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Ruchika Rana

Tragedy Inspirational

4.0  

Ruchika Rana

Tragedy Inspirational

इंसानियत की डोर

इंसानियत की डोर

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26 फ़रवरी, देर रात ज़ोया का मेसेज आया- "मैम, बाबू आया था...चला गया....!!"

ओह!पढ़ते ही कलेजा धक्क से रह गया...

तुरंत उसे फ़ोन मिलाया, उस के पति ने फ़ोन रिसीव किया,ज़ोया सो चुकी थी शायद! उस के पति से ही मालुम हुआ कि साल भर से जिस बच्चे की आस लगाए हुए थे, जिस ने इस दुनिया में आकर अभी अपनी आँखें भी ठीक से न खोली थीं, कुछ घंटे पहले ही उन्हें छोड़ गया। 

बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उस नन्हें मेहमान का हम सब...ऐसा होगा, सोचा भी न था!

पतिदेव से कहा, कल ज़ोया के घर जाना है मुझे...वे कुछ न बोले। सारी रात इधर-उधर करवट लेते और ज़ोया के बारे में सोचते-सोचते

ही निकल गई!

अगली सुबह रोज़ की ही तरह पतिदेव टी.वी. पर समाचार देख रहे थे ....यह सुबह बाकी सुबहों की तरह न थी, वे समाचार सुन रहे थे पर बोले कुछ नहीं....मैं भी सब जानती थी, पर इस समय मैं ये सब सोचना नहीं चाहती थी। मैं तो बस उस माँ का दुख बाँटना चाहती थी, वह माँ....जो पूरी तरह माँ बन भी न पाई थी...मिलकर खूब रोई...नौ महीने का इंतजार...प्रसव पीडा और फ़िर भी गोद सूनी...दुश्मन का भी नसीब न हो ऐसा। 

इतने दंगे हो रहे हैं, कर्फ़्यू लगा है,आप फ़िर भी आईं मैम...? 

कैसे न आती, धर्म भले अलग है पर बंधे तो एक डोर से हैं हम.... इंसानियत की डोर, प्रेम की डोर !


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