Aaradhya Ark

Tragedy Classics Inspirational

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Aaradhya Ark

Tragedy Classics Inspirational

बड़ी अम्मा की पायल

बड़ी अम्मा की पायल

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"मुकुंद तुम्हारी बड़ी माँ की तबियत ठीक नहीं है। ज़रा जल्दी आकर मिल जाओ!"

ताऊजी के मैसेज के साथ ही बड़ी माँ का वॉइस मैसेज भी था। उन्हें व्हसट्सअप चलाने नहीं आता था अतः ताऊजी ने ही उनको बोलने कहा होगा। उनका मैसेज सुनकर द्रवित हो गई अवनि ज़ब उसने वह आखिरी लाईन सुनी.....

"जल्दी आकर मिल जाओ मुकुंदबहू! एक बार देख लूँ अपनी अवनि को तो जी जुड़ा जाए। और ऊ रुनझुन पायल पहन लाना जो मैंने तुम्हें मुँहदिखाई पर दी थी।आज भी तुम्हारा वो रूप आँखों में बसा हुआ है। बस बेटा, चलाचली की बेला समझो !"

अब अवनि और नहीं रुक सकती थी। तुरंत इण्डिया जाने का निश्चय कर लिया। एक बार बड़ी माँ से हुलसकर मिलने की तलब सी हो आई।

घर आते ही सबसे पहले उसने बड़ी माँ की दी हुई पायल ही निकालने को आलमारी खोली थी कि आलमारी के निचले आले में रखी हुई पुरानी एलबम से एक तस्वीर चुपके से निकल गई। देखकर एकबारगी तो अवनि की हँसी निकल गई।

उस तस्वीर में अवनि खुद अपने आप को नहीं पहचान पाई।कौन है यह? दो चोटी किए हुए इतना ढेर सारा काजल लगाए हुए और ये साड़ी की किनारी में क्या बाँध रखा है अवनि ने इस फोटो में?

आज भी है याद है अवनि को।ज़ब वह ब्याहकर आई थी तो सासुमा उसे एकदम सजा धजाकर गुड़िया की तरह रखना चाहती थी। हो भी क्यों ना...! आखिर तीन तीन सास और ददिया सास की एकलौती बहू थी अवनि। गाँव में जमींदारों के परिवार की बहुओं को वैसे भी अपने गहने से ही तो अपना वैभव प्रदर्शन करना होता था। ऊपर से उसके ससुर के दोनों बड़े भाईयों की दो दो बेटियाँ थीं जिनका ब्याह हो चुका था। ऐसे में सबसे छोटे भाई मतलब अवनि के ससुर गिरधारीलाल के घर ज़ब मुकुंदलाल मतलब अवनि के पति का ज़न्म हुआ तो दोनों ताईयाँ पहले तो जलभुन गई कि अब तो सास सारा लाड़ प्यार छोटी बहू मतलब अवनि की सास सावित्री पर ही लुटावेंगी।

उनदोनों की बेटियाँ ही थीं और घर की छोटी बहू अवनि की सास का तो पहलौठी का ही बेटा हो गया था तो उसका रुतबा तो बढ़ ही गया था।

पर अवनि की सास सावित्रीदेवी बेहद व्यवहार कुशल महिला निकलीं। उन्होंने अपने दूधमुँहे बच्चे को सीधे जाकर सबसे बड़ी बहू यानि अपनी बड़ी जेठानी की गोद में डाल दिया यह कहते हूए कि,

"जिज्जी! मुझसे नहीं संभलता ई नटखट। दिन रात रोरोकर सोने भी ना देवे। आप अनुभवी हो। दो दो बेटियों को इतने अच्छे से पाल रही हो। ज़रा इसे पर भी अपने हाथ फेर दो कि इसके भी लक्षण आपकी बेटियों जैसे संस्कारी हो जाएँ। मैं तो बस इसे आकर दूध पिला दिया करुँगी और इसके मल का लत्ता धत्ता कर दिया करुँगी... बस। इतना ही संबंध रखूँगी इससे। महीने भर में ही इसने तो मेरा जी हलकान कर दिया है, रात भर सोने ही नहीं देता।फिर आपके देवर भी बड़े गुस्सा हो जाते हैँ कि रात को सोऊंगा नहीं तो दिन में काम कैसे करूँगा। बस अब आप ही देखो इसे!"

भोलीभाली बड़ी ताई मुकुंदलाल की पढ़ी लिखी अम्मा की समझदारी और परिवार को जोड़े रखनेवाली यह गूढ़ बात तब कहाँ समझ पाई थी। उन्हें तो बस यही लगा था कि ई छुटकी बहू बस पढ़ीलिखी है, लईकन को पालन पोषण कहाँ से जानेगी। साथ ही खुद को गौरवान्वित भी महसूस किया था घर की बड़ी बहू कुसुमलताजी ने। और इस तरह सावित्रीजी ने अपने कान्हा को यशोदा मैया को सौंपकर परिवार को जो एक धुरी में बाँधा था वह डोर आजतक बँधी हुई है। तभी तो आज उनका आग्रह था कि अबके अवनि ज़ब आए तो उनके वह खानदानी पायल ज़रूर पहने जो उन्होंने उसे मुँह दिखाई पर दी थी। आखिर उसके पति की यशोदा मैया का हुकुम था, भला अवनि कैसे टाल सकती थी।

उसे याद आ रहा था सब...

वो ब्याह के बाद का भरापुरा घर आँगन। ददिया सास के मुँह से तो इस नई बहुरिया के लिए हमेशा फूल ही झड़ते थे।और अपनी तीनों सास में अवनि ने कभी कोई दुराव छुपाव और मुँह फुलाव नहीं देखा था। पता नहीं कितनी सहनशीलता थी और आपस में कैसा तालमेल कि कभी एक का मन ज़रा सा भी मलिन होता कि दुज़ी उसे संभाल लेती।और सबसे ऊपर जो बैठी थी ददिया सास उसकी तो सबसे लाडली थी अवनि। वह चाहती थी कि अवनि उनकी आँखों से ओझल ही ना हो। उसे सजा धज़ाकर एकदम गुलगोथनी की तरह रखतीं। दिन भर तो अवनि ददिया सास और तीनों सास से घिरी रहती पर पति मुकुंद के आते ही उसकी सास उसे बहाने से चाय का कप पकड़ाकर जो पति को देने भेजती तो फिर वह रात का खाना परोसने ही कमरे से बाहर निकलती। बड़ी समझदारी से सावित्रीजी अपने बेटे को तो बाँट गई थी पर बहू पर अपना हक और पकड़ बनाए रखती थी।


अब तक एकल परिवार में रहती आई अवनि को इन चार औरतों के बीच और बड़े से परिवार में बड़ा मज़ा आने लगा था। क्योंकि अपने मायके में तो माँ पापाजी और एक छोटा भाई ही था। गाँव में दादा दादी रहते थे। अवनि के माता पिता प्रतिवर्ष गर्मी की छुट्टियों में ही गाँव जाते थे। इतना ही देखती आई थी अवनि आजतक।

यहाँ तो ससुराल में कौन अपना कौन पराया कुछ पता ही नहीं चलता था। यहाँ तक कि परिवार की औरतें बड़े मज़े से एक दूसरे की साड़ियाँ भी बदल बदलकर पहनती थीं। एक बार ज़ब अवनि की ननद मायके आई तो माँग माँगकर हक से अवनि की अच्छी अच्छी साड़िया पहनती रही और गहने भी। अवनि को ऐसी आदत नहीं थी पर कहती क्या।फिर जिस दिन ननद जानेवाली थी उस दिन उसके पास अपनी कई सारी अच्छी साड़िया लेकर आई और बोली थी,

"भाभी!मेरी इन साड़ियों में जो तुमको पसंद हो छांट लो और मैं ये तुम्हारी तीन साड़ियाँ ले जाना चाहती हूँ। तुम्हें ऐतराज़ तो नहीं। मैं और बाकि बहनें ऐसा ही करती हैं और इस तरह बहुत सारे कपड़े पहनने का शौक भी पूरे कर लेती हैं!"

अवनि के लिए रिश्ते का ये गणित बिल्कुल नया था। वह कुछ कहती इसके पहले ही ननद बोल उठीं थी,

"पर भाभी वो ब्लाउज़, पेटीकोट अपना अपना ही पहनना पड़ेगा। उसमें अदला बदली नहीं चलेगी। और फिर फुसफुसाकर बोली थी, और वो अंदर के कपड़े भी अपने ही पहनना!"

उस वक़्त दोनों ननद भाभी की खिलखिलाहट आज भी अवनि की कानों में गूँज रही थी।

तब जो बड़ी सास जिसे अवनि, मुकुंद के साथ उनकी खुद की बेटियाँ भी बड़ी माँ कहकर ही बुलाते थे। अवनि को दिनभर पायल पहनाकर रखती और उसे रोज़ रात पति उतार देते। खुद अवनि को भी बड़ी चुभती थी वह पायल। उसके किनारे पर कुछ नुकीली झुंनकियां थीं जो रात को बड़ा शोर करती थीं सो अवनि उसे खोलकर अपने आँचल में बाँध लेती और सुबह उठते ही पहन लेती थी। नहीं तो उसके क़दमों की रुनझुन ना सुनकर सब टोकने लगती थीं।एक बार मुकुंद कैमरा खरीद लाया था और ज़ब तब अवनि की घहरवालों की फोटो खिंचता रहता था। तभी किसी दिन यह पायल अवनि के आँचल से बँधा रह गया था.... उसी दिन की फोटो थी अवनि के हाथ में।

वैसे भी सासू मां का आदेश था की नई बहू है तो पैरों में पायल और हाथों में खनखन करती चूड़ियां हमेशा पहने रहेगी।

आज ताऊजी का मेसेज आया था और साथ में अवनि की बड़ी सास अवनि के पति की यशोदा मैया का वॉइस मेसेज था, बस एक बार आ जाओ मुकुंद और बहुरिया अपनी यशोदा मैया से मिल जाओ। मैसेज पढ़कर अवनि खुद को एकदम रोक नहीं पाई।अमेरिका में बेटे बहू के पास टूरिस्ट वीसा पर आईं थी। बहू गर्भवती थी तब दोनों पति पत्नी आ गए थे। हालाँकि अभी अमेरिका प्रवास का लगभग डेढ़ महीना बच रहा था पर अब इस मैसेज के बाद अवनि बहुत भावुक हो गई थी। तीनों सास में अवनि की अपनी सास और मझली तो अब रही नहीं थी। यशोदा मैया अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से ही प्राणों का डोर थामे हूए थी। सो अवनि ने अपनी समधन को जल्दी आने का आग्रह किया था और उनके आते ही बहू की देखभाल और ज़िम्मेदारी उसकी माँ को सौंपकर निकल पड़ी अपने देश।

घर आकर सबसे पहले वह पायल ढूँढा। उसे ढूंढ़ते हूए यह तस्वीर निकल आई थी और अवनि यादों में ऐसी खोई कि मुकुंदजी कब पीछे आकर खड़े हो गए अवनि को कुछ पता ही नहीं चला।

"कहाँ खोई हो मालकिन! ज़रा हमारी भी तो सुध लो!" ज़ब मुकुंदजी ने कहा तो अवनि ने सर उठाया। उसके सज़ल नेत्रों को देखकर चौंक गए मुकुंद जी। एकदम से पूछ बैठे,

"क्या हुआ? आपकी आँखों में आँसू क्यों?"

अवनि ने आँसू पोछते हूए कहा,

"बड़ी माँ की याद आ गई थी, हम परसों चल तो रहे हैं!" मुकुंदजी बोले।

"आपने उनलोगों को बता दिया है ना कि हम आ रहे हैं!"

"नहीं बताया। सोचा थोड़ा सरप्राइज दे दें। बड़ी माँ तो मुझे देखकर खुशी से पागल हो जाएंगी। वैसे भी मैं उनका लाडला बेटा हूँ!"

"रहने दो जी! आपसे ज़्यादा प्यार तो बड़ी माँ मुझसे करती आई हैं हाँ!"

अवनि अपनी यौवनावस्था की फोटो देखते हूए शायद कुछ पल को खुद को भी नवयौवना ही समझ बैठी थी। उसके हाव भाव में थोड़े नखरे थोड़ी अदाएं देखकर चौंक से गए थे मुकुंदजी। उन्हें यूँ अपलक अपनी ओर ताकते देखकर इस उमर में भी जोर से शरमा गईं थीं अवनिजी।

"आपके लिए चाय लाती हूँ!"

कहकर झेँपकर जाने लगीं तो मुकुंदजी आग्रह कर बैठे,

"बैठो ना थोड़ी देर मेरे पास। और वह फोटो दिखाओ जो मेरे आने से पहले देख रही थी।

"आप कबसे आ रखे थे जो मुझे वह फोटो देखते देख लिया!"

कहते हूए थोड़ा असहज हो गई अवनि।

उसके बाद देर तक चाय की चुस्कीयों के साथ कुछ पुरानी तस्वीरें और बेहद प्यारी यादों को याद करते रहे दोनों।जीवन की सांध्य बेला में पति पत्नी का रिश्ता एकदम से मधुर हो जाता है... कुछ कुछ मीठे गुड़ जैसा। एक डली जो मुँह में रख लो तो दूसरे टुकड़े की ओर हाथ अपने आप ही बढ़ जाता है।

अगले दिन ज़ब दोनों रवाना होने को थे तब मुकुंदजी ने ताऊजी को फोन किया बड़ी माँ का हाल चाल पूछा पर बताया नहीं कि वह लोग आ रहे हैँ आखिर बड़ी माँ को सरप्राइज जो देना था।ज़ब अवनि ने बड़ी माँ से भी बात करने की इच्छा जताई तो पता चला कि वह सो रही हैं। अजमेर से निकलते हूए मुकुंदजी ने कहा,

"बड़ी माँ ने अपने वॉइस मैसेज में तुम्हें वह खास पायल पहनकर आने को कहा था ना जो उन्होंने मुँह दिखाई पर दी थी। उसे अभी से पहन लो!"

"पर वह तो बड़ी भारी है। रास्ते में लोग क्या कहेँगे कि इस बुढ़ापे में ई बुढ़िया सठिया गई है क्या। इस उमर में इतनी भारी और झुनकियों वाला पायल भला कौन पहनता है?"

"अरे!साड़ी के नीचे ढकी ही तो रहेगी तुम्हारी पायल। वैसे भी कौन इतने गौर से देखता है!"

मुकुंदजी के आग्रह पर अवनि ने पहन ली वह झुनकियों वाली भारी पायल और चल पड़ी अपनी बड़ी माँ से मिलने।

चूरू पहुँचते तक शाम उतर आई थी। स्टेशन पर पहुँचकर मुकुंदजी ने सोचा कि अब बता दें पर ज़ब मुकुंदजी ने ताऊजी को फोन लगाया तो फ़ोन किसीने उठाया ही नहीं तो फिर किराये की टैक्सी करके घर की ओर चल पड़े।

रास्ते भर मुकुंदजी और अवनि बात करते हूए बड़े उत्साहित थे कि अचानक पहुँचकर बड़ी माँ को सरप्राइज देंगे तो वह कितनी खुश होंगी।अवनि बड़ी माँ की बात मानकर जो पायल पहन आई थी उसे पूरे रास्ते साड़ी से छुपाती रही थी। सोच रही थी वहाँ उनकी बेटियाँ भी होंगी। उन्हें इतनी कामदार और झुंनकियोंवाले पायल पहने हूए देखकर पता नहीं क्या सोचें पर बड़ी माँ की बात माननी तो थी ही।

घर पर पहुँचे तो दालान पर काफ़ी भीड़ थी।

यहाँ बड़ी माँ उन्हें एक और सरप्राइज दे गईं थी। पहुँचकर उनकी बेटियों के उतरे चेहरे और ताऊजी के सज़ल नेत्र देखकर अवनि और मुकुंद किसी अनहोनी का अंदाजा लगा ही रहे थे कि ताऊजी बोल पड़े,

"देखो आ गया अपनी यशोदा माँ का कान्हा। तुम्हारी बड़ी माँ को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें मुखाग्नि देने उनका मुकुंद ज़रूर आएगा।पर कोई बात नहीं कम से कम अब तो आ गए हो। एक दिन पहले ही सिधारी थीं बड़ी माँ और उन्हें सरप्राइज देने के चक्कर में मुकुंदजी ने दो दिनों से उनका फोन नहीं उठाया था।

इसी बीच यह अनहोनी हो गई थी। बड़ी माँ उनसे पहले ही सरप्राइज देकर दुनियां को अलविदा कह चुकी थीं।

आज भी अवनि ने बड़ी माँ की आवाज़ में कहे हूए उस आखिरी मैसेज (वॉइस मैसेज) को अपने मोबाइल में संभालकर रखा हुआ है... और वो झुंनकियों वाला पायल छूकर उन्हें बड़ी माँ की ममतामयी स्पर्श जैसा ही तो लगता है।


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