ये तो वो सुबह नहीं
ये तो वो सुबह नहीं
ललिता बेडरूम में टीवी के न्यूज चैनल पर किसी शहर में जवान लड़की के साथ हुए दुष्कर्म फिर उसकी हत्या का समाचार देख रही थी। देखते-देखते बड़ी बेचैनी सी महसूस करने लगी। उसके हावभाव से लग रहा था कि वो बहुत बेबस और असहाय हो गई है और कभी लग रहा था कि उसकी ऑंखों से अंगारे बरस रहे हैं। और न जाने उसके होंठ क्या बुदबुदा रहे थे। और शायद उसे पता भी नहीं चला कि कब उसकी ऑंखों से ऑंसू टपककर उसके गाल पर ठहर गए हैं। तभी उसका 10 वर्ष का सोनू कमरे में दाखिल हुआ और मॉं की ऑंखों में ऑंसू देखकर मॉं के पास जाकर पूछने लगा -
सोनू - मम्मी क्या हुआ, आप रो क्यों रही हैं ?
ललिता को तब जाकर एहसास हुआ कि उसकी ऑंखें गीली हो गई हैं। ललिता ने ऑंसू पोंछते हुए कहा ''कहॉं? ऐसे ही मैं तो नहीं रो रही हूँ।''
सोनू - अभी तो आपने ऑंसू पोंछे हैं।
ललिता -क्या हुआ, होमवर्क हो गया तुम्हारा ?
सोनू -वही तो कर रहा हूँ, मेरी ये पेंसिल की नोक टूट गई है, इसे छील दो न।
ललिता पेंसिल छीलने लगती है और सोनू टीवी की तरफ देखते हुए पूछता है -
''मम्मी ये इतने लोग हाथ में मोमबत्ती लिए क्यों खडे़ हैं ?
ललिता -कुछ नहीं ऐसे ही।
सोनू टीवी की तरफ नजर किए हुए टीवी पर नीचे चलने वाली न्यूज लाइन को पढ़ने की कोशिश करता है।
''चार लोगों द्वारा लड़की के साथ ब..........
इस ''ब'' से शुरू होने वाले उलझे हुए शब्द को सोनू पढ़ने की कोशिश करने लगता है लेकिन सफल नहीं हो पाता और तब तक वो शब्द टीवी से गायब हो जाता है।
तब तक उसकी पेंसिल छिल चुकी थी और वो पेंसिल लेकर दूसरे कमरे में चला गया।
ललिता काफी देर तक लड़कियों और महिलाओं की स्थिति के बारे में सोचती गुमसुम सी बैठी रही।
रात के दस बज रहे थे सभी सोने की तैयारी कर रहे थे। किशोर की नजर टीवी के न्यूज चैनल पर थी। ललिता कमरे की लाईट आफ करने से पहले टीवी को बंद करने लगी तभी उसकी नजर न्यूज चैनल पर चल रही ब्रेकिंग न्यूज पर पड़ी जहां किसी पॉंच साल की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म का समाचार था। ललिता ने गुस्से में टीवी बंद कर दिया और बड़बड़ाने लगी ''न जाने क्या होगा इस देश का ? पॉंच साल की बच्ची को भी नहीं छोड़ा।'' फिर अपने पति किशोर की तरफ देखकर बोली ''मुझे तो बंटी को स्कूल भेजते हुए भी डर लगने लगा है। शायद ऐसी आजादी की कल्पना तो नहीं की होगी शहीदों ने कि उनकी मॉं-बेटियॉं इतनी असुरक्षित हो जाएगी आजादी के बाद।''
किशोर - तुम भी कैसी बातें करती हो ? कहीं पर किसी एक व्यक्ति ने कुछ गलत कर दिया तो क्या पूरा समाज खराब हो गया ?
ललिता - जो भी है, वो इसी समाज में हो रहा है और हम सबके सामने हो रहा है। न्यूज चैनल पर कभी भी देख लो, ऐसा समाचार जरूर मिल जाएगा। आज किसी भी उम्र की बच्ची या महिला सुरक्षित नहीं है। कोई डर नहीं रह गया है इन बदमाशों को। इस देश को आजाद कराने वाले शहीदों में ऐसे समाज की कल्पना तो नहीं की होगी।
तभी सोनू जो सोने की कोशिश कर रहा था बोला '' क्या हुआ, मम्मी क्यों गुस्सा हो रही हो ?''
ललिता - कुछ नहीं, सो जा और हॉं स्कूल आते- जाते और बस में बंटी का ध्यान रखा कर।
सोनू - क्यों, क्या हुआ बंटी को ?
ललिता -अरे तेरी छोटी बहन है, ध्यान तो रखेगा ही ना। और ये कहकर ललिता ने कमरे की बत्ती बुझा दी और बिस्तर पर लेटकर कभी बंटी और कभी सोनू के सिर पर हाथ फेरने लगी।
सोनू शाम से ही अपनी मॉं को परेशान देखकर कुछ समझने की कोशिश कर रहा था। उसे ध्यान आया कि वो शब्द जो ''ब'' से शुरू होता है और वो उसे पूरा पढ़ नहीं पाता, जरूर वो कोई डरावनी या खतरनाक चीज है जिससे मॉं को डर लगता है और उसी की वजह से वो बंटी के लिए भी परेशान है। उसने मन ही मन सोचा कि कल से वो बंटी का विशेष ध्यान रखेगा और यही सब सोचते-सोचत न जाने कब उसे नींद आ गई।
सुबह बस ड्राईवर हार्न पर हार्न दिए जा रहा था और ललिता दोनों बच्चों को आवाज लगा रही थी कि जल्दी बैग लेकर बाहर आओ बस चली जाएगी। तभी दोनों बच्चे दौड़कर बाहर की तरफ भाग और साथ में ललिता भी।
बस के गेट पर पहुंचते ही बस कंडक्टर आगे बढ़कर बंटी को उठाकर बस में चढ़ाने लगा तभी सोनू ने आगे बढ़कर कंडक्टर का हाथ झिड़कते हुए कहा ''छोड़ो बंटी को'' ये अपने आप चढ़ जाएगी या मैं चढ़ा दूंगा। ये देखकर कंडक्टर हैरानी से उसे देखने लगा और तब तक सोनू ने हाथ पकड़कर बंटी को बस में चढ़ा दिया और खुद भी चढ़कर अपनी मम्मी की तरफ गर्व की निगाह से देखने लगा कि अब उसकी मम्मी खुश रहेगी कि मैं बंटी का ध्यान रख रहा हूँ।
शाम को जब बच्चे घर पर लौटे तो सोनू ने आते ही अपनी मॉं से कहा - ''मम्मी-मम्मी आज मैंने बंटी का पूरा ध्यान रखा, मैंने खुद ही उसे बस में चढ़ाया और उतारा और मैंने बंटी से कह दिया अगर कोई भी लड़का उसे हाथ लगाए तो मुझे बता दे मैं देख लूंगा।
ललिता - शाबाश, मेरे बेटे, अपनी बहन का ध्यान तो रखना ही चाहिए। चलो अब अपनी ड्रेस बदलो और कुछ खा लो।
अगली सुबह जब बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे, ललिता बोली तुम दोनों को कितनी बार कहा है आते ही अपने टिफिन बाक्स मुझे दे दिया करो फिर सुबह साफ करने में टाइम लगता है। ये कहते हुए उसने सोनू का बैग उठाया उसमें से टिफिन बॉकस निकालते हुए उसमें से टिफिन बॉक्स निकालने लगी तो बैग में रखा चाकू देखकर अचंभित हो गई। हैरानी से चाकू हाथ में लेते हुए जोर से चिल्लाई ''सोनू''। इतनी तेज आवाज सुनकर किशोर, बंटी और सोनू तीनों ही दौड़कर ललिता के पास पहुँचे और उसके हाथ में चाकू देखकर और गुस्से में लाल होती उसकी आँखें देखकर कुछ समझते उसके पहले ही ललिता ने आगे बढ़कर सोनू के गाल पर दो तीन थप्पड़ जड़ दिए। सोनू कुछ कहना चाहता था लेकिन अचानक पड़ी मार से वो सहम गया और रोने लगा। उसे रोता देख बंटी भी रोने लगी और सोनू के पास आकर उसका हाथ पकड़ लिया। किशोर ने जैसे तैसे ललिता को पकड़ा और शांत करते हुए कहने लगा बात क्या हुई। क्यों गुस्सा हो रही हो ?
ललिता सोनू की तरफ देखती हुई कहने लगी पूछो अपने लाड़ले से, उसके बैग में ये चाकू निकला है। पता नहीं किन लड़कों के साथ रहता है। गुँडा बनेगा क्या बड़ा होकर ? हे भगवान ये लड़का अभी से गंदे लोगों की संगत में आ गया। ये कहते- कहते वो खुद रो पड़ी और घुटने के बल बैठकर सोनू से रोते हुए पूछने लगी '' सोनू क्यों रहता है गंदे लड़कों के साथ ?''
किशोर ने ललिता से कहा उससे पूछो तो कि वो चाकू कहॉं से आया अपनी तरफ से ही सवाल बना रही हो और खुद ही जवाब दे रही हो।
ललिता - ये मेरे सब्जी काटने का चाकू है जिसे मैं कल ये स्कूल गए तब से ढूँढ़ रही हूँ। मुझे क्या पता था कि मेरा बेटा अभी से गलत राह पर चलने लगा है।
तभी सोनू ने रोते हुए कहा - नहीं मम्मी, प्रामिस, मैं किसी गंदे लड़के के साथ नहीं रहता। मैंने चाकू केवल इसलिए रख लिया था कि वो जो आप कल न्यूज में देखकर बंटी के लिए डर रही थी, तो मैंने सोचा बंटी को कोई तंग करेगा तो उसे चाकू से मार दूँगा।'' ये सब सुनते ही ललिता को ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने कोई बहुत भारी हथौड़े से उसके सिर पर जोरदार चोट कर दी हो। उसका दिमाग झन्ना उठा और उसके हाथ से चाकू छूट गया। उसकी आँखें खुली की खुली रह गई और एक बार तो उसे लगा जैसे उसके शरीर से किसी ने खून की एक-एक बूंद निचोड़ ली हो। अगले ही पल उसने सोनू को अपने गले से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगी। बंटी भी ये सब देखकर अपनी मॉं से लिपटकर रोने लगी।
और किशोर खड़ा -खड़ा सोचने लगा कि आजादी के इतने सालों के बाद भी ये कैसे समाज का निर्माण हो गया, जिसमें एक 10 वर्ष के बच्चे के मन में इतना खौफ और इतनी दहशत पैदा हो गई। वो सोचने लगा कि ललिता शायद ठीक ही कह रही थी कि इस देश को आजाद कराने वाले शहीदों ने जिस सुबह की कल्पना की होगी, ये तो वो सुबह नहीं।