Reena Srivastava

Tragedy

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Reena Srivastava

Tragedy

सती प्रथा

सती प्रथा

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सती प्रथा सनातन समाज के लिए एक ऐसी कुप्रथा थी जो समाज के लिए एक कलंक थी । इस प्रथा के अनुसार जब उसके पति की मृत्यु हो जाती है ,तो उसकी पत्नी को पति के साथ चिता में बैठा दिया जाता था ।सती प्रथा राजा ,महाराजा के यहॉ से शुरू होकर हर गॉव हर कस्बे मे प्रचलित हो गई , लोग इस प्रथा को धर्म का नाम देने लगे ,और धर्म के नाम पर औरतों के साथ अन्याय करते रहे।


पहले जमाने मे राज -महाराजा जब युद्ध मे मारे जाते तो उनकी पत्नियॉ अपनी मर्जी से आत्मदाह कर लेती थी । यही आत्मदाह आगे चलकर हमारे समाज के हर सनातन धर्म में जिनके पति मर जाते ,उनकी पत्नियो को चाहे उसकी मर्जी हो या ना हो ,उसे सती होने पर मजबूर किया जाता था।


सती प्रथा की शुरुआत 510 ईसवी से शुरू होकर 18वीं शताब्दि तक जोरशोर से चली । जबकी 18वीं शताब्दी मे बीट्रिस शासक भी इस प्रथा को गलत मानती थी उसी समय ही 4 दिसंबर 1829 ईसवी में ही भारतीय समाज सुधारक राजा राम मोहन राय और बीट्रिस शासक लॉर्ड विलियम बेंटिक की आगुवाई  पर भारत मे सती प्रथा पर पुरी कानूनी तरह से रोक लगा दी गई थी। ये कहानी वास्तविक धटनाओ पर अधारित है ,जिसे काल्पनिक करके लिख रही हूं ,इस कहानी मे सबके नाम और जगह बदल दिये गए है "!

    

ये कहानी रूपवती की है । जो जबलपुर में रहती है ,उसके पिता भीम सिंह राठौर ,जबलपुर के एक गॉव के जमींदार थे । भीम सिंह के पॉच बच्चे थे ,जिसमे तीन बेटी और दो बेटे थे ,तीनो बहनो का नाम संपदा रुकमणी,रूपवती ,और भाई का नाम सूर्यभान सिंह और प्रताप सिंह था ।


रूपवती भाई बहनों मे सबसे छोटी थी । दिखने मे जितनी सुंदर उतनी ही चंचल स्वाभाव की भी थी !रूपवती की सभी भाई-बहनों की शादी हो चुकी थी ,सिर्फ रूपवती की शादी नही हुई थी ! 


रूपवती के लिए भी लड़के देखे जा रहे थे । फिर अचानक से एक दिन रूपवती की बड़ी बहन संपदा के पति की मृत्यु की खबर मिलती है ! रूपवती के सभी घर वाले संपदा के ससुराल पहुंचते है ।वहॉ जाते ही रूपवती देखती है कि संपदा को दुल्हन  की तरह सजाया जा रहा है ! 


ये सब देखकर रूपवती को थोड़ा अजीब लगा वो अपनी दूसरी बहन रुकमणी से पूछती हैं ,दीदी ये लोग बड़ी दीदी को दुल्हन की तरह क्यू सजा रहे है ,तो रुक्मणी कहती है , तेरी अभी शादी नही हुई है ना तुझे समझ मे नही आएगी तुम मूंह बंद रखना कुछ बोलना मत, बोलकर रुकमणी रूपवती को दूसरे कमरे मे लेजाकर बैठा देती है ,और बोलती है ,चाहे कुछ भी हो जाए कमरे से बाहर मत निकलना रूपवती को कमरे मे छोड़कर रुकमणी बाहर चली जाती है 


फिर कुछ देर के बाद ढोल - नगाड़े की बजने की आवाज आने लगती है ,वो सोचने लगती है इतने जोर-जोर से ढोल-नागाड़े क्यू बजाय जा रहे है ,रूपवती रूम की खिड़की से बाहर देखने लगती है , फिर कुछ पंड़ित मंत्र उच्चारण करने लगे और उसकी बड़ी दीदी को पंड़ित शपथ ग्रहण कराने लगे कि ---------[ मै अपनी स्वेच्छा से अपने पति साथ सती हो रही हूं । ] 


रूपवती की बड़ी दीदी संपदा के साथ जबरन सभी लोग मिलकर ये शपथ ग्रहण करवा रहे थे ,कुछ औरतें संपदा को जबरजस्ती पकड़ी हुई थी । और वो उनलोगो से अपने-आप को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी । बार-बार कह रही थी ,कि मुझे छोड़ दो ,मुझे जाने दो ,मै आग मे नही जलना चहती और बोल -बोलकर जोर-जोर से रोए जा रही थी ।रूपवती को समझ मे नही आ रहा था कि उसकी दीदी ऐसा क्यू कह रही है कि उसे आग मे नही जलना है ।


फिर सभी औरतें संपदा को जबरजस्ती पकड़कर लेजाने लगी देखते -देखते पूरे गॉव के लोग इकट्ठा होने लगे और उस भीड़ मे रूपवती के पिताजी , भाई , बहन ,बहनोई भाभी सभी घरवाले भी शामिल थे ।


फिर रूपवती सोचने लगी जब सभीलोग दीदी के साथ जा रहे है ,तो मै इस कमरे मे क्या कर रही हूं ,सोचकर कमरे से बाहर निकल कर भीड़ मैं शमिल हो गई ।


रूपवती देखती है कि ,कुछ लोग ढोल-नागाड़े बजाते हुए आगे-आगे चल रहे है ,उसके पीछे ढ़ेर सारे पंड़ित-पुरोहित  उसकी दीदी संपदा और जीजा जी के साथ-साथ पूरे गॉव मे घुमा  रहे है ,रूपवती उस भीड़ मे सबसे पीछे चल रही थी 


पूरे गॉव मे घूमने के बाद उसकी दीदी और जीजा जी को शमशान ले जाया गया ।उसके बाद अंतिम-संस्कार करने की विधि शुरू हो गई । 


पूरे विधि-विधान के साथ लकड़ियो के ढ़ेर मे पहले संपदा को जबरजस्ती बैठाया गया और कुछ लोग उसे जबरन पकड़ कर बैठाय हुए थे ,उसके बाद संपदा के पति की मृत शरीर के सिर का हिस्सा संपदा के गोद मे रख दिया गया ।और जो लोग संपदा को पकड़े हुए थे । 


उसे बार-बार कहे जा रहे थे कि हाथ जोड़कर माता सती का नमन करे ,मगर वो इतनी डरी हुई थी की उसे समझ मे नही आ रहा था, कि वो क्या करें और क्या ना करें ,संपदा अपने भाई और पिताजी को इसतरह देख रही थी ,मानो वो कह रही हो वे आकर उसे वहॉ से हटा दे ,मगर सबके चेहरे नीचे की ओर झुके हुए थे कोई उसके तरफ देख तक नही रहे थे ।


रूपवती अपनी दीदी को इस हाल मे देखकर बहुत बैचेन हो रही थी ,उसे समझ मे नही आ रहा था कि सबलोग उसके दीदी के साथ क्या करने वाले है ।


रूपवती की हालत तब और खराब हो गई ,जब अपनी बहन को जीजा जी के साथ जलते देखी ,उसकी बहन चिल्ला रही थी ,कह रही थी मुझे यहॉ से जाने दो ,वो बार-बार वहॉ से चिता से उठने की कोशिश कर रही थी मगर कुछ लोग संपदा को लकड़ी से दबा कर बैठाए हुए थे ,और संपदा अपने पति के लाश के साथ जल रही थी और ढोल-नगाड़े इतने जोर-जोर से बजाए जा रहे थे कि संपदा की चिखने की आवाज किसी के कानो तक नही पहुंच  रही थी ।


ये सब देखकर रूपवती जोर से चिल्लाकर बोलने लगी। दीदी को वहॉ से निकालो -निकालो बोलते-बोलते बेहोश होकर गिर जाती है । 


रूपवती की दूसरी बहन रुकमणी दौड़कर आती है ।और उसे संभाल लेती है । फिर उसे कुछ लोग उठाकर घर ले जाते है ।और होश मे लाने की कोशिश करने लगते है । 


रूपवती को जब होश आया तो वो चिल्लाकर जोर-जोर से रोने लगी और दीदी को किसी ने क्यू नही बचाया ।और अपने परिवार को कोसने लगी ।और बोलने लगी आप सबलोग दीदी के हत्यारे हो ,आपलोग ने क्यू नही बचाया दीदी को जानबूझकर आपलोग मरने के लिए छोड़ दिये। सारे लोग उसे शांत कराने की कोशिश करते रहे ,मगर वो बोलते रही ।


इधर भानु सिंह जो संपदा का देवर है ,वो बहुत बड़ा समाज सुधारक था ,और समाज मे हो रहे हर गलत प्रथा के खिलाफ आवाज उठाता था ,जिसके वजह से उसके घर वाले उसके खिलाफ रहा करते थे ,सिर्फ एक संपदा ही थी जो उसका साथ देती थी ।और भानुसिंह से कहा करती थी कि समाज मे हो रहे गलत प्रथा जिसमे सती प्रथा एक थी उसे किसी तरह बंद कराया जाए ,और भानु सिंह अपनी भाभी से कहा करता था कि ,एक दिन मैं समाज में प्रथा के नाम पर हो रहे अत्याचार को जरूर बंद कराके रहूगॉ ।


पर भानुसिह को क्या पता था ,कि जो भाभी हमेशा उसका साथ दिया करती थी ,आज उसी भाभी को सती प्रथा के नाम पर बलि चढ़ना पड़ा ।


जब संपदा के साथ ये सब हो रहा था, उस समय भानु सिंह वहॉ नही था ,वो उस गॉव से बाहर गया हुआ था ,जब उसे पता चला वो भागा-भागा गॉव पहुंचा ,लेकिन जबतक वो पहुंचा तबतक संपदा सती प्रथा की बली चढ़ चुकी थी ,फिर वो गुस्से मै आकर पूरे गॉव वाले के सामने शपथ लेता है कि जबतक वो इस सती प्रथा पर पंबद नही लगा देता तबतक वो चैन से नही बैठेगा ।ये सब देखकर संपदा का देवर ,भानु सिंह को अपनी भाभी के लिए बहुत पछतावा हो रहा था ।मगर वो चाह कर भी कुछ नही कर पया और जब रूपवती को इस हाल मे देखा तो अपने-आप को कोस रहा था कि वो कुछ क्यू नही कर पाया ।


फिर वो भी रूपवती के साथ-साथ संपदा के मायके वालो को भला -बुरा सुनने लगा ,और बोला आपलोग कैसे भाई-बाप है जो अपने ऑखो के सामने आपकी बेटी के साथ ये सब होता रहा और आपलोग कुछ नही किये ।


तभी रूपवती के भाई कहते है ,हमे अपनी बहन पर गर्व है कि वो सती हो कर पवित्र हो गई ।और इस प्रथा को निभाकर हमारी मान सम्मान को बनाए रखें ।


फिर रूपवती अपने भाईयो से कहती है ,कि कैसा मान सम्मान जो अपनी बहन को आग मे झुलसने के लिए छोड़ दे ,और ये कहे कि मेरा मान सम्मान बढ़ गया ,छी मुझे आपलोग से घृणित हो रही है ,मैं आपलोग की बहन हूं । 

आपलोगो की बहन बेटी होने से अच्छा था कि मै भी दीदी के साथ आग मे झूलस कर मर जाती ।


फिर रूपवती भानुसिह के पास जाकर कहती है ,मै आपसे हाथ जोड़कर विनती कर रही हूं ,मुझे मेरे घर छोड़ दीजिए मैं यहॉ एक मिनट भी नही रहना चाहती हूं ,मेरा यहॉ दम घुट रहा है ,मैं आपके घरवालो के साथ-साथ अपने घर वालो का भी चेहरा नही देखना चाहती हूं ,इसलिए मै आपसे कहने आयी हूं कि मुझे घर छोड़  दीजिए ।  

भानुसिह रूपवती को दिलासा देते है ,और कहता है ,रूपवती आप निश्चित रहे मै अपनी भाभी का बदला इन समाज के ठेकेदारों से जरूर लूंगा ।चलिए मै आपको आपके घर छोड़ आता हूं ।वेसे भी अब ये घर रहने लायक नही रह गया है ।बोलकर भानुसिंह रूपवती को लेकर उसके घर के लिए निकल पड़ता है । 


रास्ते मे भानुसिह रूपवती से कहता है ,मै आपकी दर्द को अच्छी तरह से समझ सकता हूं ,जितना दर्द आपको आपकी बहन के लिए हो रहा है उतना मुझे भी हो रहा है ,मै आपसे वादा करता हूं ,मै इस प्रथा को खत्म करके ही रहूंगा ।


भानुसिंह रूपवती को उसके घर छोड़कर  अपने घर के लिए निकल जाता है ,और इधर रूपवती अपने कमरे मे जाकर कमरा को बंद कर, लेती है ,और अपनी बहन को याद करके रोने लगती है ।


कुछ देर के बाद रूपवती के घरवाले भी पहुंच जाते है ,और रूपवती को दरवाजा खोलने के लिए आवाज लगाते है ,मगर रूपवती दरवाजा नही खोलती है ,फिर रूपवती चिल्लाकर कहती है , आप सब जाव यहॉ से मुझे किसी का भी चेहरा नही देखना है ,आज से मैं भी आपलोग के लिए सती हो गई ।


अन्दर ही अन्दर ये बात रूपवती को खाए जा रहा था कि वो अपनी बहन को नही बचा पायी । सोच-सोचकर रूपवती जोर-जोर से रोने लगती हैं ।


कई दिनो तक वो कमरे से बाहर ही नहीं निकलती है ,, सारे घर वाले उसके लिए परेशान हो रहे थे । सभी घर वाले यही सोच रहे थे कि कैसे रूपवती को इस सदमे से बाहर निकाला जाए ।


पर किसी को कुछ समझ ही नही आ रहा था ,क्योंकि रूपवती किसी का चेहरा तक नही देखना चाह रही थी इस वजह से घर के लोग उससे कुछ बात ही नही कर पा रहे थे ।


रूपवती के मन मे सिर्फ एक ही बात चल रही थी । आज जब उसके बहन के साथ हुआ , वो कल मेरे साथ भी हो सकता है ।


फिर बहुत सोचने के बाद वो एक फैसला लेती है की वो जिन्दगी भर शादी नही करेगी , और एक समाज सेविका के रूप मे सती प्रथा को खत्म करने का प्रयास करेगी ।


कुछ दिनो के बाद वो अपने घर से दूर एक आश्रम मे जाकर रहने लगी और वही से अन्य औरतों के साथ समाज मे हो रहे सती प्रथा के अत्याचार को खत्म करने का प्रयास करने लगी ।


उसके इस कार्य मे आश्रम के सभी औरतें और भानुसिंह रूपवती का साथ देने लगे ।


इसतरह सती प्रथा को खत्म करने का कार्य को आगे बढ़ाते रहे ।और उनकी ये लड़ाई समाज के ठेकेदारों के साथ चलते रही ।


जब तक रूपवती जिन्दा थी ,तबतक सती प्रथा के लिए लड़ते रही ।

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खैर ये तो थी रूपवती की कहानी । लेकिन सती प्रथा कानूनी रूप से खत्म होने के बाद भी समाज के कुछ ऐसे ठेकेदार जो इस सती प्रथा को बनाए रखे हुए थे । जिसकी वजह से ना जाने कितनी ही औरतें सती प्रथा की बलि चढ़ चुकी थी ।


    



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