Ruchika Rana

Drama Romance

4  

Ruchika Rana

Drama Romance

मैं फिर भी तुमको चाहूंगी

मैं फिर भी तुमको चाहूंगी

6 mins
377


 आंसू पोंछते हुए प्राची अस्पताल की ओर दौड़ी चली जा रही थी, जहां पिछले छह दिनों से उसके पापा एडमिट थे। उन्हें लास्ट स्टेज का कैंसर जो था। जब उन्हें अपनी जीवन-संध्या अस्त होती दिखी, तो अपने खास दोस्त के बेटे तुषार से प्राची की शादी तय कर दी। प्राची को भी परिस्थितियों के आगे मजबूर होकर इस शादी के लिए हां कहनी पड़ी।

    एक सप्ताह बाद तुषार संग ब्याह कर वह मुंबई आ पहुंची। यहां तुषार एक बड़ी सी कंपनी में नौकरी करता था।

   तुषार और प्राची स्वभाव में एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थे। जहां प्राची कम बोलने वाली और शर्मीले स्वभाव की थी, वहीं तुषार बहुत ज्यादा बातूनी और जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाला इंसान था। पहले वह ऑफिस के बाद अक्सर दोस्तों के संग पार्टी करता या घूमने निकल जाता, और शनिवार की रात को तो मूवी देखना फिक्स ही था।

    लेकिन अब प्राची से शादी के बाद उसका जीवन बदल चुका था। पर इसकी वजह से तुषार को प्राची से कोई शिकायत नहीं थी। वह तो पहली ही नजर में उसे दिल दे बैठा था। वह चाहता था कि प्राची भी उसी की तरह जिंदगी को खुलकर जीए। जो वह सोचती है, जो वह चाहती है....उसे बताए। सही मायनों में पत्नी से पहले एक दोस्त के रूप में वह उससे रिश्ता बनाना चाहता था। वह उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान रहता रखता। ऑफिस से समय से निकलता और सीधा घर आता, ताकि ज्यादा से ज्यादा समय वह प्राची के साथ बिता सके और उन दोनों का रिश्ता मजबूत हो।

     आखिरकार तुषार की कोशिशें रंग लाई और प्राची धीरे-धीरे उसके करीब आने लगी। तुषार अब प्राची को और भी ज्यादा चाहने लगा था। अब सही मायनों में दोनों पति-पत्नी बन चुके थे। धीरे-धीरे दोनों की शादी को तीन साल व्यतीत हो गए और उनकी बगिया में एक प्यारा सा फूल खिला नन्हीं सौम्या के रूप में।

   उन्हीं दिनों तुषार के पिताजी अपनी नौकरी से रिटायर हुए और समारोह में शामिल होने के लिए उन दोनों को भी जाना पड़ा। विवाह के बाद आज पहली बार वे दोनों परिवार से मिले थे। सब बेहद खुश थे। जिद करके तुषार की माताजी ने कुछ दिनों के लिए प्राची को वहीं रोक लिया। प्राची भी कुछ दिन अपने पिताजी के पास रहना चाहती थी।   

   आज प्राची अपने पिताजी से मिलने जा रही है। रास्ते में वही घाट पड़ा, जहां कभी उसने और शिवम ने एक-दूसरे से प्रेम का इजहार किया था। इन तीन सालों से प्राची इस गलतफहमी में थी कि वह शिवम को भुला चुकी है, लेकिन पहला प्यार भुलाए से नहीं भूलता...यहां घाट पर आकर उसे यह अहसास हो रहा था।

   गंगा की कलकल करती लहरें, आसपास बहती ठंडी हवा अनायास ही उसे शिवम की याद दिला गई और उस आखिरी मुलाकात की भी।

   इसी गंगा तट पर अक्सर वे दोनों घंटों बैठे रहते, एक दूसरे की नजरों में नजरें डाले...एक दूसरे में खोए हुए...किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, आंखों-आंखों में ही दोनों की बातें हो जातीं।  

   उस दिन भी वहीं बैठे थे दोनों...पर आंखों की भाषा आंखें नहीं पढ़ पा रही थीं, क्योंकि आज उन आंखों में केवल आंसू थे। शिवम ने कभी नहीं सोचा था कि जिस गंगा मैया को साक्षी मानकर उसने और प्राची ने सारा जीवन संग बिताने की कसमें खाई थीं, आज वही पावन गंगा उनके विरह की मूक दर्शक भी बन जाएगी।

   रो-रो कर दोनों की आंखें लाल हो चुकी थीं।  

"अब मुझे चलना चाहिए..." 

प्राची ने कहा और अपनी किताबें संभालते हुए उठ खड़ी हुई।

शिवम ने प्राची का हाथ पकड़ा और कहा "फिर कब मिलोगी...?"

 "शायद कभी नहीं....!!" 

"इतनी पत्थर-दिल न बनो प्राची!"

 प्राची कुछ ना बोली। निरुत्तर हो खड़ी रही।

 "बोलो प्राची, कैसे तुम इतना बदल गईं...मेरी प्राची ऐसी नहीं हो सकती...फूलों सा कोमल मन था उसका...किसी की जरा-सी भी तकलीफ बर्दाश्त नहीं होती थी उससे...तो फिर आज मेरी हालत देखकर तुम्हारा दिल क्यों नहीं पसीज रहा...?क्यों तुम्हें मुझ पर तरस नहीं आ रहा...?"

 "भला मैं कौन होती हूं तुम पर तरस खाने वाली! मैं तो इतनी बदनसीब हूं कि खुद पर भी तरस नहीं खा सकती!"

 "तो मना कर दो न इस शादी के लिए...एक बार कह कर तो देखो...तुम कहो तो मैं बात करूं तुम्हारे पापा से!!"

 "नहीं-नहीं शिवम! ऐसी भूल कभी मत करना। मैं नहीं चाहती ऐसे मुश्किल समय में, जब उनके जीवन का कोई भरोसा नहीं... मैं पापा को इतना बड़ा दुख दूं। " "और जो दुख, जो दर्द तुम्हें मिल रहा है...मुझे मिल रहा है वो...हमारा चार सालों का रिश्ता, यह प्रेम, गंगा किनारे इन सीढ़ियों पर बिताए अनगिनत घंटे, वो हजारों अनकही बातें, वो एहसास भुला पाओगी तुम...?"

   "बस करो शिवम...मेरा जाना इतना मुश्किल मत करो...मत बनाओ मुझे इतना कमजोर कि एक प्रेमिका के सामने एक बेटी की हार हो जाए। "प्राची बोली और अपनी किताबें अपने सीने से लगाए वहीं खड़े फफक-फफक कर रोने लगी।

   शिवम का दिल तड़प उठा उसे यूं रोते देखकर।

 "प्लीज प्राची तुम रोओ मत! ठीक है तुम जैसा चाहती हो, वैसा ही होगा। पर वादा करो....अगले जन्म में तुम सिर्फ मेरी बनोगी सिर्फ मेरी...." प्राची शिवम को, उसकी दर्द और आंसुओं से भरी आंखों को देखती रह गई और चल पड़ी अपना फर्ज निभाने।

     आज भी प्राची उन्हीं सीढ़ियों पर बैठी है, जहां उस दिन शिवम् के साथ बैठी थी। अचानक उसे याद आया कि घर पर पापा उसका इंतजार कर रहे होंगे।

 वह घाट से उठकर वापस जाने को मुड़ी कि सामने से कोई आता दिखा। थोड़ा पास आया तो प्राची चौंक उठी। यह तो शिवम था, लेकिन प्राची को देख नहीं पाया था शायद। वह चुपचाप वापस चली आई और साथ में चली आई उन दोनों के साथ बिताए लम्हों की तमाम यादें भी....। रात भर वह इन्हीं यादों में खोए करवट बदलती रही।

 सुबह अजीब सी उलझन में थी, समझ में नहीं आ रहा था क्या करे क्या ना करे। जानती थी कि सही नहीं है लेकिन फिर भी एक बार वह शिवम से मिलना चाहती थी। उसे बताना चाहती थी कि लाख कोशिशों के बाद भी वह उसे भुला नहीं पाई है। वह खुद को न रोक पाई और चल दी घाट की ओर...इस उम्मीद में कि शायद शिवम मिल जाए...बस एक बार।

वह कार से उतरी। नजरें इधर-उधर दौड़ाई, कहीं कोई दिखाई नहीं दे रहा था। मन थोड़ा सा उदास हो गया। भारी कदमों से वह घाट पर पहुंची, तो सीढ़ियों पर बैठा एक शख्स, पास पड़े पत्थर पानी में फेंक रहा था।

 "आज भी वही आदत है न तुम्हारी!"

 "तुम आ गई प्राची! मुझे यकीन था...तुम जरूर आओगी। देखो....इसीलिए मैं रोज यहां आकर तुम्हारा इंतजार करता था और देखो आज मेरा इंतजार खत्म हुआ। "

 "क्या करती मैं...तुम्हारे बिना नहीं रह पाई..."और झट से जाकर शिवम के गले लग गई। दोनों ने कसकर एक दूसरे को गले से लगा लिया और बरसों से जमे आंसू पिघलकर आंखों से बह गए। कुछ पल बाद प्राची ने अपनी आंखों से आंसू पोंछे तो सामने एक धुंधली सी छवि दिखाई दी...तुषार...तुषार यहां!!

   तुषार को देखते ही वह सकपका गई, जैसे उसने कितना घिनौना अपराध किया हो।  

तुषार को पता चला तो...इस कल्पना मात्र से ही वह पसीना-पसीना हो गई। अचानक से उसकी तंद्रा टूटी। लगा जैसे किसी स्वप्न से जागी हो....शिवम अभी भी वहीं बैठा पानी में पत्थर फेंक रहा था।

 प्राची की रुलाई फूट पड़ी।

 दौड़ी-दौड़ी वापस आई और कार में बैठ गई....मुझे माफ कर देना शिवम्....एक छोटी सी मुलाकात भी ना दे पाई मैं तुम्हें....कितनी स्वार्थी हूं न मैं...पर जैसी भी हूं, हूं तो तुम्हारी ही...प्यार करना, एहसासों को महसूस करना...तुम्हीं ने तो सिखाया है मुझे....तुम हमेशा मेरे दिल में, मेरी आत्मा में बसे रहोगे....ताउम्र...चाह कर भी कभी तुम्हें खुद से अलग नहीं कर पाऊंगी....कभी नहीं....


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