Kumar Vikrant

Horror Romance

4  

Kumar Vikrant

Horror Romance

अतृप्त आत्मा

अतृप्त आत्मा

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794


सफर 

सप्ताहांत में देवदुर्ग से महिमा पुर तक का सफर विक्रम के लिए सदैव उत्साह भरा होता था, आखिर वही तो प्रेयसी मिलती थी उसे। जिंदल कन्स्ट्रक्टर में आर्किटेक्ट के तौर पर काम करने वाले विक्रम की महिमा पुर में कार्यरत स्कूल टीचर प्रेयसी से मुलाकात छह महीने पहले ही हुई थी।

प्रेयसी उसकी पत्नी रचिता की मित्र थी और जब रचिता को पता लगा कि प्रेयसी महिमा पुर में कार्यरत और प्रत्येक सप्ताह विल सिटी से महिमा पुर तक आना-जाना करती है तो उसने विक्रम से पूछा कि क्या वह विल सिटी से देवदुर्ग जाते समय मित्र प्रेयसी को महिमा पुर में छोड़ सकता है? विक्रम के हाँ कहने पर प्रेयसी उसके साथ प्रत्येक सप्ताह महिमा पुर तक आना-जाना करने लगी। २२० किमी का सफर दोनों को एक दूसरे के प्रति आकर्षित करने लगा। साधारण चेहरे-मोहरे वाली प्रेयसी के जिस्म को देखकर अकसर विक्रम की साँसे रुक जाती थी।

एक दिन महिमा पुर से विल सिटी आते समय दोनों बहक गए और दोनों ने महिमा पुर के पास काली पहाड़ी के जंगल में कार रोक कर प्रेम किया। उस दिन के बाद प्रत्येक सप्ताहांत दोनों काली पहाड़ी के जंगल में कार रोक कर कार में ही प्रेम करने के उपरांत ही आगे का सफर करते थे।

सर्दी का दिन होने की वजह से महिमा पुर पहुँचते-पहुँचते ही विक्रम को अँधेरा हो चुका था। प्रेयसी से उसे रेड सर्किल के पास एक बड़ा सा पैकेट लिए मिली और दोनों का विल सिटी का सफर शुरू हुआ।

"क्या उस पैकेट में कंबल है?" विक्रम ने पूछा।

"है तो......क्यों पूछ रहे हो?" प्रेयसी ने मुस्करा कर पूछा।

"समझ लो, ये हम दोनों के बहुत काम आ सकता है........" विक्रम ने मुस्करा कर जवाब दिया।

"कौन से काम?" प्रेयसी ने मुस्करा कर पूछा।

"इतनी नादान न बनो, समझ लो........"

"धत्त, तुम्हें तो हर बार एक ही बात सूझती है........." प्रेयसी हँस कर बोली।

अवैध प्रेम

काली पहाड़ी का जंगल पूरे पचास किमी के फासले में फैला हुआ था, लेकिन आज उनके प्रेम स्थल पर चहल-पहल थी। पूरे दस किमी के दायरे में गड़िया लुहार फैले हुए थे। जहाँ तक देखो उनकी गाड़ियाँ और उनके औरत बच्चे नजर आ रहे थे। भीड़ को देख कर दोनों को बड़ी निराशा हुई। दोनों ने ठंडी आह भरी और कार आगे बढ़ा दी। जंगल खत्म होने के १० किमी पहले काली नदी के दुल्हन घाट पर सन्नाटा मिला। विक्रम ने कार रोक ली।

"यहाँ क्यों रोक रहे हो?" प्रेयसी ने पूछा।

"यहाँ के बाद कोई मौका नहीं मिलेगा........" विक्रम प्रेयसी का हाथ पकड़ते हुए बोला।

"यहाँ कुछ नहीं कर सकते, यहाँ दुल्हन की पूजा होती है......" प्रेयसी ने डरते हुए कहा।

"दुल्हन......."

"हाँ, कोई दुल्हन सदियों पहले कुँवारी ही मर गई थी इस घाट पर, कहते है वो तब से यही रहती है और आस-पास के गांव वाले उसकी आत्मा की शांति के लिए उसकी पूजा करते है। ऐसी जगह प्रेम करना उचित नहीं लगता है......" प्रेयसी चिंतित स्वर में बोली।

"क्या बकवास है, अब कोई भूत-प्रेत नहीं होते है.......पूरे हफ्ते इंतजार किया है आज के दिन का, मैं आज का दिन खराब नहीं करूँगा......आओ आज कार से बाहर प्रेम करेंगे तुम्हारे कंबल पर......." विक्रम उत्सुकता के साथ बोला।

"वो तो है, लेकिन इस जगह......." प्रेयसी चिंतित स्वर में बोली।

"कोई खराबी नहीं है इस जगह, देखो सामने एक झुरमुट सा है, वही चलते है......" विक्रम प्रेयसी को कार से बाहर निकालते हुए बोला।

प्रेयसी अनिच्छा से कार के बाहर आई और विक्रम को रोक कर कंबल की और इशारा किया। विक्रम ने हँसकर कंबल कार से निकाल लिया।

थोड़ी देर बाद दोनों उस घने झुरमुट के पीछे अभिसार रत थे।

दुल्हन 

विक्रम और प्रेयसी का प्रेम ज्यादा देर न चल सका, एक ठंडी हवा के झोंके ने दोनों को चौका दिया, और प्रेयसी की आँखें चमक उठी।

"रुक क्यों गया.....चल शुरू हो जा........" प्रेयसी ने हल्की सी गुर्राहट के साथ कहा।

"तुम्हारी आवाज को क्या हुआ?" विक्रम ने प्रेयसी की बदली हुई आवाज को सुनकर बोला।

"बकवास मत कर, प्रेम कर मुझे.......यदि मैं अतृप्त रही तो तुझे मार दूँगी।" प्रेयसी विक्रम को आलिंगन में लेते हुए बोली।

विक्रम को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि प्रेयसी का शरीर अब बर्फ की तरह ठंडा था और उसका मन कर रहा था कि वो कैसे भी प्रेयसी के आलिंगन से आजाद हो जाए।

"तू पुरुष नहीं है या तू इतने में ही तृप्त हो गया?" प्रेयसी ने गुर्रा कर पूछा।

"कौन हो तुम मुझे छोड़ दो......." विक्रम डरते हुए बोला।

"अपुरुष तू या तो मुझे संतुष्ट करेगा या मरेगा........" प्रेयसी चीख कर बोली।

"मुझे छोड़ दो......." प्रेयसी के कठोर आलिंगन में फँसा विक्रम डरते हुए बोला।

"अपुरुष......." कहते हुए प्रेयसी ने उसे अपने आलिंगन से आजाद कर दिया।

विक्रम नग्नावस्था में अपनी कार की तरफ भागा, वो कुछ ही कदम दौड़ पाया था कि उसके कदम उखड़ गए और वो हवा में तैरने लगा।

"ये दुल्हन घाट है पापी, यहाँ पाप करने वाला दुल्हन के लिए बलि चढ़ता है........" कहते हुए प्रेयसी ने अपना हाथ हवा में उठाया।

प्रेयसी के हाथों के इशारे से विक्रम हवा में सैकड़ों फ़ीट ऊँचे उछला और फिर तेजी से नीचे गिरा। झुरमुट के पास एक ठुंठे जैसा पेड़ था जिसका अंतिम सिरा नुकीला था, विक्रम उसी ठूंठ पर गिरा और वो ठूंठ उसके पेट के आर-पार हो गया।

अचानक प्रेयसी को होश आया और वो स्वयं का नग्नावस्था में देख कर घबरा गई क्योंकि उसके सामने दुल्हन के लाल जोड़े में एक स्त्री खड़ी थी, जिसकी आवाज हवा में गूँजी, "कुलटा तू पति के होते हुए भी परपुरुष के साथ अभिसार रत थी। क्या तू तृप्त हो गई?"

जवाब देने के स्थान पर प्रेयसी सड़क की तरफ भागी।

"कुलटा तू भाग न सकेगी, या तो मेरी बात का जवाब दे नहीं तो अपने अवैध प्रेमी के पास जाने के लिए तैयार हो जा।" दुल्हन चीख कर बोली।

प्रेयसी को कुछ सूझ नहीं रहा था, वो एक पल को ठिठकी लेकिन अगले ही पल सड़क की और दौड़ पड़ी।

अंत 

प्रेयसी दूर न जा सकी दुल्हन के हाथ के इशारे से वो हवा में सैकड़ों फ़ीट ऊँचे उछल गई और ठुंठे पेड़ पर तेजी से आ गिरी। तना उसके भी आर पार हो गया और उसका नग्न शरीर विक्रम के नग्न शरीर के पास जा लगा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

नीचे खड़ी दुल्हन ने एक वीभत्स ठहाका लगाया और हवा में उछल कर उसी ठुंठे पेड़ के नुकीले सिरे पर जा बैठी और जोर-जोर के ठहाके लगाने लगी।


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