बातों के भी पंख होते हैं
बातों के भी पंख होते हैं
क्या आपने पहले कभी सुना है बातों के भी पंख होते है? जी हाँ, बिल्कुल सच है जिस प्रकार पंछी अपने पँखो की मदद से एक डाल से दूसरी डाल उड़कर पहुंच जाते है ठीक वैसे ही बाते भी एक घर से दूसरे घर इतनी फुर्ती के साथ पहुंचती हैं,जिसकी हम इंसान कल्पना भी नही कर सकते और तो और आगे आगे जाते हुए इनके स्वरूप में भी परिवर्तन आता रहता है और फिर जिस प्रकार सुबह आसमान में उड़ा पंछी शाम ढलने पर अपने घर लोट आता है, ठीक वैसे ही बातेंं भी आपके पास लोट तो आती है परन्तु इनका मूल स्वरूप इतना बदल चुका होता है कि इन्हें पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। इंसान खुद ही सोचने लगता है क्या यही थी वो बात है जो मैंने जाने अनजाने किसी अपने के साथ सांझा की थी। कुछ ऐसे ही एक दो वाकये मेरी सहेली जानवी के साथ हुए।
शारदा जी की बेटी जानवी की शादी एक बहुत ही समृद्ध परिवार में हुई। शुरू शुरू में तो सब ठीक था लेकिन फिर जानवी ने महसूस किया उसका पति राकेश हर बात के लिये अपनी माँ पर निर्भर रहता है और माँ भी हर छोटे बड़े फैसले खुद लेती। किसी और को अपनी मर्ज़ी से कुछ करने का कोई अधिकार नहीं था। पढ़ी लिखी व समझदार जानवी अपनी सासुमां का आदर तो करती थी पर अपने छोटे छोटे निर्णय खुद लेना चाहती जो राकेश और सासुमां को बिल्कुल पसंद न थे। बस इसी बात को लेकर थोड़ा मन मुटाव चल रहा था घर में। उधर जानवी के मायके में भी भाभी और माँ के बीच मे कुछ खिटपिट चल रही थी तो माँ भी थोड़ा परेशान थी।
इसी बीच कई बार जानवी और माँ की फोन पर बात हो जाया करती। दोनों मिलकर एकदूसरे के साथ दिल खोल लेती,अपने दुख सुख सांझा करती और एक दूसरे को जरूरी परामर्श भी दे देती।शारदा जी हमेशा जानवी को राकेश को कुछ वक्त देने को बोलती और दूसरी तरफ जानवी भी मां को प्यार से भाभी को अपनी बात कहने को समझाती।पर कहते है न दीवारों के भी कान होते है। मायके से जुड़ी कुछ बातें इधर जानवी की सासुमां के कानों में पड़ी तो उन्होंने उत्सुकता दिखाते हुए कई सवाल पूछ डाले और भोली भोली अनजान जानवी ने सारी बातें सच सच बता डाली जो सासुमां ने न जाने कब चाची सास को बता डाली। दूसरी तरफ मायके में जानवी की माँ ने खुद अपनी बहू को समझाते हुए बताया दामाद जी तो हर छोटी बड़ी बात अपनी माँ से पूछते है जबकि मैंने तुम लोगो को अपने लिये पूर्ण स्वतंत्रता दे रखी है। इसलिये घर की मान मर्यादा का खुद ही ख्याल रखते हुए अपने फैसले लो। समय के साथ दोनों घरों की उलझने सुलझ गई। राकेश भी धीरे धीरे अपने फैसले खुद लेने लगा और जानवी को भी थोड़ी राहत मिल गई। अब दोनों घरों में पूर्ण सुख शांति थी।
समय बीता। जानवी के मायके में किसी रिश्तेदार के यहाँ कोई शादी थी जिसमें जानवी के ससुराल वालों को भी आमंत्रित किया गया था। जानवी अपने ससुराल वालों के साथ बड़े उत्साह से शादी में शामिल होने पहुंची। सब कुछ अच्छे से चल रहा था तभी उसकी मुलाकात अपनी भाभी की पुरानी परन्तु बहुत खास सहेली मधु से हुई। आपसी बातचीत के बाद मधु ने बड़े शरारती अंदाज़
में पूछा क्या थोड़ा बहुत सुधार हुआ या अभी भी तुम्हारे राकेश जी हर बात पूछने अपनी माँ के पास जाते है बेचारी जानवी समझ नही पा रही थी क्या उत्तर दे बस मधु से नजर बचा राकेश को देखने लगी कही उसके कानों में तो यह बात नही पड़ रही। थोड़ी देर में जानवी की भाभी सब से बड़े प्यार से मिली तो उसके जाते ही चाची सास बड़ी तेज आवाज में जानवी को बोली तुम्हारी भाभी तो बहुत अच्छी है।इसे देख कर तो बिल्कुल नही लगता शारदा जी से कभी कोई अनबन रही होगी। जानवी एक बार फिर चाची सास से नजर बचा इथर उधर झांकने लगीं कहींं भाभी यही आसपास यह सब सुन तो नही रही।
आज एक ही दिन में दो बार जानवी अपनी ही नजरोंं में शर्मिंदा हुई उस अपराध के लिए जो उसने कभी किया ही नही। वह तो राकेश और सासुमां से बहुत प्यार करती है। हाँ, शुरू शुरू में थोड़ी परेशानी हुई थी पर उसे तो कबकी भूल चुकी है।दूसरी तरफ मायके में भी माँ और भाभी दोनों में कितना प्यार है आपस मे मानो कभी कोई मन मुटाव हुआ ही न हो। आज सब आपस मे कितने खुश है फिर यह पुरानी बातें जो कभी अपने घर से पंख लगा उड़ी थी,घूम फिरकर बदले स्वरूप के साथ दोबारा सामने आ खड़ी हुई फिर से जहर घोलने के लिये। लेकिन कुछ सोच जानवी ने निर्णय लिया नही ऐसा नही हो सकता। मै इन पँखो वाली बातों को हमारे परिवार की खुशियां यूँ आसानी से छीनने नही दूंगी। झट से दूल्हा दुल्हन के पास स्टेज पर पँहुच गई और माइक पकड़ कर दूल्हा दुल्हन को बधाई देते हुए आगे बोलना शुरू किया। क्या आपको पता है शादी दो इंसानों का ही नहीं ब्लकि दो परिवारों का मिलन हैं जहाँ एक दूसरे के प्रति ईमानदारी, प्रेम,विश्वास और सम्मान रिश्तों में मिठास लाते हैं। इस लिए परिवार के हर सदस्य को यह रिश्ता केवल शब्दों से नहीं ब्लकि दिल से निभाना चाहिए और कोई नाराजगी हो तो दिल में न रखते हुए शब्दों मे बयान कर खत्म कर देनी चाहिए। देखा जाए तो यह छोटे मोटे गुस्से गिले भी बच्चों की तरह होते है पालते रहें तो बडे हो जाते है। समय रहते खत्म करने मे ही सबकी भलाई होती है। लोगों की बात करें तो वे अपनी जरूरत के मुताबिक हमें इस्तेमाल करते हैं और हमें लगता है मानो हमें पसंद करते हो और बस यही आकर रिश्तों की डोर कमजोर पड जाती हैं जब हम दूसरों की बातों में आकर अपनो से लड जाते है। हमें दूसरों की बात मे न आकर अपने रिश्तों को दिल से अपनाना है क्योंकि सुनी सुनाई ये छोटी मोटी बातों का क्या है ये तो आजाद परिन्दों की तरह उडती जाती हैं कभी यहां तो कभी वहां। जहां जाती हैं कुछ नया जोड लेती हैं और कुछ पुराना छोड जाती हैं। जब घूम फिर कर बिल्कुल नई सी बन हमारे सामने आकर खडी होती है तो इन्हें पहचानना भी मुश्किल हो जाता हैं।इसलिए मैं अपने मायके व ससुराल पक्ष के दोनो परिवारों से यही उम्मीद रखती हूं इन पंखों वाली बातों से दूर हम सब एक दूसरे से दिल से हमेशा जुडे रहेंगे।
जानवी के विचारों का सबने स्वागत किया और जानवी भी इन पंखों वाली बातों से अपने परिवार को सावधान कर दिल ही दिल खुश हैं।