अच्छाई लौटकर आती हैं
अच्छाई लौटकर आती हैं
राजेश जी ने बाहर जाने के लिए स्कूटर निकाला तो पत्नी सविता ने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन राजेश जी जानते थे पूरी रात सविता खाँसी की वजह से एक पल के लिए भी सो नहीं पाई। घर में और कोई नहीं है तो ऐसे में दवा तो उन्हें खुद ही लानी पडेगी। जल्दी आ जाऊंगा कहकर निकल पड़े परन्तु एक घंटा बीतने पर भी जब वे नहीं लौटे तो सविता जी को चिंता होने लगी। घबराहट के मारे बुरा हाल होने लगा। घर के बाहर इधर-उधर चक्कर लगाती फिर थककर कुछ पल के लिए बैठ जाती, फिर उठकर चक्कर लगाने लगती। मन ही मन बुदबुदाने लगी बुढापे मे न आँखों से दिखता है न ठीक से चल पाते है, हाथ पैर भी काँपने लगते है, भला जरूरत क्या थी यूं अकेले जाने की। मन किसी अनहोनी के डर से बेचैन है उधर सविता जी का डर बिल्कुल ठीक निकला।
दवाई लेकर सडक पार करते हुए किसी कार ने राजेश जी को टक्कर मार दी और वे बुरी तरह से मुँह के भार गिरे। खून निकलता देख कुछ लोग पास ही रघुनाथ अस्पताल में ले गए जहां पर एक बार फिर राजेश जी के दिल पर लगे घाव ताजा हो उठे और उनकी तकलीफ शरीर पर लगे घावों से कहीं अधिक थी। मरहम पट्टी करवाकर कुछ लोग जब राजेश जी को घर छोडने आए तो सविता जी फूट-फूटकर रो पडी।दोनों पति पत्नी एक दूसरे के गले लगकर अपनी किस्मत को खूब कोसते है। बार बार अपने पुराने दिन याद करते हैं। कितने खुश दोनों पति पत्नी अपने छोटे से परिवार में। इकलौती बेटी रिया की उपलब्धियों को देखकर खुशी से फूले न समाते।होनहार रिया भी एक के बाद एक सफलता की सीढियां चढती गई परन्तु फिर एक दिन रिया घर से अपनी स्कूटी पर जाने के लिए निकली लेकिन एक तेज रफ्तार से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गई।पांच दिन रघुनाथ अस्पताल में बेसुध पडी रही। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से ठीक होने की संभावना लगभग खत्म हो चुकी थी। तभी राजेश जी के दोस्त डाक्टर शर्मा ने भरे मन से कहा, रिया को तो हम बचा नहीं सकते।ऐसे में उसके अंगदान करवाकर अन्य कई जरूरतमंदों की मदद करने की कोशिश जरूर कर सकते हैं। हमारी बेटी तो नहीं रही लेकिन किसी और को नया जीवन देकर भरे हम किसी घर की खुशियां बचाने में मदद जरूर कर सकते है। भारी मन से राजेश जी व सविता जी ने अपनी सहमति दे डाली।
कहते है अच्छाई लौटकर वापस जरूर आती हैं।उस रात दोनों पति पत्नी ने बडी मुश्किल से एक दूसरे को संभाला। सुबह डोरबेल बजने पर सविता जी ने दरवाजा खोला। सामने बहुत सारे चेहरे थे लेकिन सविता जी उनमें से किसी को भी नहीं पहचानती थी। एक प्यारी सी बेटी ने बोलना शुरू किया, आँटी!! परेशान मत होइए, आप हमें नहीं जानते है। दरअसल कल डाक्टर शर्मा का हम सबको फोन आया था और उन्होंने हमें आपके बारे में बताया। आँटी!! मेरा नाम सोनम हैं और आपको पता मेरे सीने में दिल किसका धडक रहा है आपकी बेटी रिया का। अब तक राजेश जी भी धीरे धीरे चलते हुए बाहर आ गए थे। दोनों एकटक सबको निहारने लगी। सामने खडी मुस्कुराती छोटी सी बच्ची की आंखों में उन्हें अपनी रिया की आँखें नजर आई। ठीक ऐसे ही हर चेहरे को ध्यान से देखते हुए उन्हें अपनी बेटी की मुस्कान दिखी। पीछे खडे अभिभावकों की आँखों में कृतार्थ का भाव था। फिर सबने मिलकर तय किया हमें जिंदगी देने वाले भला हमारे होते यूं तिल-तिलकर कैसे मर सकते है। तभी सोनम ने आगे बढकर कहा, आँटी अंक्ल आज से आप दोनों हमारी जिम्मेदारी है हमारे होते आप अकेले असहाय नहीं हो सकते। आपकी देखभाल की जिम्मेदारी अब हम.सबकी है और फिर दोनों के गले में बाँहें डाल ली। राजेश जी व सविता जी आँखें बंद करके उस मधुर स्पर्श का आनंद लेने लगे।