बालिका मेधा 1.12
बालिका मेधा 1.12
मम्मी से मैंने सच कह दिया - मम्मा, आपकी बताई कुछ बातें पूरी तरह से समझ में नहीं आईं हैं। इनको बाद में समझने के लिए मैंने कॉपी में लिख लिया है।
मम्मी ने कहा - हाँ, कुछ बातें अभी तुम्हें पूरी तरह समझ नहीं आ पाएंगी। यह बड़े होने पर ही समझ आ सकेंगी। मैं आगे की चर्चा में तुम्हारी कठिनाई को समझते हुए सरल बातें ही कहूँगी।
मैंने असहमति में कहा - नहीं, आप तो अपने उत्तर इसी तरह से दीजिए। मुझे अधिकतर बातें समझ आ रही हैं। बाकी जो अभी समझ नहीं पा रही हूँ उन्हें मैं नोट कर लूँगी।
मम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा - ठीक है, इसके लिए मैं एक डायरी तुम्हें दे दूँगी।
फिर मम्मी चाय पीने लगीं थीं और मैंने लस्सी का गिलास ले लिया था। लस्सी पीना शुरू करने के पहले मैंने पूछा -
मम्मी, आपने जैसा बताया उसके अनुसार वस्त्र, लड़कियों या महिलाओं पर जबरदस्ती या हत्या में कारण नहीं होते हैं।
मम्मी ने कहा - हाँ मेधा, बिलकुल नहीं! छोटे वस्त्र नहीं, पुरुष की छोटी समझ, नशा और काम वासना उनके ऐसे दुष्कृत्य में कारण होती हैं। निर्भया प्रकरण में जो परिस्थितियां रहीं थीं उनमें, निर्भया की जगह कोई बुर्का पहनी युवती भी होती तो भी उस हादसे से बच नहीं पाती।
मेरे लस्सी एवं मम्मी के चाय पीने के बीच ही मैंने अगला प्रश्न किया -
मम्मा, हम लड़कियों की स्कूल चर्चा में, मेरी फ्रेंड्स यह कहती मिलीं थीं कि निर्भया का, अपने प्रेमी के साथ घूमते पाए जाने से, उन लोगों ने उस पर जबरदस्ती और हत्या की है। आपका ध्यान मैं आपकी बात पर कराना चाहती हूँ, कभी आपने कहा था कि युवा होने पर लड़का-लड़की में आकर्षण या प्रेम बुरा नहीं अपितु सहज होता है। बड़ी हो चुकी निर्भया और उसके बॉय फ्रेंड में फिर ऐसा था तो इससे किसी अन्य को परेशानी क्यों थी?
मम्मी ने पहले विचार किया फिर कहा -
मेधा, समझने में थोड़ा कठिन अवश्य है फिर भी मुझे आशा है कि तुम समझ सकोगी। वास्तव में लड़का या लड़की का परस्पर आकर्षण और उनमें प्रेम होना बिलकुल भी बुरी बात नहीं होती है। उस रात निर्भया का अपने प्रेमी के साथ होना भी कोई बुरी बात नहीं थी।
यहाँ समस्यामूलक (Problematic) बात यह है कि हमारे समाज में आज, ऐसे कई लड़के और युवक हैं जिनमें किसी के लिए उनका आकर्षण और प्रेम इकतरफा रह जाता है। अर्थात जिनको अपने प्रेम या आकर्षण के बदले में किसी का साथ उपलब्ध नहीं होता है। ऐसे लोगों में नशे की हालत में भटकने की प्रवृत्ति रहती है। ऐसे ही लोगों में से कुछ ऐसे घिनौने कृत्य कर बैठते हैं।
इन्हें अन्धकार या वीराने में मिलती कोई लड़की या कोई असहाय युवती अपने लिए मौका प्रतीत होती है। ये लोग उसकी सहायता करने के स्थान पर उस पर जबरदस्ती कर देते हैं। अपनी करतूत कर गुजरने के बाद इन्हें अपने अपराध की सजा का भय हो जाता है। पीड़िता की हत्या करके ‘ये दुष्कर्मी’, सोचने लगते हैं कि इन्होंने अपने विरुद्ध साक्ष्य नष्ट कर दिए हैं इसलिए सजा से बच जाएंगे।
मैंने कहा -
जब हर लड़की, लड़कों के प्रति आकर्षण अनुभव करती है तो ऐसे लड़के क्यों रह जाते हैं जिन्हें कोई लड़की का साथ नहीं मिल पाता है।
मम्मी ने सोचते हुए बताया -
इसका कारण स्त्री-पुरुष के अनुपात में कमी होना है। आज देश में 1000 पुरुष के तुलना में 940 स्त्री ही हैं। अर्थात हर 100 में 6 पुरुष, ऐसे छूट जाते हैं जिन्हें प्रेमिका/पत्नी से वंचित रह जाना होता है। यह संख्या छोटी प्रतीत होती है मगर समाज मर्यादाओं के लिए बड़ा खतरा होती है।
मैंने पूछा - मम्मी, इसका कारण क्या है कि लड़कियाँ कम, लड़के अधिक पैदा होते हैं?
मम्मी ने बताया - हालांकि प्रकृति में लड़का-लड़की दोनों के जन्मने की संभाव्यता (Probability) समान होती है। अतः अनुपात 50:50 का ही होता है। स्त्री-पुरुष का अनुपात बिगड़ जाने के लिए, लड़कियों/महिलाओं पर ऐसे दुष्कृत्य भी जिम्मेदार होते हैं।
किसी भी माता-पिता को यह पसंद नहीं होता है कि उनकी बेटी, दुष्कृत्य या दुष्कृत्य-हत्या की शिकार हो जाए। आज जब समाज में ऐसे हादसे बढ़ गए हैं तो अनेक पिता ऐसे हो गए हैं, जो अपनी बेटी को जन्मने नहीं देते हैं। अवैध परीक्षण करवा कर ये पिता, गर्भ में ही अजन्मी बेटी की हत्या करवा देते हैं। ऐसे पिताओं के द्वारा कुछ बेटियां, जन्म के बाद मार दी जाती हैं। कुछ युवतियां, दुष्कृत्य के बाद की हत्याओं में प्राण गँवा देती हैं। प्रत्यक्षतः (Apparently) इन कारणों से ही स्त्री संख्या, पुरुषों से कम हो गईं हैं।
अब मैंने पूछा - मम्मी, ऐसे दुष्कृत्य करने वाले लड़कों के माँ-पिता को, अपनी संतान की करनी का बुरा नहीं लगता है?
मम्मी ने बताया -
क्यों नहीं, लगता है। ऐसे कपूत (Unworthy) बेटे जब अपराध के बाद में पकड़े जाते हैं और उन्हें सजा होती है तब ये माँ-पिता, अपने अपराधी बेटों से अधिक मानसिक यातना (Mental torture) अनुभव करते हैं। अगर हत्या के अपराध में, इन्हें फाँसी की सजा मिलती है तब ये अपराधी, फाँसी होने तक नित दिन अनेकों बार मरते हैं। इतनी ही और अधिक बुरी हालत इनके माँ-पिता की होती है। ये माँ-बाप, शेष जीवन भर एक बार में मर जाने से अधिक बुरी स्थिति में जीने को विवश होते हैं। ये तिल तिल कर (Gradually) हर पल मरते जाते हैं। इन पर सामाजिक कलंक लग जाता है सो तो अलग है ही।
मैंने पूछा - लड़के ऐसे बुरे क्यों बन जाते हैं?
(क्रमशः)