मेरी डायरी (मेरे एहसास)
मेरी डायरी (मेरे एहसास)
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प्रतिदिन की तरह आज भी आंख खुलते ही, वही रोजमर्रा की दिनचर्या शुरू। तरुण कई दिन से अपनी मौसी के यहां जाने की जिद कर रहा था, तो आज सुबह ही अपने डैडी के साथ चला गया। अब तो शाम को ही वापस आएगा। मतलब आज का सारा दिन सिर्फ और सिर्फ मेरा।
अकेले रहना बहुत ही कम लोगों को भाता है। किसी को डर लगता है, तो किसी को बोरियत होने लगती है। पर मुझे न तो डर लगता है और न ही मैं बोर होती हूं, मुझे तो मेरा एकांत बहुत ही प्रिय है, तो आज मेरे साथ केवल और केवल मैं रहने वाली थी।
कई दिन पहले एक नॉवेल पढ़ना शुरू किया था, सोचा आज अच्छा मौका है उसे खत्म करने का।
शाम हो चली है। चाय की हुड़क उठने लगी। चाय बना ही रही थी, कि तरुण का फोन आ गया। सुबह से छह बार फोन कर चुका है। एक सप्ताह बाद चौदह वर्ष का हो जाएगा लेकिन अभी भी एक छोटे बच्चे की तरह ही हरकतें होती हैं उसकी। जितनी बार बात हुई है, उतनी बार एक ही बात बोलता है...आपकी याद आ रही है, डैडी को जरूर भेज देना शाम को मुझे लेने और मैं हंसकर रह जाती हूं जब मम्मी
-डैडी के बिना नहीं रहा जाता तो जाता ही क्यों है कहीं!!
चाय पीकर बालकनी में आई और आते जाते लोगों को देखने लगी। अब कोरोना और लॉकडाउन के चलते सड़क पर उतनी भीड़ नहीं रहती, लेकिन लोगों का आना जाना तो चलता ही रहता है। जिंदगी भी तो ऐसी ही है। चाहे जो परिस्थिति हो, जिंदगी को तो चलते ही रहना होता है। यही सब सोचते हुए और बालकनी में खड़े-खड़े पता ही नहीं चला कब शाम ढलकर रात में बदलने लगी।
अंदर आई और आकर खाना बनाने की तैयारी करने लगी। थोड़ी देर बाद ये दोनों भी आ गए और तरुण तो आते ही मुझसे ऐसे लिपट गया, जैसे पता नहीं कितने दिनों बाद लौट कर आया है मेरे पास।
आज उस की मनपसंद भिंडी की सब्जी बनाई है मैंने। खूब चाव से खाई उसने। रात का काम निपटा कर मैंने भी अपने कागज कलम उठाए हैं और कल की नई कहानी को थोड़ा सा और आगे बढ़ाया है। फिर कुछ देर तुम से बतिया कर अब बस सोने की तैयारी।
चलो अब इस कलम को यहीं रोकती हूं और अपनी बातों को भी। कल फिर से मुलाकात होगी तुमसे... कुछ नई बातों के साथ।