Ruchika Rana

Abstract

4.5  

Ruchika Rana

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उसकी नादानी

उसकी नादानी

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आज शिखा सुबह भोर से ही उठ कर घर की साफ़ सफ़ाई और सजावट में व्यस्त थी। दही-वड़ों के लिए रात को ही दाल भिगो दी थी और एक लंबी सी लिस्ट तैयार कर ली थी उस ने, शाम के व्यंजनों की। खुशी के मारे आज उस के हाथ-पाँव दोगुनी गति से काम कर रहे थे। आज बहुत खुश थी वह और हो भी क्यों न, इकलौते बेटे रोहन का जन्मदिन जो था। घर-परिवार में सब को न्यौता दे दिया था उस ने शाम की दावत का।


धीरे-धीरे घर में बाकी सब भी अपने समय पर उठे और अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गये। रोहन भी उठा और नाश्ता कर के कॉलेज के लिए निकल गया और जाते-जाते कह गया कि आज वह अपना जन्मदिन अपने दोस्तों के साथ बाहर मनाएगा।


सुनते ही शिखा पर जैसे बिजली सी गिरी हो, उस के सारे सपने चूर-चूर हो गये। कितने अरमानों से वह शाम की दावत की तैयारी कर रही थी| हर साल ऐसे ही तो खुशी-खुशी पूरे परिवार के साथ रोहन का जन्मदिन मनाती आयी है वह| पर आज बेटे ने माँ के अरमानों का, उस की खुशी का जरा भी मोल न रखा| कैसे न समझ पाया कि कितना खास है यह दिन मेरे लिए !!


कैसे भूल सकती हूँ वह दिन मैं? तीन महीने पहले ही डॉक्टर ने बता दिया था कि बच्चा उल्टा है, ऑपरेशन से ही होगा। ऑपरेशन का नाम सुन कर मैं और रोहन के पापा कितना घबरा गये थे। उन दिनों ऑपरेशन से डिलीवरी कम ही होती थी, तो लोग ऑपरेशन के नाम से ही डरते थे। हमें भी हर समय बस यही डर लगा रहता कि जाने क्या होगा, कैसे होगा और उस दिन जब मुझे ऑपरेशन के लिए ले जा रहे थे.... रोहन की दादी कितना रोई थीं, तब मुझे सास में अपनी माँ का रूप दिखा था, जिसके मन में बस यही डर था कि कहीं मुझे या मेरे बच्चे को कुछ हो ना जाए और जब पहली बार रोहन मेरी गोद में आया था....ऐसा लगा था मानो सारी दुनिया मिल गई हो, जैसे बस अब कुछ और नहीं चाहिए मुझे और उसी दिन रोहन के पापा ने पूरे मोहल्ले में लड्डू बँँटवा दिए थे!


याद करते-करते रमा की आंखों से झर-झर आंसू बहते जा रहे थे। उसने सारा काम बीच में ही छोड़ दिया और सबको नाश्ता कराया, फिर नहा कर बिना नाश्ता किए ही अपने कमरे में चली गई। आज उसकी भूख प्यास सब गायब हो गई थी। उदास मन, भीगी आंखें लिए बिस्तर पर पड़े-पड़े बस यही सोच रही थी ये बच्चे क्यों बड़े हो जाते हैं....?


लग रहा था जैसे कल की ही बात हो... हर जन्मदिन पर कितनी जिद किया करता था रोहन अपने पापा से खिलौनों के लिए, केक के लिए, परिवार में सब को बुलाने के लिए। कहता कि जितने ज्यादा लोग आएंगे... मेरे लिए उतने गिफ्ट भी तो लाएंगे !! कितनी हंसी आती थी उसकी बातों को सुनकर और जब झूठ मूठ में ही कहते थे, जा हम नहीं मनायेंगे तेरा जन्मदिन.... तो कैसे पैर पटक-पटक कर रोता था, अब कहां है वे दिन !!!


थोड़ी़ देर बाद किचन में खाना बनाने गई तो जन्मदिन के लिए मंगाया सामान देखकर फिर से उसका दिल भर आया। शाम हो चली थी, रमा वैसे ही उदास मन से बरामदेे में चाय पीनेेे के लिए बैठी हुई थी कि तभी रोहन आ गया।


 "देखा मुझे पता था, आपने कोई तैयारी नहीं की होगी मेरे जन्मदिन की... जानता था मैं...आप और पापा हमेशा से मेरा जन्मदिन नहीं मनाना चाहते थे" रोहन ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।


 लेकिन रमा रोहन की बात सुनकर घबराते हुए बोली- "अरे! नहीं नहीं बेटा.... मैं तो सारी तैयारी करके बैठी थी लेकिन....."


"लेकिन क्या...." रोहन ने रमा की आंखों में देखते हुए कहा। रमा की आंखों में आंसू थे।


 वह बोली- "तू ही तो बोल कर गया था अपना जन्मदिन बाहर ही मनाएगा..." और अपना मुंह फेर लिया, ताकि रोहन उसे रोते हुए ना देख सके पर रोहन सब कुछ समझ गया था।


वह रमा के सामने गया। उसके आंसूू पोंंछे और उसके गले से लिपटते हुबोला- "मुझे माफ कर दो मां, मैं नहीं जानता था कि मेरी जरा सी नादानी से तुम्हें इतना दुख पहुंचेगा। मुझे समझने में बहुत देर लगी कि मेरे जन्मदिन की खुशियां मनाने का हक सबसे पहले उनको है जिन्होंने मुझे जन्म दिया। मुझे माफ कर दो मां" और अपने दोनों कान पकड़ कर रमा के सामने खड़ा हो गया।जान सेेे प्यारे बेटे के जन्मदिन पर उसके मुंह सेेे ऐसी प्यार भरी समझदारी की बातें सुनकर रमा का मन कमल के समान खिल गया।


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