बेड़ियां
बेड़ियां
कहते हैं पन्छियों को उड़ना सिखाने की जरूरत नहीं होती... वे खुद ब खुद उड़ना सीख लेते है, बशर्ते उन के पर न काटे जायें.. कुछ ऐसा ही हम स्त्रियों के साथ भी होता हैl
हम अपने आप में हर प्रकार से सक्षम होती हैं। जीवन में कुछ करने के लिए... आगेे बढ़ने के लिए... हमें किसी के सहारे की जरूरत नहीं होतीl ईश्वर ने हमें इतनी शक्ति प्रदान की है कि हम जिस भी राह पर, जिस भी क्षेत्र में चाहे आगे बढ़ सकती हैं... बशर्ते हमें उड़ने से न रोका जाएl कोई साथ न दे तो न सही, पर कम से कम हमारी राह में रुकावट तो न खड़ी की जाएl हमारे समाज में आज नारी सशक्तिकरण की बात तो हम सब करते हैं, पर क्या आज भी नारी सच में सशक्त है... शायद नहींl आज भी हम एक लड़की को जन्म से ही सपने देखना, समाज में एक सफ़ल मुकाम हासिल करने की उम्मीदें करना तो सिखा देते हैं, पर जब उसके सपने पूरे होने का समय आता है तो यही समाज, यहाँ तक कि उसका स्वयं का परिवार उस के रास्ते का सब से बड़ा पत्थर बन जाता है और अधिकांशतः लड़कियाँ इस पत्थर को अपनी राह से हटाने की कोशिश नहीं कर पाती और उनके सपने, उनके ख्वाब सब एक झटके में इस पत्थर से टकरा कर लहुलुहान हो जाते हैं और पड़े रहते हैं उनके आसपास ही जिंदगी भरl
ऐसा भी नहीं होता कि वे इस पत्थर को हटाने में सक्षम नहीं होतीं, वे चाहे तो आसानी से अपने सपनों और इन रुकावट पैदा करने वालों में से किसी एक को चुन सकती हैं, पर वे नहीं कर पातींl वे उन लोगों का दिल नहीं दुखा पाती, जिन लोगों ने आज तक कभी उस के दिल की आवाज नहीं सुनी हैl
हालांकि कुछ लड़कियाँ अपने सपनों की मंजिल पा भी लेती हैं, कुछ अपने अपनों के साथ तो कुछ अपनों के बिना, पर ऐसा हर बार नहीं होताl
अधिकतर तो हम लड़कियाँ हमारे अपनों के द्वारा ही छली जाती हैंl कहते हैं न इंसान संसार से लड़ सकता है पर अपनों से नहींl और फ़िर हार कर हमें अपने हथियार डालने ही पड़ते हैंl
सदी कोई भी हो, जमाना कोई भी हो, पर ऐसा ही होता आया है हर बारl ऐसा ही हुआ है आज भी, आज फ़िर इस समाज ने, यहाँ के लोगों ने एक लड़की के सपनों को कुचल डाला और डाल दी उस के पैरों में बेड़ियां मजबूरियों कीl
एक लड़की स्वच्छंद सी, खुले विचारोंवाली पर अपने संस्कारों से भी प्यार करती थीl चाहती थी अपने सपनों को पूरा करना, पर अपने माता-पिता का भी मान करती थीl नन्दिनी नाम था उस का, बचपन से ही नन्दिनी पढाई में अत्यंत रुचि लेती थीl जिस अवस्था में बाकि बच्चे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खिलौनों से खेला करते थे, वह अपने से कम उम्र के बच्चों को पढ़ाया करती थी, जिस उम्र में लड़कियाँ प्यार-मोहब्बत के सपने देखा करती हैं, वह कुछ बनने के सपने देखा करती थी और इन्ही सपनो को लिये एक छोटे से कस्बे से निकल कर वह दिल्ली के मुखर्जी नगर आ गयी, जहाँ से कोचिंग ले कर वह आईएएस ओफ़िसर बनना चाहती थीl घर-परिवार अच्छा था उस का, कोई कमी नहीं थीl तीन भाइयों और दो बहनों में वह सब से छोटी थी, लाडली भी थी सब की, शायद इसीलिये परिवार वालों ने उसे दिल्ली जाने की इजाज़त दे दीl यहीं मुखर्जी नगर में ही उस के चाचा जी भी रहते हैं तो शायद ये भी एक वजह रही होगी, जो घर वाले इतनी आसानी से उसे दिल्ली भेजने के लिए मान गयेl हालांकि उस के चाचा जी और उनका परिवार यहीं था फ़िर भी उसने एक रूम लिया और अकेले ही रहने लगी, क्योंकि वह यहाँ कुछ बनने के लिए आई थी और रात दिन बस पढाई में मन लगाना चाहती थीl वह घंटों तक लगातार पढ़ती रहतीl राजनीति में उस की गहरी रुचि थी, देशभक्ति की भावना उस के अंदर कूट कूट कर भरी हुई थीl प्रेम प्यार के गीत लिखने की उम्र में वह देशभक्ति की कविताएँ लिखा करती थी, श्रृन्गार रस लिखने की अवस्था में वह वीर रस लिखा करती थीl साहस तो इतना था कि जब मन होता, अकेले ही कहीं भी निकल जाती, अकेले कमरे में मन ऊब जाता तो सेन्ट्रल पार्क के बगीचे में बैठ कर अपनी पढ़ाई करती या कविताएँ लिखतीl बिल्कुल बच्चों की तरह मासूम और भोली थी वह...एक नन्ही मुन्नी चिड़िया सी, जो जब चाहे तब कहीं भी फ़ुदक कर कर बैठ जाए, जिसे न कोई भी रोक पाए न टोक पाए.. पर थी वह सब से अलगl कुछ कर दिखाने का जो जज़्बा उस में था, वह आजकल की युवा पीढी में गायब ही रहता हैl धीरे धीरे नन्दिनी अपनी लेखन कला के दम पर विभिन्न मन्चों से जुड़ने लगी थीl लोगों को उस की कविताएं बहुत पसंद आती थीं, उसने एक दो प्रेरणात्मक किताबें भी लिखींl परीक्षा की तैयारी भी साथ साथ चल रही थीl पर उस के हौसले अभी और ऊँची उडान भरने की तैयारी कर रहे थे, उस की आंखें अभी नये नये ख्वाब बुन रही थीl
अचानक ही उस के मन में विचार आया और अपने मित्रों व सहयोगियों की मदद से एक टीम तैयार की और एक पत्रिका शुरू करने की रुपरेखा तैयार कीl यह उस का नया सपना था,जो वह आँखो में बसा चुकी थी...वह इस पत्रिका के माध्यम से देश के हर कस्बे हर एक छोटे से छोटे गाँव तक ज्ञान और देशभक्ति की गंगा बहाना चाहती थी। वह पूरे जी जान से इस सपने को पूरा करने में जुट चुकी थीl शुरुआत में सब अच्छा रहा पर जैसे ही घर वालों तक यह बात पहुँची, तो परिवारजनों को उसका सपने देखना और अपने सपनों को पूरा करने के लि
ए जी जान लगाना पसंद नहीं आयाl क्योंकि वे जानते थे कि इन सपनों को देखने का कोई लाभ नहीं अन्ततः तो साधारण लड़कियों की तरह उसे भी घर ग्रहस्थी ही सम्भालनी है सो उसे अन्य बातों को छोड़ कर सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान लगाने का आदेश मिल गयाl
परंतु जब आँखो को सपने देखने की आदत हो जाए तो मन मचल ही उठता है उन सपनों को पूरा करने के लिएl कुछ ऐसा ही उस के साथ भी हो रहा था, वह लीक से हट कर कुछ करना चाहती थी, वह अपनी पत्रिका के द्वारा जन जन के मन में देशभक्ति की लौ जलाना चाहती थी, प्रत्येक भारतीय को जागरूक करना चाहती थी, लेकिन उस के परिवार वालों के लिए उस के सपनों का कोई महत्त्व नहीं थाl उन्होंने तो जैसे उस पर एक अहसान किया था जो उसे आईएएस की परीक्षा देने का अवसर दिया और जब उन्हें आभास हुआ कि नन्दिनी के हौसले केवल एक परीक्षा तक ही सीमित नहीं रह सकते, तो उन्हें भय सताने लगा, वही भय जो इस समाज में अधिकांश लोगों को होता है... एक लड़की के आगे निकल जाने का भय, उस के सपने पूरे हो जाने का भयl अब उस के माता-पिता बात बात पर उस से बात बात पर उस से पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर वापस आने के लिए कहने लगे, पर नन्दिनी भी कहाँ मानने वाली थी, वह नहीं झुकीl माता पिता को यह गँवारा नहीं हुआ तो उसे जेब खर्च देना बंद कर दिया यह सोच कर कि खर्च उठाने के लिए पैसे नहीं होंगे तो हार कर उसे घर वापस लौटना ही पड़ेगा, पर ऐसा नहीं हुआl
एक दो बार छुट्टियों में घर गयी तो उसे पता चला कि माँ-बाप उस का विवाह कराने के लिए लड़का तलाश रहे हैं, अपने सपनों का महल उसे अपनी आँखों के सामने ढहता हुआ प्रतीत हुआl हालांकि वह भाई-बहनों में सब से छोटी थी और पिता जी के सामने किसी को भी बोलने की अनुमति नहीं थी, पर फ़िर भी उस ने अपने लिए आवाज़ उठाने की पूरी कोशिश कीl घर में किसी ने उस का साथ नहीं दिया, उल्टा सब ने ताने उलाहने दिये कि पिता जी के सामने जुबान चलाती है... क्या इसी दिन के लिए तुझे पढाया लिखाया थाl मां ने भी अपना पक्ष रखा..क्या इसीलिये तुझे नौ महीने कोख में रखा थाl नन्दिनी को समझ नहीं आ रहा था, वह क्या करेl अभी से शादी, पति, बच्चे... ये उसकी दुनिया नहीं थी, उसे तो अभी अपने लिए बहुत कुछ करना था, अपने देश के लिए बहुत कुछ करना थाl पर किसे समझाए वह... जन्म देनेवाली माँ उसे नहीं समझ पा रही, जिनकी उंगली पकड़ कर चलना सीखी... वह पिता उसे नहीं समझ पा रहे, जिन भाई-बहनों के साथ अब तक जीवन का हर पल बिताया... वे भाई-बहन भी नहीं समझ पा रहे आज लग रहा है जैसे हर कोई पराया है, मानो लड़की के रूप में जन्म लेना ही उस के लिए अभिशाप हैl उससे बड़े दो भाई हैं, जो अभी तक अविवाहित हैं, लेकिन विवाह पहले नन्दिनी का होना आवश्यक है क्योंकि वह एक लड़की है, अधिक समय तक अविवाहित रहे तो क्या कहेंगे समाज, बिरादरीवालेl उस पर विवाह भी ऐसी जगह जहाँ लड़का पढा लिखा है या क्या नौकरी करता है...इस से कोई सरोकार नहीं बस घर जमीन जायदाद बढिया होनी चाहिएl
सोच सोच कर उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा, लगा जैसे सब खत्म हो गयाl अशान्त और व्याकुल मन के साथ वह पीजी लौट आई l परीक्षा आने वाली थीं, इस लिए वह सब कुछ भूल कर पढाई में मन लगाने लगी।
पर दुर्भाग्य जो न कराए वह थोडा है l परिवार से तो आर्थिक मदद मिलनी पहले ही बंद हो गई थी, छिप छिपा कर दादा जी हर महीने उसे कुछ पैसे भेज देते थेl पिताजी को पता चल गया तो दो महीने से वे भी बंद करा दिएl सारा खर्च वह स्वयं ही किसी तरह उठा रही थीl लेकिन अब उस का मन पढने में नहीं लग रहा थाl हर समय बस यही सोचती रहती कि इस इक्कीसवीं सदी में भी वह लड़की होने की कैसी सजा भुगत रही है और क्यों....? हर समय अब वह इसी तनावपूर्ण स्थिति से घिरी रहतीl दिन रात सोचने पर भी वह निर्णय नहीं ले पा रही थी कि वह क्या करे...क्या माँ-बाप के कहे अनुसार शादी ग्रहस्थी में फ़ँस जाए, लेकिन उसके बाद क्या...? हो सकता है कि पति अच्छी सोच वाला हो और उस के सपनों का मोल समझ जाए, पर अगर ऐसा नहीं हुआ तो.... तो मैं क्या करूंगीl यूँ ही किसी को अपने सपने रौंदने नहीं दूँँगी... यही सब सोचते सोचते वह डिप्रेशन का शिकार हो गईl कभी उसका मन करता कि वह आत्महत्या कर ले, कभी लगता बिना किसी को बताये यहाँ से कहीं दूर चली जाए, जहाँ उसे अपने सपनों की उड़ान भरने से कोई भी न रोक पाए।
इसी सब के बीच एक दिन उस के भाई का फ़ोन आया और पिताजी का फ़रमान सुना दिया कि 10 तारीख तक अपना सामान समेट कर वापस घर आ जाएl फ़ोन सुनते ही उस के सर में दर्द शुरू हो गयाl अगले ही दिन शाम के 4 बजे चाचाजी का फ़ोन आया कि हम नीचे गाड़ी ले कर खड़े हैं, घर जा रहे हैं, फ़टाफ़ट अपना सामान पैक करो और आ जाओl यह आनन फ़ानन वाला आदेश सुन कर उसे समझ में नहीं आया वह क्या करे और क्या नहीं और बिना सोचे समझे अपना सामान समेट कर जिस हाल में थी, उसी हाल में नीचे गाड़ी में आकर बैठ गयीl चाचा जी ने गाड़ी स्टार्ट की और बढ़ चले घर की ओर... और नन्दिनी देख रही थी पीछे छूटते हुए अपने पीजी को... मुखर्जी नगर को और अपने सपनों को... आज फ़िर इस समाज ने एक सोनचिरैया के पर काट दिए.... फ़िर एक स्त्री के पैरों में समाज के नियमों की बेड़ियां डाल दीं....