Sunil Joshi

Classics

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Sunil Joshi

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असली हक़दार

असली हक़दार

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शहर का टाउन हाल आज पूरी तरह से रंग- बिरंगी रोशनी में नहाया हुआ लग रहा था। चारों तरफ चहल-पहल और रंग -बिरंगे कपडे पहने लोग एक दूसरे से बतिया रहे थे या किसी न किसी कार्य में व्‍यस्‍त थे। हर चेहरे पर मुस्‍कान के साथ साथ उत्‍सुकता का भाव भी था। ये मौका था राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बैंक कर्मचारियों की पिछले पॉंच दिनों से चल रही सांस्‍कृतिक प्रतियोगिताओं के समापन का। आज विभिन्‍न प्रतियोगिताओं के विजेताओं का नाम घोषित होना था और उन्‍हें पुरस्‍कार दिया जाना था। थोड़ी ही देर में सभी लोग जो बाहर खड़े थे, अपनी-अपनी जगह पर जाकर बैठ गए और मंच से एक-एक विजेता का नाम पुकारा जाने लगा और वहां उपस्थित वरिष्‍ठ अधिकारियों में से अलग-अलग अधिकारी को पुरस्‍कार देने के लिए मंच पर आमंत्रि‍त किया जाने लगा। हर विजेता के नाम की घोषणा होने पर और पुरस्‍कार देने के लिए मंच पर आंमत्रित किया जाने लगा। हर विजेता के नाम की घोषण होने पर और पुरस्‍कार वितरण के समय पूरा हाल जोरदार तालियों से गूँज उठता। देखते ही देखते कार्यक्रम अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया और अब नाटक प्रतियोगिता के श्रेष्‍ठ अभिनेता के नाम की घोषणा होनी थी। सभी कलाकार जिन्‍होंने नाटकों में अभिनय किया था, उनके दिलों की धड़कन जरा और बढ़ गई। और मंच से उद्घोषक ने जैसे ही श्रेष्‍ठ अभिनेता के लिए रवि का नाम पुकारा, सारा हॉल तालियों और सीटियों से गूँज उठा। रवि के चेहरे पर भी एक गहरी मुस्‍कान छा गई और वो तुरंत मंच पर पुरस्‍कार लेने के लिए पहुंच गया। उद्धोषक ने जब बैंक के महाप्रबंधक श्री सुबोध को मंच पर आकर रवि को पुरस्‍कार देने के लिए आमंत्रित किया तो रवि के चेहरे की मुस्‍कान गायब हो गई और एक अजीब सा भाव उसके चेहरे से झलकने लगा। उसके सामने कुछ समय पहले घटित हुई एक घटना किसी चित्रपट की तरह उसके मानस पटल पर चलने लगी। उसे उस घटना की एक-एक बात याद आने लगी जब वो श्री सुबोध से मिला था।

उस दिन रवि बड़े असमंजस में था जब बड़े बाबू ने उसे बताया था कि उसे बैंक के अतिरिक्‍त महाप्रबंधक श्री सुबोध ने जयपुर बुलाया है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उस जैसे एक साधारण क्‍लर्क को इतने ऊंचे अधिकारी ने क्‍यों बुलाया है। उसने अपने बड़े बाबू व वहॉं के अधिकारियों से भी बात की, लेकिन सभी ने अनभिज्ञता जाहिर कर दी। आखिरकार असमंजस की स्थिति में ही रवि जयपुर पहुँच गया श्री सुबोध से मिलने। रवि ने चपरासी के हाथ अपना नाम लिखकर एक पर्ची श्री सुबोध के पास भिजवा दी और उसे तुरंत ही अंदर बुला लिया गया।

रवि - सर, क्‍या मैं अंदर आ सकता हूँ ? सुबोध ने बिना उस तरफ देखे उसे अंदर आने के लिए कहा और उसे सामने राखी कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा किया और पूछा “आफिस और घर में सब ठीक है”। 

रवि - जी सर, सब ठीक है, लेकिन आपने मुझे यहॉं क्‍यों ..........................................................

सुबोध - बताता हूँ, बताता हूँ.................................मैंने आपको किसी काम से ही बुलाया है।

रवि - बताईये सर मैं आपके लिए क्‍या कर सकता हूँ ?

सुबोध (मुस्‍कुराते हुए रवि को समझाने की मुद्रा में)- देखो रवि मैं जानता हूँ तुम हमारी संस्‍था के एक बहुत ही ईमानदार और कर्मठ कर्मचारी हो और हमसब को तुम पर गर्व है।

रवि - ये तो आपका बड़प्‍पन है सर।

सुबोध -मैं ये बाते तुम्‍हें खुश करने के लिए नहीं बल्कि हकीकत है इसलिए कह रहा हूँ। मैं जानता हूँ तुम्‍हारे साथ अन्‍याय हुआ है और तुम्‍हें एक आरोप पत्र भी दिया गया है।

लगातार........2

 रवि - सर उसमें मेरी कोई गलती नहीं है फिर भी...............................

सुबोध ने रवि की बात बीच में ही काटते हुए और उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा '' तुम्‍हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है, अपनी इस संस्‍था के सभी कर्मचारी मेरे परिवार के सदस्‍य की तरह हैं और ये मेरी नैतिक जिम्‍मेदारी है कि मैं उनका हर तरह से ख्‍याल रखूँ और उनकी मदद करूँ। मेरा विश्‍वास करो, मैं तुम्‍हें किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने दूँगा। 

रवि - बड़ी मेहरबानी होगी सर। 

सुबोध ने चपरासी से दो चाय लाने को कहा। 

सुबोध - देखो रवि मैंने तुम्‍हें यहॉं इसलिए बुलाया है कि तुमने जो अपने अधिकारी श्री विनय के संबंध में मुझे शिकायत पत्र भेजा है उसे वापस ले लो। 

एक पल के लिए रवि को विश्‍वास ही नहीं हुआ कि जो कुछ सुबोध ने अभी-अभी कहा है वही उसने सुना है अथवा कुछ और। रवि के चेहरे पर अचानक से भावों का सैलाब उमड़ने लगा और वो कुछ भी समझने की स्थ्‍िाति में नहीं रहा। वो अवाक सा सुबोध की तरफ देखने लगा। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके मुंह में जबान ही न हो और गला एकदम सूख सा गया।

जैसे तैसे रवि ने अपने आपको संभालते हुए सुबोध से कहा ''सर थोड़ा पानी मिलेगा''। 

सुबोध ने तुरंत अपने पास रखे पानी के ग्‍लास को रवि की तरफ सरका दिया और रवि ने एक सांस में ही वो पूरा पी लिया। रवि एकदम अवाक सा सुबोध की तरफ देखने लगा। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्‍या कहे, फिर भी उसने अपने आपको संभालते हुए कहा - ''लेकिन सर वो शिकायत बिल्‍कुल सही है और मेरे पास आवश्‍यक सबूत भी है उनके खिलाफ''।

सुबोध ने बड़े प्‍यार से रवि को समझाते हुए कहा-''मुझे पता है, लेकिन रवि मेरी बात को समझने की कोशिश करो, हम सब एक परिवार के सदस्‍य हैं , अगर हम ऐसे एक दूसरे की शिकायत करते रहेंगे तो उसका असर हमारे काम पर भी पडे़गा और हमारे निजी जीवन पर पड़ेगा। और फिर आफिस का माहौल खराब होता है। मुझे पता है तुमने जो शिकायत की है वो सही है, मैंने विनय को बुलाकर समझाया है और तुम्‍हें आश्‍वासन देता हूँ आगे से वो ऐसी गलती नहीं दोहराऍंगे, ना ही तुम्हें किसी गलत कागज़ पर हस्ताक्षर के लिए दबाव डालेंगे और ना ही अब तुम्हें कभी तंग करेंगे,मेरा विश्‍वास करो”।

 तभी चपरासी ने दो कप चाय लाकर मेज पर रख दी। सुबोध ने रवि को चाय लेने के लिए इशारा किया। रवि- चाय के लिए धन्‍यवाद सर। लेकिन सर मेरी तो कोई गलती ही नहीं थी फिर भी ......................... सुबोध -मैंने कहा न तुम्‍हें किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने दूँगा। 

थोड़ी देर तक कमरे में खामोशी छायी रही और दोनों चाय पीते हुए कभी एक दूसरे की तरफ देखते कभी कमरे की दीवारों को देखने लगते। खामोशी को तोड़ते हुए सुबोध ने कहा - फिर भी तुम्‍हें मुझ पर विश्‍वास नहीं है तो......................'' 

रवि सुबोध के चेहरे की तरफ देखकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा।

रवि ने महसूस किया कि सुबोध वाकई में उसका शुभचिंतक है और जो कुछ भी वो कह रहा है शायद ईमानदारी से और सही बात कह रहा है और उसे उसकी बात मान लेनी चाहिए। यही सब सोचते हुवे रवि ने कहा “ठीक है सर, आप कहते हैं तो मैं अपनी शिकायत वापस ले लेता हूँ”।

लगातार.......3

सुबोध के चेहरे पर एक विजयी मुस्‍कान फैल गई और उसने खुश होते हुए रवि को बहुत धन्‍यवाद दिया और फिर रवि इस उम्‍मीद के साथ वहॉं से उठा कि अब उसके आरोप पत्र का उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। रवि ये सोचकर बहुत खुश था कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं जो अपने कर्मचारियों को अपने परिवार की तरह समझते हैं और उनका ख्‍याल रखते हैं। सुबोध के व्‍यवहार से रवि बहुत खुश और आश्‍वस्‍त था। रवि को लगा कि उसे खुद ही बहुत पहले आकर सुबोध साहब से मिल लेना चाहिए था, वो बिना बात ही इतने दिन परेशान रहा। वो तो अच्‍छा हुआ की साहब ने खुद बुलाकर सारी बात करली नहीं तो न जाने उसे कौन सी सज़ा दी जाती और उसका अगला प्रमोशन ही नहीं हो पाता। ये सोचते-सोचते वो ख्‍यालों की दुनिया में उड़ान भरले लगा कि अब उसका भी प्रमोशन हो जाएगा तो उसकी कुर्सी भी बड़े बाबू के पास लगेगी और ऑफिस में उसका भी रूतबा बढ़ जाएगा से लेकर न जाने क्‍या-कया ख्‍याल उसके मन में आने लगे और इसी उधेडबुन में वापस अपने मुख्यालय पहुंचते ही अगले दिन उसने तुरंत वो शिकायत पत्र वापस ले लिया।

और रवि के वो शि‍कायत पत्र वापस लेने के एक सप्‍ताह बाद ही श्री विनय बैंक के उप महाप्रबंधक बन गए और श्री सुबोध बैंक के महाप्रबंधक और रवि के आरोप पत्र का निस्‍तारण रवि को एक ग्रेड नीचे कर देने की शास्ति के साथ हो गया।

रवि को जब शास्ति पत्र मिला तो उसका चेहरा एकदम भाव शून्‍य हो गया और उसे लगा जैसे उसके ऊपर किसी ने लावा उड़ेल दिया हो। वो सपने जो उसने सुबोध से मिलने के बाद देखे थे वो एक ही पल में खाक में मिल गए और वो हताश सा अपनी मेज पर सिर रखकर बैठ गया। उसे लगा उसके साथ कोई बड़ी साजिश रची गई थी। बड़े बाबू ने जब उसे इस हाल में देखा तो उसके पास जाकर उसे सांत्‍वना देते हुए पूछा''रवि तुम तो कह रहे थे कि सुबोध जी ने तुम्‍हें आश्‍वासन दिया है कि---, फिर ये.......?

रवि ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभालते हुए कहा ''यही तो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।'' ये कहते कहते उसका गला भर आया। हताशा का एक कारण ये भी था कि अब वो अपनी पत्‍नी सुनीता को क्‍या जवाब देगा, जिसने उसे समझाने की कोशिश करी थी कि शिकायत पत्र वापस लेने से पहले अपने आरोप पत्र का निस्‍तारण करवालो नहीं तो बड़े लोगों का क्या पता! लेकिन उसने उसकी एक नहीं सुनी और बड़े ही आत्‍मविश्‍वास से कहा था ''अरे तुम नहीं समझती हो, वो बहुत बड़े अधिकारी हैं। जब उन्‍होंने खुद मुझे बुलाकर आश्‍वासन दिया है तो वो जरूर मेरा ख्‍याल रखेगें। इतने बड़े अधिकारी कभी झूठ नहीं बोलते'' यही सब सोच सोच कर उसे अपने आप पर और ज्‍यादा गुस्‍सा आने लगा। वो इस बात से हैरान व दुखी था कि समाज का एक प्रतिष्ठित व्यक्ती भी अपनी जबान से पलट सकता है। तो फिर ऐसे में कोई व्यक्ती किस पर विश्वास करे?

बड़े बाबू ने जैसे तैसे उसे संभाला और पूरी बात बताने के लिए कहा। बड़े बाबू को जब रवि ने पूरा किस्‍सा बताया तो बड़े बाबू से उसे पता चला कि सुबोध सर पर ऊपर से दबाव था कि किसी प्रकार से श्री विनय के खिलाफ की गई शिकायत वापस करवाएं जिससे श्री विनय का प्रमोशन हो सके और इसी शर्त पर श्री सुबोध का प्रमोशन भी अटका हुआ था और इस कारण श्री सुबोध ने उसे बुलाकर समझाया था। बड़े बाबू ने रवि को धीरज बंधाते हुए कहा तुम आज ही जयपुर के लिए निकल जाओ और कल सुबोध सर से मिलो क्‍योंकि कल वो वहॉं से अपना नया पद ग्रहण करने के लिए दिल्‍ली चले जाएंगे। रवि अगले ही दिन सुबोध सर से मिलने पहुंच गया। रवि ने अपने नाम की पर्ची अंदर भिजवाई लेकिन आज उसे दो घंटे इंतजार करना पड़ा तब कहीं जाकर उसका नंबर आया। अंदर जाते ही रवि ने सुबोध को नमस्‍ते किया लेकिन सुबोध ने बिना उसके नमस्‍ते का जवाब दिए और बिना उसकी ओर देखे फाईल पर नज़रें गड़ाए हुए पूछा ''कहो क्‍या बात है ?''

रवि - सर एक तो आपको बधाई , आपके प्रमोशन के लिए।  

लगातार........4

सुबोध ने अब धीरे से अपना चेहरा ऊपर करते हुए रवि की तरफ देखा और बिना मुस्‍कुराए हुए अपनी गर्दन ऊपर - नीचे करने लगा। रवि को समझ नहीं आ रहा था कि क्‍या ये वही शख्स है जिससे वो करीब पंद्रह दिन पहले मिला था। उस दिन तो बड़ी आत्‍मीयता से मिला था, लेकिन आज न तो चेहरे पर कोई मुस्‍कुराहट और न ही किसी प्रकार का अपनेपन का भाव था। तभी सुबोध ने पूछा'' और कुछ''। रवि ने अपने आपको संभालते हुए कहा “सर वो मेरा आरोप पत्र............................”, लेकिन सुबोध ने बीच में ही उसकी बात काटते हुए चेहरे पर थोड़ा गुस्से का भाव लाते हुए कड़क आवाज में बोला “ मैं यहां तुम्‍हारे आरोप पत्र पर चर्चा करने के लिए नहीं बैठा हूँ। प्रशासन ने जो ठीक समझा वो किया और मेरे नीचे भी कई अधिकारी हैं, आप उनसे मिलो, मुझे और भी बहुत काम है”। यह कहते हुए सुबोध वापस अपने काम में लग गया। रवि हताश सा खड़ा सुबोध को देखता रहा। उसे अब समझ आ गया था कि सुबोध ने उस दिन उसके शुभचिंतक होने का क्‍या शानदार अभिनय किया था कि वो उसे सच समझ बैठा।

तभी तालियों की गड़गडाहट के शोर से रवि का ध्‍यान टूटा और उसे ध्‍यान आया कि आज वो मंच पर श्री सुबोध से श्रेष्‍ठ अभिनेता का पुरस्‍कार लेने के लिए खड़ा है। जब श्री सुबोध, रवि को श्रेष्‍ठ अभिनेता का पुरस्‍कार देने लगे तब रवि के चेहरे पर अजीब से भाव थे और वो ये तय नहीं कर पा रहा था कि इस पुरस्‍कार का असली हकदार वो है या सुबोध।


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