Sunil Joshi

Inspirational

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Sunil Joshi

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सच्चा रंग

सच्चा रंग

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शाम के छ: बज चुके थे, जफर व श्‍याम रोज की तरह आज भी गांधी चौक की नुक्‍कड़ वाली दुकान पर चाय पी रहे थे। ये उनका रोज का काम था। दोनों अपने-अपने काम सेशाम को छूटते और सीधा इस दुकान पर पहुँच जाते जहॉं दिन भर की बातों का आदान प्रदान होता, कुछ बहस होती, कुछ हँसी ठिठोली होती और कुछ घर परिवार की बातें। दोनों बचपन से ही अच्‍छे दोस्‍त थे जो आज लगभग 30 वर्ष बाद भी वैसी ही थी। चाय का खाली गिलास रखते हुए श्‍याम ने कहा -''अच्‍छा यार चलता हूँ, अभी जाते हुए होली का कुछ सामान खरीदना है और फिर आज होलिका दहन है, उसकी भी तैयारी करनी है।''

जफर -ठीक है, मैं भी चलता हूँ मुझे भी जरा अपने मामू को देखते हुए जाना है।

श्‍याम - आज मामू के यहाँ कैसे ?

जफर -अरे यार कल उनके मौहल्‍ले में कुछ लोगों की किसी बात पर कहा सुनी हो गई और देखते-देखते वा झगड़ा हिंदू मुस्लिम में बदल गया।

श्‍याम -अच्‍छा हॉं, आज अखबार में भी था।वहॉं तो शायद कर्फ्यू लगा दिया है। लेकिन उसमें मामू को क्‍या हुआ।

जफर - अरे वो, दोनों पक्षों के बीच बचाव करने आए तो किसी ने उन पर ही पत्‍थर दे मारा तो सर पर चोट लगी है।

श्‍याम - यार समझ नहीं आता ये कौन लोग हैं जो हर झगड़े को धर्म का रंग दे देते है।

जफर - चल छोड़ यार, तू निकल लेट हो जाएगा और मैं भी चलता हूँ। और हॉं कल सुबह आ रहा है न।

श्‍याम - ये भी कोई पूछने की बात है। तुझे रंगे बिना तो मेरी होली अधूरी है।

 जफर -वो तो पता है मुझे लेकिन ये कल की घटना से शहर में थोड़ा तनाव है इसलिए पूछ रहा था।

 श्‍याम ने जफर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा हमारी दोस्‍ती के बीच आने वाले हर तनाव की ऐसी की तैसी और दोनों जोर से हंसने लगे और अपनी-अपनी राह निकल लिए।

शाम से ही पड़ौस का बिट्टू और जफर का बेटा इरफान साथ में खेल रहे थे। बिट्टू बड़ी सी पिचकारी लाया था, और दोनों ही बारी-बारी से उसमें पानी भरकर इधर उधर डाल रहे थे तो कभी एक दूसरे पर। कुछ देर खेलते-खेलते जब बिट्टू जाने लगा तो इरफान ने उसे उसकी पिचकारी देने से मना कर दिया और कहने लगा ये मेरी है। इस पर बिट्टू भी पूरा जोर लगाकर उससे अपनी पिचकारी छीनने की कोशिश करने लगा। 9-10 साल की उम्र होती ही ऐसी है, जो चीज पसंद आ जाए उसे जबर्दस्‍ती पा लेने की।

जब इरफान ने देखा कि वो पिचकारी नहीं छीन पा रहा हैं तो उसने उसे छोड़ दिया और रोता हुआ अपनी अम्‍मी जो कि रसोई में खाना बना रही थी, के पास पहुँच गया और उसकी साड़ी पकड़कर जिद्द करने लगा कि उसे भी पिचकारी चाहिए। ''अम्‍मी अभी के अभी बाजार चलिए मुझे भी बिटू जैसी बड़ी पिचकारी चाहिए।

उसकी अम्‍मी बोली बेटा जरा सब्र करो अभी तुम्‍हारे अब्‍बा आते ही होगें तो उनके साथ जाकर ले आना।

इतने में जफर भी घर पहुँच गया और पूछने लगा ''क्‍या हुआ छोटे मियां, आप किस बात की जिद पकड़े हो?''

 ज़फ़र की बेगम ने कहा “देखिये ना कबसे जिद कर रहा है पिचकारी के लिए। आप कपड़े बाद में बदलिएगा, पहले इसे बड़ी पिचकारी दिला लाओ”

जफर -लेकिन बेगम ......................

जफर की बात बीच में ही काटते हुए वो बोली बच्‍चा है उसे जो करना है करने दो।

बच्‍चों के लिए हर त्‍यौहार को त्‍यौहार ही रहने दो उसे अभी धर्मों में ना बांटो।

जफर ने चुपचाप अपने बेटे का हाथ पकड़ा और बाजार के लिए रवाना हो गया।

लगातार.........2

अगले दिन सुबह के नौ बज चुके थे। आज रँग खेलने वाली होली थी। मौहल्‍ले में जो कुछ हिंदू परिवार थे वो धीरे-धीरे रंगों के खेल में उतरने की लगभग तैयारी पूरी कर चुके थे। और मौहल्‍ले के बच्‍चे अपने-अपने धर्मों से बेखबर अपनी-अपनी पिचकारियों में रंग भरकर एक दूसरे पर रंग डालने में मशगूल हो चुके थे, इस भरोसे के साथ कि उनके वाला रंग ही सबसे पक्‍का है। उन मासूमों को क्‍या पता कि ये रंग तो केवल कपड़ों तक ही सीमित है, लोगों के दिलो-दिमाग पर चढ़ा धर्मों रंग इनसे कहीं पक्‍का है जो लाख कोशिश के बावजूद धुलने की बजाय और गहरा होता जा रहा है।

 जफर और उसकी बेगम बाहर के कमरे में बैठकर चाय पी रहे थे। तभी जफर ने पूछा, इरफान कहॉं है ?

''वो तो कभी का अपनी पिचकारी लेकर चौक में चला गया।

'' ये बच्‍चे भी न ...........................'' कहते हुए जफर चुप हो गया।

बेगम-श्‍याम भय्या कब तक आऍंगें ?

जफर -हर साल तो 10 से 10:30 बजे तक आ जाता है।फिर घड़ी की तरफ देखते हुए बोला, 10:00 तो बज गए देखो कब आता है।

बेगम -आज मैंने भी पड़ौस वाली भाभी से पूछकर बेसन की बर्फी बनाई है, श्‍याम भय्या को पसंद है ना।

जफर -अरे। मुझे तो बताया नहीं और ना ही मुझे चखाई। 

''अभी लेकर आती हूँ '' कहते हुए रसोई की तरफ चली गई और थोड़ी देर में एक प्‍लेट में बेसन की बर्फी ले आई और बोली''लीजिए जनाब, जरा खाकर अपने एक्सपर्ट कमेंटस् दीजिए।''

जफर ने खाते हुए कहा ''ठीक है, पहला प्रयास है अगली बार और अच्‍छी बनेगी कहते हुए दोनों जोर से हंस दिए।

 जफर की नजर बार-बार कमरे में लगी घड़ी की तरफ उठ जाती और धीरे धीरे घड़ी की टिक-टिक के साथ उसके दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी। घड़ी ने जब 12 बजे अपनी 12 घंटियां बजाई तो जफर एकदम चौंक पड़ा और घड़ी की तरफ देखते हुए उसके चेहरे पर उदासी छाने लगी और दिल की धड़कन तो यूं लग रही था जेसे बंद हो चुकी है।

तभी उसकी बेगम ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाने लगी और उसे दिलासा देते हुए बोली''अरे त्‍यौहार है, कोई आ गया होगा उनके यहॉं इसलिए लेट हो गए होगें।''

 चिंता न करो, श्‍याम भय्या आएंगे जरूर।

जफर -आज तो मुझे मुश्किल ही लग रहा है।

 इतना लेट थोडे ही कोई आता है।

बेगम -आपको अपने दोस्‍त पर विश्‍वास है या नहीं, मुझे नहीं पता, लेकिन मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि श्‍याम भय्या आएंगे जरूर।

जफर -बेगम विश्‍वास की बात नहीं है। विश्‍वास तो मुझे उस पर अपने से भी ज्‍यादा है, लेकिन समाज में और भी कई बातें होती हैं। कहते हुए जफर बेचैन होकर कमरे में ही टहलने लगा।

ये सुनकर उसकी बेगम बोली'' ये बीच में समाज कहॉं से आ गया ?''

जफर-देखो बेगम ये दोस्‍ती, ये एहसास ओर तमाम चीजें अपनी जगह हैं,लेकिन हर समाज का अपना एक कायदा-कानून होता है और उस समाज के हर व्यक्ती को वो मानना ही होता है। जैसे हम हैं, क्‍या हम अपने समाज के रीति रिवाजों को नहीं मानते।

आखिर श्‍याम को भी अपने ही समाज में अपनी ही बिरादरी वालों के साथ रहना है।

तुम्‍हें तो पता ही है परसों जो मामू वाले इलाके में झगड़ा हुआ था जिसकी वजह से वहां कर्फ्यू लगा दिया गया है। झगड़ा चाहे वहॉं हुआ हो लेकिन उसका असर तो पूरे शहर में पड़ा है। हर जगह हिंदू मुस्लिम का तनाव पसरा पड़ा है।

लगातार.........3

और फिर ये तो इसी शहर की बात है, लेकिन क्‍या हम बरसों से देखते नहीं आए है कि दंगा किसी दूर शहर में होता है लेकिन उसका तनाव पूरे देश में फैल जाता है।

हताश होते हुए जफर ने एक बार फिर डरते हुए अपनी नज़र घ़डी पर डाली जो बिना रूके लगातार चलती जा रही थी और उसकी दोनों सुईयां दिन का एक बजाने में थोड़ी ही दूरी पर थी।

इतनी बातें सुनकर भी जफर की बेगम न जाने क्‍यों आशान्वित होकर बोली '' आप कुछ भी कहो, मैं ये सब नहीं मानती। श्‍याम भय्या आएंगें जरूर। अच्‍छा ये बताओ कल शाम जब आपसे मिले थे तो उन्‍होंने ऐसा कुछ कहा था क्‍या ?

जफर-नहीं ऐसा कुछ नहीं कहा, लेकिन बेगम हर बात कही भी तो नहीं जाती। अब उठो और अपने दूसरे काम करेा और इरफान को भी बुलवालो।

 जफर ने अपनी बात खत्‍म करी ही थी कि अचानक से उसके घर के बाहर जोर-2 से ढोल बजने की आवाज आने लगी। ये आवाज सुनते ही जफर की बेगम दौड़कर खिड़की की तरफ गई और बाहर देखा तो उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई और वो वहीं से लगभग चिल्‍लाती हुई जफर की तरफ दौड़ी और उसे बांहों से पकड़कर खींचती हुई खिड़की की तरफ लाई और बोली '' देखो मैंने कहा था न, श्‍याम भय्या जरूर आएंगें।''

जफर जो कि अब तक लगभग निराश हो चुका था, श्‍याम को देखकर उसके चेहर की चमक लौट आई और दरवाजा खोलकर बाहर की ओर दौड़ा। बाहर श्‍याम तो अपनी पूरी टोली के साथ ढोल की थापों पर नाच रहा था और पूरे वातावरण में ढोल की आवाज और ''होली है'' की आवाज मिलकर एक अजीब सा खुशनुमा माहौल पैदा कर रहे थे।

 जफर जैसे ही बाहर आया श्‍याम ने लपककर उसके गालों पर गुलाल रगड़ दी और साथ ही पूरी टोली जफर को रंगने लगी।

जफर की बेगम अपने पति के चेहरे पर खुशी देखकर गद गद हो गई और श्‍याम से बोली ''भय्या आज मेरे विश्‍वास की जीत हो गई। आपके दोस्‍त तो ये मान चुके थे कि इस साल आप इन्‍हें रंगने नहीं आने वाले लेकिन मैंने इनसे कहा था कि चाहें कुछ हो जाए श्‍याम भय्या आएंगें जरूर। ''

ये सुनकर श्‍याम बोला-अरे भाभी ऐसा कैसे सोच लिया इस गधे ने। अरे जब तक मैं इसे इसके घर पर आकर ना रंग दूं तब तक तो मेरी होली पूरी ही नहीं होती। फिर जफर की तरफ देखते हुए कहने लगा, अरे जफर तुझे याद नहीं मैंने एक शेर कहा था -'' दिन हो होली का और चौखट हो जफर की, फिर जो रंग लगेगा वही सच्‍चा होगा। ''

ये कहते हुए श्‍याम ने जफर को गले से लगा लिया।

अभी दोनों दोस्‍त एक दूसरे की बांहों में एक दूसरे को गले लगाए हुए थे तभी जफर की बेगम एक बाल्‍टी पानी भर लाई और दोनों दोस्‍तों पर पूरा पानी उडेल दिया। उस पानी में धर्म नाम का रंग तो न जाने कहॉं बह गया और रह गया केवल तो केवल प्‍यार व दोस्‍ती का सच्‍चा रंग।


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