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Rubita Arora

Abstract Inspirational

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Rubita Arora

Abstract Inspirational

पतिदेव !आप बिल्कुल सही थे

पतिदेव !आप बिल्कुल सही थे

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अशोक जी बैंक में मैनेजर थे। उनकी लाडली सिमरन बहुत ही समझदार व गुणी थी। जो भी एक बार मिलता, तारीफ किए बिना न रह पाता। अपनी ही गली के कोने वाले घर में विशाल अपने माँबाप के साथ रहता था जो दिल ही दिल में सिमरन को बहुत पसंद करने लगा। एक दिन अपने मन की बात माँबाप को बताकर सिमरन के साथ रिश्ते की बात बढाने को तैयार किया। अशोक जी को सिमरन के लिए विशाल बहुत पसंद आया। सिमरन के दोनों बडे भाइयों से सलाह करके बात आगे बढाई गई और जल्द ही दोनों परिवारों की आपसी सहमति से रिश्ता तय हुआ। अब सिमरन विशाल के साथ नई दुनिया बसाने के सुनहरे सपने देखने लगी। वैसे तो सब ठीक चल रहा था पर अशोक जी के मन में एक उलझन थी। उन्हें महसूस हुआ सिमरन के ससुराल और मायके का यूं इतना पास होना शायद सही नहीं है।

सिमरन का बडा भाई विदेश मे अच्छी नौकरी पर था, अशोक जी की भी अच्छी तनख्वाह थी तो सोचा यह घर वैसे भी बहुत पुराना हो चुका है तो क्यों न कही और नया घर लेकर शिफ्ट हो जाए। बस फिर क्या था? कुछ ही दिनों में परिवार नई कोठी में रहने चला गया और खूब धूमधाम से सिमरन और विशाल की शादी सम्पन्न हुई।

सिमरन अपने ससुराल में बहुत खुश थी। सास ससुर बहुत प्यार करते और विशाल भी पूरा ख्याल रखता। समय बहुत अच्छा चल रहा था परन्तु फिर एक दिन अशोक जी को हार्ट अटैक आया और वे हमेशा के लिए परिवार को छोड़कर चल बसे। सिमरन के लिए यह बहुत बडा झटका था। दूसरी तरफ मां का भी रो-रोकर बुरा हाल था। सिमरन कभी खुद को संभालती तो कभी माँ को हिम्मत देती। इसी दौरान बडा भाई भी पत्नी सहित विदेश से वापस आ गया। सारी रस्में निभाने के बाद दोनों भाइयो ने तय किया क्यों न जायदाद का बंटवारा भी अभी कर लिया जाए?? आखिर बार-बार विदेश से आना कोई आसान तो नहीं। फौरन वकील बुलवाया गया। वकील को पूरी जायदाद के तीन हिस्से करने को कहा गया दोनों भाइयों के और तीसरा हिस्सा सिमरन की मां के लिए। परंतु मां तो कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं थी।बोली, मैंने हिस्सा लेकर क्या करना?? तुम बच्चे आपस मे बाँट लो। दोनों भाभियां तो मानो पहले से यही चाहती थी। अब वकील को जायदाद के दो हिस्से करने को कहा गया। तभी विशाल बोला, नहीं हिस्से तो तीन ही होने चाहिए।

अब तो बेटियां भी जायदाद मे बराबर की हकदार है तो फिर ऐसे में सिमरन का हिस्सा...?? अचानक विशाल के मुँह से ऐसी बात सुनकर सब हैरान रह गए। दोनों भाई,भाभियां सिमरन को घूरकर देख रही थी और सिमरन हैरानी से विशाल को। अंदर जाकर धीरे से विशाल को समझाने की कोशिश की परन्तु वह अपनी जिद्द पर अडा रहा। अब सारे चुप थे तो विशाल ने बोलना शुरू किया, मुझे जायदाद मे ज्यादा कुछ नहीं बस पापा का वही पुराना घर चाहिए जो हमारी गली में है। भाइयो ने सोचा चलो अच्छा हुआ कुछ ज्यादा नहीं देना पडा। उन्होंने पुराना घर देकर बाकी सारी जायदाद आपस मे बाँट ली।

थोड़े दिनों में सिमरन अपने ससुराल वापस आ गई परन्तु अब उसका मन नहीं लग रहा था। दिमाग में हमेशा एक ही उलझन थी आखिर विशाल को वह पुराना घर माँगने की क्या जरूरत थी?? कितना बुरा लगा होगा दोनों भाइयो को। उसे याद आता है इससे पहले मां ससुराल जाने पर हर बार विशाल को शगुन के नाम पर कुछ पैसे पकडाने की कोशिश करती तो वह हमेशा मना कर देता परन्तु अब विशाल भला यह सब कैसे कर सकता है??विशाल से कुछ पूछती तो बस एक ही जवाब सुनने को मिलता, समय आने पर सब अपने आप पता चल जाएगा। दिन बीतते गए परन्तु इस दौरान कभी मायके से बात न हुई। सिमरन को मां की चिंता सताने लगी तो वह खुद ही मिलने पहुंच गई।वहां जाकर मां की हालत देखकर पैरों तले जमीन खिसक गई। बडा भाई अपने हिस्से की सम्पत्ति बेचकर पत्नी सहित विदेश जा चुका था और छोटी भाभी को मां को दो वक्त की रोटी देना भी बोझ लगता। मां की हालत बहुत खराब थी। सिमरन ने रोते हुए मां को साथ चलने को बोला परन्तु मां को बेटी के ससुराल में रहना मंजूर नहीं था। रोती हुई सिमरन अपनी ससुराल लोट आई।

घर आकर सारी बात विशाल को बताई तो वह बोला, मुझे लगता है अब वह समय आ चुका है जब मैं तुम्हें बताऊँ आखिर पापा की जायदाद से मैंने वह पुराना घर क्यों माँगा था। तुम्हारे भाइयों की नीयत बहुत पहले बदल चुकी थी और मुझे इसका आभास हो चुका था परन्तु मां और तुम दोनों ही इस बात को समझने की हालत में नहीं थी। बस इसी लिए मैंने वह पुराना घर अपने पास रख लिया क्योंकि मुझे पता था मां किसी भी हालत में हमारे साथ हमारे घर में खुशी से नही रह पायेंगी।हम सुबह ही चलकर उस घर की सफाई करवा लेंगे और फिर मां को यहां अपने पास ले आयेंगे। हमारे पास रहेंगी तो तुम दिन में जब कभी देख सकोगी। मैं भी समय मिलते ही चला जाऊंगा। इस तरह मां की बात भी रह जायेगी और अच्छी देखभाल भी हो जाएगी। अपने पति के मुंह से यह सब सुनकर सिमरन की आँखों में पछतावे के आंसू थे। इतने समय से पता नहीं विशाल के बारे में क्या-क्या सोच रही थी, वही दूसरी तरफ विशाल बेटों से बढकर अपना फर्ज निभा गया। झट से गले लगते हुए बोली, पतिदेव ! आप बिल्कुल सही थे। मैं ही पागल आपको समझ न सकी।


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