छोटी सोच
छोटी सोच
यूँ तो सरिता जी अपने बेटे सौरभ की शादी अपनी पसंद की लडकी से करना चाहती थी पर कुछ दिन पहले जब सौरभ ने सिया को अपना जीवनसाथी बनाने की इच्छा जाहिर की तो वे इंंकार न कर सकी। सिया को सरिता जी पहले से ही जानती थी।पढ़ी लिखी, समझदार,आत्म विश्वास से भरपूर पेशे से फैशन डिज़ाइनर, बहुत ही प्यारी सिया ने जल्द ही बहु के रूप में सरिता जी के दिल मे जगह बना ली। ससुराल में बड़ो को मान सम्मान व छोटों को प्यार देकर सिया सबकी प्रिय बन गई। सुबह जल्दी उठ सरिता जी के घरकार्यो में मदद करती, फिर अपने बूटीक के लिये निकल जाती। शाम को घर आते ही सरिता जी चाय बनाती। दोनों सास बहू मिलकर चाय के साथ ढेरो बातेँ करती और फिर सिया रात के खाने की तैयारी करती। रात का खाना पूरा परिवार मिलकर खाता। सिया के आने से पूरे घर मे खुशी का माहौल था।
तभी एक दिन पड़ोस की कुछ औरतेंं सरिता जी से मिलने आई। सिया ने उनका अच्छे से स्वागत किया और अंदर से सरिता जी को बुलाने चली गईं।सरिता जी से थोड़ी इधर-उधर की बाते करने के बाद सब असल मुद्दे पर आ गई। एक बोली, "आपकी बहू वैसे तो बहुत प्यारी है पर उसका रोज यूंं छोटे-छोटे कपड़े पहन घर से बाहर जाना ठीक नही, इससे हमारी आसपास की बहू बेटियों पर बुरा असर पड़ेगा तो प्लीज अपनी बहू को समझाए घर मे जैसे मर्जी रहे,लेकिन घर से बाहर पूरा तन ढकने वाले कपड़े पहनकर ही निकले।" इतना सुनते ही सरिता जी को पूरा मांजरा समझ मे आ गया आखिर क्यों सब इकट्ठा होकर आज यूं उनसे मिलने आई है। बड़ी नम्रता से हाथ जोड़ते हुए बोली, "माफ कीजिएगा!! लेकिन मै अपनी बहू की ऐसी आलोचना नही सुन सकती। मेरी बहू तो हीरा है ईश्वर का दिया अनमोल खजाना है, इतनी सभ्य, संस्कारी व कार्यकुशल है तभी तो घर बाहर सब कुछ अच्छे से संभाल रही है। रही बात कपड़ों की तो अपने कपड़ो का चुनाव करने के लिए वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, उसे कब क्या पहनना है उसकी अपनी इच्छा है,उसमे किसी को दखल देने की जरूरत नही और फिर बहू समझदार है,उसे पता है उसे कब और क्या पहनना है। उसके छोटे कपड़े देखकर तुम लोगो की बहू बेटियों पर बुरा असर पड़ता है लेकिन उस जैसी संस्कारी, समझदार, आत्मनिर्भर लड़की को देखकर उसके जैसा बनने की इच्छा क्यों नही पैदा होती?? मेरी बहू तो आज के जमाने की लड़कियों के लिए प्रेंरणास्रोत है,घर परिवार को संभालते हुए अपने कैरियर को आगे बढ़ाना बखूबी जानती है, माफ कीजिएगा लेकिन छोटे मेरी बहू के कपड़े नही बल्कि आप लोगो की सोच है और आप लोगो की इस छोटी सोच की वजह से मेरी बहू अपने आपको नही बदलेगी। वही करेगी जो उसे उचित लगेगा। वही पहनेगी जिसमे वह खुद को सहज महसूस कर सके। आप हमारे घर आई, बहुत स्वागत है आप सबका। लेकिन फिर कभी यूंं अपनी छोटी सोच का परिचय देने मत आइएगा।" सिर झुकाए बैठी सबने चुपचाप वहाँ से जाना ही उचित समझा और अंदर से अपनी सासुमां की बात सुनकर सिया के मन मे सासुमां के प्रति सम्मान और बढ़ गया।
