Sunil Joshi

Inspirational

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Sunil Joshi

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ज़मीर

ज़मीर

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रमेश शहर के एक जाने माने वकील हैं। वकालात के क्षेत्र में उन्‍होंने अपना एक अहम स्‍थान हासिल कर रखा है। शहर के मुख्‍य इलाके में उनका अपना बड़ा सा ऑफिस है।

     आज वकील साहब का कोई पुराना मित्र उनसे मिलने आया हुआ है और दोनों पुरानी बातों को याद करके ठहाके लगा रहे हैं।

तभी वकील साहब घंटी बजाते हैं तो श्‍याम दौड़ा -2 आता है। वकील साहब उसको दो चाय लाने के लिए कहते हैं , श्‍याम “जी साहब” कहकर चला जाता है।

वकील साहब का दोस्‍त, उनसे उस लड़के के बारे में पूछता है तो वकील साहब बताते है कि ''अरे यार किसी जान पहचान वाले ने कहा थ कि ये जरूरतमंद है इसे रख लो। एक साल पहले इसके पिताजी चल बसे तो पढ़ाई बीच में ही छूट गई। इसकी मॉं घरों में चौका बर्तन करती है। तो सोचा इसे रखने से इन लोगों को कुछ मदद मिल जाएगी। और मैं तो इसे आगे पढ़ने के लिए भी मोटीवेट करता रहता हूँ।

     वकील साहब का दोस्त कहता है -अच्छा है। तुम्हारे पास रहेगा तो कुछ न कुछ सीख ही जाएगा और आगे पढ़ ले तो और भी अच्‍छी बात है।''

कब से काम कर रहा हे तुम्हारे पास।

     यही कोई लगभग एक साल हुआ है। फिर चाय पीकर वकील साहब का दोस्‍त उनसे विदा लेता है।

कुछ दिनों बाद

     वकील साहब अपने कमरे में बैठे-2 टेबल के खानों में कुछ ढूंढते हैं लेकिन उन्हें मिलता नहीं है। झुंझलाकर उठते हैं और अलमारी में ढूंढने लगते हैं। लेकिन वहां भी नहीं मिलने पर वो श्‍याम को आवाज लगाते हैं।

     श्‍याम आवाज सुनकर उनके कमरे में आता है, तो वकील साहब उससे पूछते है ''अरे श्‍याम, तुम्हें याद है कुछ दिन पहले मिश्रा जी आए थे और वो मुझे एक लिफाफे में पांच हजार रूपए देकर गए थे। वो कहीं मिल नहीं रहे। तुमने देखे है क्‍या कहीं ?”

     श्‍याम -मिश्राजी आए तो थे लेकिन वो क्‍या देकर गए थे ये सब मुझे पता नहीं।

     वकील साहब -लेकिन मुझे अच्‍छी तरह याद है कि वो देकर गए थे और मैंने इसी ड्रावर में रखे थे। हॉं मैं इसको कभी ताला नहीं लगाता।

     श्‍याम -लेकिन साहब मुझे तो पता नहीं और टेबल साफ करते समय भी मैं ड्रावर तो खोलता भी नहीं हूँ।

     वकील साहब अब जरा गुससे में उससे कहते हैं “सच-सच बताओ श्‍याम, अगर तुमने लिए भी हैं तो कोई बात नहीं लेकिन मुझे बताओ तो सही।“

लेकिन श्‍याम फिर कहता है ''साहब मेरा विश्‍वास कीजिए, न ही तो मैंने वो लिफाफा देखा है और न ही मैंने लिया है। आप बेवजह मेरी ईमानदारी पर शक कर रहे हैं।“ इस पर वकील साहब एक दम आग बबूला हो जाते हैं और कहते हैं ''देखो श्‍याम इस कमरे में मेरे और तुम्‍हारे सिवाय कोई नहीं आता है। और मुझे अच्‍छी तरह याद है कि मैंने वो लिफाफा यहीं रखा था। अब तुम मुझे सच-सच बताते हो या ....................'' तभी श्‍याम हाथ जोड़कर विनती करता है ''साहब हम गरीब जरूर हैं लेकिन चोर नहीं।'' आप अच्‍छी तरह याद करिए, हो सकता है आपने कहीं और रखे हों या किसी को दे दिए हों।

     यह सुनकर वकील साहब और गुस्‍सा हो जाते हैं और श्याम को भला बुरा कहते हुए कह देते हैं कि कल से आफिस न आना, मुझे तुम जैसे चोरों की जरूरत नहीं है।

     श्‍याम निराश मन से रोता हुआ वहां से चला जाता है।

घर पर जब उसकी मॉं उसे रोता हुआ देखती है तो घबराकर उससे पूछती है ''क्‍या हुआ श्‍याम, तू रो क्‍यों रहा है, बेटा? और आज तू इतना जल्‍दी कैसे आ गया ?”


लगातार........2

- 2 -

     श्‍याम रोते रोते अपनी पूरी बात अपनी मॉं को बताता है तो अपने बेटे की पूरी बात सुनकर उसकी मॉं उदास हो जाती है लेकिन साथ 2 उसे वकील साहब पर गुस्‍सा भी आता है। और फिर अपने बेटे के आंसू पोंछते हुए उसे अपने सीने से लगा लेती है और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती है ''चुप हो जा बेटा। मेरा बेटा चोरी कर ही नहीं सकता। जरूर वकील साहब को काई गलतफहमी हुई है। तू चिंता मत कर, कल मैं चलूंगी तेरे सा‍थ और वकील साहब से बात करूंगी।

     और फिर जैसे तैसे श्‍याम की मॉं उसे चुप करवाती है।

     अगले दिन शाम को जब वकील साहब अपने आफिस में काम कर रहे होते हैं तो श्‍याम और उसकी मॉं वहां पहुँच जाते हैं। श्‍याम की मॉं, वकील साहब को समझाने की कोशिश करती है, लेकिन वकील साहब उनक एक भी नहीं सुनते और कहते हैं ''देखिए ये मेरी शराफत है कि मैंने आपके बेटे की शिकायत पुलिस में नहीं की। अब आप यहां से जाइये और मेरा और अपना समय खराब मत करिये।“ गुस्‍से और निराशा से भरे हुए दोनों मॉं-बेटे वहां से चले जाते हैं।

अगले दिन सुबह तैयार होकर श्‍याम अपनी मॉं से कहता है,''मॉं कुछ खाने को दो, मुझे बाहर जाना है।''

उसकी मॉं पूछती है ''कहॉं जाना है, बेटा।''

श्‍याम -अपने दोस्‍तों से मिलने।

यह सुनकर, उसकी मॉं एकदम गुस्‍सा हो जाती है और कहती है ''कहीं नहीं जाना है तुझे। मैं जानती हूँ कैसे हैं तुम्‍हारे सारे दोस्‍त, बस सारा दिन आवारागर्दी करते हुए इधर उधर घूमते रहते हैं।

श्‍याम -जो भी हो आखिर वो मरे दोस्‍त हैं, कम से कम वो मुझे चोर तो नहीं कहते।

ये सुनकर उसकी मॉं उसे समझाने के लहजे में कहती है ''देख बेटा किसी एक ने तुझे चोर कह दिया तो क्‍या तू चोर हो गया? मैं जानती हूँ और मेरा भगवान जानता है कि मेरा बेटा चोर नहीं है, तू घर में रहकर आगे पढ़ाई कर और मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि जल्‍दी ही वकील साहब को अपनी गलती का अहसास हो जाएगा। और वो तुझे वापस अपने पास काम पर बुला लेंगे। नहीं तो मैं एक बार फिर जाऊँगी उनको समझाने।“

    लेकिन श्‍याम एकदम गुस्‍से हो जाता है और अपनी मॉं से कहता है ''नहीं माँ, अब तुम वापस वकील साहब के पास नहीं जाओगी। मॉं ये बड़े लोग हैं ये उतना ही सच सुनते हैं और उतना ही सच मानते हैं जितना वो सुनना चाहते हैं या मानना चाहते हैं। तुम देखना मॉं आज जो ये दुनिया मेरी सच बात को झूठ कह रही है, तो मैं ऐसा बनके दिखाऊँगा कि ये दुनिया मेरे हर झूठ को सच मानेगी।''

ये कहते हुए वो बाहर की तरफ चला जाता है और उसकी माँ उसे पुकारती रह जाती है, लेकिन वो बिना कुछ सुने घर से बाहर चला जाता है बिना किसी उद्देश्य के।

रविवार के दिन वकील साहब अपनी पत्‍नी से घर पर ही बैठे आपस में बात कर रहे होते हैं। बातों-2 में वकील साहब की पत्‍नी शीला कहती है ''सुनो आप पॉंच हजार जैसी बड़ी रकम यूँ ही अपने ऑफिस में ड्रावर में खुली छोड़ देते हो।''

वकील साहब एकदम चौंक जाते हैं और अपनी पत्नी से पूछते हैं “क्‍यों, क्‍या हुआ, और तुम्‍हें कैसे पता ?”

     शीला-अरे कोई दो तीन पहले मैं शाम को जब बाजार गई थी तो वापस आते समय तुम्‍हारे ऑफिस भी गई थी।

रमेश चौंक के पूछता है'' क्‍या तुम ऑफिस गई थी?

     तो क्‍या, श्‍याम नहीं था, वहॉं ऑफिस में ?”

     शीला -अरे यही तो कही रही हूँ कि न आप थे न ही श्‍याम था वहां ऑफिस में। मैं तो पांच मिनट आपकी कुर्सी पर बैठी और यूँ ही ड्रावर खोला तो लिफाफे में से 500-500 के कडक नोट बाहर झांक रहे थे तो मैं उठा कर घर ले आई। लेकिन काम के चक्‍कर में आपको बताना भूल गई।

     रमेश -तो क्‍या सच में वो रूपए तुम ले आई थी?

     शीला-अरे हॉं, बाबा हॉं, कह तो रही हूँ कि मैं ले आई थी और आपको बताना भूल गई थी।

यह सुनकर रमेश परेशान हो जाता है, उसकी परेशानी देखकर उसकी पत्नी उससे पूछती है कि ''अरे क्‍या हुआ? आप इतने परेशान क्‍यों लग रहे हो ?”

लगातार........3

     जमीर -सुनील जोशी, कहानीकार

- 3 -

     तो रमेश कहता है ''शीला मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे अभी जाकर इस गलती को सुधारना होगा।'' कहकर रमेश वहां से खड़ा हो जाता है।

शीला के कहने पर वो उसको सारी बात बताता है। ये सुनकर शीला थोड़े गुस्‍से के लिहाज में कहती है ''अरे, ये क्‍या किया। अरे मुझे बताते या पूछते तो सही तो सारी बात साफ हो जाती।“

     अच्‍छा, कोई बात नहीं। सब ठीक हो जाएगा। अब जल्‍दी से जाओ, उसकी मॉं से माफी मॉंग कर उसको वापस काम पर बुला लो।''

     “इससे पहले कि बहुत देर हो जाए मुझे जाना ही होगा।'' ये कहकर वो तैयार होकर अपनी मोटरसाईकिल निकालकर श्‍याम के घर की तरफ रवाना हो जाता है।

श्‍याम के घर से कुछ दूर पहले ही रमेश देखता है कि श्‍याम सड़क के किनारे अपने दो तीन दोस्तों के साथ खड़ा सिगरेट पी रहा है।

रमेश उसे देखकर अपनी मोटरसाईकिल रोकता है और श्‍याम को अपने पास बुलाता है।

श्‍याम -सिगरेट का एक लंबा कश लेकर उसका धुआँ रमेश की तरफ छोडते हुए बड़े ही लापरवाह और बदतमीजी के लहजे में अपने हाथ से ईशारा करते हुए कहता है ''जा ....जा.. अपना काम कर, अब यहां, क्‍या करने आया है ?''

ये सुनकर,रमेश अपनी मोटरसाईकिल वहीं किनारे लगाकर श्‍याम के पास आता है और जोर से उसके गाल पर एक तमाचा मारता है और उसकी बांह पकड़कर लगभग खींचते हुए उसे उसके घर की ओर ले जाता है। श्‍याम पूरी कोशिश करता है अपने आपको वकील साहब से छुडा़ने की लेकिन सफल नहीं हो पाता।

     श्‍याम के घर पहुंचकर वकील साहब घंटी बजाते हैं तो श्‍याम की मॉं दरवाजा खोलती है और वकील साहब को अपने बेटे के साथ इस हालत में देखकर गुस्‍से में बोलती है “छोड़िये मेरे बेटे को। अब आप यहॉं क्‍या लेने आए हैं ?''

रमेश -देखिए ये उन आवारा लड़कों के साथ सिगरेट पी रहा था और इसने मुझसे बदतमीजी भी की।

श्‍याम की मॉं गुस्‍से में कहती है ''मेरा बेटा कहॉं जाता है, क्‍या करता है उससे आपको कोई लेना देना नहीं। और फिर आपने हम मॉं बेटे को बड़ी इज्‍जत दी थी जो आप हमसे तमीज़ की उम्‍मीद रखते हैं ,आप जाइए यहॉं से।“

ये सुनकर रमेश एकदम बेचैन हो जाता है और कहता है '' देखिए मुझे जब से पता चला है कि वो रूपए श्‍याम ने नहीं लिए थे, तब से मैं बहुत बेचैन हो गया हूँ। मैं उसी के लिए आपसे माफी मॉंगने आया हूँ। श्‍याम को वापस काम पर आने के लिए कहने आया हूँ। श्‍याम की मॉं गुस्‍से में कहती है ''ये बात जब हमने कही थी तब तो आपने नहीं मानी। नहीं भेजना मुझे अपने बेटे को किसी शकी आदमी के पास।''

रमेश बड़ी ही याचना करते हुए कहता है '' देखिए आज मैंने, श्‍याम को जिस हालत में देखा है उससे ये लगता है कि ये गलत राह पर कदम रख चुका है। इससे पहले कि ये इस रास्‍ते पर दूर निकल जाए मैं इसे वापस लेने आया हूँ। मैं मानता हूँ कि मुझसे गलती हुई है और मैं उसे ही सुधारने आया हूँ। मैं नहीं चाहता कि मेरी एक गलती की वजह से इस बच्‍चे के दिल में ये बात घर कर जाए कि इस संसार में सच बोलने वालों की कोई कीमत नहीं है। अगर आज आपने मुझे माफ नहीं किया और उसे मेरे साथ नहीं भेजा तो जिंदगी भर मैं अपने आपको माफ नहीं कर पाउँगा। मेरे जम़ीर का शोर मुझे चैन  से जीने नहीं देगा। वो चीख चीख कर कहेगा कि मैं इस समाज को कुछ अच्‍छा दे सकूं या ना दे सकूं लेकिन इस समाज को एक अपराधी देने का हक मुझे हरगिज नहीं है।“

     ये कहते हुए रमेश का गला भर आता है और वो हाथ जोड़कर एक बार फिर विनती करता है कि ''इसीलिए आप मुझे माफ कर दें और श्‍याम को मेरे साथ भेज दें।''

ये सब सुनकर श्‍याम की मॉं की आंखें भी भर आती है और वो अपने बेटे को गले से लगा लेती है और फिर उसे अपने से अलग करते हुए उसका हाथ वकील साहब के हाथ में दे देती है।

     रमेश, श्याम के गले में हाथ डालकर बाहर की ओर जाते हुए अपने आप को अपराधबोध से मुक्त महसूस कर रहा था और इस बात से खुश था कि आज उसने अपने जमीर की आवाज़ सुनकर एक किशोर को न केवल गलत रास्ते पे जाने से रोक लिया बल्कि उसके मन में बैठे उस भ्रम को भी विश्वास में बदलने से रोक लिया कि “ इस समाज में सच की कोई कीमत नहीं है”



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