सबक
सबक
रिंकू पढ़ने में तो होशियार था, उसका दिमाग भी बहुत तेज था, लेकिन वह मेहनत करने से भागता था और था भी बहुत आलसी। अब वह दसवीं कक्षा में भी आ गया था, तो नैना और पीयूष चाहते थे कि अब वह लापरवाही और आलस छोड़कर अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाए ताकि बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सके। लेकिन रिंकू को कुछ भी समझाना उनके लिए भैंस के आगे बीन बजाने जैसा हो गया था। अब वे दोनों ही उसे समझा समझा कर परेशान हो गए थे, इसलिए उन्होंने रिंकू को कुछ भी कहना या समझाना छोड़ दिया।
एक-दो दिन तो रिंकू को समझ ही नहीं आया कि अब उसे कोई डाँटता क्यों नहीं.....!
लेकिन फिर सोचने लगा कि चलो अच्छा हुआ, अब कम से कम सारे दिन की डाँट से छुटकारा तो मिल गया। अब सुबह स्कूल जाने के लिए भी उसे कोई नहीं उठाता था। घर के शोरगुल में अगर उसकी आँख खुल जाती, तो ठीक वरना वह सोता ही रह जाता और स्कूल भी न जा पाता। उसकी छोटी बहन रिंकी स्कूल चली जाती। थोड़े दिन रिंकू को अच्छा लगा। लेकिन वह जिस दिन भी स्कूल जाता, उसे टीचर से डाँट सुनने को मिलती और उसका क्लास वर्क भी छूट जाता।
थोड़े दिनों बाद स्कूल में समर वेकेशन हो गए अब तो रिंकू और भी देर तक सोता रहता। रिंकू रोजाना देर से उठता,देर से नाश्ता करता...वह भी अकेले ही और कभी-कभी तो वह नाश्ता कर भी नहीं पाता, सीधा लंच ही करता। फिर सारा दिन जो मर्जी आए...वह करता। उसकी बहन रिंकी कभी अपने दोस्तों के साथ खेल रही होती, तो कभी अपना हॉलिडे होमवर्क कर रही होती। घर में अब उससे कोई बात नहीं करता था। सब बस जरूरत भर की ही बात करते थे उससे।
कुछ ही दिनों में वह इस स
ब से परेशान हो गया। अब उसे यह आजादी, यह अकेलापन काटने को दौड़ रहा था। एक दिन जब वह ज्यादा बेचैन हो गया तो नैना से पूछ ही बैठा- "मम्मा आजकल आप लोग मुझसे बोलते क्यों नहीं हो?"
नैना ने बोला- "बोलते तो हैं बेटा...तुमसे खाने के लिए बोलती हूँ, जब भी तुम्हें किसी चीज की जरूरत होती है तो बोलती ही तो हूँ। और सबके अपने-अपने काम का एक समय है! जब सब लोग घर में होते हैं तो तुम सोए होते हो, तो कैसे तुमसे कोई बात करेगा!"
थोड़ी देर रुक कर, रिंकू परेशान होकर फिर बोला- "नहीं मम्मा...पहले आप और पापा मुझे कितना डाँटते थे, अब कोई मुझे पढ़ने के लिए भी नहीं बोलता, रिंकी भी मेरे पास नहीं आती अब..."कहते कहते रिंकू रोने लगा!
"क्या बोलें हम...इतने सालों से तो बोल ही रहे हैं, पर तुम पर कोई असर नहीं हुआ...अब हम थक गए हैं, इसीलिए बोलना छोड़ दिया!"
रिंकू आंखों में आंसू लिए नैना की तरफ ही देख रहा था।
"देखो बेटा...तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारी मेहनत तुम्हारे ही काम आएगी...हम लोगों को तो बस एक संतुष्टि मिलेगी कि हमारा बेटा एक योग्य और सफल इंसान बन गया है! लेकिन तुम्हारा तो जीवन ही निर्भर है तुम्हारी इस समय की आदतों पर! बेटा ये कुछ वर्ष तुम्हारा जीवन बना सकते हैं या बिगाड़ सकते हैं...तो अब तुम्हारी मर्जी है कि तुम अपना भविष्य बनाओगे या बिगाड़ोगे।" रिंकू चुपचाप नैना की सारी बातें सुन रहा था।
नैना रसोई में खाना बनाने चली गई। रिंकू ने आज समय पर खाना खाया। आज वह देर रात तक बैठकर पढ़ता रहा।
अब रिंकू का रूटीन पूरी तरह से बदल चुका था। नैना यह सब देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी