Mrugtrushna Tarang

Crime

4  

Mrugtrushna Tarang

Crime

बाँस की डलियाँ - १०

बाँस की डलियाँ - १०

4 mins
643


लक्ष्मणगढ़ से आयी कमसीन उम्र की नर्स कॉरल झरे अपने पिता का सपना पूरा करने छन्दनपुर आयीं हुई थी। लक्ष्मणगढ़ में कॉरल झरे के पिता के फार्म हाउस में कई सारे जानवर पलते थे।और उनके शहर में एक भी वैटनरी हॉस्पिटल या छोटा सा क्लिनिक भी नहीं था।गाँव वालों की महेनत और लगन के चलते कॉरल अपने गाँव में जानवरों का अस्पताल खोलना चाहती थी।उसके गाँव के करीब के शहर से उसे छन्दनपुर में ही दाखला मिला था। वर्ना वो तो बम्बई जाकर बड़ी डॉक्टर बनना चाहती थी।पर, वो अपने पिता पर आर्थिक रूप से बोझ नहीं बनना चाहती थी।इसलिए, डॉक्टर की ट्रेनिंग लेने वो छन्दनपुर शहर में लामा क्लिनिक में इन्टर्नशिप करने आई थी।


लामा क्लिनिक में वैटनरी केर टेकर के तौर पर कार्यरत थी।बड़ी ईमानदारी से काम करने और मिलनसार स्वभाव के कारण कुछ ही सालों में सबकी लाड़ली बन चुकी थी।रोज़ी हेड नर्स ने तो उसे अपनी बेटी के रूप में ही अपना लिया था।लंच टाइम में रोज़ी बाकी नर्सों के साथ येशु मसीहा की कहानियों से उनको मानवता के पाठ पढ़ाती।खाली वक्त में अपने बेटे जोसेफ की काली करतूतों को सफेद झूठ बोलकर बढ़ा चढ़ाकर उसके गुणगान गाती रहती।


मरने के कुछ दिन पहले ही रोज़ी नर्स ने कॉरल झरे को अपनी बहू के रूप में स्वीकारने की बातें कहते हुए बोली थी - "बहू भी तो बेटी ही कहलाती है न्।" और उस पर कॉरल झरे का प्यार भरा इन्कार भी सुना था। फिर भी अपने बेटे को नर्स कॉरल झरे का एकरारनामा ही बतलाया था।माँ की अंतिम इच्छा को लेकर सेंटीमेंट हो रहे फादर पीटर ने डॉक्टर कॉरल झरे से पर्सनली मिलने को अपने क्वोटर पर भी बुलवाया था।डॉ. कॉरल झरे अपने मंगेतर विरलन खुर्द को लेकर सन्डे टुहिं चर्च में गई थी।सन्डे की सामूहिक प्रेयर खत्म करने के बाद फादर पीटर ने ब्लेसिंग्स देने के बहाने से डॉ. कॉरल झरे को अपने केबिनेट में अकेले ही बुलाया।


चर्च की मरम्मत करवाने हेतु इकट्ठा हुए क्रिश्चन अधिकारियों से मीटिंग खत्म करने तक डॉ. कॉरल अपने मंगेतर के साथ फादर को पर्सनली मिले बगैर ही लौट आयी।तक़दीर ने एक और बार कॉरल झरे को बचा लिया।पर इस बार कॉरल झरे अपनी शादी की शॉपिंग में कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहने लगी थी और क्लिनिक में अपना काम निपटाकर घर जाने की उसे हमेशा जल्दी ही रहती।


उस दिन भी अपनी इवनिंग शिफ्ट निपटाकर घर जाने की रोज की जल्दबाजी न करके आराम से गप्पे मारती हुई डॉक्टर्स के चेंजिंग रूम में गई।

डॉ. का कोट उतारकर फ्रेश होने बाथरूम में गई। घुँघराले बाल ठीक करने जैसे ही आईने की ओर मुड़ी की उसे किसी के होने का आभास हुआ। आसपास देखा तो कोई नहीं था। भ्रम होगा, ऐसा सोचकर वह क्लिनिक से निकल गई।थोड़ी दूर जाकर कुछ याद आने पर दोबारा डॉक्टर्स के चेंजिंग रूम में आई। अपना पर्स और शॉपिंग बैग्स ढूँढ़ने में उसे काफी वक्त लग गया। उसका इंतजार कर रहे बाकी कलीग्स अकेले ही घर चले गए।

डॉ. कॉरल पलटकर निकली ही थी कि उसे अपने पीछे किसीके होने की आहट सुनाई दी। लाइट ऑन करने से पहले ही उसे अपनी गर्दन पर किसीके भारी हाथ का दबाव महसूस होने लगा।डॉ कॉरल के हाथों से शॉपिंग बैग्स और पर्स दूर जाकर गिरे। और उन दोनों के दरम्यान जम के हाथापाई हुई।


डॉ कॉरल के गले पर उस इंसान की पकड़ और भी मजबूत होने लगी। कॉरल ने उसके हाथ पर अपने नुकीले दाँतों का गहरा निशान छोड़ना चाहा। पर वो पूरी तरह से कामयाब न हो पाई। फिर भी उससे एक काम अपनी हिफ़ाज़त में हो ही गया।डॉ कॉरल ने अपने बालों में लगी बोबपिन से उस नराधम की बायीं आँख पर ताकतवर हमला किया। बार बार होने वाले हमले से उसकी आँख के कोने से रक्तधार के कुछ बूंदें झरने लगे।


वो नरपिशाच कराहने लगा। फिर भी उसकी पकड़ कॉरल की गर्दन पर कसती ही चली गई।और, चहेरे पर तनी हुई नसों को और धनुषाकार में खींचते हुए उस इन्सान ने कॉरल के गले बाँस के कॉंटे चुभोए। कॉरल की बोबपिन उसके हाथ से छूट गई। तो उसने नायलॉन की रस्सी का फंदा कॉरल के गले में कस दिया। फंदे को हटाने की कसमसाहट में कॉरल के पैरों की कई लातें उस इंसान के जांघों और दो पैरों के बीच लगी।वो कराहा। और उसने बाँस के कॉंटे उसकी छाती में घुसेड़ दिए।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime