बाधाएं मिटाएं
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आज समस्त विश्व कोविड-19(नोवेल कोरोना वायरस) की भयंकर महामारी के दंश से भयाक्रांत है। अधिकांश लोग पूरी जागरूकता के साथ अन्य लोगों को जागरूक करने की मुहिम में जी-जान से जुटे हैं। चिकित्सा, पुलिस, मीडिया,स्वच्छता, आपूर्ति, किसान आदि भी राष्ट्ररक्षक पूरे मनोयोग से अपने-अपने सेवा कार्य में लगे हैं।
दूरदर्शन पर कुछ दृश्यों को देखकर मन में अपार क्षोभ हुआ।एक दृश्य में दो -तीन पुलिस कर्मी खड़े हैं ।यहां उनका कर्त्तव्य है कि वे एक-एक वाहन की जांच करें और केवल आवश्यक सेवाओं से सम्बद्ध व्यक्ति को ही जाने दें।पर ये पुलिस कर्मी किसी वाहन को जब रोक ही नहीं रहे हैं तो टोकने और जांचने का कोई प्रश्न ही नहीं। एक मीडिया रिपोर्टर जब उनमें से एक पुलिस कर्मी से रोक-टोक न करने का कारण जानना चाहता है तो वह कहता है कि ये सब आवश्यक सेवाओं वाले ही लोग हैं।
दूसरे दृश्य में एक अधिकारी के एक हाथ में स्क्रीनिंग मशीन है जिससे उसे पंक्तिबद्ध लोगों की जांच करनी है कि कहीं कोई कोरोना संदिग्ध व्यक्ति तो इनमें नहीं है। उसके दूसरे हाथ में मोबाइल है जिसे वह अपने कान पर लगाकर बात करने में मशगूल हैं। जिस हाथ में उसने स्क्रीनिंग मशीन थाम रखी है उससे वह दूर से ही पंक्ति में खड़े व्यक्तियों में से एक के बाद एक को आगे बढ़ने का इशारा कर रहा है। स्क्रीनिंग करने की वह जहमत ही नहीं उठा रहा है।
सामाजिक दूरी बनाए रखने की प्रधानमंत्री की हार जोड़कर विनती के बावजूद दूध के खाली टैंकर के अंदर बैठकर यात्रा करके आए लोगों को टैंक के अंदर निकलते हुए देखने का दृश्य यह स्पष्ट करता है कि लोगों को जो काम करने के लिए मना किया जाता है वे उसे हजार बहाने बनाकर जरूर करते हैं।
इन दृश्यों को देखकर मुझे मित्र द्वारा बताई गई एक अप्रिय घटना की बरबस याद आ जाती है।एक कार्यालय परिसर में घुसकर वहां के कर्मचारियों की कुछ लोगों द्वारा पिटाई कर दी जाती है। कार्यालय के मुख्यद्वार पर नियुक्त सुरक्षा गार्ड को कार्यालय अधीक्षक ने पकौड़े और पान लाने के लिए बाजार भेजा हुआ होता है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी क्लर्क का काम कर रहा होता है! कार्यालय अधीक्षक कार्यालय के बाहर मैदान में क्लर्कों के साथ मदिरापान करते हुए नशे में धुत होते हैं।नशे की हालत में वे अपना बचाव करने में भी असमर्थ होते हैं।जिन लोगों की सेवा कार्य के नाम पर उनके ही द्वारा दिए गए टैक्स से इन कर्मचारियों को वेतन मिलता है उनसे तो सीधे मुंह बात ही नहीं की जाती।दलाल इन सीधे -सादे लोगों से काम कराने के लिए सुविधा-शुल्क ऐंठ लेने के बाद गधे के सिर से सींग की भांति गायब हो जाते हैं।पर जब इन सीधे-सादे लोगों का धैर्य जवाब दे जाता है तो ऐसे हादसे हो जाते हैं।
जनता के बहुसंख्यक लोग जानकार और जागरूक होने की बजाय चांदी का जूता मारकर काम करवाने को प्राथमिकता देते हैं।उनका तर्क होता है कि बार-बार आफिस के चक्कर काटने से आने-जाने से समय बर्बाद करने से बेहतर है सुविधा-शुल्क लेकर समस्या का समाधान शीघ्रता से करवा लिया जाए।यही भाव रिश्वतखोरी को बढ़ावा देते हैं।
रिश्वत देने से सारा काम ठीक ही हो जाएगा इसकी भी गारण्टी नहीं। कामकरवाने वाला बार-बार आए और हर बार आकर रिश्वत दे जाए इसलिए काम करने वाले उस काम में कई बार जान बूझकर कुछ कमियां छोड़ देते हैं। एक बार रिश्वत देकर उसने एक काम करवाया दूसरी बार फिर उसमें संशोधन करवाने के लिए वह ऑफिस फिरसे आए और दोबारा रिश्वत देकर जाएगा ।कई बार लोगों के डॉक्यूमेंट में उनका खुद का नाम, पिता का नाम ,जन्म तिथि आदि प्रविष्टयों में से कोई एक या एक से अधिक त्रुटिपूर्ण होती है। कई बार अलग-अलग डॉक्यूमेंट में उनकी जन्मतिथि भी अलग-अलग मिलती है। एक डॉक्यूमेंट में एक जन्मतिथि लिखी होगी तो दूसरे में अलग क्योंकि जब रिश्वत दे देते हैं तो दूसरा व्यक्ति उनके कहने से या खुद अपने मन से कोई जन्मतिथि लिखकर डॉक्यूमेंट बनवा देता है ।जब दूसरा डॉक्यूमेंट बनवाने जाते हैं तब भी वहां रिश्वत दिए जाने के कारण बिना किसी विशेष जांच पर के कोई भी जन्मतिथि लिख दी जाती है ।इस प्रकार दो या अधिक डाक्यूमेंट में एक ही व्यक्ति की अलग-अलग जन्मतिथियां मिल जाती हैं।जब एक ही कार्यालय में एक साथ उन अलग-अलग डाक्यूमेंट्स को जमा करने की नौबत आती है तब स्थिति का पता लगता है। तब फिर से वही रिश्वत की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
निश्चित रूप से यही देश का दुर्भाग्य है और विविध योजनाओं की असफलता का राज।इतने वर्ष पूर्व लिखे गए" श्री लाल जी" शुक्ल के उपन्यास"राग दरबारी" की परिस्थितियां जस की तस आज भी बनीं लगती हैं।
आज आवश्यकता है कि आशातीत सफलता प्राप्ति हेतु इन बाधाओं को पहचानें। नियोजित ढंग से योजनाओं का कार्यान्वयन कर देश के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करें।