दिल में किसी और के लिए जगह कैसे हो सकती है ,,,, 


  " रूपकंवर की बात सुनकर राणा हैरान हो जाता है, और फिर उसे घुंघट के नीचे से देखने की कोशिश करता है, तभी रूपकंवर कहती है, क्यू ठाकुर साहब आप यही सोच रहे है ना कि मैं ये सब कैसे जानती हूं ,,,, 


  " जब से हमारी शादी ठीक हुई है ,,,,तभी से, सोते-जगते यही बात सुनते आ रही हूं ,,,और आज भी आप वही बात करने के मुझे यहाँ बूलाया है....


  " ठाकुर साहब मै आपके दिल का हाल समझ सकती हूं, लेकिन धरती मॉ से प्यार करना अच्छी बात है लेकिन जिन्दगी इसी से तो आगे नहीं बढ़ती ,जिन्दगी को आगे बढ़ाने के लिए जीवनसाथी की जरूरत होती है , और अपके दिल में मुझे थोड़ी सी जगह चहिए,,, यही मेरे लिए काफी होगी....


  " रूपकंवर की बातो ने राणा का दिल जीत लिया, फिर हवा के झोका से रूपकंवर का घुंघट चेहरे से हट जाता है, फिर राणा की नजर उसके चेहरे पर पड़ती है, और उसे वो देखता ही रह जाता है....


  "फिर जो कहने आया था, वो कह ही नहीं पाता है, फिर रूपकंवर पूछती है, आप कुछ कहने वाले थे, तो राणा कहता है, अब क्या कहूं, आपने सबकुछ कह दिया, इस बात पर रूपकंवर हंसने लगती है ,,,, 


रूपकंवर से मिलने के बाद राणा हंसी-खुशी शादी के लिए मान तो जाता है, लेकिन उसे इस बात का गम भी था कि शादी के दूसरे दिन ही उसे बॉडर के लिए निकलना था....


क्योंकि उसे खबर मिली थी कि, बॉडर में जंग छिड़ने वाला है, और उसे तुरंत वहां जाकर ज्वाइन करना है ,, इसलिए वो इस बात से परेशान था, कि कैसे सबसे कहे की उसे तुरत निकलना है, इसलिए भी वो शादी से पीछे हटना चाह रहा था ,, लेकिन रूपकंवर की बातों ने उसका दिल मोह लिया और वो शादी के तैयार हो गया...


दूसरे दिन राणा की शादी रूपकंवर के साथ करा दी गई,,, आज राणा और रूपकंवर की पहली रात थी, और वो सोच रहा था कि आज की रात रूपकंवर को क्या तौफा दूं जो उसे हमेशा मेरी याद दिलाए.....


"फिर वो सोचता है, कल मैं रहूँ या ना रहूँ, लेकिन मेरी याद हमेशा रूपकंवर के पास रहेगी....


फिर सारी रात राणा, रूपकंवर के साथ बहुत सारी बाते करता है, बाते करते-करते रूपकंवर तो सो जाती है, मगर राणा सारी रात उसे अपने ऑखो में लिए बीता देता है ,,,, 


सुबह होते ही राणा जाने के लिए तैयार होने लगता है, तभी रूपकंवर पूछती है, आप सुबह-सुबह कहॉ जा रहे हो, तो वो बोला, मुझे आज ही बॉडर पर जाना है, बॉडर का नाम सुनकर रूपकंवर कहती है, तो आप मुझे कल रात को ही क्यू नहीं बताया, मै आपके जाने की तैयारी करती, तो वो कहता है, मेरे बॉडर पर जाने से तुम्हें कोई परेशानी नहीं है ,,, 


फिर वो बोली परेशानी कैसा, मै तो सब कुछ जान कर आपसे शादी के लिए तैयार हुई तो आज कैसे कह दू की, आपके जाने से मै परेशान हूं, लेकिन वादा करके जाना की बहुत जल्द आप मुझसे आकर मिलोगें, तो राणा कहता है, मै बहुत खुशनसीब हूं, जो तुम मेरे पत्नी के रूप में मिली ,,,, 


  फिर वो पूछती है , आप किस क्षेत्र के बॉर्डर में जा रहे है , तो वो बोला, सुनने में आया है कि पाकिस्तान की सेना काश्मीर के करगिल क्षेत्र में डेरा डाले हुए है , और कब वो जंग शुरू कर देगा, इसके बारे में कुछ पता नही चल रहा है, इसलिए भारतीय सेना भी पूरी तैयारी के साथ जंग लड़ने की तैयारी कर रही है, इसलिए मुझे वहॉ जल्द से जल्द पहुंचना जरूरी है ,,,,,बोलकर 


   "फिर वो कहता है, मै चलता हूं, अगर, भागवन ने चाहा तो हम जल्द ही मिलेगे, तब तक तुम्हारी याद अपने साथ लिए जा रहा हूं , बोलकर वो अपने मॉ-बाबा से बॉर्डर जाने के लिए इजाजत लेता है, और हवेली से निकल पड़ता है....


 जबतक वो कारगिल पहुंचता है तबतक जंग छिड़ चुकी थी , वहां जाने के बाद उसके मेजर ने राणा को, राजपूताना राइफल्स की बटालियन का कप्तान बना दिया गया, फिर वो अपनी बटालियन को लेकर चल पड़ा,,,,,


पाकिस्तान को यहां से खदेड़ने के लिए कश्मीर की चोटियों पर दुश्मन के सेनाओ के साथ युद्ध करना था ,, और राणा अपनी बटालियन के साथ ऊंची चोटी चढ़ने लगा ,,,,,, 


राणा के साथ-साथ और कई कप्तान भी अपनी-अपनी बटालियन के साथ अलग-अगल दिशाओ से ऊंची चोटी चढ़ने लगे....


   " और पाकिस्तानी ऊंची चोटी से नीचे तक जगह-जगह पर खेमें बनाए हुए थे, और जैसे ही भारतीय सेनाओ को ऊपर आते देखे, तो वही से फायरिंग करना शुरू कर दिये , ये देखकर सभी भारतीय सेनाओ ने भी नीचे से फायरिंग करते हुए आगे बढ़ रहे थे....


और इधर राणा अपने बटालियन के साथ रायफल्स चलाते हुए पाकिस्तानी फौज का डटकर सामना किये जा रहा था, अपने साथियों के साथ दुश्मन के बिल्कुल करीब जा पहुंचे था उन्होंने दुश्मन के बंकर में एक हथगोला फेंका। जोर से धमाका हुआ और अंदर से आवाज आई, अल्हा हू अकबर। काफिर का हमला....


     राणा ने दुश्मन का पहला बंकर नष्ट कर दिया था हालांकि फायरिंग में राणा बुरी तरह से जख्मी हो गए था उनके सीने में तीन गोलियां लगी थी, पैर बुरी तरह से जख्मी हो गए थे,, पांच गोलियां लगने के बाद भी राणा ने हिमम्त नहीं हारी और मोर्चे पर डटे रहा बहते खून में राणा ने अकेले ही दुश्मनों के 11 बंकरों में 18 हथगोले फेंके और सारे पाकिस्तानी बंकरों को नष्ट कर दिया.... 


  "और कुछ देर तक गोला बारी करने के बाद, पाकिस्तानी खेमें तक पहुंच जाता है, और चाकू से पाकिस्तान के मेजर का सिर काटकर उसमें तिरंगा फहरा देता है....और अन्ततः राणा और उसके बटालियन के वजह से भारतीय सेना की सबसे पहली जीत हासिल करती है ,, और तिरंगा को सलामी करते-करते अपनी जान दे देता है , और जाते-जाते उसके ऑखो के सामने उसके माँ -बाबा और, रूपकंवर का चेहरा उसके ऑखो के सामने घूमने लगता है, और दूसरी तरफ धरती माँ से कहता है, माँ मै आ रहा हूं तेरी गोद में , फिर हंसते हुए अपनी ऑखे बंद कर लेता है....


आखिरकार राणा अपनी धरती माँ को बचाने के लिए मर मिटता है, फिर भारतीय सेना के मेजर, राणा के बहादुरी पर सलाम करते है ,,,और उसे घर भेजने का बंदोबस्त करते है....

    इसतरह राणा के साथ-साथ सैकड़ों जवानों ने हर क्षेत्रों पर कब्जा करने हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए. थल सेना के साथ सहयोग करते हुए वायु सेना ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस पुण्य कार्य में अपने अदम में शौर्य का परिचय दिया...

मातृभूमि की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता, अदम्य साहस, रण कौशल और जान हथेली पर राख करने वाले बहादुरों के दम पर लगभग 2 माह के युद्ध में भारत ने पाक को अपमानजनक पराजय का मुंह देखने के लिए विवश करते हुए अपनी एक 1-1 इंच भूमि पुनः प्राप्त कर ली....


आखिरकार राणा अपनी धरती माँ के लिए हंसते-हंसते अपने प्रण न्योछावर कर देता है ।


ऐसे वीर सपूतों के लिए मैं जितनी बार नमन करूँ उतना ही कम है !



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