Sunil Joshi

Drama Inspirational

4  

Sunil Joshi

Drama Inspirational

हाथों की लकीरें

हाथों की लकीरें

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दृश्‍य -1(सरपंच बहादुर सिंह का घर)

दुलारी दौडती हुई बहादुर सिंह जी के पैर छूकर उनसे लिपट जाती है और कहती है '' बाबा आज मेरी डिग्री पूरी हो गई, मैं वकील बन गई''

तभी बहादुर सिंह जी की पत्‍नी भी बाहर आती है और दुलारी के सर पर हाथ फेरते हुए कहती है ''मेरी प्‍यारी लाडो आज तू ने हमारा नाम रोशन कर दिया है''

बहादुर सिंह – हां वो तो है लेकिन इसमें भगवान तेरे और मेरे से ज्‍यादा धन्‍यवाद तो सरला मैडम का है।

पत्‍नी –आप सही कह रहे हो आज भी मुझे वह दिन याद है........

फ्लैश्बैक 

दृश्‍य -2 (सरपंच के घर का आँगन)

 

बहादुर सिंह जी चारपाई पर बैठे हैं और बहुत खुश हैं,पास ही पंडित राधेश्‍याम जी बैठे हैं और दोनों बतिया रहे हैं 

राधेश्‍याम – सरपंच जी आप की दुलारी राज करेगी राज 

बहदुर सिंह – यह तो पंडित जी आपका ही आशीर्वाद है जो हमारी दुलारी बिटिया को ऐसा घर मिला है । 

राधेश्‍याम – मैं तो कहता हूं कि अगले महीने ही अच्‍छा मुहूर्त है, उसी में दुलारी बिटिया के हाथ पीले कर दो

तभी सरपंच जी की पत्‍नी बाहर आती है और कहती है ''अरे पंडित जी इतनी जल्‍दी सब कैसे हो पाएगा ''

बहादुर सिंह – अरी भागवान जब भगवान ने इतना जल्‍दी इतना अच्‍छा रिशत हमें दिलाया है तो बाकी व्‍यवस्‍था भी वही करेंगे तुम तो बस तैयारी करना शुरू करो ।

तभी छगन दौड़ता हुआ आता है और कहता है कि सरपंचजी-सरपंच जी मास्‍टर साहब आए हैं और साथ में मैडम भी आई है

सरपंच जी बाहर की ओर जाते हैं

बहादुर सिंह – आईए आईए मास्‍टर साहब इधर कैसे आना हुआ ? आज तो इस गरीब की झोंपड़ी धन्‍य हो गई ।

मैडम जी प्रणाम 

मास्‍टर साहब और उनकी पत्‍नी सरला,बहादुर सिंह को नमस्‍ते करती है और सरपंच के साथ उनके घर के आँगन में आ जाते हैं। छगन दौड कर दो कुर्सियां ले आता है।

मास्‍टर साहब और उनकी पत्‍नी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं ।   

इस बीच पंडित जी हाथ जोड.कर रवाना होते हैं और कहते हैं, सरपंचजी आप तैयारी करो मैं एक-दो दिन में फिर आता हूँ और कह कर बाहर की ओर निकल जाते हैं ।

मास्‍टर साहब पूछते हैं "सरपंचजी काहे की तैयारी कर रहे हो, पंडित जी किस तैयारी की बात कर रहे हैं?" 

बहादुर सिंह – मास्‍टर साहब आप बहुत सही मौके पर आए हैं, पंडित जी ने आज ही एक खुशखबरी दी है । हमारी बेटी दुलारी का एक बहुत ही बडे घराने में रिश्‍ता तय हुआ है ।

सरला – अरे वाह बड़ी खुशी की बात है ।

मास्‍टर साहब – अच्‍छा, चलो फिर तो मुंह मीठा कराईए ।

सरपंचजी कहते हैं "अरे क्यों नहीं, जरूर करवाएंगे "

सरला – क्‍या कर रही है आप की लाडली जरा हमें भी तो मिलवाईए। 

बहादुर सिंह – हां क्‍यों नहीं ।

और वह अपनी पत्‍नी से दुलारी को बुलाने के लिए कहते हैं ।

सरला – कितने बच्‍चे हैं आपके?

सरपंच – मैडम जी चार बेटियां है । भगवान की दया से तीन बेटियों की तो शादी हो गई । अब यही बची है ।

मास्‍टर जी की पत्‍नी – अच्‍छा । तो क्‍या बाकी तीनों की भी शादी कम उम्र में ही कर दी थी ।

सरपंच – वो मैडम जी गांव में तो ऐसे ही चलता है ।

बहादुर सिंह की पत्‍नी अंदर जाकर दुलारी को आवाज देती है और उसे लेकर बाहर आती है ।

दुलारी को देखकर मास्‍टरजी और उनकी पत्‍नी चौंक जाते हैं। 

बहादुर सिंह – दुलारी बेटा आओ देखो कौन आया है, यह मास्‍टर साहब है, अपनी मैडम के साथ आए हैं चलो दोनों के पांव छुओ ।

सरला – अरे यह तो अभी बहुत छोटी है, क्‍या उम्र होगी इसकी ?

सरपंच – मैडम जी पूरे 15 साल की हो गई है और सातवीं पास कर ली है ।

मास्‍टर साहब – लेकिन सरपंच जी यह तो कानून के खिलाफ है,18 साल से पहले आप कैसे शादी कर सकते हैं इसकी?

बहादुर सिंह – वह तो ठीक है मास्‍टर साहब लेकिन क्‍या मैं इस कानून के पीछे अपनी बच्‍ची का अच्‍छा रिश्‍ता छोड. दूँ ।

मास्‍टर साहब – लेकिन सरपंचजी, जरा सोचो, अगर आप ही कानून तोड.ने लगे तो बाकी लोगों को कैसे समझाएंगे ।     

बहादुर सिंह – लेकिन मास्‍टर साहब यह काम तो मुझे करना ही होगा ।

तभी सरला, दुलारी को अपने पास बुलाकर उसकी हथेली अपने हाथ में ले लेती है और कहती है

"अच्‍छा बेटा दिखाओ तो जरा, देखें आपके हाथ में क्‍या लिखा है''

मास्‍टर साहब अपनी पत्‍नी को देखते हैं, दोनों की नज़र मिलती है और दोनों ही एक दूसरे के इशारे को समझने की कोशिश करते हैं । 

सरपंच की पत्‍नी – अरे मैडम जी आपको हाथ देखना भी आता है ।

सरला – ये तो मेरा शौक है और इसी शौक शौक में मैं इस विद्या में निपुण हो चुकी हूं ।

सरपंच की पत्‍नी – फिर तो मैडम जी जरूर देखकर बताईए हमारी दुलारी के भाग्‍य में क्‍या लिखा है ?

सरला – काफी देर तक दुलारी की हथेली अपने हाथ में रखकर मन ही मन अपने आप से कुछ बातें करती है और फिर कहती है

दुलारी का हाथ देखकर सरला कहती है "सरपंचजी यूं तो दुलारी आपकी बेटी है आप जो चाहे फैसला करें, लेकिन इसके हाथ की रेखाएं तो कुछ और ही कह रही है"। 

सरपंच जी और उसकी पत्‍नी जिज्ञासा पूर्वक उसकी ओर देखते हैं ।

सरला दोनों की ओर देखते हुए कहती है "इसकी हाथ की रेखाएं तो कह रही है कि ये या तो डॉक्‍टर बनेगी या कुछ अच्‍छा कोर्स करेगी" ।

सरपंच – तो ठीक है न मैडमजी, पढाई तो शादी के बाद भी कर सकती है ।

सरला - जो मुझे इन रेखाओं से समझ आ रहा है वो तो ये है कि अगर इसकी शादी अभी हो जाती है तो ये आगे नहीं पढ. पाएगी ।

बाकी आपको जैसा ठीक लगे । लेकिन मेरा मानना है कि दुलारी पढ. लिख लेगी तो अच्‍छा रिश्‍ता तो अपने आप ही आ जाएगा । 

मास्‍टर जी - और हां सरपंचजी, हम दोनों का तबादला शहर हो गया है । हम कल ही चले जाएंगे । और हां, यदि दुलारी को आगे पढाने का मानस बने तो बता देना हम लोग गाईड करते रहेंगे ।

दोनों जाने लगते हैं, मास्‍टर जी जाते -2 एक बार रूकते हैं और मुड.कर सरपंच जी से कहते हैं लेकिन एक बात तो पक्‍की है, ये सरला हाथ बहुत अच्‍छा देखती है, इसकी बातों पर जरा गौर करना ।

दृश्‍य – 3                            (सरपंच का घर) 

सरपंच की पत्‍नी – सुनो जी, मुझे तो लगता है मास्‍टरनी जी सही कर रही हैं । हमें पहले दुलारी को पढ़ाना चाहिए ।

सरपंच– अरे क्‍या बावली हो गई है ? अरे इसकी किस्‍मत में लिखा होगा तो शादी के बाद भी पढ. लेगी ।

सरपंच की पत्‍नी – लेकिन वो तो कह रही थी कि शादी के बाद तो इसकी किस्‍मत में पढ़ाई नहीं लिखी है ।

सरपंच जरा गुस्से में कहते हैं "अब तू बहकी-2 बातें न कर" 

सरपंच जी की पत्‍नी- याद है, जब दुलारी होने वाली थी तब हमने डॉक्‍टर से टेस्‍ट करवाया था और जब ये मालूम चला कि चौथी भी लड.की है तो हमने फैसला किया था कि हम इसको इस दुनिया में आने ही नहीं देंगे । लेकिन क्‍या हम इसको रोक पाए । अब तो जी मुझे पूरा विश्‍वास हो गया है कि हमारी दुलारी अच्‍छी अफसर बनेगी । मैं तो न करने वाली इसकी शादी अभी । आप जो चाहे कर लो । 

सरपंच गुस्‍से में वहॉं से चला जाता है ।

दृश्‍य4 (रात का समय - सरपंच का घर)

सरपंच बैचेन होकर टहल रहे हैं तभी उनकी पत्‍नी आती है और पूछती है ''क्या हुआ ? क्‍यों परेशान हो''

सरपंच – तुम्‍हारी जिद के आगे मेरी नाक कट जाएगी । लोग क्‍या कहेंगे, सरपंच अपनी जबान से फिर गया।

सरपंच की पत्‍नी – अरे आपसे नहीं होता तो मैं भीमसिंह जी से बात कर लेती हूं । लेकिन अब ये बात तय है कि दुलारी पहले पढेगी फिर शादी ।

सरपंच परेशान होते हुवे कहता है "अच्‍छा ठीक है, तुम्‍हारी यही जिद है तो मैं खुद ही कह आऊँगा और माफी मांग लूंगा ।

                           फ्लैश्बैक खत्‍म 

चलो कल शहर चलते हैं और उनको बताते हैं कि उन्‍होंने जो दुलारी का हाथ देखकर बताया था वो सही था ।

                       दृश्‍य – 4 (मास्‍टर जी का घर) 

सरपंच – सरला जी आपने कमाल कर दिया। अगर आप उस दिन दुलारी का हाथ नहीं देखती तो ये सब नहीं हो पाता ।

मास्‍टर जी और उनकी पत्‍नी एक दूसरे को देखते है और जोर से हंसते हैं। फिर सरला कहती है "आओ आओ पहले बैठो, मैं अभी कुछ खाने के लिए लाती हूँ" कहकर रसोई की ओर चली जाती है। 

मास्टरजी दुलारी के सर पर हाथ फेरते हुवे कहते हैं " शाबाश दुलारी, तुमने अपने माता - पिता का ही नहीं बल्कि हमारा भी सर गर्व से ऊंचा कर दिया"

तब तक सरला भी उनके खाने के लिए कुछ लाती है फिर वो भी दुलारी को अपनी बाहों में भर लेती है और खुशी से कहती है " आज तुमने मेरी उस विद्या की लाज रख ली जो मुझे आती ही नहीं है"

ये कहकर वो अपने पट्टी की तरफ देखती है और दोनों ज़ोर से हँसने लगते हैं। 

सरपंच, उसकी पत्‍नी और दुलारी उनको देखते हैं, उन्‍हें कुछ समझ नहीं आता तभी सरला दुलारी को अपने पास बुलाती है और कहती है "मुझे कोई हाथ-वाथ देखना नहीं आता"। 

सरपंच और उसकी पत्नी बड़े आश्चर्य से सरला को देखते हैं , तो वो कहती है "मैंने बस यूँही आप लोगों के अंधविश्‍वास का फायदा उठाकर दुलारी की कच्‍ची उम्र में होने वाली शादी को रोकने का प्रयास किया था,

और मुझे खुशी है कि मेरी वो चाल काम कर गई और मेरे एक झूठ ने एक बच्ची का जीवन सुधार दिया। 

देखो आज आप दोनों को अपनी दुलारी पर कितना गर्व है । आप दोनों ने मिलकर ही दुलारी के हाथों की लकीरों में लिख दिया कि वो पढ. लिखकर बड़ी अफसर बनेगी ।

और हॉं सरपंच जी अब दुलारी का उदाहरण देकर अपने गांव में सभी को समझाइए कि वो बच्‍चों का बाल-विवाह न करें और उन्‍हें शिक्षित करें, आगे बढ़ने के लिए मदद करें और प्रोत्‍साहित करें"। 

ये सुनकर वो सभी मंद मंद मुस्कुराने लगते हैं और पृष्ठभूमि से एक कविता की पंक्तियाँ गूँजती है -


                        जिस आंगन में बेटियां मुस्‍काती है,

                        उस आंगन में खुशियां भी खिलखिलाती है ।

                     माना छोटी छोटी बातों से रूठ जाती है,

                    पर दो मीठे बोल से ही जल्दी मान जाती है। 

                     कुछ नहीं मांगती बस वो इतना चाहती है,

                     डोली उसकी तभी उठे जब वो पढ़-लिख जाती है। 

                     वक़्त ने करवट ली है अब उम्मीद नज़र आती है,

                     घर से डोली अब तभी उठेगी जब बेटी पढ़-लिख जाती है। 


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