होली का सबक
होली का सबक
अपने ससुराल में प्रिया की यह पहली होली थी। पिछले साल तो वह अपने मायके में ही थी, इसलिए इस साल वह खूब उत्साह के साथ होली की तैयारियां करने में व्यस्त थी। इसी सिलसिले में कुछ पूछने के लिए, वह अपनी जेठानी माला के कमरे में आई। कमरे में आकर देखा तो माला सामान पैक करने में लगी हुई थी।
"अरे दीदी! आप कहीं जा रही हैं?"
"हां, प्रिया... मैं होली पर अपने मायके जा रही हूं।"
"पर क्यों भाभी....? होली पर तो आपको यहां अपनी ससुराल में होना चाहिए न!"
"हां प्रिया पर कुछ सालों से मैं होली अपने मायके में ही मनाती हूं।"
"लेकिन क्यों भाभी...?" प्रिया के मन में कुछ खटका सा हुआ, लेकिन माला ने कोई जवाब नहीं दिया और उसे टालते हुए कहने लगी- "अच्छा बताओ तुम क्या पूछने आई थीं...?"
प्रिया जिस बात के लिए आई थी वह पूछ कर जाने लगी, तो माला ने उसे बुलाया....
"देखो प्रिया, ये सुशील जीजा जी हैं न, इनसे जरा बच कर रहना। होली का फायदा उठाकर ये कब कौन सी हरकत कर बैठें, पता ही नहीं चलता। रंग लगाने के बहाने छूना, यहां-वहां हाथ लगाना, भद्दे मजाक करना....उनकी यही आदत है।"
"लेकिन दीदी यह तो गलत है।"
"हां, जानती हूं प्रिया, लेकिन..."
"लेकिन क्या दीदी...कोई कुछ कहता नहीं..?"
"मैंने कहा था एक बार मम्मी जी से, पर उन्होंने उलटा मुझे ही सुना दिया यह कह कर कि ननदोई का तो रिश्ता ही ऐसा होता है, उनका तो हक होता है अपनी सलहज के साथ मजाक करने का... थोड़ा मजाक सहने की आदत डालो।"
"तो क्या इसीलिए आप....?"
"हां,
प्रिया....!"
"नहीं, दीदी...इस बार आप कहीं नहीं जाएंगी..." कहते हुए प्रिया ने जबरदस्ती माला को अपने मायके जाने से रोक लिया।
दो दिन बाद रंग की होली थी। सुशील की नजरें नई-नवेली सलहज प्रिया को ही ढूंढ रही थी। फिर पता नहीं कहां गायब हो गए। करीब एक घंटे बाद लौटे... तो बिना किसी से कुछ बोले, चुपचाप एक कोने में जाकर बैठ गए।
माला देखकर हैरान थी कि आज सुशील जीजाजी न तो होली खेलने को आतुर हैं और न ही रंग लगाने के बहाने घर की बहुओं को छूने का मौका ही ढूंढ रहे हैं। उधर प्रिया रसोई में खड़े, मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
शाम को जब माला ने अपने मन की बात प्रिया को बताई, तो प्रिया खूब जोर से हंसी और बोली- "जीजाजी को घर की बहुओं के साथ होली खेलना बहुत पसंद है न... तो आज मैंने उनकी इच्छा ऐसे पूरी की है, कि जन्मों तक होली खेलने के बारे में सोचेंगे भी नहीं... खेलना तो बहुत दूर की बात है।"
"देख प्रिया! सच-सच बता मुझे, क्या हुआ...?"
प्रिया फिर एक बार जोर से हंसी और बताने लगी- "दीदी, सुबह मेरी भाभियां आई थीं न... हम सब लोग छत पर ही थे। हमें देख कर बराबर में से पुष्पा भाभी और सरोज भाभी भी आ गईं। हमने वहां जीजा जी को भी बुला लिया और उनके साथ आज जो ब्रज वाली लट्ठमार होली खेली है न... कसम से सारा शरीर नीला पड़ गया होगा, सारी जिंदगी याद रहेगी उन्हें यह होली।" बताते हुए प्रिया अभी भी जोर-जोर से हंस रही थी और माला सुनते-सुनते।
एक विजयी भाव और प्रशंसा भरी निगाहों से देखते हुए उसने प्रिया के सिर पर हाथ फेरा और उसे गले लगा लिया।
#रंगबरसे