Sunil Joshi

Inspirational

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Sunil Joshi

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एहसास

एहसास

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04, अप्रैल, 2020 की वो दोपहर, एक जीप जिस पर ''भारत सरकार '' लिखा था, सड़क पर दौड़ी जा रही थी । चारों और सन्‍नाटा पसरा हुआ था । कोरोना महामारी की वजह से पूरे भारत में जो लॉकडाउन चल रहा था उसके चलते सड़कें सूनी पड़ी थी ।लॉकडाउन भी ऐसा कि भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार सभी सवारी गाड़ियां बंद कर दी गई थी और केवल जरूरी माल गाड़ियों का संचालन हो रहा तहत जिससे कि देश मे आवश्यक सामानों की कमी न हो। थोडी-2 दूरी पर कुछ पुलिसकर्मी मास्‍क लगाए अपने हाथ में डंडा लिए अपनी ड्यूटी पर तैनात थे । वो सड़क,वो शहर जो रात को भी इतना सुनसान नहीं होता,वहां दिन में एक डराने वाला सन्‍नाटा छाया हुआ था । जीप में केवल ड्राईवर व राजेन्‍द्र थे और दोनों ने मास्‍क पहन रखा था। उनके चेहरों को देखने से लग रहा था जैसे दोनों ही अनमने मन से कही जा रहे थे । जैसा सन्‍नाटा सड़क और आस-पास फैला हुआ था वैसा ही उनकी गाड़ी में पसरा हुआ था।

अचानक एक जगह पर एक पुलिसकर्मी ने हाथ देकर गाड़ी को रोका तो दोनों कुछ हरकत में आए। जब पुलिसवाले ने जानना चाहा तो राजेन्‍द्र ने अपना परिचय पत्र दिखाकर बताया कि वो रेलवे में कार्यरत है और निरीक्षण के लिए किसी स्‍टेशन पर जा रहे हैं ।

पुलिसवाले ने परिचय पत्र देखा और संतुष्‍ट होने के बाद उन्‍हें जाने दिया।

अब गाड़ी के अंदर के सन्‍नाटे को ड्राईवर ने तोड़ा -

ड्राईवर - सर जब सब बंद है और बाहर निकलने में खतरा है ऐसे में क्‍या निरीक्षण पर जाना जरूरी है ।

राजेन्‍द्र - अरे भाई, क्‍या करें , नौकरी करनी है तो जाना ही पडे़गा । ऊपर से आदेश हैं ।

ड्राईवर - देखिये हर जगह कितनी सख्‍ती है और फिर अभी ट्रेनें भी कहां चल रही है ।

राजेन्‍द्र -नहीं, मालगाडियां तो चल रही है ।

ड्राईवर - फिर भी इस माहौल में ऊपर वालों को भी सोचना चाहिए कि ऐसे आदेश ना दें ।

राजेन्‍द्र - चलो कोई नहीं, वैसे भी पिछले दस दिनों से घर में कैद थे, समय ही नहीं कट रहा था। और टी.वी. पर जहां देखों वहां कोरोना से संबंधित समाचार और अस्‍पतालों के वो भयावह मंजर ही दिखाए जा रहे हैं जिन्‍हें देख देखकर मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा था । मन में, वो सब देख-देखकर यूं लगने लगा कि अब इस धरती पर कुछ ही दिनों में जीवन समाप्‍त हो जाएगा, कुछ नहीं बचेगा ।

आज बाहर निकला हूं तो जिंदा होने का एहसास हो रहा है । एक अंजाना सा डर जरूर है लेकिन ये बेचारे पुलिसवाले भी तो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं । ड्राईवर ने भी अपने साहब की हॉं में हॉं मिलाते हुए कहा, ''सही है सर, मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल हो गया था। आज बाहर निकला हूँ तो कुछ सुकून सा महसूस हो रहा हैं ।''

यूं ही बातें करते-2 वो नजदीक के रेलवे स्‍टेशन पर पहुंच गए । दोनों गाड़ी से उतरे और स्‍टेशन मास्‍टर के कमरे की ओर बढ़ गए। स्‍टेशन के बाहर भी छोटी-छोटी दुकानें, ढाबे सब बंद थे । चारों ओर वही सन्‍नाटा और दिल दहला देने वाली खामोशी बिखरी पड़ी थी। दोनों ने स्‍टेशन के प्‍लेटफार्म पर खड़े होकर चारों और दृष्टि दौडा़ई, जहॉं दिन रात यात्रियों की भीड़ रहती थी, चहल-पहल रहती थी वो कुछ नहीं था। कहीं कोई शोर नहीं था, सिर्फ और सिर्फ सन्‍नाटा ।

राजेन्‍द्र जब स्‍टेशन मास्‍टर के कमरे में दाखिल हुआ तो देखा स्‍टेशन मास्‍टर अपनी टेबल पर अपने दोनों हाथों में अपना मुँह और सिर छुपाकर कुर्सी पर बैठा हुआ था । जैसे ही उसे उस डरावनी खामोशी में कुछ कदमों की आहट सुनाई दी तो उसने जल्‍दी से अपना चेहरा ऊपर किया और उन दोनों को पहचानने की कोशिश करने लगा क्‍योंकि दोनों के चेहरों पर मास्‍क लगा हुआ था।

क्रमश:.........2

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तभी राजेन्‍द्र ने अपना मास्‍क हटाया तो स्‍टेशन मास्‍टर ने उसे पहचानते ही अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्‍कान फैल गई । उसने खड़े होते हुए राजेन्‍द्र को नमस्‍ते किया और उनके बैठने के लिए एक कुर्सी आगे सरका दी। राजेन्‍द्र ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा'' आपने मास्‍क नहीं लगा रखा'', तो स्‍टेशन मास्‍टर ने कहा'' सर अकेला ही था, कमरे में कोई और तो था नहीं इसलिए नहीं लगाया।'' ये कहते हुए उसने टेबल पर रखे अपने मास्‍क को चेहरे पर लगा लिया।

राजेन्‍द्र - और बताईए स्‍टेशन मास्‍टर साहब क्‍या चल रहा है, सब ठीक है ना?

स्‍टेशन मास्‍टर - जी सर सब ठीक है ।

राजेन्‍द्र - अभी कितनी गाडि़यां निकल रही है आपके स्‍टेशन से ।

स्‍टेशन मास्‍टर - सर, अभी तो 24 घंटों मे कोई 5 - 7 मालगाडियां ही निकल रही हैं जबकि जब सब चालू था तब फुर्सत ही नहीं मिलती थी एक पल भी बैठने की ।

राजेन्‍द्र -चलो अच्‍छा है, कोरोना की वजह से आप लोगों को कुछ फुर्सत तो मिली । ये सुनकर स्‍टेशन मास्‍टर थोड़ा मायूस हो गया और कहने लगा,

''नहीं सर, ऐसी फुर्सत नहीं चाहिए । पिछले दस दिनों से कोई यहाँ नहीं आया है। आस पास के सभी लोग अपने-2 घरों में कैद हैं । कोई बात करने वाला ही नहीं है सर ।''

उसके बोलने के ढंग से लग रहा था जैसे वो बहुत मायूस और हताश हो गया है। उसने ये कहते हुए अपना बोलना जारी रखा कि '' सर आप चाहे पहले से ज्‍यादा गाडि़यां चलवा दीजिए हमें कोई तकलीफ नहीं होगी लेकिन इस सन्‍नाटे, खामोशी और डर के माहौल वाली फुर्सत नहीं चाहिए । ये तो भगवान का लाख-2 शुक्र है कि आज आप यहां आ गए तो मुझे कोई बात करने वाला मिल गया, नहीं तो मेरे अंदर एक घुटन सी होने लगी थी। आप आज चाहे जितना डांट लो सर, जो कहना है कह दो लेकिन आज आप कुछ देर यहीं रूके रहिए और मुझसे बात करिए नहीं तो मैं पागल हो जाउंगा।'' ये कहते-2 वो लगभग रोने ही लगा ।

ये सुनकर राजेन्‍द्र ने कहा, '' अच्‍छा अब शांत हो जाओ और अपने आपको संभालो।, अच्‍छा ये बताओ स्‍टेशन पर जो अन्‍य कर्मचारी हैं वो कहॉं है ?''

स्‍टेशन मास्‍टर - सर एक गेट पर है और दूसरा छुट्टी पर गया था तो लॉकडाउन में फंस गया है । एक स्‍टेशन मास्‍टर और है तो हम लोग 12-12 घंटे की ड्यूटी कर रहे हैं, और जैसे तैसे एक दूसरे को संभाले हुवे हैं।

घर से हजारो किलोमीटर दूर यहां जंगल में अकेले बैठे हैं और इस माहौल में घर वालों की चिंता और ज्यादा सताने लगी है। गाडि़यां चल रही थी तो कुछ सोचने समझने की फुर्सत हीं नहीं थी लेकिन अब ये माहौल है कि हम लोगों को पागल कर देगा , इसलिए विनती है कि किसी न किसीको एक दो दिन में यहां भेज दिया करें सर जब तक लॉक डाउन चल रहा है। 

राजेन्‍द्र - अरे इतने मायूस मत होईए, हिम्‍मत रखिए । देखिये आज जब सारी दुनिया लॉकडाउन में अपने घरों में दुबकी है तब भी आप और आप जैसे कई अन्‍य रेल कर्मचारी देश में जरूरी सामान को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में लगे हैं, पूरी निष्‍ठा से देश सेवा कर रहे हैं । हमें आप लोगों पर गर्व है । अच्‍छा ये बताओ आप लोगों को खाने के सामान या अन्‍य किसी चीज की आवश्‍यकता तो नहीं है ? यदि हो तो बेहिचक बताओ हम सारी व्‍यवस्‍था करवा देगें ।

स्‍टेशन मास्‍टर ने हाथ जोड़ते हुए कहा, '' नहीं सर सब कुछ हैं और ऐसी कोई जरूरत पड़ी तो आपको बता देगें ।इस डर के माहौल में भी आपने यहाँ आने की हिम्मत की और हमें संभाला, हमारे लिए तो यही एक संजीवनी की तरह काम करेगा, हमें हिम्मत देगा। हमें तो बस किसी इंसान की जरूरत थी जिससे हम बात कर सकें, तो वो आपने यहां आकर बहुत बड़ा उपकार कर दिया , नहीं तो मैं तो लगभग डिप्रेशन में जा ही चुका था।'' ये कहते-2 उसकी ऑंखों की चमक बढ़ गई ।

   क्रमश:.........3

राजेन्‍द्र ने खुश होते हुए कहा,'' घबराओ मत, ये कठिन समय भी गुजर जाएगा। अब निश्चित रहिए, हर दो तीन दिन में कोई न कोई आपके स्‍टेशन पर जरूर आएगा और जो भी सहयोग होगा वो दिया जाएगा।

बस आप हिम्‍मत रखिए और मुस्‍कुराते रहिए।'' 

स्‍टेशन मास्‍टर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ा रहा और मुस्‍कुराता रहा । फिर राजेन्‍द्र ने कहा, '' अच्‍छा अब काफी समय हो गया है, यदि आपकी इजाजत हो तो हम चलें ।''

ये सुनकर स्‍टेशन मास्‍टर ने कहा,'' सर इसमें इजाजत की क्‍या बात है, आप बड़े हैं । लेकिन आप यहां आए उसके लिए आपका दिल से आभार।''

फिर दोनों मुस्‍कुरा दिए और राजेन्द्र अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया ।

गाड़ी में बैठते-2 उसने स्‍टेशन मास्‍टर को फिर आश्‍वासन दिया और महसूस किया कि स्‍टेशन मास्‍टर में अब एक नया जोश भर गया है और एक नई हिम्‍मत आ गई है । गाड़ी रवाना हुई तो दोनों ने हाथ हिलाकर एक दूसरे का अभिवादन किया।

आते समय राजेन्‍द्र के मन में जो एक संशय था, एक अन्‍जाना भय था वो अब संतोष में बदल चुका था। वो सोच रहा था कि उसने अच्‍छा ही किया कि हिम्‍मत करके यहॉं चला आया जिससे कि उसने न केवल अपने को बल्कि एक और अच्छे भले इंसान को डिप्रेशन में जाने से बचा लिया। उसने निश्‍चय किया कि जब तक ये लॉकडाउन है तब तक वो रोज किसी एक स्‍टेशन पर जाकर वहॉं के कर्मचारियों से मिलेगा।

उसने महसूस किया कि इस मशीनी युग में इंसान चाहे चॉंद और मंगल ग्रह पर पहुंच गया हो, चाहे उसकी सारी जरूरतें उसके मोबाईल के एक बटन से पूरी होने लगी हों लेकिन फिर भी किसी संकट में या आपत्ति में उसे किसी इंसान की ही जरूरत होती है जो उसकी सुन सके, उसकी तकलीक को महसूस कर सके और उसे उठ खड़े होने में सहारा दे सके ।

वो बैठा-बैठा सोच रहा था कि बेशक कोरोना वायरस ने इंसानों से एक बहुत बड़ी कीमत वसूली है, लेकिन इसके बदले उसने इंसानों को उनका खोया हुआ एहसास लौटा दिया कि इंसानों की जीने के लिए पहली और आखरी जरूरत इंसान ही है।


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