Rubita Arora

Children Stories

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Rubita Arora

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आने दो आज पापा को घरआज जब मैं

आने दो आज पापा को घरआज जब मैं

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आज जब मैं पड़ोस की भाभी के पास बैठ उनसे बाते कर रही थी तो उनकी बेटी अंदर कमरे से बाहर आई। मुँह, सिर पूरा रंगा हुआ था और हाथ मे भाभी की टूटी हुई लिपस्टिक उसे देखते ही भाभी का गुस्सा सातवें आसमान पर था।डांटते हुए बोली बहुत तंग करने लगी हैं तू आने दे आज तेरे पापा को घर सब बताउंगी। इतना सुनते ही उस मासूम से चेहरे पर उदासी साफ झलकने लगी।थोडी देर में भाभी का बेटा रिहान अपनी रिपोर्ट कार्ड हाथ मे लेकर साइन करवाने के लिए आया। देखते ही भाभी बोली अरे इतने कम नम्बर, मै देख रही हूँ पिछले कई दिनों से तू पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहा। आने दे आज पापा को घर सब बताऊंगी। अब वही साइन करेंगे तुम्हारी रिपोर्ट कार्ड। बेचारा मुँह लटका अंदर चला गया। यह सब देख मैंने भाभी से कहा अब मुझे चलना चाहिए, आपको भी बच्चों को देखना होगा। अपने घर आकर मै पुरानी यादों में खो गई।

जब मैं छोटी थी, अक्सर मै और मेरा भाई कोई शरारत करते या माँ की कोई बात न मानते तो माँ खुद ज्यादा कुछ न कहकर बस अपना पसंदीदा डायलॉग हर बार दोहराती आने दो पापा को आज घर, तुम्हारे सारे कारनामे बताऊँगी और फिर शाम को पापा के घर आने से पहले हम डर के मारे एक कोने में दुबक कर बैठ जाते। अन्य दिनों में जहां पापा को देखकर हम भागे जाते उनके पास, उस दिन घर में सन्नाटा देख पापा भी बाहर से ही समझ जाते, जरूर हमने कुछ गड़बड़ की है और फिर माँ से पूछते क्या हुआ है आज, तो माँ भी पूरी कहानी सुना डालती। अब पापा की अदालत में हम किसी मुजरिम की भांति खड़े होते। पापा कभी हमें समझाते, कभी डांट देते तो कभी-कभी सिर्फ मुस्कुरा देते लेकिन चाय पानी हमेशा पूरा मामला निबटाने के बाद ही लेते। 

तब मैं बहुत छोटी थी तो ज्यादा कुछ न समझ पाई लेकिन अब वही बात भाभी के मुँह से सुनी तो बहुत कुछ सोचने को मजबूर हो गई। बच्चों की गलत हरकत पर अक्सर माएँ यही डॉयलाग बोलती हैं परंतु देखा जाए तो पढ़ी लिखी, समझदार माँ जब बच्चे की हर छोटी बड़ी जरूरत का ध्यान खुद रख सकती है तो बच्चे के गलती करने पर खुद क्यों नहीं समझा सकती या जरूरत पड़ने पर क्यों नहीं डांट सकती। क्यों खुद को नर्मदिल दिखा कर सख्ती से पेश आने का जिम्मा पापा पर डाल दिया जाता है। आखिर पापा भी तो सारे दिन के थके हारे घर आते है तो कुछ पल अपने बच्चों के साथ बिताना उनका हक हैं जो उनसे छीन लिया जाता हैं और साथ ही बच्चों के मन में माँ की नर्मदिल और पापा की क्रूर तस्वीर बना दी जाती हैं।

मुझे लगता है बढ़ते बच्चे माँ और पापा दोनों की जिम्मेदारी है। हमारा प्यार, अपनापन और थोड़ा सा समय ही तो चाहिए उन्हें हमसे। लेकिन अगर नादानी में कोई गलती कर बैठते है तो प्यार और शांति से माँ भी समझा सकती हैं और पापा भी।जरूरी नही हर शैतानी पर उन्हें पापा से अच्छी डांट मिले। बच्चे हैं शैतानी तो करेंगे ही, हर वक़्त तो अनुशासनबद्ध नहीं रह सकते परन्तु उनकी छोटी मोटी शैतानी को तो नजरअंदाज भी किया जा सकता हैं। हाँ जरूरत है सही गलत समझाने की जिसे माँ या पापा दोनों में से कोई भी आराम से बैठाकर समझा सकता है। बढ़ते बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते है जिसे माँ पापा अपनी समझदारी से कोई भी आकार दे सकते है। जिस अंदाज से हम उनसे बात करेंगे, वे भी वही अंदाज अपनाएंगे।आइए,अपने बच्चों के मार्गदर्शक बने। ज्यादा से ज्यादा समय उनके साथ बिताये, उनके मन में पापा का डर नहीं भरना बल्कि उन्हें समझाना है माँ और पापा आपके अच्छे दोस्त हैं जिनके साथ कोई भी परेशानी वे बेझिझक सांझा कर सकते है।


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