Reena Srivastava

Tragedy

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Reena Srivastava

Tragedy

बोझ होती है बेटियां

बोझ होती है बेटियां

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"तू बेटी है बेटा बनने की कोशिश ना कर अगर घर से बाहर पैर रखने की कोशिश की, तो पैर कॉट कर हाथ में दे दूंगी ! ये शब्द जमना अपनी बेटियों के लिए निकालती है "!

"चलिए शुरू करते है कहानी कि ये जमना कौन है, और अपनी बेटियो को क्यों ऐसा कह रही थी ! 

"वैसे हमारे भारत में चाहे वो शहर हो या गाँव, हर जगह बेटा और बेटी मेफर्क किया जाता है ! फिल्हाल ये कहानी एक गाँव की है "!

"एक गाँव था, जहॉ जमना अपने पति हरिराम ,आठ बेटी और तीन बेटे के साथ रहती थी ! जमना बेटा की चाहत में आठ बेटी को पैदा कर डालती है ! उसके लिए बेटा भगवान और बेटी पाँव की जूती थी ! "

"जमना को पहले पॉच बेटी के बाद एक बेटा हुआ !जब उसे बेटा हुआ तो वो फूले नहीं समाई, हरिराम भी बेटा होने की खुशी में सारे गाँव में मिठाई बाँटा"!

"उसके कुछ दिन के बाद जमना को ऐसा लगा कि, जब मेरा बेटा हो सकता है तो क्यू ना और बेटा किया जाऐ ! ये सोचकर वो फिर बच्चा करने का सोचती है, जब वो गर्भवती हुई तो वो बहुत खुश हुई कि इसबार भी उसे बेटा ही होगा, इस बात से वो बहुत खुश रहा करती थी, मगर जब बच्चा हुआ तो, बेटा के जगह उसे फिर बेटी हो गई ,इस बात से उसका मन बहुत दुखी हो गया फिर भी वो हार नहीं मानी "!

"फिर बेटे की चाह में दो बेटी और हो गई ,तब जाकर उसे दो बेटा और हुआ ! कुल मिलाकर जमना को आठ बेटी और तीन बेटा हो जाता है "!

 "वो हमेशा अपनी बेटियो के साथ दुर्व्यवहार किया करती थी!और बेटो को माथे पर चढ़ाकर रखती थी ! जहॉ एक तरफ बेटो को स्कूल भेजती और बेटीयो को दिनभर घर का काम कराया करती "! 

 "एक दिन की बात है ! जमना की बडी बेटी अंजू और मंजू माँ से आकर कहती है ! माँ हमलोग घर का सारा काम कर लेगे, तुम बाकी सभी बहनो को भी भाई के साथ स्कूल जाने दो उनलोग भी कुछ पढ़ लिख लेगी "!

"अंजू की बात सुनकर जमना ऊंची आवाज में बोली, तेरी हिम्मत कैसे हुई ये बात करने की अब तुमलोग अपनी बराबरी अपने भाइयों के साथ करोगी, अरे बेटा भगवान होवे है और, बेटी पाँव की जूती !आखिर तुमलोग के मन में ये बात कहॉ से आयी" !

 "तो मंजू बोली, माँ सामने वाली काकी की बेटी को स्कूलजाते देखा, तो सोची की हमदोनो ना पढ़ सके तो क्या हुआ कम से कम हमारी छोटी बहनें पढ़ाई कर लेगी" !

"जमना बोली इसलिए तुमलोग ने सोचा कि जाकर इस बारे में माँ से बात करू ,मगर सुन छोरी उसके घर और हमारे घर में अंतर है, हमारे घर की बेटियाँ घर से बाहर पॉव ना रखे है, अगर घर से बाहर पॉव रखने की कोशिश की तो तुमलोगो के पॉव काटकर हाथ मे दूंगी समझी, अब जा यहॉ से जाकर जल्दी खाना बना तेरे भाईयो का स्कूल से आने का समय हो गया है, अगर खाना समय से तैयार नहीं हुआ तो तुम सब बहनो को मै आज भूखी रखूंगी बोलकर जमना अपने छोटे बेटे के साथ खेलने लगी "!

"और इधर अंजू और मंजू रसोई में आकर खाना बनाने लगी, तभी मंजू, ,, अंजू, , से बोली दीदी क्या हमारी बहने हमलोग की तरह अनपढ़ रहेगी। उनलोग से भी घर के चूल्हा ,चौका कराया जाएगा, हम बहनो की किस्मत इतनी खराब क्यू है दिदि, उधर बाहर देखो, छोटा बाबु को चरपाई पर लेटाई हुई है ! और छोटी को खाली जमीन पर छोड़ दी है ! आखिर माँ हमलोग के साथ एसा क्यू करती है, हमलोग भी तो उसकी ही औलाद है ना !

 "अंजू बोली,,, तू अपने मन में ये सब बात मत ला, हमसब एक ही माँ के औलाद है समझी, अब ज्यादा बाते ना कर जल्दी-जल्दी कम कर नहीं तो फिर माँ की डॉट सुन्नी पड़ेगी, फिर दोनो बहन मिलकर खाना बनाने लगी !

 "एक दिन गाँव में ऐसा महामारी फैला की उसकी चपेट में गाँव का हर घर आ गया ! जमना का दूसरा बेटा बिमार पड़ गया ! उसकी तबीयत इतनी खराब थी कि संभल नहीं रही थी ! हरिराम अपने बेटे को डॉक्टर के पास ले गया लेकिन डॉक्टर भी जवाब दे दिये कि अब इसका इलाज यहॉ संभव नहीं है इसे शहर लेजाना पड़ेगा !

 "हरिराम और जमना अपने बेटे को लेकर शहर के लिए निकल गए मगर आधे रास्ते में ही उसके बेटे ने दम तोड़ दी फिर दोनो अपने बेटे को लेकर घर वापस आ गये !उसके बाद बेटे के जाने के गम में जमना का गुस्सा खुद कि बेटियो पर निकालना शुरू कर दी !वो रोज अपने बेटियो से कहती, हे भगवान कैसा तेरा न्याय है ! मेरे बेटे के जगह मेरी बेटियो को उठा लेता तो कम से कम मेरे माथे से एक बोझ तो कम हो जाती ! अरे बेटे तो बुढ़ापे का सहारा होवे है मगर बेटियाँ बोझ। सहारे को तो तुने छीन लिया बोझ को भी उठा ले बड़ी कृपा होगी हमारे ऊपर ! जमना रोज भगवान से ये बात बोलती, और बोल-बोल कर अपने मन को संतुष्ट करती "!

 " बेटियो को अपनी माँ के मूंह से ये बात सुनना अच्छा नहीं लगता था मगर क्या करे, माँ की बात सुनने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं था" !

 " धीरे-धीरे समया निकलता चला गया मगर जमना का अपने बेटियो को लेकर उसका व्यवहार वैसा का वैसा ही रहा उसमें कभी कोई बदलाव नहीं आया !और अब सभी बच्चे बड़े हो गए थे। हरिराम पॉच बेटियो की शादी पन्द्रह-सोलह साल में ही कही ना कही करा चुका था" !

"एक दिन की बात है, जमना का दूसरा वाला बेटा अपनी छोटी बहन के साथ रसोई में खेल रहा था ! और रात का समय था, और दो बेटियाँ रोटी बना रही थी जमना का बेटा खेलते-खेलते अपनी बहन को चूल्हे में ढकेल देता है, जिससे उसका पुरा चेहरा जल जाता है फिर उसकी दोनो बड़ी बहन उसके चेहरे पर पानी मरने लगती है ! मगर जलन से वो रोने लगती है, आवाज सुनकर जमना रसोई में आती है, और जब उसे सब-कुछ पता चलता है तो वो बेटी को देखने के बजाय अपने बेटे को देखती है कि कही बेटा तो नहीं जल गया ,फिर अपनी बेटियों को ही डांट लगाती है, कि अगर मेरा बेटा जल जाता तो तुमलोग को इसी चूल्हे में डाल देती, बोलकर बेटा को लेकर बाहर चली जाती है !

 "उसने इतना भी जरूरी नहीं समझा की वो अपनी बेटी को भी देख ले, और उसकी बेटी जलन से तड़प रही थी, थोड़ी देर बाद हरिराम आया और बेटी की ये हालत देखा तो उसे तुरंतडॉक्टर के पास ले गया, डॉक्टर बहुत देर तक बर्फ का पानी उसके चेहरे में डालता रहा, ,, जब जलन कम हुआ डॉक्टर उसके चेहरे पर मलहम लगाकर घर भेज दिया "!

 "जमना का बेटियो को लेकर जो व्यवहार था वो हरिराम को पंसद नहीं आता था मगर क्या करे, वो चहकर भी कुछ नहीं कर पाता था, उससे जितना हो पाता था वो अपनी बेटियो के लिए करता था" !

"समय आगे बढ़ता रहा, मगर जमना में कोई बदलाव नहीं आया धीरे-धीरे सब बेटियों और बेटों की शादी हो गई ,बेटियां अपने ससुराल चली गई और बेटे गाँव से बाहर कमाने निकल गए , साथ में अपनी पत्नि को भी साथ ले गए "।

" समय बितता चला गया और देखते -देखते हरिराम कि भी मृत्यु हो गई , अब बच गई जमना अकेली, जो घर बच्चो के आवाज से गुंजा करता था, आज वो घर सुनसान हो चला था, अब जमना भी बूढ़ी हो चली थी, मगर उसका देखरेख करने के लिए उसके पास कोई नहीं था "!

 "जिन बेटों पर उसे घंमड था, वो बेटे अपनी माँ को पूछने तक नहीं आते, कि माँ कैसी हो, और ना अपने साथ उसे ले जाते" !

"मगर दूसरी ओर वही बेटियां जो जिन्दगी भर उसके लिए बोझ थी आज वही बेटियां परा -पारी करके अपनी माँ का देखभाल करने आती" !

 "जब बेटियो को अपनी सेवा करती देखती तो आत्मग्लानि से भर जाती, और आँखों से आँसू निकल जाते और सोचती की जिन बेटियो को मरने तक का मनाती थी, और बेटो को माथे पर चढ़ाकर रखती थी, आज वही बेटे मुझे देखने तक नहीं आते है !और जिसे कभी देखना नहीं चहा वही लोग आज मेरा सेवा कर रही है "!

"इसलिए कहां जाता है कि बेटा हो या बेटी दोनो को एक समानता देनी चाहिए ! कल को कौन औलाद अपने माँ-बाप के साथ क्या करेगा ये हममें से किसी को पता नहींं होता "!

इसीलिए हर माँ-बाप को चहिए की वो बेटा हो या बेटी दोनो को एक समान समझे "!

यह कहानी वास्तविकता पर लिखी हुई है जो मेरे पास के ही पड़ोस में घट चुकी थी आशा है आप लोग को पसंद आएगी कृपया कर कमेंट जरूर करें कि आप लोगों कहानी कैसी लगी "।


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