मर्द भी रो सकता है
मर्द भी रो सकता है
राहुल का आज आखिरी पेपर था। बडी खुशी से पेपर देकर घर वापिस जा रहा था। मन ही मन सोचा इस बार सारे पेपर बहुत अच्छे गए हैं। फस्ट आना तय है और फिर पापा का फस्ट आने पर नई साइकिल दिलाने का वायदा याद आते है उसकी घर लौटने की रफ्तार और तेज हो गई परन्तु यह क्या?? घर से कुछ कदम दूर बाहर लगी भीड़ देखकर ठिठक कर रह गया। हैरान, परेशान राहुल भीड़ को देखकर कुछ समझ नहीं पा रहा था। मां ने भी सुबह कुछ नहीं बताया। आखिर क्या हुआ होगा?? तभी बुआजी 'लो आ गया अभागा' कहकर उसके गले लगकर जोर-जोर से रोने लगी।बारह साल का अबोध बालक इससे पहले कुछ समझ पाता एक के बाद एक रिश्तेदार रोते हुए गले लगाए जा रहे थे। राहुल की आँखे लगातार माँ को तलाश रही थी। घर के अंदर देखा माँ बहुत सी औरतों के बीच घिरी हुई है और सामने पापा की लाश पडी हैं। राहुल फफक-फफककर रो पडा। लेकिन तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "बस बेटा!! ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती, जो हुआ उसे तो बदला नहीं जा सकता बस तुम धीरज से काम लो। इस तरह रोना मर्दो को शोभा नहीं देता। अब तुम्हे ही बहादुर बनकर सबकुछ संभालना है।"
उस दिन मासूम दिल अपने पापा की अकस्मात चले जाने पर बुरी तरह से आहत था। रो-रोकर अपनी भावनाएं व्यक्त करना चाहता था लेकिन मर्द रोते नहीं कहकर उससे यह हक भी छीन लिया गया। अगले दिनों रीति रिवाजों के नाम पर उसने सबकुछ बडी जिम्मेदारी से किया। जहां हर कोई उसकी बहादुरी की तारीफ कर रहा था वहीं उसके अंदर दुख का गुबार पडा था जो मां की आँखों से छिपा न रह सका। अगले ही पल माँ ने प्यार से राहुल को गले लगाया तो वह फफक पडा। दोनों माँबेटा एक दूसरे के गले लग खूब रोए। परिवार के कुछ सदस्यों ने रोकने की कोशिश की लेकिन माँ ने यह कहकर रोक दिया, मर्द के सीने में भी दिल होता हैं, गहरी चोट पँहुचने पर तकलीफ तो होती हैं ऐसे में रोकर दिल का गुबार निकालना बहुत जरुरी है अन्यथा दिमाग पर हावी हो जाने पर मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है। गले से लगातार लगाए राहुल के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, तुम जब तक चाहो रोकर अपना दुख व्यक्त कर सकते हो।इसके बाद दुख तो कम नहीं हुआ लेकिन राहुल खुद को हल्का महसूस करने लगा। वो माँ थी जो मात्र चेहरा देखकर बेटे की भावनाएं समझ गई। सचमुच ऐसी शक्ति ईश्वर ने सिर्फ मां के अंदर ही भरी है।