दो कटोरियाँ
दो कटोरियाँ
मेरा बचपन बेहद गरीबी मे बीता। पिताजी नहीं थे, माँ मेहनत करके बडी मुश्किल से घर का खर्चा चलाती। घर मे आर्थिक तगी के चलते मेरीे स्कूल की फीस, कापी किताबों का खर्च उठाना माँ के लिए बहुत मुश्किल था फिर भी माँ के चेहरे पर एक भी शिकन तक कभी देखने को न मिलती। उनका बस एक ही सपना था मैं पढलिख कर अपने पैरों पर खडी हो जाऊँ। खाने के नाम पर तो हम माँ बेटी रूखासूखा खाकर ही खुश हो लेती। तभी एक दिन हमारे पडोस मे शर्मा आन्टी परिवार सहित रहने आई। पढी लिखी, समझदार, बाणी मे प्रेम सभी गुण तो थे उनमें। एक दिन जब वे हमारे घर किसी काम से आई तो हम माँ बेटी खाना खा रही थी। हमारी थाली मे पडे खाने को देखकर उन्हें बहुत बुरा लगा। झट से अपने घर से खाना ले आई। माँ ने मना करने की बहुत कोशिश की लेकिन उनके हठ के आगे एक न चली। उनके हाथ का बना स्वादिष्ट खाना खाकर मेरी तो आत्मा ही जैसे तृप्त हो गई औऱ फिर उस दिन से शुरू हो गया शर्मा आन्टी के घर से कटोरियों का आना जाना। वे जब भी कुछ अच्छा बनाती पहले हमारे घर देने जरूर आती। माँ ने कई बार मना करने की कोशिश की परंतु वे न मानी। अब तो अक्सर वे हमारे घर आती, बडे प्यार से मुझे पास बिठाकर खाना खिलाती,पढाई मे भी पूरी मदद करती। माँ की बिमारी हो या मेरी परिक्षा की तैयारी मुझे पूरा सहयोग मिलता। मेरे लिए तो मानो वे मेरी दूसरी माँ जैसी थी। समय बीतता गया। मै उच्च शिक्षा के लिए शहर आ गई। शर्मा आंटी के भी पति का तबादला कहीं औऱ हो गया। धफिर हम कभी मिल तो न पाई लेकिन जो अपनापन मुझे उनसे मिला, शायद कोई अपना भी नहीं दे पाता।आज मै उच्च पद पर कार्यरत हूँ लेकिन यहाँ तक पँहुच कर जो कामयाबी मुझे मिली इसमें आँटी का बहुत बडा हाथ है।
अभी कुछ दिन पहले हम यहाँ नई कालोनी मे परिवार सहित रहने आए। मैंने दफ्तर से दो दिन की छुट्टी ले ली ताकि अपना सामान सही से जमा लूँ।पति को दफ्तर व बच्चों को स्कूल भेजने के बाद अभी अपना काम शुरू ही किया था कि डोरबैल बजी। पास मे रहने वाली मिसेज खन्ना हाथ मे सब्जी की कटोरी लिए मुझसे मिलने आई। जैसे-तैसे उनका अभिवादन किया औऱ फिर शुरू हुआ उनकी बातों का सिलसिला या यूँ कहो पास मे रहने वाली मिसेज खुराना की बुराइयों का सिलसिला, जो खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था। तकरीबन तीन घंटे बीतने के बाद मिसेज खन्ना यह कहते हुए अपने घर गई कि अभी आपको बहुत काम है, सो जल्दी जा रही है, फिर कभी बैठकर ढेरों बातें करेगी। दोपहर हो चुकी थी। बच्चे स्कूल से आते होगे यह सोचकर खाना बनाने मे जुट गई। बाकी काम ज्यों का त्यों पडा रहा। अगले दिन बडी उम्मीद से अपना काम शुरू किया तभी हाथ मे कटोरी लिए इस बार मिसेज खुराना चली आई। फिर से बातों का वही सिलसिला चला। इस बार मिसेज खन्ना की बुराइयाँ मुख्य विषय रही। जैसे-तैसे उन्हें उनके घर भेजकर मैंने चैन की साँस ली। ये दो सब्जी की कटोरियाँ मेरे लिए जी का जंजाल बन चुकी थी। मैंने इन दो दिन की छुट्टियां मे जो काम करने थे वे सब धरे के धरे रह गए। मैं सोच रही थी समय बीतने के साथ इन सब्जी की कटोरियो के स्वरूप मे कितना परिवर्तन आ गया है। पहले जहां सब्जी की कटोरी मे अपनेपन,प्रेम, समर्पण की भावना होती थी वही आज नफरत, स्वार्थ, ईष्या का तडका लगाया जाता है।
अगले दिन हम सुबह पार्क मे मार्निग वाक के लिए निकले तो साथ मे दोनों कटोरियाँ भी उठा ली। कुछ ही दूरी पर मिसेज खन्ना औऱ फिर मिसेज खुराना भी मिल गई। हमने उनको धन्यवाद देते हुए उनकी कटोरियाँ वापस की औऱ साथ ही विनम्रता से कहा, हम तो नौकरी पेशा है। सुबह दफ्तर के लिए निकलते हैं तो शाम तक ही घर लौटते हैं ।आप हमारे घर हमसे मिलने आए,अच्छा लगा परन्तु माफ कीजियेगा हम ये कटोरियो के लेनदेन का सिलसिला आगे नहीं बढा सकते। नि:सदेह पडोसी एक दूसरे के सुख दुख के साथी होते है लेकिन एक दूसरे की चुगलियाँ करना या इधर उधर की हाँकने के लिए आज की सभ्य व शिक्षित पीढी के पास समय ही कहाँ हैं और कोई हमारे लायक जरूरी काम हो तो कभी संकोच मत कीजिए।दुख-सुख में हम हमेशा आपके साथ है।
